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दोहा सप्तक-३

लघु से लघुतम बात को, जो देते हैं तूल।

ये तो निश्चित जानिए, मन में उनके शूल।१।

*

बनते बाल दबंग अब, पढ़ना लिखना भूल।

हुए नहीं क्यों सभ्य वो, जाकर नित स्कूल।२।

*

करती मैला भाल है, मद में उठकर धूल।

करे शिला को ईश यूँ, न्योछावर हो फूल।३।

*

साक्ष्य समय विपरीत पर, तजे सत्य ना मूल।

ज्यों नद सूखी  पर  हुए, एक  नहीं  दो कूल।४।

*

जलने को पथ काल का, तकना होगी भूल।

हवा कभी  होती  नहीं, सुनो  दीप अनुकूल।५।

*

कड़वी बातें तीर सी,…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2021 at 10:28pm — 8 Comments

नवगीत : पानी और पारा

पूछा मैंने पानी से 

क्यूँ 

सबको गीला कर देता है

पानी बोला 

प्यार किया है

ख़ुद से भी ज़्यादा औरों से

इसीलिये चिपका रह जाता हूँ

मैं अपनों…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 19, 2021 at 10:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल- एक पत्थर है ज़िन्दगी मेरी

2122 1212 22

बस यही इक फ़रेब खा बैठा
मैं उसे  ज़िन्दगी  बना  बैठा

एक  पत्थर है  ज़िन्दगी  मेरी
उसी पत्थर से दिल लगा बैठा

धूप  अपने  शबाब  पर आई
और साया भी  दूर जा  बैठा

ख़त्म  कैसे  भला  अँधेरा  हो
एक दीपक था जो बुझा बैठा

फिर ग़ज़ल रो पड़ी सरे महफ़िल
गीत फिर ग़म भरा सुना बैठा

'ब्रज' लिए है उदासियाँ अपनी
सामने  चाँद  अनमना  बैठा

(मैलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 18, 2021 at 12:30pm — 10 Comments

दोहा सप्तक -२

राजनीति के पेड़  से, लिपटे  बहुत भुजंग।

जिनके विष से हो गये, सब आदर्श अपंग।१।

*

बँधकर पक्की डोर से, छूना नहीं अनंग।

सबके मन की चाह है, होना कटी पतंग।२।

*

शिव सा बना न आचरण, होते गये अनंग।

लील रहे  जीवन  तभी, ओछे  प्रेम प्रसंग।३।

*

क्षीण,हीन उल्लास अब, शेष न कोई ढंग।

हालातों ने कर दिया, जीवन अन्ध सुरंग।४।

*

बेढब फीके  हो  गये, जब  से जीवन रंग।

कितनों ने है कर लिया, अपनी साँसें भंग।५।

*

तन की गलियाँ बढ़ गयीं, मन का आँगन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 16, 2021 at 2:26pm — 4 Comments

(ग़ज़ल) इन्साफ़ बेचते हैं फ़ैज़ान बेचते हैं

221 - 2122 - 221 - 2122

इन्साफ़ बेचते हैं फ़ैज़ान बेचते हैं 

हाकिम हैं कितने ही जो ईमान बेचते हैं 

अज़मत वक़ार-ओ-हशमत पहचान बेचते हैं 

क्या-क्या ये बे-हया बे-ईमान बेचते हैं  

मअ'सूम को सज़ा दें मुजरिम को बख़्श दें जो 

आदिल कहाँ के हैं वो इरफ़ान बेचते हैं 

घटती ही जा रही है तौक़ीर अदलिया की 

जबसे वहाँ के 'लाला' 'सामान' बेचते हैं 

उनके दिलों में कितनी अज़मत ख़ुदा की होगी 

पत्थर तराश कर…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 16, 2021 at 10:39am — 8 Comments

दोहा सप्तक -१

धनी बसे परदेश में, जनधन सदा समेट।

ढकते निर्धन  लोग यूँ, यहाँ  पाँव से पेट।१।

*

कीचड़ में जब हैं सने, पाँव तलक हम दीन।

राजन  के  प्रासाद  का, क्या  देखें कालीन।२।

*

नेताओं की हर सभा, फिरे बजाती आज।

यूँ जनता है झुनझुना, भले वोट का नाज।३।

*

ऊँचे  आलीशान   हैं,  नेताओं  के  गेह।

दुहरी जिनके बोझ से, हुई देश की देह।४।

*

गूँगे बहरे लोग  जब, भरे  पड़े इस देश।

कैसे बदले बोलिए, अपना यह परिवेश।५।

*

सुख के दिन दोगे बहुत,…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 15, 2021 at 4:30am — 8 Comments

ममता पर दोहे .....

ममता पर दोहे .....

