Added by Naveen Mani Tripathi on August 25, 2017 at 10:30pm — 2 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 25, 2017 at 7:10am — 14 Comments
प्रकाश को काटते नभोचुम्बी पहाड़
अब हुआ अब हुआ अँधेरा-आसमान ...
अनउगा दिन हो यहाँ, या हो अनहुई रात
किसी भी समय स्नेह की आत्मा की दरगाह
दीवारों के सुराख़ों में से बुलाती है मुझको
और मैं आदतन चला आता हूँ तत्पर यहाँ
पर आते ही आमने-सामने सुनता हूँ आवाज़ें
इस नए निज-सर्जित अकल्पनीय एकान्त में
अनबूझी नई वास्तविकताओं के फ़लसफ़ों में
और ऐसे में अपना ही सामना नहीं कर पाता
झट किसी दु:स्वप्न से जागी, भागती,…
ContinueAdded by vijay nikore on August 25, 2017 at 6:49am — 23 Comments
१२२ १२२ १२२ १२२
नहीं है यहाँ पर मुझे जो बता दे
सही रास्ता जो मुझे भी दिखा दे
ये कैसी हवा जो चली है यहाँ पर
परिंदा नहीं जो पता ही बता दे
चले थे कभी साथ साथी हमारे
पुरानी लकीरों से यादें मिटा दें
कभी तो मिलेगी ज़िन्दगी पुरानी
वफ़ा की ज्वाला यहाँ भी जला दे
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 24, 2017 at 9:00pm — 24 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 24, 2017 at 6:39pm — 10 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on August 24, 2017 at 1:26pm — 13 Comments
Added by Mohammed Arif on August 23, 2017 at 10:00pm — 19 Comments
अरकान हैं 'फ़ाइलातून फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
आज तू जो मुझे बदला सा नज़र आता है
दोस्ती में तिरी धोका सा नज़र आता है
तूने छोड़ा था मुझे यार किसी की शह पर
इसलिये आज तू तन्हा सा नज़र आता है
ये तो शतरंज की बाजी है बिछाई उसकी
तू तो इस खेल में मुहरा सा नज़र आता है
है शिकन साफ़,शिकस्तों की तिरे माथे पर
तू हमें कुछ डरा सहमा सा नज़र आता है
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by santosh khirwadkar on August 23, 2017 at 8:30pm — 15 Comments
2122 1212 22 /122
मंज़रे ख़्वाब से निकल जायें
अब हक़ीकत से ही बहल जायें
ज़ख़्म को खोद कुछ बड़ा कीजे
ता कि कुछ कैमरे दहल जायें
तख़्त की सीढ़ियाँ नई हैं अब
कोई कह दे उन्हें, सँभल जायें
मेरे अन्दर का बच्चा कहता है
चल न झूठे सही, फिसल जायें
शह’र की भीड़ भाड़ से बचते
आ ! किसी गाँव तक निकल जायें
दूर है गर समर ज़रा तुमसे
थोड़ा पंजों के बल उछल जायें
चाहत ए रोशनी में…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 23, 2017 at 8:11pm — 37 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on August 23, 2017 at 9:00am — 8 Comments
2122 1122 1122 22
जब भी देखूँ वो मुझे चाँद नज़र आता है !
रोशनी बन के दिलो जाँ मे समा जाता है !!
उस हसीं शोख़ का दीदार हुआ है जब से !
उसका ही चेहरा हरेक शै में नज़र आता है !!
मै मनाऊँ तो भला कैसे मनाऊँ उसको !
मेरा महबूब तो बच्चो सा मचल जाता है !!
क्यूं भला मान लूँ ये इश्क़ नहीं है उसका !
छु्पके तन्हाई में गीतों को मेरे गाता है !!
मैं तुझे चाँद कहूँ फूल कहूँ या खुश्बू !
तेरा ही चेहरा हरेक शै…
Added by SALIM RAZA REWA on August 22, 2017 at 11:00pm — 21 Comments
डिग्री धारी एक कवि ने पूछा इक बेडिग्रे से
कैसे लिखते हो कविताएँ दिखते तो बेफिक्रे से।
अलंकार रस छंद वर्तनी कैसे मैनेज करते हो
करते हो कुछ काट - चिपक या फिर अपना ही धरते हो।
पिंगल और पाणिनि को पढ़ मैं तो सोचा करता हूँ,
मात्रिक वार्णिक वर्णवृत्त मुक्तक में लोचा करता हूँ।
यति गति तुक मात्रा गण आदि सभी अंगों को ढो लाते
जरा बताओ ज्ञान कहाँ से इतने सब कुछ का पाते?
