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November 2013 Blog Posts (198)

बाल दिवस पर

क्या  कभी देखा है 

छोटे - छोटे बच्चो को

कूड़ा बीनते 

या फिर किसी होटल में

जूठे प्याले धोते 

या फूटपाथ पर जूते सिलते

या किसी सेठ की

भव्य दूकान  में

अपनी उम्र और वज़न से

ज्यादा  बोझ उठाते

या श्रम करते ?

तो क्या यही सचमुच

भारत के बच्चे है,

देश के भविष्य है ?

क्या इन बच्चो के

प्यारे-प्यारे मन में 

हमने कभी झाँका है ? 

क्या उनके सपनो को

जग ने कभी नापा…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 14, 2013 at 8:30am — 11 Comments

फिर बारिशें होने लगती हैं......

फिर बारिशें होने लगती हैं......



कभी कभी

एक दावानल सा भड़क जाता है

मन के

हरे भरे /महकते

चहचहाते /किलोल करते

गर्जनाओं और वर्जनाओं के / जंगल में

डर

चीखों और चीत्कारों के साथ

हावी हो जाता है....

बेचैनी / घबराहट / घुटन / यंत्रणा

जैसे शब्द

किसी क्षण की चरम स्थितियों…

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Added by dr lalit mohan pant on November 14, 2013 at 1:30am — 11 Comments

बाज़ार

यहाँ परछाईयों का सौदा होता है

हर चीज यहाँ बिकाऊ है

हर पल तमाशा लगता है

तुम अपना दाम कहो

छुप के नहीं खुले आम कहो

क्या लोगे अपनी यारी का

क्या लोगे अपनी दिलदारी का

मेरा गम लोगे कितने में

तुम प्यार करोगे कितने में

सब जज़बात तुम मेरे नाम करो

हमराही तुम अपना दाम कहो

पर दाम चुकाने के खातिर

हम अपनी जेब टटोलें तो

बस प्यार मिलेगा बहुत सारा

पर ये सिक्के अब कहाँ चलते हैं

ये दुनिया बे-एतबारी की .....

ये अर्ज है हर व्यापारी की… Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on November 13, 2013 at 10:01pm — 16 Comments

जो रख हाथ तू माथे पे मेरे

जो रख हाथ तू माथे पे मेरे

मैं रोना भूल जाऊँगा

जो दे दे हाथ तू हाथों में मेरे

मैं उठ कर खिल खिलाऊँगा

ना जाने दे मुझे उस पर तक

ना फिर मैं लौट पाऊँगा

ये क्या ज़िद है मेरी बच्चों के तरह

कि मैं फिर से लड़खड़ाऊँगा

तू झिड़क दे हाथ मेरा

मैं फिर अंगुली बढ़ाऊँगा

मैं बैठा याद करने अंगुलियों पर

मैं किसको भूल जाऊँगा

रही है मेरी हमसफ़र मेरी ये ज़िंदगी

मैं कैसे भूल जाऊँगा

अप्रकाशित अमुद्रित

अजय कुमार…

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Added by ajay sharma on November 13, 2013 at 9:30pm — 12 Comments

रेत का घरौंदा....................... ( अन्नपूर्णा बाजपेई )

समंदर किनारे रेत पर

चलते चलते यूं ही

अचानक मन किया

चलो बनाए

सपनों का सुंदर एक घरौंदा

वहीं रेत पर बैठ

समेट कर कुछ रेत

कोमल अहसास के साथ

बनते बिगड़ते राज के साथ

बनाया था प्यारा सा सुंदर 

एक घरौंदा................

वही समीप बैठ कर

बुने हजारों सपनो के

ताने बाने जो

उसी रेत की मानिंद

भुरभुरे से ,

हवा के झोंके से उड़ने को बेताब

प्यारा घरौंदा ..............

अचानक उठी…

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Added by annapurna bajpai on November 13, 2013 at 8:00pm — 23 Comments

मतदाता

बताया जा रहा हमें 

समझाया जा रहा हमें 

कि हम हैं कितने महत्वपूर्ण

लोकतंत्र के इस महा-पर्व में 

कितनी महती भूमिका है हमारी 



ई वी एम  के पटल पर

हमारी एक ऊँगली के

ज़रा से दबाव से 

बदल सकती है उनकी किस्मत 



कि हमें ही लिखनी है

किस्मत उनकी 

इसका मतलब

हम भगवान् हो…

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Added by anwar suhail on November 13, 2013 at 8:00pm — 10 Comments

!!! मनमोहन रूप सॅंवार रहे !!!

!!! मनमोहन रूप सॅंवार रहे !!!
दुर्मिल सवैया- आठ सगण

मनमोहन  रूप  सॅंवार  रहे, छवि  देख रहे  जमुना जल में।
सब ग्वाल कमाल धमाल करें, झट कूद पड़े जमुना जल में।।
अधरों पर  ज्ञान भरी  मुरली, रस धार  बहे जमुना जल में।
गउ-ग्वालिन डूब गयीं रस में, तन  तैर रहे जमुना जल में।।

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

 

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 13, 2013 at 6:00pm — 23 Comments

मेरा वजूद

बात एक रात की,

मैं था सोया

मीठे सपनो में खोया

तभी सपनो में आयी

एक सुन्‍दर नारी

दमकता चेहरा पर उदास

उज्‍जवल वस्‍त्र पर गंदे

कीचड में सने

मैं इर कर कॉंप…

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Added by Akhand Gahmari on November 13, 2013 at 4:10pm — 3 Comments

क्‍या है प्रेम, अखंड गहमरी

क्‍या है प्रेम,
पूछते रह गये।
क्‍या हैं प्रेम,
सोचते रहे गये।
क्‍या है ,परिभाषा प्रेम की,
 खोजते रह…
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Added by Akhand Gahmari on November 13, 2013 at 2:29pm — 7 Comments

ग़ज़ल - जादुई बात थी सजाओं में - पूनम शुक्ला

2122. 1212. 22

जाने क्या बात है हवाओं में
मीठी मिश्री घुली सदाओं में

ऐसी वैसी नहीं ये रातें हैं
चाँदनी खोजतीं खलाओं में

शबनमी रात ने कहा कुछ है
कुछ नई बात है सबाओं में

रात का है असर अभी ऐसा
जामुनी रंग है अदाओं में

रोशनी छीन ले जो वो मेरी
ऐसी ताकत नहीं ज़फाओं में

जिन्दगी आज सोचती है ये
जादुई बात थी सजाओं में

पूनम शुक्ला

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Poonam Shukla on November 13, 2013 at 10:02am — 12 Comments

गजल: मैं अभागा किस कदर बादल रहा/शकील जमशेदपुरी

बह्र: 2122/2122/212

_______________________________

दीप मेरा दुनिया को है खल रहा

जब से ये बादे मुखालिफ जल रहा



फिर वही बेचैनियां और मन उदास

ख्वाब किसका दिल में फिर से पल रहा



चांद को अब सौंप कर सब रोशनी…

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Added by शकील समर on November 12, 2013 at 11:07pm — 17 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'--उठेगी जब तेरी अर्थी

उठेगी जब तेरी अर्थी, ये नज्ज़ारा नहीं होगा,

चिता को आग देगा, क्या, तेरा प्यारा नहीं होगा?

.

हमारे आंसुओं को तुम जगह लब पर ज़रा दे दो.

यकीं जानों कि इनका ज़ायका खारा नहीं होगा.

.

नज़र मुझ से मिलाकर अब ज़रा वो बेवफ़ा देखे,

फिर उसके पास मरने के सिवा चारा नहीं होगा.

.

बहुत से लोग दुनियाँ में भटकते है मुहब्बत में,

जहां भर में कोई सूरज सा आवारा नहीं होगा.

.

ठहरता ही नहीं है ये कहीं भी एक भी पल को,

समय सा कोई भी फक्कड़ या…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on November 12, 2013 at 10:48pm — 17 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
दुन्दुभी क्या? वो बाँसुरी होगी -- ( ग़ज़ल ) गिरिराज भन्डारी

दुन्दुभी क्या? वो बाँसुरी होगी

*******************************

 2122    1212       22

 

काई ज़ज़्बात पर जमी होगी

दूरी ,क्या यूँ ही बन गयी होगी  ?

पूर्ण तो बस ख़ुदा ही होता है…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on November 12, 2013 at 6:00pm — 31 Comments

कविता - अन्वेषण

मेघ भी है, आस भी है और आकुल प्यास भी है,

पर बुझा दे जो हृदय की  आग वह पानी कहाँ है ?

 

स्वाति जल की  कामना में, 'पी कहाँ?' का मंत्र पढ़कर 

बादलो  को जो रुला दे, मीत !  वह मानी कहाँ है ?

 

क्षत-विक्षत  है  उर धरा का, रस रसातल में समाया,

सत्व सारा जो लुटा दे,  अभ्र वह  दानी कहाँ है ?

 

पार नभ के लोक में, जो बादलो पर राज करता,

छल-पराक्रम का धनी वह इंद्र अभिमानी कहाँ है ?

