अचानक अजीब मनोदशा
अँधेरी हो रही हैं धुँधली आँखें
कुछ नहीं जानता मैं अब भँवर में
कुछ भी नहीं पहचानता हूँ अंत में
यह निसत्बध्ता, यह काया
एकाकार हो रहे हैं क्या ?
साथ बंधी आ रही हैं कभी की
रात देर तक करी हमारी बातें
समुद्र की लहर-सी छलकती
अमृत के झरनों-सी हम दोनों की हँसी
आँखों में ठहरे कभी के अनुच्चरित प्रश्न
पल में तुम्हारा परिचित चिंता में डूब जाना
उफ़्फ़.. इतने वर्षों के बाद भी वही है…
ContinueAdded by vijay nikore on August 8, 2019 at 6:14pm — 8 Comments
संतान (क्षणिकाएं ) ....
बुझ गए बुजुर्ग
करते करते
रौशन
अपने ही चिराग
.....................
कर रही
वृक्षारोपण
वृद्धाश्रम में
वृद्धों की हाथों
उनकी ही संतान
.......................
हो गया
संस्कारों का
दाहसंस्कार
मौन बिलखता रहा
कहकहों में
संतान के
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 8, 2019 at 12:57pm — 6 Comments
2×15
कोई अपना साथ न आए, हर कोशिश नाकाम लगे
मेरे पास चले आना जब, जीवन ढलती शाम लगे
इसको पिछले जन्मों का फल,कहते हैं दुनिया वाले
पेड़ बबूल के बोये फिर भी,उसके हाथों आम लगे
बिक जाने की लाचारी का,एक तजुर्बा ये भी है
जितनी ज्यादा खुद्दारी थी,उतने ही कम दाम लगे
चौथ का चांद देखने वाले,पर लगता है झूठा दोष
हमने तो पूनम को देखा फिर भी सौ इल्जाम लगे
टूटा मन है ,रोगी तन है, रिश्तों में बेगानापन
यारो कुछ…
Added by मनोज अहसास on August 7, 2019 at 9:13pm — 4 Comments
उद्मम करते जो सदा
कर्मनिष्ठ , मतिधीर
वे सम्पन्न समाज की
रखते नींव , प्रवीर
श्रमेव जयते में सदा
जिनका है विश्वास
उनके ही श्रम विन्दु से
ले वसुन्धरा श्वास
मेहनत भी एक साधना
नहीं कोई यह भोग
लक्ष्य केन्द्रित वृत्ति ही
बन जाए फिर योग
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on August 6, 2019 at 7:00pm — 3 Comments
अभिव्यक्ति का संत्रास ...
वरण किया
आँखों ने
यादों का ताज
पूनम की रात में
होती रही स्रावित
यादें
नैन तटों से
अविरल
तन्हा बरसात में
वीचियों पर
यादों की
तैरती रही
परछाईयाँ
देर तक
तन्हा अवसाद में
कर न सके व्यक्त
अधरों से
अन्तस् के
सिसकते जज्बातों की
अव्यक्त अभिव्यक्ति का संत्रास
शाब्दिक अनुवाद में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 6, 2019 at 5:06pm — 10 Comments
मुझसे ना उलझे कोई ये जान ले
मैं कोई श्लाघा नही ताकीद हूँ
तेरी मंज़िल तक तुझे पहुँचाऊगाँ
मैं कोई छलिया नही मुर्शिद हूँ
हंस रहे हैं मुझपे वो ये जान…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 6, 2019 at 4:30pm — 5 Comments
2122 1212 112/22
जिस्म में पहले जान फूँकता है
बाद-अज़-जाँ अज़ान फूँकता है
सब्र कर शब गुज़र ही जाएगी
क्यों ये अपना मकान फूँकता है
अपनी नफ़रत की आग से कोई
देखो हिंदौस्तान फूँकता है
पास आकर वो गर्म साँसों से
मेरे दिल का जहान फूँकता है
आग तो सर्द हो चुकी कब की
क्यों अबस राखदान फूँकता है
हुक्म से रब के ल'अल मरयम का
देखो मुर्दे में जान फूँकता है
रोज़ आयात पढ़…