-- तब बेचारे हकबकाए क्वैक कवि ने उत्तर दिया --
भाई मैंने आज ही जाना इतने…
ContinueAdded by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 22, 2017 at 8:25pm — 4 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on August 22, 2017 at 6:00pm — 10 Comments
लौट आओ ....
बहुत सोता था
थक कर
तेरे कांधों पर
मगर
जब से
तू सोयी है
मैं
आज तक
बंद आँखों में भी
चैन से
सो नहीं पाया
माँ
जब भी लगी
धूप
तुम
छाया बन कर
आ गए
जब से
तुम गए हो
मुझे
धूप
चिढ़ाती है
छाया में भी
बहुत सताती है
पापा
डांटते थे
जब पापा
माँ
तुम मुझे
अपनी ममता में
छुपाती थी
डांटती थी
जब माँ…
Added by Sushil Sarna on August 22, 2017 at 5:52pm — 17 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 22, 2017 at 5:00pm — 23 Comments
मुझे कुछ और करना है, तुम्हें कुछ और पाना है
मुझे इस ओर जाना है, तुम्हें उस ओर जाना है
कि अब मुमकिन नहीं लगता
कभी इक ठौर बैठें हम
हमें मंजिल बुलाती है, चलो अब अलविदा कह दें....
जहाँ संबोधनों के अर्थ भावों को न छू पाएं
वहाँ सपने कहो कैसे सहेजें और मुस्काएं ?
चलो उस राह चलते हैं जहाँ हों अर्थ बातों में
स्वरों में प्राण हो जिसके मुझे वो गीत…
Added by Dr.Prachi Singh on August 22, 2017 at 12:00pm — 12 Comments
1222 1222 1222 1222
हमारे ग़म का उसको क्या कभी अंदाज होता है।
हमारी राह में कांटे जो वो हरबार बोता है।
कभी रूठे अगर जो हम तो ये भी याद रखना तू,
न फिर पायेगा हमको तू अगर इस बार खोता है।
बता इस ग़म का तुझपर क्यों नहीं कोई असर होता,
तू हर दम मुस्कुराता है हमारा दिल जो रोता है।
झमेले ज़िन्दगी के मुश्किलों से झेलते हैं हम,
अकेले जूझते हैं हम उधर उधर वो खूब सोता है।
अजब अपनी कहानी है रहे हैं हम निथरते ही,
बरसती आँख का…
Added by मंजूषा 'मन' on August 22, 2017 at 12:00pm — 17 Comments
कौन जाने क्या हुआ है धरा क्यों है भीत।
हो रहा संक्रमित कैसे मौसमों का रीत।
गुम हुए हैं घरों के खग
छिपकली हैं शेष,
क्या पता कौए गए हैं
दूर कितने देश।
कब उगेंगे वृक्ष नूतन होगी कल - कल नाद
कैसे होगी पत्थरों पर हरीतिमा की शीत।
धूप की गर्मी बढ़ी है
सूखती है दूब,
आस का पंछी तड़पता
धैर्य जाता डूब।
क्षीण होती जा रही है अब दिनोदिन छाँव
कब सुनाई देगी वो ही मौसमी संगीत।
आ धमकती सुबह से ही
गर्म किरणें…
ContinueAdded by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 21, 2017 at 9:54pm — 7 Comments
२१२२ १२१२ २२
खामशी की जबान समझो ना
अनकही दास्तान समझो ना
सामने हैं मेरी खुली बाहें
तुम इन्हें आस्तान समझो ना
ये गुजारिश सही मुहब्बत की
तुम खुदा की कमान समझो ना
स्याह काजल बहा जो आँखों से
हैं वफ़ा के निशान समझो ना
बस गए हो मेरी इन आँखों में
इनमें अपना जहान समझो ना
झुक गया है तुम्हारे कदमों में
ये मेरा आसमान समझो…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 21, 2017 at 10:43am — 42 Comments
1222 1222 122
नए चेहरों की कुछ दरकार है क्या ।
बदलनी अब तुम्हें सरकार है क्या ।।
बड़ी मुश्किल से रोजी मिल सकी है ।
किया तुमने कोई उपकार है क्या ।।
सुना मासूम की सांसें बिकी हैं ।
तुम्हारा यह नया व्यापार है क्या ।।
इलेक्शन लड़ गए तुम जात कहकर ।
तुम्हारी बात का आधार है क्या ।।
यहां पर जिस्म फिर नोचा गया है ।
यहां भी भेड़िया खूंखार है क्या ।।
बड़ी शिद्दत से मुझको पढ़ रहे हो ।
मेरा चेहरा कोई अखबार है क्या…
Added by Naveen Mani Tripathi on August 20, 2017 at 4:30pm — 12 Comments
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