 

मौन  पादप, वृक्ष नीरव, वायु चंचल,  प्राण…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 12, 2013 at 12:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल - कुछ नई बात है सबाओं में - पूनम शुक्ला

2122. 1212. 22

जाने क्या बात है हवाओं में
मीठी मिश्री घुली सदाओं में

ऐसी वैसी नहीं ये रातें हैं
चाँदनी खोजतीं खलाओं में

शबनमी रात ने कहा कुछ है
कुछ नई बात है सबाओं में

रात का है असर अभी ऐसा
जामुनी रंग है अदाओं में

रोशनी छीन ले जो वो मेरी
ऐसी ताकत नहीं ज़फाओं में

जिन्दगी आज सोचती है ये
जादुई बात थी सजाओं में

पूनम शुक्ला

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Poonam Shukla on November 12, 2013 at 9:37am — 2 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मृत्यु सुंदरी ब्याह करोगी ? ( अरुण कुमार निगम)

मृत्यु सुंदरी ब्याह करोगी ?

गीत मेरे सुन वाह करोगी ?

सुख- दु:ख की आपाधापी ने, रात-दिवस है खूब छकाया  

जीवन के संग रहा खेलता , प्रणय निवेदन कर ना पाया

क्या जीवन से डाह करोगी ?

कब आया अपनी इच्छा से,फिर जाने का क्या मनचीता

काल-चक्र  कब  मेरे बस में , कौन  भला है इससे जीता

अब मुझसे क्या चाह करोगी ?

श्वेत श्याम रतनार दृगों में , श्वेत पुतलियाँ  हैं एकाकी  

काले कुंतल  श्वेत हो गए , सिर्फ झुर्रियाँ तन पर…

Continue

Added by अरुण कुमार निगम on November 12, 2013 at 8:00am — 25 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
दीवार

दीवार

 

मैं जानता हूँ

तुम्हें उस दीवार से डर लगने लगा है,

दीवार, जो तुम्हारे और तुम्हारे अपनों के बीच

समय ने खड़ी कर दी है.

उठो,

उस दीवार से ऊपर उठो

नहीं तो सुबह औ’ शाम

उसकी लम्बी होती छाया

तुम्हें लील लेगी.

 

उस पार देखने के लिये

ऊपर उठना पड़ेगा,

उस दीवार से बहुत ऊपर –

और,

दीवार को नीचा दिखाने के लिये

तुम्हें नीचे आना पड़ेगा,

उस ज़मीं पर

जहाँ तुम्हारे अपने

तुम्हारी…

Continue

Added by sharadindu mukerji on November 11, 2013 at 11:00pm — 16 Comments

चोका

घने जंगल

वह भटक गया

साथी न कोई

आगे बढ़ता रहा

ढ़ूंढ़ते पथ

छटपटाता रहा

सूझा न राह

वह लगाया टेर

देव हे देव

सहाय करो मेरी

दिव्य प्रकाश

प्रकाशित जंगल

प्रकटा देव

किया वह वंदन

मानव है तू ?

देव करे सवाल

उत्तर तो दो

मानवता कहां है ?

महानतम

मैने बनाया तुझे

सृष्टि रक्षक

मत बन भक्षक

प्राणी जगत

सभी रचना मेरी

सिरमौर तू

मुखिया मुख जैसा

पोषण कर सदा…

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Added by रमेश कुमार चौहान on November 11, 2013 at 9:30pm — 10 Comments

कोई सपना भटक रहा है मेरी आँखों में.............

कोई सपना भटक रहा है मेरी आँखों में

पल पल चन्दन महक रहा है मेरी आँखों में

दरिया, नदिया, ताल नहर सब भीगे भीगे है

कब से बादल लहक रहा है मेरी आँखों में

पल भर बतियाता है फिर ओझल हो जाता हैं

किसका चेहरा झलक रहा है मेरी आँखों में

गालिब, की ग़ज़लों सी नाजुक एक कली को देख

कोई हिरना फुदक रहा है मेरी आँखों में

एक ग़ज़ल बातें करती है टुकड़ों में मुझसे

तन्हा मिसरा फटक रहा है मेरी आँखों…

Continue

Added by अमि तेष on November 11, 2013 at 9:00pm — 9 Comments

मेरा प्रश्‍न ---अखंड गहमरी की प्रस्‍तुति

वक्‍त की मारी नहीं मैं,

हालत की मारी नहीं मैं,

जिन्‍दगी से घबराई नहीं मैं

शिकार हूँ दुश्‍कर्म की ,

जि‍न्‍दगी से हारी नहीं मैं।

अवला नहीं मैं 

जो सहूँ जुल्‍मो सितम केा

आज की नारी हूँ,

बदल दूँगी जमाने को,

जमाने की सोच केा

अपनी जिंन्‍दगी केा

क्‍योंकि मैं आज की नारी हूँ

जिन्‍दगी से हारी नहीं हूँ।

मेरा क्‍या हुआ,

सम्‍मान गया

नहीं।

बेनकाब हो गया

चेहरा मानव समाज का

सल्‍तनत…

Continue

Added by Akhand Gahmari on November 11, 2013 at 7:30pm — 7 Comments

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