ContinueAdded by Samar kabeer on August 6, 2019 at 3:00pm — 19 Comments
2122 2122 2122 212
तुम मेरे ख़ाबों के गुलशन में रहो हक़ है तुम्हें
मुझ से जब चाहो ख़यालों में मिलो हक़ है तुम्हें
तुम को तकने की ख़ता, नींदें गँवाने की सज़ा
बदला आँखों से मेरी ऐसे ही लो हक़ है तुम्हें
बस तुम्हारा नाम हर पल जप रहा है मेरा दिल
मेरे सीने से लगो तुम भी सुनो हक़ है तुम्हें
कल्पना के व्योम में जितना मेरा विस्तार है
वह क्षितिज पूरा तुम्हारा, तुम उड़ो हक़ है तुम्हें
शब्द सारे भाव हर लय ताल…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 6, 2019 at 10:45am — 8 Comments
पिछले दो घंटे से उसका परिवार इस टाइगर रिज़र्व में घूम रहा था. मौसम भी बेहद शानदार था इसलिए सब खुश थे. अभी तक काफी जानवर दिखाई पड़ गए थे लेकिन शेर से सामना नहीं हुआ था. गाइड लगातार बता रहा था कि वह ऐसी जगह ले चलेगा जहाँ कई शेर देखने को मिलेंगे, पहले बाकी जानवर देख लिए जाएँ. उसने भी सहमति दे दी और उनकी जीप धीरे धीरे जंगल में घूम रही थी.
"अरे यहाँ सिग्नल कमजोर है, आवाज कट रही है. मैंने एक मैसेज किया है, उसे पढ़कर लेक के किनारे वाले फ्लैट की रजिस्ट्री की तैयारी कर लो. मैं परसों तक आ जाऊंगा,…
Added by विनय कुमार on August 5, 2019 at 4:30pm — 8 Comments
वो मेरा था तारा ...
यादों के बादल से
नैनों के काजल से
लहराते आँचल से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा
महकती फिजाओं से
परदेसी हवाओं से
बरसाती राहों से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा
सपनों के अम्बर से
खारे समंदर से
मन के बवंडर से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा
यादों के नीड से
महकते हुए चीड से
ख्वाबों की भीड़ से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था…
Added by Sushil Sarna on August 5, 2019 at 3:35pm — 6 Comments
गाँव के दोहे
संगत में जब से पड़ा, सभ्य नगर की गाँव
अपना घर वो त्याग कर, चला गैर के ठाँव।१।
***
मिलना जुलना बतकही, पनघट पर थी खूब
सब अपनापन मर गया, मोबाइल में डूब।२।
***
बिछी सड़क कंक्रीट की, झुलसे जिसमें पाँव
पीपल कटकर गुम हुये, कौन करे फिर छाँव।३।
**
सेज माल के वास्ते, कटे खेत खलिहान
जिससे लोगों मिट गयी, गाँवों की पहचान।४।
**
सड़क योजना खा गयी, पगडंडी हर ओर
पहले सी होती नहीं, अब गाँवों की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2019 at 8:36am — 10 Comments
कहे-अनसुने-से रहे कुछ जज़्बात
उसपर अनकहे एहसासों का भार
अजीब-सी बेचैन बेकाबू धड़कन का
तकलीफ़-भरा भयानक शोर ...
पन्नों पर उतर तो आते हैं यह
पर भरमाया घबराया मन
इनकार भरा
भार कोई हल्का नहीं होता
पगलाई अन्दरूनी हवाएँ
खयालों-सी वेगवान
झकझोरती आसमानी तूफ़ान बनी
लफ़्ज़ों से लफ़्ज़ टकराते
सूखे पेड़ों-से छूटे पत्तों की तरह
आढ़ी-टेढ़ी लकीरों को बेतहाशा समेटते
लुढ़क जाती है स्याही
रात अँधेरी…
ContinueAdded by vijay nikore on August 5, 2019 at 7:52am — 6 Comments
चंद हाइकु ...
