1222 1222 1222 1222
किसी की याद रातो मे हमें सोने नहीं देती
कसम उसने दिया था जो हमे रोने नहीं देती
चली थी साथ मेरे जो कभी इक हमसफर बन कर
न जाने पास अपने क्यों हमें होने नहीं देती
सिखाया था हमें जिसने जमाने में रहें कैसे
वही अब प्यार भी हमको वहाँ बोने नहीं देती
नहीं है प्यार मुझसे अब मगर नफरत जरा देखो
किसी को लाश भी मेरी वो अब ढोने नहीं देती
हमारे गीत में छुपकर हमेशा जो चली आती
बने आवाज दिल की वो हमें खोने…
Added by Akhand Gahmari on June 15, 2014 at 1:30am — 5 Comments
जब से "छपास" का
रोग लगा है.
लिखना रुकता ही नहीं ,
कविता अतुकांत,
कहानी अनगढ़ी ,
बिना यात्रा किये
यात्रा वृतांत,
बिना मिले
विरह वर्णन,
बिना प्यार किये,
रोमांच का सच.
वृद्ध हाथों में
क्रांति की मशाल,
बिना सच जाने
चेतावनी!
क्या मजाल,
कि आप कुछ बोल दें.
जरा सा सच का पर्दा खोल दें
चैनलों पर रात-दिन देखिए,
पूरे देश में,
"नपुंसक बवाल".
डॉ. विजय प्रकाश शर्मा
(मौलिक व् अप्रकाशित…
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 15, 2014 at 12:30am — 14 Comments
मालिक और महा प्रबंधक कंपनी में चल रही हड़ताल को लेकर कुछ गंभीर विचार विमर्श कर रहे थे कि अचानक कुछ आवारा कुत्ते बंगले के अंदर आ घुसे। साहिब का खूंखार पालतू कुत्ता बड़ी फुर्ती से उन आवारा कुत्तों पर झपटा और उन्हें दूर तक खदेड़ आया, तभी एक नौकर धीरे से मालिक के कान में आकर फुसफुसाया
“साहिब, वो यूनीयन के दूसरी तरफ वाले लीडर आ गए है।”
मालिक के तनावग्रस्त चेहरे पर एकाएक कुटिल मुस्कुराहट आ गई, और उसने मांस का एक बड़ा सा टुकड़ा अपने वफादार कुत्ते के आगे फैंक दिया…
Added by Ravi Prabhakar on June 14, 2014 at 11:59am — 14 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 14, 2014 at 10:44am — 18 Comments
कायर हैं वे लोग यहाँ
नारी को आँख दिखाते हैं
कमतर कमजोर हैं वे नर भी
नारी को ढाल बनाते हैं
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कौरव रावण इतिहास बहुत से
अधम नीच नर बदला लेते
अपनी मूंछे ऊंची रखने को
नारी का बलि चढ़ा दिए
अंजाम सदा वे धूल फांक
मुंह छिपा नरक में वास किये
मानव -दानव का फर्क मिटा
मानवता को बदनाम किये
नाली के कीड़े तुच्छ सदा
खुद को भी फांसी टांग लिए
नारी रोती है विलख आज
क्या पल थे ऐसे…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 13, 2014 at 7:00pm — 16 Comments
सबकी ऐसे गुजर गयी
हिन्दू देखे ,मुस्लिम देखे इन्सां देख नहीं पाया
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में आते जाते उम्र गयी
अपना अपना राग लिए सब अपने अपने घेरे में
हर इन्सां की एक कहानी सबकी ऐसे गुजर गयी
अपना हिस्सा पाने को ही सब घर में मशगूल दिखे
इक कोने में माँ दुबकी थी , जब मेरी बहाँ नजर गयी
दुनिया जब मेरी बदली तो बदले बदले यार दिखे
तेरी इकजैसी सच्ची सूरत, दिल में मेरे उतर गयी
मौलिक और अप्रकाशित
मदन मोहन सक्सेना
Added by Madan Mohan saxena on June 13, 2014 at 4:55pm — 7 Comments
मफऊल फ़ायलात मुफ़ाईल फायलुन
आया था लुत्फ़ लेने नवाबों के शह्र में
हैरतज़दा खड़ा हूँ नक़ाबों के शह्र में
आलूदा है फज़ाए बहाराँ भी इस क़दर
खुशबू नहीं नसीब गुलाबों के शह्र में
तहज़ीबे कोहना और तमद्दुन नफासतें
आया हूँ सीखने में नवाबों के शह्र में
ऐसी हसीं वरक़ को यहाँ देखता है कौन
हर सम्त जाहेलां है किताबों के शह्र में
बेहोश होने का न गुमां हमको हो सका
हर शख्स होश में है शराबों के…
ContinueAdded by Sushil Thakur on June 13, 2014 at 4:00pm — 4 Comments
11212 11212 11212 11212
कई बाग़ सूने हुये यहाँ , कई फूलों में हैं उदासियाँ
कई बेलों को यही फिक्र है , कि कहाँ गईं मेरी तितलियाँ
कभी दूरियाँ बनी कुर्बतें, कभी कुरबतें बनी दूरियाँ
ये दिलों के खेलों ने दी बहुत , हैं अजब गज़ब सी निशानियाँ
कभी आप याद न आ सके, कभी हम ही याद न कर सके
रहे शौक़ में हैं लिखे मिले , कई गम ज़दा सी रुबाइयाँ
वो हक़ीक़तें बड़ी तल्ख़ थीं, चुभीं खार बनके इधर उधर
सुनो वो चुभन ही…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 12, 2014 at 9:30pm — 32 Comments
वैसे तो मैं
हर डगर से पहुँच जाता हूँ
तेरे पास .
