एक दोहा गज़ल - प्रीत -(प्रथम प्रयास )
छूट गयी जब से यहाँ, सहज प्रेम की रीत
आती तन की वासना, बनकर मन का मीत।१।
*
चलते फिरते तन करे, जब तन से मनुहार
मन को तब झूठी लगे, मन की सच्ची प्रीत।२।
*
एक समय जब स्नेह में, जाते थे जग हार
आज सुवासित वासना, चाहे केवल जीत।३।
*
भरे सदा ही प्रीत ने, ताजे तन मन घाव
प्रेम रहित जो हो गये, खोले घाव अतीत।४।
*
मण्डी जब से देह को, कर बैठे हैं लोग
मन से मन के मध्य में, आ पसरी है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2021 at 11:25am — 6 Comments
22 22 22 2
1
आँख खुली तो जाना था
इश्क़ मुहब्बत धोका था
2
उधड़ी सीवन रिश्तों की
चुपके से वो सिलता था
3…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on September 13, 2021 at 11:00am — 3 Comments
सर झुका दूँ तेरे दर पर, ये मुझे करना नहीं
जान दे दूं हंस के लेकिन डर के है मरना नहीं
हाँथ जोडू पैर पकड़ूँ न तेरी मिन्नत करूँ
अपने ख़ातिर तेरे आगे डर के न तौबा करूँ
तू ने ही बनाया सबको जो ये चाहे सोच ले
तेरे ही लिखे पे फिर क्यों तेरा ही ना बस चले
तू अगर अगर है जन्मदाता सबका पालन हार है
जो दबे हैं उनपर दुःख का क्यों तोड़ता पहाड़…
ContinueAdded by AMAN SINHA on September 13, 2021 at 10:07am — 4 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 212
हुस्न तो मिट जाएगा फिर भी अदा रह जाएगी
ढल चलेगी ये जवानी पर वफ़ा रह जाएगी
साथ मेरे तुम हो जब तक प्यार की सौग़ात है
बिन तुम्हारे ज़िन्दगी ये इक सज़ा रह जाएगी
जब तलक माँ-बाप राज़ी बस दुआ मक़्बूल है
दिल दुखा तो फ़र्श पर ही हर दुआ रह जाएगी
ईद का दिन है तेरी रहमत भी है अब जोश में
मेरे जैसों की भी झोली ख़ाली क्या रह जाएगी
कर भलाई के भी…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 12, 2021 at 10:38pm — 4 Comments
एक शव को गिद्ध कौओं द्वारा नोचते खसोटते देख करीब पड़े एक बूढ़े बीमार कुत्ते से न रहा गया और उसने उनसे कहा ,"अरे!अरे! इतनी बेदर्दी से इसको क्यों नोच-खसोट रहे हो। थोड़ा आराम से खाओ न । अब यह कौन-सा उठने वाला है?"
गिद्ध ने अपना आहार खाते हुए कहा,"आओ! तुम भी चखो,इसका माँस बहुत ही स्वादिष्ट है...।"
कौओं के समूह से एक कौए ने कहा," अहा! मैंने भी ऐसा स्वदिष्ट माँस पहले कभी नहीं खाया...।"
बूढ़े कुत्ते ने अपने अगल-बगल देखा, उसको अपनी बिरादरी का कोई भी सदस्य कहीं नज़र नहीं आया। उसका शरीर…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 12, 2021 at 3:28pm — 3 Comments
2122 - 2122
तू शफ़ीक़-ओ-मह्रबाँ है
तुझसा माँ कोई कहाँ है
तेरे आँचल का ये साया
मुझको जन्नत का गुमाँ है
तेरा दामन मेरी दुनिया
और क़दम सारा जहाँ है
रंज हो या हो ख़ुशी बस
तू सदा ही ख़ुश-बयाँ है
बिन तेरे ये ज़िन्दगी तो
ख़ाक है या फिर धुआँ है
तेरे दामन के ये रौज़न
माँ ये मेरी कहकशाँ …
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 12, 2021 at 2:30pm — 4 Comments
Added by Ram Ashery on September 11, 2021 at 9:30pm — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
नफरत ने जो दिया वो मुहब्बत न दे सकी
हमको सफलता यार इनायत न दे सकी।१।
*
चर्चा प्रलय की करती हैं धर्मों की पुस्तकें
पापों को किन्तु अन्त कयामत न दे सकी।२।
*
बूढ़े हुए हैं लोग जो चाहत में स्वर्ग के