संग दामिनी
धक-धक धड़के
प्यासा दिल
तड़पा गई
विगत अभिसार
बैरी चपला
लुप्त भोर
पयोद घनघोर
शिखी का शोर
छुप न पाया
विरह का सावन
दर्द बहाया
खूब नहाई
रूप की अंगड़ाई
रुत लजाई
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 3, 2019 at 5:07pm — 4 Comments
ललालाला ललालाला ललालाला ललालाला
.
न मंदिर में मिले ईश्वर, गुफाओं में न जाने से .
न भूखे पेट रहने से, न गंगा ही नहाने से .
उसे पाना अगर सच में, हृदय में झाँक कर देखो ,
मिले रैदास, मीरा - प्रेम की बगिया खिलाने से .
.
कभी है धूप जीवन में, कभी मिलते यहाँ साए.
सहारे को नहीं ढूँढ़ो, मिले या फिर न मिल पाए.
गिराती शाख कैसे फल, धरा पर सीख लो…
Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on August 3, 2019 at 2:00pm — 2 Comments
एक तिल से ताड़ करो , आराम नहीं आगाज़ करो||
घर गृहथी का कार्य करो , और अपना भी कुछ सम्मान करो ||
पत्नी बनो, माँ बनो और बन जाओ एक लेखिका भी ||
लेखिका बनकर खिलादो वो सारे ज़ज़्बात भी||
मन बुद्धि शब्दों से बुद्धि मन पर प्रहार करो ||
एक तिल से ताड़ करो , आराम नहीं आगाज़ करो
कलम कागज़ को दोस्त बनाओ देकर उन्हें लेखन का न्योता
न्योता देकर पास बुलाओ और फिर करलो एक समझौता
की मेरा साथ निभाओगे और सभी दबे ज़ज़्बात खिलाओगे
एक तिल से…
ContinueAdded by Pratibha Pandey on August 3, 2019 at 12:30am — 4 Comments
ले बाहों में सोऊँगी ....
सावन की बरसात को
प्रथम मिलन की रात को
धड़कते हुए जज़्बात को
संवादों के अनुवाद को
ले बाहों में सोऊँगी
अस्तित्व अपना खोऊँगी
अपनी प्रेम कहानी को
भीगी हुई जवानी को
बारिश की रवानी को
नैन तृषा दिवानी को
ले बाहों में सोऊँगी
अस्तित्व अपना खोऊँगी
उस नशीली रात को
उल्फ़त की बरसात को
अजनबी मुलाक़ात को
हाथों में थामे हाथ को
ले बाहों में सोऊँगी
अस्तित्व अपना…
Added by Sushil Sarna on August 2, 2019 at 5:19pm — 4 Comments
प्रयाग में गंगा से गले मिलकर यमुना ने कहा –” दीदी अब आगे तू ही जा I मेरी इच्छा तुझसे भेंट करने की थी, वह पूरी हुयी I रही समुद्र में जाकर सायुज्य हो जाने की बात तो वह मोक्ष तुझे ही मुबारक हो I वह मुझे नहीं चाहिए I मैं अब इससे आगे नही जाऊँगी, न अकेले और न तेरे साथ I”
“मगर क्यों बहन ? तुम मेरे साथ क्यों नही चलोगी ? दुनिया मुक्ति के लिए कितने जतन करती है और तू है की मुख चुरा रही है ?”
“हां दीदी ?”
“पर क्यों ?”
“तू हमेशा ज्ञानियों के संग में रही है I…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2019 at 9:27pm — 16 Comments
बूँद भर
आँख में ठहरा रहा
अश्रू सम बहरा रहा
विस्फरित हो तन गया
बूँद भर जल बन गया
कह दिया न कहना था जो
न सहा वो सहना था जो
था ही क्या जो कह गया
मन बेमन हो रह गया
एक ताला बनती चाबी
प्रश्न- माला कितनी बांची
कैसे झटका सह गया
मोती -मोती कह गया
कैसे -कैसे मन ने टाला
मन ही ने लेकिन उछाला
झरना सा सब झर गया
बूँद भर जल रह…
ContinueAdded by amita tiwari on August 1, 2019 at 1:30am — 3 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |