शायद अब इच्छाओं का अंत हो रहा है
यह सीमित शरीर अब अनंत हो रहा है
रे मन अचानक तुझे ये क्या हो गया है
खिलखिलाता था तू अब कुमंत हो रहा है
खुशियां बहुत सी बटोरी थी हमने भी
हर यादगार लम्हा अब अश्मंत हो रहा है
करीबी रिश्तों का मेरे मन के साथ सजाया
हर विचार शायद अब उमंत हो रहा है
करंड की भांति हर शरीर धरा पर मेरा भी
शहद या धार चली गई अब अस्वंत हो रहा है
मेरा चंचल मन जो नरेश था मेरे निर्णयों…
ContinueAdded by Vinay Prakash Tiwari (VP) on July 7, 2020 at 10:00am — 1 Comment
1222 1222 122
सफलता के शिखर पर वे खड़े हैं
सदा कठिनाइयों से जो लड़े हैं
बताओ नाम तो उन पर्वतों के
हमारे हौसलों से जो बड़े हैं
नहीं हैं नैन ये गर सच कहूँ तो
सुघर चंदा में दो हीरे जड़े हैं
जो प्यासी आत्मा को तृप्त कर दें
नहीं हैं होंठ, वे मधु के घड़े हैं
ये सच है कर्मशीलों के लिए तो
सितारे भूमि पर बिखरे पड़े हैं
ये दिल के घाव अब तक हैं हरे क्यों
यकीनन शूल शब्दों के गड़े…
Added by रामबली गुप्ता on July 6, 2020 at 11:37pm — 12 Comments
नगर खिन्न हो देखता, खुश होता देहात
हरियाली उपहार में, देती है ब रसात।१।
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हलधर सोया खेत में, तन पर ओढ़े धूल
रूठी बदली देखिए, जा बैठी किस कूल।२।
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धरती के दुख से हुई, अँधियारी हर भोर
बादल बिजली चीखते, मत आना इस ओर।३।
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जब से आयी गाँव में, फिर रिमझिम बरसात
सौंधी मिट्टी की महक, उठती है दिन-रात।४।
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वसन धरा के जो सुना, तपन ले गयी चोर
बौराए घन नापते, पलपल नभ का छोर।५।
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मेंढक जी तो हैं सदा, बरखा के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2020 at 10:51pm — 4 Comments
आज पर कुछ दोहे :
झूठ सरासर भूख से, तन बनता बाज़ार।
उजले बंगलों में चलें, कोठे कई हजार।।
नज़रें मंडी हो गईं, नज़र बनी बाज़ार।
नज़र नज़र में बिक गया, एक तन कई बार।।
नज़रों में है प्यार का, झूठ भरा संसार।
प्यार ओट में वासना, का होता व्यापार।।
कलियों का तन नोचतीं, वहशी नज़रें आज।
रक्षक भक्षक बन गए, लज्जित हुआ समाज।।
हुई पुरातन सभ्यता, नव युग हुआ महान।
बेशर्मी पर आज का, गर्व करे इंसान।।
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 6, 2020 at 9:46pm — 4 Comments
विकास - लघुकथा -
दद्दू अखबार पढ़ रहे थे। दादी स्टील के गिलास में चाय लेकर आगयीं,
"सुनो जी, विकास की कोई खबर छपी है क्या?"
"कौनसे विकास की खबर चाहिये तुम्हें?"
"कमाल की बात करते हो आप भी? कोई दस बीस विकास हैं क्या?"
"हो भी सकते हैं। दो को तो हम ही जानते हैं।"
"दो कौन से हो गये। हम तो एक को ही जानते हैं।"
"तुम किस विकास को जानती हो?"
"अरे वही जिसको पूरे प्रदेश की पुलिस खोज रही है।और आप किस विकास की बात कर रहे हो?"
