Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2015 at 9:30pm — 5 Comments
बाजार में बहुत भीड़ थी आज । क्यों ना हो ,नवरात्रि का पहला दिन, लोग सुबह से ही स्नान ध्यान कर पूजा-पाठ की तैयारी में लगे हुए थे ।
मै भी स्नान कर ,कोरी साड़ी पहन, नंगे पैर माता रानी को लिवाने आई थी । फुटपाथ के उसी निश्चित कोने में , माता रानी विविध रूपों में मुर्ति रूप लिये दुकानों में सज रही थी । कहीं तीन मुंह वाली शेर पर सवार थी , कहीं अपने अष्टभुजा में सम्पूर्ण शस्त्रों के साथ , तो कहीं दस भुजा लेकर महिषासुर का वध करती हुई । काली ,चामुण्डा सबके दर्शन हुए लेकिन मै लेकर…
Added by kanta roy on October 13, 2015 at 8:00pm — 4 Comments
"चाचीजी, मेरे मन में वर्षों से एक सवाल है, यदि आप बुरा ना मानो तो पूछ लूं"!
"बिरज़ू बेटा, पूछ ले क्या शंका है तेरे मन में"!
"चाचीजी, पूरे खानदान में आपकी और चाचाजी की जोडी सबसे अब्बल है! सुंदर ,स्वस्थ और आकर्षक, मगर संतान हीन!क्या आपने कभी इस बारे में नहीं सोचा!कोई जांच आदि नहीं कराई"!
"क्या करेगा अब ये गढे मुर्दे उखाडकर, जाने भी दे"!
"चाचीजी, बताइये ना, ऐसा क्यों हुआ"!
"तो सुन, जब मैं व्याह के आयी थी तो पहले ही दिन मुझे घर की औरतों ने बताया कि तेरे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 13, 2015 at 2:00pm — 6 Comments
"फोन करने और 'ईद मुबारक़' कहने की क्या ज़रूरत थी ?" शबाना ने एतराज़ जताते हुए कहा।
" तो तुमने इतने सालों बाद भी मेरी आवाज़ पहचान ली थी ! फिर तुमने अपने शौहर को क्यों दे दिया फोन ?" कुछ नाराज़गी के लहज़े में आफताब ने पूछा।
"ग़ैर मर्दों से यूँ फोन पर बातें करना हमारे यहाँ मना है। आवाज़ क्या, तुम्हारी तो रग-रग से वाकिफ हूँ मैं तो !" लम्बी साँस लेते हुए शबाना ने उसे समझाया- " देखो, गढ़े मुर्दे उखाड़ कर ज़ख़म कुरेदने से कोई फायदा नहीं ! तुम्हारे वालिद साहब ही घर आये थे और उन्होंने बहुत…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2015 at 8:00am — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 12, 2015 at 8:48am — 7 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 11, 2015 at 10:39pm — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 11, 2015 at 3:29pm — 5 Comments
Added by मनोज अहसास on October 11, 2015 at 2:30pm — 6 Comments
Added by kanta roy on October 11, 2015 at 9:16am — 2 Comments
Added by kalpna mishra bajpai on October 11, 2015 at 9:00am — 11 Comments
इस बार गर्मियाँ तालाब का ढेर सारा पानी पी गईं। मछुआरे से बचते-बचाते धीरे-धीरे मछलियाँ बहुत चालाक हो गईं थीं। वो अब मछुआरे के झाँसे में नहीं आती थीं। उनके दाँत भी काफ़ी तेज़ हो गए थे। अगर कोई मछली कभी फँस भी गई तो जाल के तार काटकर निकल जाती थी। मछुआरे को पता चल गया था कि इस बार उसका पाला अलग तरह की मछलियों से पड़ा है। वो पानी कम होने का ही इंतज़ार कर रहा था।
उसने तालाब के एक कोने में बंसियाँ लगा दीं, दूसरी तरफ जाल लगा दिया और तीसरी तरफ से ख़ुद पानी में उतर कर शोर मचाने लगा। अब…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 10, 2015 at 6:47pm — 2 Comments
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कल, ए काल!
मैं, तेरे साथ ही आया था।
वादा भी था, साथ साथ चलने का , चलते रहने का।
आज,
तू मुझसे कितना आगे निकल गया.....!
नहीं नहीं... .. मैं रह गया हॅूं तुझसे बहुत पीछे.... ..!
इसलिये कि,
मैंने रुक कर, देखना चाहा इस प्रकृति के प्रवाह को,
पल पल बदलते रंगों के निखार को,
उलझती सुलझती वहुव्यापी चाह को।
तू... चलता रहा, चलता रहा कछुए की तरह,,,
और मैं ने अपनाया खरगोश की राह को।
एक बार नहीं , कई बार हुई हैं ये…
ContinueAdded by Dr T R Sukul on October 10, 2015 at 3:45pm — 2 Comments
गीत (नयन झील के हंस अकेले)
सत्य कामना प्रेम साधना, प्राण हवा प्रभु को भाते हैं.
नयन झील के हंस अकेले, मोती सारे चुंग जाते हैं..
प्रिय तुम्हारे आकर्षण से,
मन-दर्पण सब शरमाते हैं
सूरज- चंदा, गगन-सितारे,
सागर-घन सब घबराते हैं.
अहं बावरे रसिक दिवाने,
मूक-पंगु बन पछताते हैं.
नयन झील के हंस अकेले, मोती सारे चुंग जाते हैं..1
देह चांदनी छुवन मर्मरी,
सहज भाव यश वंदन करती.
पथ के घुंघुरू बांध…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 9, 2015 at 9:40pm — 7 Comments
अपनी सास और जेठ-जिठानी से पिंड छुड़ाने के बाद, खुद को नये ज़माने की कहने वाली मात्र बारहवीं पास छोटी बहू काजल अब काफी संतुष्ट थी। बेटे को दूध पिलाने के लिए पति को राजी कर एक बकरी भी अब उसने पाल ली थी। गांव की एक लड़की से हर रोज़ की तरह घर की साफ-सफाई और लीपा-पोती करवाने के बाद आज काजल भोजन पकाने की तैयारी कर ही रही थी कि पति की ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी। आज फिर पड़ोसी से झगड़ा हो गया था। बेटे को वहीं रसोई में छोड़ फुर्ती से वह बाहर की ओर भागी। जैसे-तैसे झगड़ा शांत कराकर जब वापस…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on October 9, 2015 at 9:00am — 6 Comments
Added by kanta roy on October 9, 2015 at 8:50am — 6 Comments
झुमका झांझर चूड़ियाँ, करधन नथ गलहार |
बिंदी देकर मांग भर,.....कर साजन सिंगार ||
सूनी सेज न भाय रे, छलकें छल-छल नैन |
पी-पी कर रतिया कटे,....दिन करते बेचैन ||
उस आँगन की धूल भी, करती है तकरार |
अपनेपन से लीपकर , जहां बिछाया प्यार ||
हरियाली घटने लगी, कृषक हुए सब दीन |
राजनीति जब देश की, खाने लगी जमीन ||
टहनी के हों पात या, हों फुनगी के फूल |
दोनों तरु की शान हैं, तरु दोनों का मूल ||…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on October 8, 2015 at 7:00pm — 8 Comments
अब समाचार ब्यापार हो गए
किसकी बातें सच्ची जानें
अब समाचार ब्यापार हो गए
पैसा जब से हाथ से फिसला
दूर नाते रिश्ते दार हो गए
डिजिटल डिजिटल सुना है जबसे
अपने हाथ पैर बेकार हो गए
रुपया पैसा बैंक तिजोरी
आज जीने के आधार हो गए
प्रेम ,अहिंसा ,सत्य , अपरिग्रह
बापू क्यों लाचार हो गए
सीधा सच्चा मुश्किल में अब
कपटी रुतबेदार हो गए
मौलिक और अप्रकाशित
मदन मोहन सक्सेना
Added by Madan Mohan saxena on October 8, 2015 at 2:30pm — 2 Comments
गीतिका, आधार छंद- वाचिक महालक्ष्मी
(212 212 212)
शब्द अब गीत रचने लगे,
राज़ दिल के बिखरने लगे। /1/
दोस्त दुश्मन सभी दूर हैं
अब स्वयं को समझने लगे। /2/
नौकरी रिश्वतों से मिली,
आज अक्षम चमकने लगे। /3/
ठोकरें दीं सभी ने हमें,
पैर रखकर कुचलने लगे। /4/
प्रेम, दोस्ती रही आज तक,
शक हमें दूर रखने लगे। /5/
युग्म जुड़ कर करेंगे भला,
गीतिका-भाव भरने लगे। /6/
(मौलिक व अप्रकाशित)
_शेख़…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 8, 2015 at 8:07am — 9 Comments
“बेटे सुजित, कहाँ हो” शर्मा जी अपनी चाबी से मुख्य दरबाजा खोलते ही अंदर अँधेरा देख बोले Iआबाज लगाते लगाते ही घर की बत्तियाँ जलाने लगे Iज्यों ही बेटे वाले कमरे की बत्ती का बटन दबाया, कक्षा दो में पढ़ने बाले बेटे को मोबाइल पर अपने नन्हें दोस्तों से व्हाट्स एप पर चैटिंग करते देख डांटते हुए बोले, “हर समय बस चैटिंग-चैटिंग, कुच्छ होम वर्क कर लेते I उठो, जाओ अपना होम वर्क करो I”
“आइ एम सॉरी पापा --” रुआंसा हुआ सुजित बोला, “ पर पापा --आप सुवह मेरे स्कूल जाने से पहले आफिस निकल जाते हो और…
ContinueAdded by कंवर करतार on October 7, 2015 at 10:00pm — 6 Comments
"जल्दी करो भाई, देर हो हो रही मुझे , आज तुझे छोड़, तेरी माँ को अस्पताल भी दिखा कर फिर ड्यूटी जाऊँगा ” महिंद्र ने नवीन की तरफ देखते हुए कहा । मुश्किल से दो घंटे की छुट्टी मिली थी ,जल्दी चलें, तीनों बाहर आए और मोटर साईकल पर सवार हो घर से निकल पड़े, अभी चोंक पर आ के रुके तो ट्रैफिक पुलिस के मुलाज़िम ने रोक कर एक तरफ मोटर साईकल खड़ा करके कागज़ दिखाने के लिए कहा, तब महिंद्र ने धीमी आवाज़ से कहा “मुलाज़िम हूँ । बीवी ठीक नहीं है इसे अस्पताल दिखाने जा रहें हैं ।” मगर ट्रैफिक पुलिस के मुलाज़िम…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on October 7, 2015 at 9:30pm — 2 Comments
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