कह दो उन्हें कि मौत भी जन्नत न दे सकी।३।
*
सोचा था एक हम ही हैं इसके सताये पर
सुनते खुशी उन्हें भी सराफत न दे सकी।४।
*
जो बन के सीढ़ी खप गये सत्ता के वास्ते
उनको कफन भी यार सियासत न दे सकी।५।
*
चाहे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2021 at 8:39pm — 3 Comments
ज़िम्मेदारी के बोझ ने कभी सोने ना दिया
चोट जितनी भी लगी हो मगर रोने न दिया
घर से दूर रहा मैं जिनकी हंसी के ख़ातिर
अपना जितना भी बनाया पर अपना होने न दिया
सुबह की धुप न देखी, चाँदनी छु न सका
गुज़रा दिन भी अंधेरे मे, उजाला ना देख सका
तलब थी चैन से सोने की किसी की बाहों मे
जब भी घर मैं लौटा, पनाह पा ना सका
दो ठिकानो के बीच ही बसर मैं करता रहा
सभी खुश थे इसी से मैं सब्र करता रहा
जलाकर खून जो अपना रोटी कमाई थी
पेट सभी का भरा, मैं मगर आधा ही…
Added by AMAN SINHA on September 10, 2021 at 10:13am — 2 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
चिढ़ा मौत से पर हँसा जिन्दगी पर
अँधेरों से डर कर चढ़ा रौशनी पर।१।
*
किये कैद बैठा हवाओं को जो भी
बहस कर रहा है वही ताजगी पर।२।
*
बना सन्त बैठा मगर है फिसलता
कभी मेनका पर कभी उर्वशी पर।२।
*
खड़े देवता हैं सभी कठघरे में
करो चर्चा थोड़ी कभी बंदगी पर।४।
*
सभी खीझते हैं जले दीप पर तो
उठा क्रोध यारो कहाँ तीरगी पर।५।
*
अजब देवता जो डरे आदमी से
हुआ द्वंद भारी यहाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 9, 2021 at 9:45pm — 8 Comments
जिजीवषा जो इन्सा की
वह नहीं कभी भी हारेगी
जन-जन तक पहुँचाने सुविधा
अपने श्रम बल को वारेगी
उत्पाती कोरोना की यह
सघन श्रृंखला टूटेगी
जकड़न से पाश मुक्त होकर
मानवी हताशा छूटेगी
गहन बुद्धि अन्वेषण से
वैज्ञानिक युक्ति निकालेगा
निर्मित कर अचूक औषधियाँ
इसको तो जड़ से मारेगा
भय जाएगा मन से समूल
कीटाणु सर्वदा हारेगा
मास्क, शुद्धता, शारीरिक
दूरी का भूत…
ContinueAdded by Usha Awasthi on September 8, 2021 at 9:58pm — 4 Comments
2122 - 2122 - 212
करते हो इतनी जो ये तकरार तुम
कैसे दिलबर के बनोगे यार तुम
तौलते हो प्यार भी मीज़ान में
प्यार को समझे हो क्या व्यापार तुम
इश्क़ में जब तक न होगी हाँ में हाँ
हो नहीं सकते कभी दिलदार तुम
हम-ज़बाँ हों इश्क़ में - पहला सबक़
सीख कर करना वफ़ा इज़हार तुम
जानेमन जज़्बात को समझे बिना
पा नहीं सकते किसी का प्यार तुम
दिल के…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 7, 2021 at 5:59pm — 13 Comments
मलाई की मिठाई बेचते बेचते मंगनी हलवाई का नाम चल निकला था।वह दूधवालों से खास मौकों पर दूध लेता।मिठाई बनाता।बेचता। बानगी के तौर थोड़ा थोड़ा दूध देनेवालों को चखने भर दे देता। वाह वाह होती।क्या खूब मिठाई बनाता है अपुन का मंगनी,ऐसा सब कहते फिरते।मंगनी की शोहरत बढ़ती।मिठाई की मांग में इजाफा होता।वह मालामाल होता।
आज फिर उसने दूधवालों से दूध पहुंचाने की अपील कर डाली।शर्तें हैं कि हर दूधवाला खुद उसके यहां दूध पहुंचाए।पेठवना नहीं चलेगा। और हां,अब जो मिठाई बनेगी उसे दूध…
Added by Manan Kumar singh on September 6, 2021 at 3:00pm — 4 Comments