मगर यह
प्रेम डगर बहुत कठिन है.
तुम्ही आ जाओ न
ढलान से होकर.
डॉ. विजय प्रकाश शर्मा
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 12, 2014 at 8:00pm — 17 Comments
वह वृद्ध !!
कड़कती चिलचिलाती धूप मे
पानी की बूंद को तरसता
प्यास से विकल होंठो पर
बार बार जीभ फेरता
कदम दर कदम
बोझ सा जीवन, घसीटता
सर पर बंधे गमछे से
शरीर के स्वेद को
सुखाने की कोशिश भर करता
अड़ियल स्वेद
बार बार मुंह चिढ़ाता
थक कर चूर हुआ
वह वृद्ध !!
कुछ छांव ढूँढता
आ बैठा किसी घर के दरवाजे पर
गृह स्वामी का कर्कश स्वर –
हट ! ए बुड्ढे !!
दरवाजे पर क्यों…
ContinueAdded by annapurna bajpai on June 12, 2014 at 7:22pm — 18 Comments
वही रेत
वही घरोंदे
थपथपाते हाथ
सब कुछ वैसा
पर अब लगता
जीवन-सफर
सीलन भरा
शायद इसलिए ...
दिशाओं के पावडों पर
पग रख
समय रथ ने ,
द्रुत गति पकड़ी
और तुम दूर हो गए
पर ये कैसे कहूँ
जबकि हर पल हो पास
मेरी दुआओं में तुम
परछाईयों की तरह
बहुत खुश मैं ,कि
अचानक ...
मेरी पहचान बदलने लगी
कभी मुझसे तुम थे
आज तुम मेरी पहचान बने
यही…
Added by Deepika Dwivedi on June 12, 2014 at 6:00pm — 11 Comments
जब सूरज चला जाता है
अस्ताचल की ओट में
और चाँद नहीं निकलता है.
दिखती है उफक पर
पश्चिम दिशा की ओर
लाल लकीरें.
पूरब में काली आँखों वाला राक्षस
खोलता है मुंह
लेता है जोर की साँसे
चलती है तेज हवाएं.
लाल लकीरें डूब जाती हैं,
फिर सब हो जाता है प्रशांत.
मैं पाता हूँ स्वयं को
एक अंध विवर में
हो जाता हूँ विलीन
तम से एकाकार .
खो जाता है मेरा वजूद.
न जाने कब चाँद निकलेगा.
..नीरज कुमार नीर .
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Neeraj Neer on June 12, 2014 at 5:10pm — 14 Comments
प्रश्न यह अश्लील है, पैदा हुई क्यों लड़कियां ?
घर की दीवारें लाँघ कर बाहर गयी क्यों लड़कियां?
वो सांस्कृतिक कार्यक्रमों , में उम्र सीमा बांधते|
खोल कर उनके मुखौटे घर से क्यों भागी लड़कियां?
है किसी की बहन , किसी की बेटी लड़कियां
फिर क्यों चौराहों पर, घूरी जाती हैं लड़कियां ?
वक्त बदला है, वो जल्दी ही उतार फेकेंगी |
चूड़ियों की हथकड़ी और पायलों की बेड़ियाँ |
न जाने कितने रूपों में हैं प्यार लुटाती लड़कियां|
जिंदगी की धूप में , छाँव…
Added by DIWAS MISHRA on June 12, 2014 at 2:30pm — 19 Comments
3 -मुक्तक
1.
हर रंज़ पे .मुस्कुराता हूँ
तन्हा तुझे गुनगुनाता हूँ
किस रंग पे मैं यकीं करूँ
हर रंग से फ़रेब खाता हूँ
..................................
2.
हर तरफ बाज़ार नज़र आता है
हर रिश्ता लाचार नज़र आता है
अब गुल नहीं महकते बहारों में
हर शाख़ पर ख़ार नज़र आता है
.......................................................
3.
रास्ते बदल जाते हैं ...तूफाँ जब आते हैं
यादों के अब्र में ...अरमाँ पिघल जाते हैं
रुकते नहीं अश्क.…
Added by Sushil Sarna on June 12, 2014 at 1:00pm — 18 Comments
2122 2122 212
*********************
तन से जादा मन जरूरी प्यार को
मन बिना आये हो क्या व्यापार को
***
मुक्ति का पहला कदम है यार ये
मोह माया मत समझ संसार को
***
इसमें शामिल और जिम्मेदारियाँ
मत समझ मनमर्जियाँ अधिकार को
***
डूब कर तम में गहनतम भोर तक
तेज करता रौशनी की धार को
***
तब कहीं जाकर उजाला साँझ तक
बाँटता है सूर्य इस संसार …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2014 at 9:42am — 21 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 12, 2014 at 5:11am — 21 Comments
2122 1122 1122 22
दिल में उम्मीद तो होटों पे दुआ रखता हूँ
तुम चले आना मैं दरवाज़ा खुला रखता हूँ
ये तेरा हुस्न अगर जलता शरारा है तो क्या
मैं भी जज़्बात की जोशीली हवा रखता हूँ
राहे-उल्फ़त में तू अपने को अकेला न समझ
दिल में चाहत का दिया मैं भी सदा रखता हूँ
ख़ुशनुमा मंज़रो - तस्वीर न गुल बूटे से
अपने कमरे को दुआओं से सजा रखता हूँ
अपनी औक़ात कहीं भूल न जाऊँ ‘साहिल’
इसलिए महल में…
ContinueAdded by Sushil Thakur on June 11, 2014 at 10:13pm — 8 Comments
2122 2122 2122 2122
ज़ुल्फ़ जब उसने बिखेरी बज़्मे-ख़ासो-आम में
फ़र्क़ बेहद कम रहा उस वक़्त सुब्हो-शाम में
झाँककर परदे से उसने इक नज़र क्या देख ली
जी नहीं लगता हमारा अब किसी भी काम में
सिर्फ़ ख़ाकी, खादी पर उठती रही हैं उंगलियाँ
मुझको तो नंगे नज़र आये हैं सब हम्माम में
मान-मर्यादा, ज़रो-ज़न, इज्ज़तो, ग़ैरत तमाम
क्या नहीं गिरवी पड़ी है ख्व़ाहिशे-ईनाम में
एक दिन में मुफलिसों का दर्द क्या…
ContinueAdded by Sushil Thakur on June 11, 2014 at 10:07pm — 9 Comments
“अबे ओए, क्या तू ही दीनू है?” अपने दलबल के साथ अचानक आ धमके थानेदार ने अपनी रौबीली आवाज में पूछा
”जी सरकार मैं ही दीनू हूँ ......”
“क्या यही वो लड़की है जिसके साथ आज जबरदस्ती हुई है?” कोने में सिसकती लड़की की तरफ देखकर थानेदार की आंखों में गुलाबी से डोरे तैरने लगे।
“जी सरकार..........”
“जी सरकार के बच्चे... शिकायत क्यों नहीं की थाने में आकर....”
“जी, वो मुखिया जी ने समझौता..... ”
”देखिए…
Added by Ravi Prabhakar on June 11, 2014 at 3:00pm — 16 Comments
फिर किया है कत्ल उसने इश्तिहार है
शुक्र है वो हर गुनाह का जानकार है
कत्ल वो हथियार से करता नहीं कभी
कत्ल करने की अदा कजरे की धार है
अब वफादारी निभाता कौन है यहाँ
अब मुहब्बत हो गयी नौकाबिहार है
आजकल लगने लगा हैं वो कुछ नया नया
फिर हुआ शायद कोई उसका शिकार है
झूठ भारी हो गया सच के मुकाबले
आजकल सच हारता क्यों बार बार है
मार डालें ना मुझे बेचैनियाँ मेरी
दिल मेरा ये सोचकर अब सौगंवार…
ContinueAdded by umesh katara on June 11, 2014 at 2:00pm — 19 Comments
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