जाते हैं जो चूमकर, मात-पिता के पाँव ।

राहों में उनके नहीं, आते दुख के गाँव ।1।

जीवन में आते नहीं, उनके दुख के गाँव ।

जिनके सिर रहती सदा, आशीषों की छाँव ।2।

धन वैभव संसार में, मिल जाते सौ बार ।

मिलें नहीं जाकर कभी, मात-पिता साकार  ।3।

दृष्टि धुंधली हो गई, काया हुई निढाल ।

आई बेला साँझ की,  ढूँढे नैना लाल ।4।

ममता ढूँढे पालने, में अपना वो लाल ।

जिसको देखे हो गए,…

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Added by Sushil Sarna on December 13, 2021 at 1:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल

होते न अगर मौला समंदर तेरे खारे

अब तक इसे पी जाते सभी प्यास के मारे

कम गिनती में पड़ जाएँ फ़लक के ये सितारे

दिखला दिए  हमने जो कभी ज़ख़्म हमारे

मैं ख़ुद को फँसा  लेता हूँ तूफ़ान में और फिर

तूफ़ाँ ही मेरी कश्ती…

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Added by Md. Anis arman on December 12, 2021 at 8:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल-रख क़दम सँभल के

1121 2122 1121 2122 

इस्लाह के बाद ग़ज़ल

  

1

है ये इश्क़ की डगर तू ज़रा रख क़दम सँभल के

चला जाएगा वगरना तेरा चैन इस प चल के

2

न…

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Added by Rachna Bhatia on December 12, 2021 at 11:00am — 6 Comments

समय का पहिया  - लघुकथा -

समय का पहिया  - लघुकथा - 

सुशीला ने घर परिवार और समाज के विरोध के बावजूद एक राजपूत लड़के को अपना हमसफ़र बनाने का निर्णय किया। समूचा वैश्य समाज हतप्रभ था उसके इस फ़ैसले पर। लड़का राजपूत वह भी फ़ौज में अफ़सर। सारी बिरादरी लड़की के भाग्य को कोस रही थी। माँ ने तो रो रो कर घर आँसुओं से भर दिया था। उनकी एक ही चिंता थी कि एक बनिये की बेटी राजपूत परिवार में कैसे निभा…

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Added by TEJ VEER SINGH on December 11, 2021 at 12:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल (जो भुला चुके हैं मुझको मेरी ज़िन्दगी बदल के)

1121 -  2122 - 1121 -  2122 

जो भुला चुके हैं मुझको मेरी ज़िन्दगी बदल के 

वो रगों में दौड़ते हैं ज़र-ए-सुर्ख़ से पिघल के 

जिन्हें अपने सख़्त दिल पर बड़ा नाज़ था अभी तक

सुनी दास्ताँ हमारी तो उन्हीं के अश्क छलके

तेरी बेरुख़ी से निकले मेरी जान, जान मेरी 

मुझे देखता है जब तू यूँ नज़र बदल-बदल के

जो नज़र से बच निकलते तेरी ज़ुल्फ़ें थाम लेतीं 

चले कैसे जाते फिर हम तेरी क़ैद से निकल के 

न मिटाओ…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 11, 2021 at 11:59am — 16 Comments

(ग़ज़ल )...कहाँ मेरी ज़रूरत है

1222 - 1222 - 1222 - 1222

फ़क़त रिश्ते जताने को यहाँ मेरी ज़रूरत है 

अज़ीज़ों को सिवा इसके कहाँ मेरी ज़रूरत है 

मुझे ग़म देने वाले आज मेरी राह देखेंगे 

मुझे मालूम है उन को जहाँ मेरी ज़रूरत है 

मेरे अपने मेरे बनकर दग़ा देते रहे मुझको 

सभी को ग़ैर से रग़्बत कहाँ मेरी ज़रूरत है 

लिये उम्मीद बैठे हैं वो मेरी सादा-लौही पर 

चला आता हूँ मैं अक्सर जहाँ मेरी ज़रूरत है

कभी इतराते हैं ख़ुद पर कभी सहमे…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 10, 2021 at 6:54pm — 18 Comments

ग़ज़ल नूर की --- ग़म-ए-फ़िराक़ से गर हम दहक रहे होते

.

ग़म-ए-फ़िराक़ से गर हम दहक रहे होते

तो आफ़ताब से बढ़कर चमक रहे होते.

.

बदन की सिगड़ी के शोलों पे पक रहे होते

वो मेरे साथ अगर सुब्ह तक रहे होते.

.

तेरी शुआओं को पीकर बहक रहे होते

मेरी हवस को मेरे होंट बक रहे होते.

.

सुकून मिलता हमें काश जो ये हो जाता

कि हम भी यार के दिल की कसक रहे होते.   

.

