छोटी छोटी बातें बने आस्था के प्रश्न जब ,
बातें बड़ी बड़ी जाने क्यों बिसा र जाते है
अन्नदाता को तो है पिलाते दूध हम किन्तु ,
नौनिहाल देश की प्यासे मर जाते है
द्रौपदी के हिय की व्यथा सुनेगा कौन यहाँ
कृष्ण की चरित्र जब सत्ता की निमित्त हों
कैसे होंगे सीमित दु:शासनों के आचरण
कुंती पुत्र जब आत्मदाह को प्रवत्त हों
कैसे राष्ट्रगान राष्ट्र चिंतन करेगा कोई
पेट को भूख को अंगारे छलते हो मित्र
कैसे होगा देश का भविष्य खुशहाल भला
सड़कों पे जब वर्त्तमान…
Added by ajay sharma on September 30, 2012 at 11:30pm — 2 Comments
Added by shikha kaushik on September 30, 2012 at 9:49pm — 3 Comments
मनाना तो चाहता हूँ ईद
मगर बंद है
मेरे दिल के दरवाज़े
और ईद का चाँद
मुझे दिखाई नहीं पड़ता
दिवाली,दशहरा कैसे मनाऊँ
मेरे अन्दर का रावण
नहीं मरता मुझसे
बापू की जयंती है
पर मै
उनसे भी शर्मिंदा हूँ
मेरे अन्दर हिंसा है
लालच है
मै नहीं मिला पाता
अपनी नज़रें
उनकी तस्वीर से
जिन शहीदों ने
जान तक दे दी
हमारी आज़ादी के लिए
हमने उनका सब कुछ लूट…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on September 30, 2012 at 7:00pm — 5 Comments
Added by पीयूष द्विवेदी भारत on September 29, 2012 at 10:34pm — 10 Comments
दर पे हमारे शाम इक इठला के रह गई
हमको तुम्हारी दास्ताँ याद आके रह गई
बहरोवज़न के खेल भी हमने समझ लिए
बन्दिश में आके शाइरी कुम्हलाके रह गई
होना था दिल के टूटने के बाद और क्या
ज़िदमें ही ज़ीस्त ख्वाबको झुठलाके रह गई
बेबस हुए कुछ इस तरह किस्मतके हाथ हम
तेरी निगाहेनाज़ भी समझा के रह गई
मुझको तिरी बेजारियों का कुछ गिला नहीं
मेरी भी ज़िंदगी अना दिखला के रह गई
गुंचे शगुफ्ता…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 29, 2012 at 10:00pm — 6 Comments
कभी जो मैंने गुजारे थे पल
तुम्हारे दामन में दिन-ओ-रैना
हसीं वो मंजर भुला न पाया
ग़ज़ब था तेरा मिलाना नैना
दिवानापन ले भुला के खुद को
तुम्हारी चाहत को फिरता दरदर
भटकता राहों में तन्हा ऐसे
मिले न राहत मिले न चैना
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 29, 2012 at 6:56pm — 2 Comments
पेड़ -
सुनो पेड़ -
छीन ली बैसाखी ,
मोनू आया तेरे दर
पैंया पैंया !
तुमने जो कहा -
मैंने क्या सही सुना -
बहन बड़ा न भैया
Added by DR. SAROJ GUPTA on September 29, 2012 at 2:49pm — 2 Comments
मन एक सागर
जहाँ ;
भावनाओं की जलपरियाँ
करती हैं अठखेलियाँ
विचारों के राजकुमारों के साथ ;
घात लगाये छुपे रहते
क्रोध के मगरमच्छ ;
लालच की व्हेल भयंकर मुँह फाड़े आतुर
निगल जाने को सबकुछ ;
घूमते रहते ऑक्टोपस दिवास्वप्नों के ;
आते हैं तूफान दुविधाओं के ;
विशालता ही वरदान है
और अभिशाप भी ;
अद्भुत विचित्रता को स्वयं में समेटे
एक अनोखा सम्पूर्ण संसार है
जो सीमाओं में रहकर भी
सीमाओं से मुक्त है ;
मन एक सागर
जहाँ ;
अतीत डूब…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 29, 2012 at 12:41pm — 12 Comments
ऐसा लगता है कि इस ग़ज़ल की बह्र तरही मुशायरे २७ की ग़ज़ल की ही है. रदीफ़ तो वही है, पर काफिया अलग. मैंने शेर वज़न और बह्र में कहने की कोशिश तो की है, पर मेरे आलिम दोस्त ही बताएंगे कि मैं कोशिश में कितना कामयाब हुआ.
लम्हा-ए-दीदनी-ओ-नज़ारा-ए-पल गया
वो माह बनके अर्श पे आया निकल गया
गर्दूं में शब की चांदनी हौले से आ बसी
रोज़ेविसालेयार भी आखिर में ढल गया
मिटने लगे हैं फर्क अब दिन रात के सभी
मौसम हमारे शह्र का कितना बदल…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 29, 2012 at 9:43am — 2 Comments
शहर में शांति है
आज गाँधी जी के बुत के सामने फिर दंगे भड़क गए
धर्म के नाम पर लोग भिड़ गए मेरे शहर में
कितने ही मासूमों का खून बह निकला सड़कों पर
दिनभर से शहर में कर्फ्यू लगा है
Added by Er.vir parkash panchal on September 28, 2012 at 5:30pm — 4 Comments
संघर्ष में आनंद है जो कामयाबी में कहाँ !
