221-2121-1221-212
अखबार कोई आज भी अच्छा बचा है क्या
हर सत्य जिसमें नाप के छपता खरा है क्या।१।
*
राजा से पूछा करता जो डंके की चोट पर
जन के दुखों को देख के मानस दुखा है क्या।२।
*
हट कर खबर के पृष्ठों से सम्पादकीय में
जनता के हित का मामला कोई उठा है क्या।३।
*
जिस का लगाता दाँव है पत्रकार जान तक
निष्पक्ष सत्य सुर्खी में आता सदा है क्या।४।
*
पीड़ा हो जिस में लोक की केवल छपी हुई
नेता के नित्य कर्म को लिखना घटा है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2021 at 6:41am — 3 Comments
आंखें आंखें अद्भुत आंखें,नित नए रूप बदलती आंखें
सबकुछ कहतीं पर चुप रहतीं,नित नए रूप दिखाती आंखें
कहीं तो ज्वालामुखी हैं आँखें,कहीं झील सी गहरी आंखें
मंद मंद मुस्काती आँखें,कहीं उपहास उडा़ती आंखें
हिरनी सी चंचल ये आँखें,डरी डरी सहमी सी आंखें
लज्जा से भरी अवगुंठित आँखें,फिर टेढी चितवन वाली आंखें
कहीं प्यार बरसाती आंखें,कहीं पर सबक सिखाती आंखें
ममता भरी वो भीगी आँखें,सजदे में झुक जाती आंखें
क्रोध से लाल धधकती आँखें,मेघों सी वो बरसती…
ContinueAdded by Veena Gupta on June 29, 2021 at 6:54pm — 4 Comments
2×15
वक़्त गुज़र जाएगा ये भी पल पल का घबराना क्या?
जो आँखों में ठहर न पाये उन सपनों से रिश्ता क्या?
अपनी मर्ज़ी का जीवन हो ज्यादा हो या थोड़ा हो,
मरना तो सबको है इक दिन घुट घुट कर फिर जीना क्या?
सोच समझ कर कदम बढ़ाना हर रस्ते पर धोखा है,
घर के किस्से,देश की बातें ,दीन धर्म का झगड़ा क्या?
पहली दफा जब मिले थे तुमसे वो दिन तो अब याद नहीं,
लेकिन अब तक सोच रहे हैं टूट गया वो रिश्ता क्या?
सबका भला करने की कोशिश कभी नहीं…
ContinueAdded by मनोज अहसास on June 29, 2021 at 12:40am — No Comments
221/2121/1221/212
पत्थर जमाना बोये जो काटों की खेतियाँ
छोड़ो न तुम तो साथियों सुमनों की खेतियाँ।१।
*
कर लेंगे ये भी शौक से बेटे किसान के
लिख दो हमारे हिस्से में जख्मों की खेतियाँ।२।
*
ये जो है लोकतंत्र का धोखा मिला हमें
बन्धक रखी हैं वोट दे हाथों की खेतियाँ।३।
*
बदलो स्वभाव काम का हर दुख मिटाने को
किस्मत पे छाप छोड़ती कर्मों की खेतियाँ।४।
*
उजड़े नगर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 28, 2021 at 1:28pm — No Comments
गड़गड़ाकर
खाँसता है
एक बूढ़ा ट्रैक्टर
डगडगाता
जा रहा है
ईंट ओवरलोड कर
सरसराती कार निकली
घरघराती बस…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 26, 2021 at 9:21pm — 11 Comments
भारत की जब बात है होती,ज्योति मेरे दिल की है जलती
कितना सुंदर देश है मेरा,कितनी पावन रीति यहाँ की
घर घर मंदिर गुरुद्वारा है,सबके बीच परस्पर प्रीती
संतोष बड़ा धन है जीवन में,सिखलाती ये अपनीसंस्कृती
नहीं थोपते धर्म किसी पर,ना ज़िद कोई विश्व विजय की
खुश हैं हम अपनी धरती पर,नहीं चाहिए ज़मीं दुजे की
स्वयं जियो और जीने दो,भारत का सिद्धांत यही
विश्व संस्कृती को अपनाते,वसुधैव कुटुंबकम है येही
मौलिक/अप्रकाशित
वीणा
Added by Veena Gupta on June 24, 2021 at 9:48pm — 5 Comments
1222 1222 1222 1222
ज़ुमुररुद कब किसी मुफ़्लिस के घर चूल्हा जलाता है
मिरी जाँ ये तो बस शाहों कि पोशाकें सजाता है
रिआया भी तो देखो कितनी दीवानी सी लगती है
उसी को ताज़ कहती है जो इनके घर जलाता है
नगर में नफ़रतों के भी महब्बत कौन समझेगा
ए पागल दिल तू वीराने में क्यों बाजा बजाता है
हमारे हौसले तो कब के आज़ी टूट जाते पर
ये नन्हा सा परिंदा है जो आशाएँ जगाता है
कोई बेचे यहाँ आँसू तो कोई…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on June 24, 2021 at 6:00pm — 8 Comments
2122/2122/2122/212
है नहीं क्या स्थान जीवन भर ठहरने के लिए
जो शिखर चढ़ते हैं सब ही यूँ उतरने के लिए।१।
*
स्वप्न के ही साथ जीवन हो सजाना तो सुनो
भावना की कूचियाँ हों रंग भरने के लिए।२।
*
ये जगत बैठा के खुश हैं लोग यूँ बारूद पर
भेज दी है अक्ल सबने घास चरने के लिए।३।
*
खिल के आयेगी हिना भी सूखने तो दे सनम
रंग लेता है समय कुछ यूँ उभरने के लिए।४।
*
मौत का भय है न जिनको जुल्म वो सहते नहीं
जिन्दगी का लोभ काफी यार …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 23, 2021 at 7:18pm — 8 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 22, 2021 at 11:30pm — 3 Comments