तेरी नज़र से उतरना भी एक नेमत है

वगर्न: आँखों में सब की खटक रहे होते.

.

लबों का रस हमें मिलता तो शह’द होते हम

अगर जो…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 10, 2021 at 6:31pm — 20 Comments

कहो तो सुना दूँ फ़साना किसी का

122 122 122 122 

कहो तो सुना दूँ फ़साना किसी का

वो इज़हार-ए-उल्फ़त जताना किसी का

सुधार

नज़र से महब्बत जताना किसी का

हँसाना किसी का रुलाना किसी का

भुलाओगे कैसे सताना किसी का

नहीं रोक पाई कभी चाहकर मैं

दबे पा ख़यालों में आना किसी का

है यह भी महब्बत का दस्तूर यारो

न दिल भूले जो दिल से जाना किसी का

बहुत कोशिशें कीं मनाने की फ़िर भी

न मुमकिन हुआ लौट आना किसी का

दिल ए…

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Added by Rachna Bhatia on December 9, 2021 at 11:30am — 19 Comments

हमें लगता है हर मन में अगन जलने लगी है अब

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२



बजेगा भोर का इक दिन गजर आहिस्ता आहिस्ता 

सियासत ये भी बदलेगी मगर आहिस्ता आहिस्ता/१

*

सघन  बादल  शिखर  ऊँचे  इन्हें  घेरे  हुए  हैं पर

उगेगी घाटियों  में  भी  सहर आहिस्ता आहिस्ता/२

*

हमें लगता है हर मन में अगन जलने लगी है अब

तपिस आने लगी है जो इधर आहिस्ता आहिस्ता/३

*

हमीं  कम  हौसले  वाले  पड़े  हैं  घाटियों  में  यूँ

चढ़े दिव्यांग वाले भी शिखर आहिस्ता आहिस्ता/४

*

अभी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2021 at 6:30am — 8 Comments

धक्का

निर्णय तुम्हारा निर्मल

तुम जाना ...भले जाना

पर जब भी जाना

अकस्मात

पहेली बन कर न जाना

कुछ कहकर

बता कर जाना

जानती हो न, चला जाता…

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Added by vijay nikore on December 7, 2021 at 12:00pm — 3 Comments

दोहा त्रयी. . . . . .

दोहा त्रयी. . . . . . 

ह्रदय सरोवर में भरा, इच्छाओं का नीर ।
जितना इसमें डूबते, उतनी बढ़ती पीर ।।

मन्दिर -मन्दिर घूमिये , मिले न मन को चैन ।
मन के मन्दिर को लगें, अच्छे मन के बैन ।।

झूठे भी सच्चे लगें, स्वार्थ नीर में चित्र ।
मतलब के संसार में, थोड़े सच्चे मित्र ।।

सुशील सरना / 6-12-21
मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 6, 2021 at 3:08pm — 10 Comments

यह भूला-बिसरा पत्र ...तुम्हारे लिए

तेरे स्नेह के आंचल की छाँह तले

पल रहा अविरल कैसा ख़याल है यह

कि रिश्ते की हर मुस्कान को

या ज़िन्दगी की शराफ़त को

प्यार के अलफ़ाज़ से

क़लम में पिरो लिया है,

और फिर सी दिया है... कि

भूले से भी कहीं-कभी

इस रिश्ते की पावन

मासूम बखिया न उधड़े

और फिर कस दिया है उसे

कि उसमें कभी भी अचानक

वक़्त का कोई

झोल न पड़ जाए।

 

सुखी रहो, सुखी रहो, सुखी रहो

हर साँस हर धड़कन दुहराए

स्नेह का यही एक ही…

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Added by vijay nikore on December 5, 2021 at 5:06pm — 18 Comments

दोहा मुक्तक

मन से मन की हो गई, मन ही मन में बात ।
मन ने मन को वस्ल की, दी मन में सौगात ।
मन मधुकर मन पद्म में, ढूँढे मन का छोर -
साथ निशा के हो गया , मन में उदित  प्रभात ।

तन में चलते श्वास का, मत करना विश्वास ।
इस तन के अस्तित्व का, श्वास -श्वास आभास ।
ये जीवन है मरीचिका , इसकी साँझ न भोर -
झूठा पतझड़ है यहाँ, झूठा है मधुमास ।

सुशील सरना / 4-12-21

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 4, 2021 at 12:00pm — 4 Comments

रहीम काका - लघुकथा -

रहीम काका - लघुकथा - 

"गोविन्द, यार कहाँ है तू?  बस चलने वाली है।हम  बार बार बस वालों को निवेदन कर रुकवा रहे हैं। अब उन्होंने केवल दस मिनट का समय दिया है।

"मैं पांच मिनट में पहुंच रहा हूँ।"…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on December 4, 2021 at 9:27am — 8 Comments

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