दर्द में जो बात है वो बात राहत में कहाँ !
मुद्दा कोई उलझा रहे चलती रहें बस अटकलें ,
जो मज़ा उलझन में है वो सुलझने में कहाँ !
Added by shikha kaushik on September 28, 2012 at 5:00pm — 5 Comments
तुम जल रहे हो, हम जल रहे हैं
ख़ुद अपनी आँच में पिघल रहे हैं
नया दौर हैं नये हैं रस्मों-रिवाज़
अब इंसानियत के पैगाम बदल रहे हैं
बाज़ारों की रौनक है, जादू का खेल
किस…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on September 28, 2012 at 4:00pm — 6 Comments
पौधा रोपा परम-प्रेम का, पल-पल पौ पसरे पाताली |
पौ बारह काया की होती, लगी झूमने डाली डाली |
जब पादप की बढ़ी उंचाई, पर्वत ईर्ष्या से कुढ़ जाता -
टांग अडाने लगा रोज ही, बकती जिभ्या काली गाली |
लगी चाटने दीमक वह जड़, जिसने थी देखी गहराई -
जड़मति करता दुरमति से जय, पीट रहा आनंदित ताली |
सूख गया जब प्रेम वृक्ष तो, काट रहा जालिम सौदाई -
आज ताकता नंगा पर्वत, बिगड़ चुकी जब हालत-माली |
लगी खिसकने चट्टानें अब , भूमि स्खलित होती हरदम -
पर्वत की…
ContinueAdded by रविकर on September 28, 2012 at 2:00pm — 4 Comments
फूलों का सफर या
कांटों की कहानी
क्या कहूं कैसी है
ये जिंदगानी
कभी तो इसी ने
आंखों से पिलाया
बड़ी बेरूखी से
कभी मुंह फिराया
गम की इबारत या
जलवों की कहानी
क्या कहूं कैसी है
ये जिंदगानी
कभी सब्ज पत्तों पर
शबनम की लिखावट
कभी चांदनी में
काजल की मिलावट
कभी शोखियों की
गुलाबी शरारत
कभी तल्ख तेवर की
चुभती…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on September 28, 2012 at 12:46pm — 3 Comments
कई दिन की बारिश के बाद,
आज बड़ी अच्छी सी धूप खिली थी,
नीला सा आसमान,
जो भरा था कई सफ़ेद बादलों से,
कई लोगों ने अपने कपड़े,
फैला दिये थे सुखाने को छ्तों पर,
जो कई दिन से नमी से सिले पड़े थे,
याद आ ही गई बचपन की वो बात बरबस,
की जब कहा करते थे की,
बारिश होती है जब ऊपर वाला कभी रोता है,
फिर जब धूप खिलती थी,
और आसमान भर जाता था सफ़ेद बादलों से,
तब कहा करते थे की,
ऊपर वाले ने भी सुखाने डाली…
ContinueAdded by पियूष कुमार पंत on September 27, 2012 at 10:47pm — 4 Comments
हंसी और भी तुमको मौसम मिलेंगे।
मगर दोस्त तुमको कहां हम मिलेंगे।।
मेरा दिल दुखाकर अगर तुम हंसोगे।
तुम्हें जिंदगी में बहुत ग़म मिलेंगे।।
अगर जिंदगी में खुशी चाहते हो।
तो इस राह कांटे भी लाज़िम मिलेंगे।।
कभी भी किसी ने ये सोचा न होगा।
कि इनसान के पेट में बम मिलेंगे।।
खुशी सबको मिलती नहीं मांगने से।
बहुत लोग दुनिया में गुमसुम मिलेंगे।।
तुम्हारी खुशी को जुदा हो गया हूँ।
अगर जिंदगी है तो फिर हम…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on September 27, 2012 at 10:20pm — 4 Comments
बदल गयी नियति दर्पण की चेहेरो को अपमान मिले है ,
निस्ठायों को वर्तमान में नित ऐसे अवसान मिले है
शहरों को रोशन कर डाला गावों में भर कर अंधियारे
परिवर्तन की मनमानी में पनघट लहूलूहान मिले है,
चाह कैस्तसी नागफनी के शौक़ जहाँ पलते हों केवल
ऐसे आँगन में तुलसी को अब जीवन के वरदान मिले है ,
भाग दौड़ के इस जीवन में मतले बदल गए गज़लों के
केवल शो केसों में…
Added by ajay sharma on September 27, 2012 at 10:00pm — 3 Comments
=====नज्म=====
तुम्हारी भीगी पलकें
याद हैं मुझे
भीगी पलकें
झरने सी छलकीं
पिरो न पाया था
एक मोती भी
और मेरे समन्दर-ए-दिल में
बाढ़ आ गयी…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 27, 2012 at 4:41pm — 2 Comments
मत लुटना मीठी मुसकानों पर,
ये जिस्मों की एक बनावट हैं,
कंकरीले-पथरीले रास्तों का हैं सफर,
ऊपर फूलों की बस सजावट हैं,…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on September 27, 2012 at 1:30pm — 1 Comment
खुदा बहुत ही चालाक है
Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 27, 2012 at 11:12am — 2 Comments
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