Added by Mamta gupta on June 22, 2021 at 1:22pm — 10 Comments
Added by सालिक गणवीर on June 20, 2021 at 10:54pm — 6 Comments
2222 - 2222
हो के पशेमाँ याद करोगे
रो कर भी फ़रियाद करोगे
याद करोगे जब भी हमको
अश्क़ अपने बरबाद करोगे
ज़ख़्म लगेंगे जब फूलों से
तुम हमको तब याद करोगे
घर तो बसा लोगे यारो पर
दिल कैसे आबाद करोगे
उतनी दुआएं दूँगा तुमको
जितना मुझे बरबाद करोगे
बज़्म तुम्हारी हुक्म तुम्हारा
जो चाहे इरशाद करोगे
मेरी ख़ातिर छोड़ो भी…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 20, 2021 at 9:00pm — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
इज्जत हमारी उनसे ही पहचान जग में है
सच है हमारा तात से सम्मान जग में है।१।
*
वंदन उन्हीं के चरणों का करते हैं उठते ही
आशीष उन का ईश का वरदान जग में है।२।
*
मागें भला क्या ईश से मालूम हमको सब
माता पिता के रूप में भगवान जग में है।३।
*
सर पर पिता का हाथ है जिसके बना हुआ
वो सच स्वयं नसीब से धनवान जग में है।४।
*
हमको जहाँ के खेल का अनुभव नहीं कोई
जीना उन्हीं की सीख से आसान जग में है।५।
*
ये खेल ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2021 at 7:04pm — 6 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 17, 2021 at 8:30pm — 5 Comments
तैराक खुद को जाँचने पानी में आयेगा
तब ही नया सा मोड़ कहानी में आयेगा।१।
*
तुमको सफर मिला भी तो रस्ता बुहार के
रोड़ा न अब के कोई रवानी में आयेगा।२।
*
सत्तर बरस में बचपना इसका गया नहीं
कब देश अपना यार जवानी में आयेगा।३।
*
सोने की चिड़िया फिर से कहायेगा देश ये
जब दौर सुनहरा सा किसानी में आयेगा।४।
*
देती…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 17, 2021 at 6:30am — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
चाहत नहीं कि सब से ही मिलती दुआ रहे
केवल जगत में शौक से नेकी बचा रहे।१।
*
हम को कहो न आप गुनाहों का देवता
पापों की गठरी आप की हम ही जला रहे।२।
*
चाहत सभी को नींद जो आये सुकून की
इस को जरूरी रात में कोई जगा रहे।३।
*
माना बुरे हैं दाग भी हमको लगे हैं पर
वो ही उठाये उँगली जो केवल भला रहे।४।
*
अपनी ही आखें बन्द हैं मानो ये साथियो
अच्छे दिनों को खूब वो कब से दिखा रहे।५।
*
झगड़ा न…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2021 at 4:32am — 7 Comments
122 122 122 122
उठाकर शहंशह क़लम बोलता है
चढ़ा दो जो सूली पे ग़म बोलता है
ये फरियाद लेकर चला आया है जो
ये काफ़िर बहुत दम ब दम बोलता है
जुबाँ काट दो उसकी हद को बता दो
बड़ा कर जो कद को ख़दम बोलता है
गँवारों की वस्ती है कहता है ज़ालिम
किसे नीच ढा कर सितम बोलता है
बिठाता है सर पर उठाकर उसी को
जो कर दो हर इक सर क़लम बोलता है
बड़ी बेबसी में है जीता वो ख़ादिम
बड़ाकर जो…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on June 15, 2021 at 4:30pm — 6 Comments
ख़ुद को ऐसे सँवार कर जागा
यानी उस को पुकार कर जागा.
.
एक अरसा गुज़ार कर जागा
ख्व़ाब में ख़ुद से हार कर जागा.
.
तेरी दुनिया बहुत नशीली थी
जिस्म को अपने पार कर जागा.
.
आंखें तस्वीर की बिगाड़ी थीं
उनका काजल सुधार कर जागा.
.
ख़ुद-परस्ती में मैं उनींदा था
फिर अना अपनी मार कर जागा.
.
शम्स ने तीरगी पहन ली थी
सुब’ह चोला उतार कर जागा.
.
रात भर आईने की आँखों में
दर्द अपने उभार कर जागा. …
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 15, 2021 at 9:30am — 8 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 14, 2021 at 4:00am — 4 Comments
गुमनाम अंधेरे में देखो भारत का भविष्य पल रहा
दो जून रोटी की खातिर कोमल बचपन सुबक रहा
कलम चलाने वाले नन्हे हाथ झूठन साफ कर रहे
बस्ते उठाने वाले कंधे परिवार का बोझ उठा रहे
माँ के आंचल का फूल दरबदर की गाली खा रहा
भूखे पेट अपमान का घूंट पीकर जीवन गुजार रहा
हंसने-खेलने-पढ़ने की उम्र में मजदूर बन गये
बचपन की किलकारी खो गई मांझते-धोते
निरीह तरस्ती ऑखें उठ रही कुछ आस में...
इंसानियत के ठेकेदारों नियमों को मान लो
मंझवाने से अच्छा कल का भविष्य मांझ…
Added by babitagupta on June 10, 2021 at 3:30pm — No Comments
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