अनेकानेक देशो की संस्कृति में शिक्षकों क़े सम्मान में पूरी दुनिया झुकती हैं। भारतीय संस्कृति में जहाँ शिष्य अपने गुरु के पैर धोते हैं वही दक्षिण कोरिया में शिष्यों के पैर शिक्षक घुटने के बल बैठकर धोते हैं। शिक्षक ज़िंदगी की पाठशाला में सबक पढ़ाने- सिखाने और व्यवहारिक जीवन में उतारने वाले,हर अक्षर को शब्द मूल्यो में सार्थक कर कामयाबी की सीढ़ी पार कराते…
Added by babitagupta on September 6, 2021 at 1:30pm — 1 Comment
जो कही नहीं तुमसे, मैं वो ही बात कहता हूँ
चलो मैं भी तुम्हारे संग कदम दो चार चलता हूँ
चाहत थी यही मेरी तू भी साथ चल मेरे
न बंदिश हो ना दूरी हो रहूँ जब साथ मैं तेरे
लूटा दूँ ये जवानी मैं बस इस दो पल की यादों में
छुपा लूँ आखँ में अपने न बहने दूँ मैं पानी में
दिखाता हूँ जो नज़रों से, जुबा से कह ना पाऊँगा
हूँ रहता साथ मैं हरदम पर तेरा हो ना पाऊँगा
हक़ीक़त है यही मेरी मैं तुझसे प्यार करता हूँ
तू वाकिफ है मेरे सच से मैं कितना तुझपे मरता…
Added by AMAN SINHA on September 6, 2021 at 12:28pm — 4 Comments
कहते हैं सब यही ,बस मुस्कुराते रहिए
लेकिन जनाब बड़ी शातिर होती है ये मुस्कुराहट
दिल का सुकून होती है,किसी की मुस्कुराहट
तो चैन छीन लेती दिलों का ,कोई मुस्कुराहट
प्यार का दरिया बहाती बच्चे की मासूम मुस्कुराहट
और विचलित कर जाती मन को,व्यंग भरी मुस्कुराहट
ना जाने क्यों लोग बेवजह भी मुस्कुराते हैं
ना जाने कौन सा ग़म उस हंसी में छुपाते हैं
कभी ख़ुशी से खिलखिलाते चेहरे
नमी आँखों की बन आंसू ले आते हैं
तो दोस्तों ये…
ContinueAdded by Veena Gupta on September 5, 2021 at 12:41am — 2 Comments
पर्व गुरुओं का मनाते आज हम
और मन के पास आते आज हम।१।
*
पुष्प भावों के चढ़ाते आज हम
शीष श्रद्धा से झुकाते आज हम।२।
*
है मिला हर ज्ञान उन से ही हमें
मान उनको दे जताते आज हम।३।
*
सीख उनकी आचरण में ढालकर
कर्ज किंचित यूँ चुकाते आज हम।४।
*
आब भर कर है सितारों सा किया
हर चमक उन से, बताते आज हम।५।
*
ज्ञान दाता बढ़ बिधाता से हैं तो
यश उन्हीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 4, 2021 at 1:35pm — 13 Comments
अंजाना सफर तनहाई का डेरा
उदासी का दिल मे था उसके बसेरा
साँवली सी आंखो पर पालको का घेरा
भुला नहीं मैं वो चमकता सा चेहरा
आंखे भरी थी और लब सील चुके थे
दगा उसके सीने मे घर कर चुके थे
था कहना बहूत कुछ उसको भी लेकिन
धोखे के डर से वो लफ्ज जम चुके थे
हाले दिल चेहरे पर दिखता था यू हीं
के ग़म को छुपाने की कोशिश नहीं थी
दिल चाहता तो था संग उसके चलना
मगर साथ चलने की कोशिश नहीं थी
कहा कुछ नहीं पर समझा दिया सब
ना बाकी रहा…
Added by AMAN SINHA on September 4, 2021 at 11:55am — 2 Comments
चाँद -चाँदनी पर दोहावली ......
देख रहा है चाँदनी , आसमान से चाँद ।
मिलने आया झील में , नीले नभ को फाँद।1।
देख चाँद को चाँदनी ,करे झील पर रक्स ।
सिमट गया है चाँद का, उजियारी में अक्स ।2।
चाँद फलक का ख़्वाब तो, धवल चाँदनी नूर ।
वीचि -वीचि क्रीड़ा करे, सोम प्रीत में चूर ।3।
विभा चाँद की देखती, तारों वाली रात ।
नील झील से कौमुदी, करे चाँद से बात ।4।
छुप-छुप देखे चंद्रिका, अपने विधु का रूप ।
बिम्ब चाँद…
Added by Sushil Sarna on September 3, 2021 at 3:55pm — 5 Comments
Added by Rachna Bhatia on September 3, 2021 at 11:04am — 6 Comments
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