"हम उस विकास की…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 6, 2020 at 6:30pm — 4 Comments
2212 /1212 /2212 /12
क्या आरज़ू थी दिल तेरी और क्या नसीब है
चाहा था टूट कर जिसे वो अब रक़ीब है।
पलकों की छाँव थी जहाँ है ग़म की धूप अब
वो भी मेरा नसीब था ये भी नसीब है।
ऐसे बदल गये मेरे हालात क्या कहूँ
अब चारा-गर कोई न ही कोई तबीब है।
कैसे मिले ख़ुशी हों भला दूर कैसे ग़म
मुश्किल कुशा के साथ वो मेरा रक़ीब है।
उसने बड़े ही प्यार से बर्बाद कर …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 6, 2020 at 2:16pm — 11 Comments
मापनी
२२१२ १२१२ ११२२ १२१२
प्यारी सी ज़िंदगी से न इतने सवाल कर,
जो भी मिला है प्यार से रख ले सँभाल कर.
तदबीर के बग़ैर तो मिलता कहीं न कुछ,
सब ख़ाक हो गए यहाँ सिक्का उछाल कर.
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 6, 2020 at 11:30am — 12 Comments
१२२२ × ४
कहीं पर भूख पसरी है फटे कपड़े पुराने हैं
भला मैं कैसे कह दूँ ये सभी के दिन सुहाने हैं।१।
**
वो गायें गीत फूलों के जिन्हें गजरे सजाने हैं
मगर हम स्वेद के गायें हमें पत्थर उठाने हैं।२।
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पुछें हर आँख से आँसू हमारा ध्येय इतना हो
न सोचो चन्द साँसों हित यहाँ सिक्के कमाने हैं।३।
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बसाना हो तो दुश्मन का बसा दो चाहे पहले पल
पहल अपने से ही करना अगर घर ही जलाने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2020 at 8:30am — 7 Comments
ख़्वाबों के रेशमी धागों से .......
कितना बेतरतीब सा लगता है
आसमान का वो हिस्सा
जो बुना था हमने
मोहब्बत के अहसासों से
ख़्वाबों के रेशमी धागों से
ढक गया है आज वो
कुछ अजीब से अजाबों से
शफ़क़ के रंग
बड़े दर्दीले नज़र आते हैं
बेशर्म अब्र भी
कुछ हठीले नज़र आते हैं
उल्फ़त की रहगुज़र पर शज़र
कुछ अफ़सुर्दा से नज़र आते हैं
हाँ मगर
गुजरी हुई रहगुज़र के किनारों पर
लम्हों के मकानों में
सुलगते अरमान
हरे नज़र आते…
Added by Sushil Sarna on July 5, 2020 at 9:32pm — 2 Comments
22 22 22 22 22 2
मेरे दिल का बोझ किसी दिन हल्का हो.
मिल ले तू इक बार अगर मिल सकता हो.
मुझको लगता है तू मुझको भूल गया,
तेरे मन में भी शायद कुछ धोखा हो.
तेज तपन के साथ है सूरज अब सर पर,
मेरी दुआ है तेरे सर पर कपड़ा हो.
मैं तुझको खुद में शामिल कैसे रक्खूँ,
तेरे नाम के आगे जब कुछ लिक्खा हो.
अब तो अपनेपन की तुझमें बात नहीं,
शायद तू अब मुझको ग़ैर समझता हो.
छोटी सी एक बात बतानी थी…
ContinueAdded by मनोज अहसास on July 5, 2020 at 4:35pm — 2 Comments
पैसों से क्या जान को
हम पाएगें तोल ?
सदा - सदा को बुझ गए
जब चिराग़ अनमोल
किन-किन के थे वरद हस्त
जो पनपी यह खोट
खोज-खोज उनकी करें
क्यों ना जड़ पर चोट ?
इस बढ़ती विष बेल पर
यदि ना डली…
ContinueAdded by Usha Awasthi on July 4, 2020 at 5:50pm — 6 Comments
ग़ज़ल (1222 *4 )
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उमड़ता जब हृदय में प्यार कविता जन्म लेती है
प्रकृति जब जब करे शृंगार कविता जन्म लेती है
***
नहीं देखा अगर जाये किसी से जुल्म निर्धन पर
बने संघर्ष जब आधार कविता जन्म लेती है
***
हुआ विचलित अगर मन है किसी भी बात को लेकर
गलत जब हो नहीं स्वीकार कविता जन्म लेती है
***
कभी पीड़ा हुई इतनी हुआ सहना जिसे…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 4, 2020 at 1:30pm — 6 Comments
1222 1222 122
ज़माने भर में जितने हादसे हैं.
हमें ख़ामोश होकर देखने हैं.
किसी को चलने में दिक़्क़त न आए,
चलो इतना सिमट कर बैठते हैं.
मेरी बेबाकियों के रास्ते में,
मेरी कुछ ख़्वाहिशों के कटघरे हैं.
बिना जिसके हुआ था जीना मुश्किल,
उसी के होने से शिकवे गिले हैं.
तुम्हारी याद भी इक रोग है क्या,
तुम्हारे ख़त को छूते डर रहे हैं.
दलीले रह गई कमज़ोर मेरी,
वो अपनी बात कह कर जा चुके…
Added by मनोज अहसास on July 3, 2020 at 8:55pm — 6 Comments
मन को इतना दे गये, अपने ही अवसाद
नाम पते सड़कें गली, क्या रक्खें अब याद।१।
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जीवन जिसको रेतघर, बादल क्या दे नीर
उसको तो हर हाल में, मिलनी है बस पीर।२।
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भूखा बेघर रख रहा, क्या कम यहाँ अभाव
उस पर करता रात - दिन, मँहगाई पथराव।३।
**
थकन बढ़ी है पाँव की, छालों के आसार
मिले कहाँ आराम को, तरुवर छायादार।४।
**
भले उजाले का हुआ, बहुत जगत भर शोर
दीपक नीचे क्यों रहा, तमस भरा घनधोर।५।
**
आँसू अपने डाल दो, उस आँचल में और
हर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2020 at 7:09pm — 8 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
लेके आया फिर से बचपन शायरी का सिलसिला
मौत से कह दो न रोके जिन्दगी का सिलसिला।१।
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रोक तेजाबों घुएँ की गन्दगी का सिलसिला
इन हवाओं में भरो कुछ ताजगी का सिलसिला।२।
**
कोशिशें दस्तक जो देंगी शब्द तोड़ेगे कभी
मौन की गहरी हुई इस तीरगी का सिलसिला।३।
**
हैं बहुत कानून अपनी पोथियों में यूँ मगर
रुक न पाया भ्रष्ट होते आदमी का सिलसिला।४।
**
एक जुगनू ने कहा ये भर तमस के काल में
डर न तम से मैं रखूँगा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2020 at 12:25pm — 10 Comments
212 / 1222 / 212 / 1222
दुनिया के गुलिस्ताँ में फूल सब हसीं हैं पर
एक मुल्क ऐसा है जो बला का है ख़ुद-सर
लाल जिसका परचम है इंक़लाब नारा है
ज़ुल्म करने में जिसने सबको जा पछाड़ा है
इस जहान का मरकज़ ख़ुद को गो समझता है
राब्ता कोई दुनिया से नहीं वो रखता है
अपनी सरहदों को वो मुल्क चाहे फैलाना
इसलिए वो हमसायों से है आज बेगाना
बात अम्न की करके मारे पीठ में खंजर
और रहनुमा उसके झूट ही बकें दिन भर
इंसाँ की तरक़्क़ी…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on July 3, 2020 at 1:00am — 10 Comments
मापनी 22 22 22 22
पंछी को अब ठाँव नहीं है,
पीपल वाला गाँव नहीं है.
दिखते हैं कुछ पेड़ मगर,
उनके नीचे छाँव नहीं है.
लाती जो पिय का संदेशा,
कागा की वह काँव नहीं है
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 2, 2020 at 5:19pm — 4 Comments
उम्र साठ-सत्तर तक की ,
आदमी पांच पीढ़ियों से रूबरू हो लेता है।
देखता है , समझ लेता है कि
कौन कहाँ से चला , कहाँ तक पहुंचा ,
कैसे-कैसे चला , कहाँ ठोकर लगी , ,
कहाँ लुढ़का , गिरा तो उठा या नहीं उठा ,
और उठा तो कितना सम्भला।
कर्म , कर्म का फल , स्वर्ग - नर्क ,
कितना ज्ञान , विश्वास , सब अपनी जगह हैं।
हिसाब -किताब सब यहीं होता दिखाई देता है।
बस रेस में दौड़ने वालों को सिर्फ
लाल फीता ही दिखाई देता है।
मौलिक एवं अप्रकाशित…
ContinueAdded by Dr. Vijai Shanker on July 2, 2020 at 9:36am — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on July 1, 2020 at 9:30pm — No Comments
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