छंद मुक्त रचना
तिथि १२ जनवरी 21 समय 2.3 6 सुबह
डॉ अरुण कुमार शास्त्री / एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त
मिला है वक्त जो भी इस ज़हान में …
ContinueAdded by DR ARUN KUMAR SHASTRI on January 12, 2021 at 2:41am — No Comments
221 2121 1221 212
होता नहीं है ख़त्म मेरा काम भी कभी
कैसे करे ये दिल बता आराम भी कभी (1)
अब हो न जाँऊ यार मैं बदनाम भी कभी
हो जाए मुफ्त में न मेरा नाम भी कभी (2)
क्या क्या चुरा लिया है ये मुझसे न पूछिये
लूटा गया है मुझको सर-ए-आम भी कभी (3)
कुछ इस तरह से छोड़ गए हैं मुझे यहाँ
आते नहीं हैं मुद्दतों पैगाम भी कभी (4)
करते रहे हवाई सफ़र मुफ़्त में सदा
कुछ लोग तो चुकाते नहीं दाम भी कभी …
Added by सालिक गणवीर on January 10, 2021 at 11:00pm — 6 Comments
' आजादी के झंडे बिक रहे हैं।'
' पिछले साल वाले भी?'
' क्या?'
' महकमों के पुराने झंडे नये दाम में बिकते हैं। बिल बन जाती ।'
' जाने दो।आजादी का जश्न है,धूम से मने।'
' मिलेगी कब?'
' अबे बुरबक! कब की मिल चुकी, सन सैंतालीस में।'
'सरकारी राशन का पर्याय बनी जिंदगी,मिलावट का जहर और आदमी का खून पीता आदमी!यही आजादी है?'
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on January 10, 2021 at 9:09am — 2 Comments
समय का चक्र घूमता
कठोर काल झूमता
प्रचंड वेग धारता
दहाड़ता , पछाड़ता
लपक- लपक, झपक - झपक
नगर - नगर , डगर- डगर
मृत्यु - बिगुल फूँकता
बन के वज्र टूटता
सिरिंज की कमान से
वैक्सिन के वाण से
संक्रमण को नष्ट कर
यह कोरोना ध्वस्त कर
निकालेगा जहान से
खड़ा हुआ वो शान से
विजय ध्वजा को धारेगा
मनुज कभी न हारेगा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on January 8, 2021 at 7:44pm — 2 Comments
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 7, 2021 at 11:26am — 3 Comments
1222/1222/122
1
महकता वो चमन लाऊँ कहाँ से
जुदा जिसका तसव्वुर हो ख़िज़ाँ से
2
कभी पूछा है तुमने कहकशाँ से
हुए गुम क्यों सितारे आसमाँ से
3
न जाने क्या मिलाया था नज़र में
न चल पाए क़दम इक भी वहाँ से
4
सँभलने के लिए कुछ वक़्त तो दो
अभी उतरा ही है वो आसमाँ से
5
किसी सूरत बहार आए गुलों पर
उड़ी है इनकी रंगत ही ख़िज़ाँ से
6
हटा दे तीरगी जो मेरे दिल की
दिया वो लाऊँ…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on January 6, 2021 at 7:08pm — 3 Comments
२२/२२/२२/२२
जनता पर हर वार सियासी
नेता की है हार सियासी।१।
*
खून खराबा झेल रहा नित
होकर यह सन्सार सियासी।२।
*
बाहर बाहर फूट का दिखना
भीतर जुड़ना तार सियासी।३।
*
बस्ती में आने मत देना
कोई भी अंगार सियासी।४।
*
घर फूटेगा हो जाने दो
बातें बस दो चार सियासी।५।
*
देश का पहिया जाम पड़ा है
दौड़ रही बस कार सियासी।६।
*
संकट का क्या अन्त करेगा
झूठा हर अवतार सियासी।७।
*
दम घोटे है नित जनता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2021 at 10:17am — 12 Comments
अरकान- 2122 1122 1122 112/22
तेरे खाने के लिये मुफ्त का माल अच्छा है
इसलिये लगता चुनावों का वबाल अच्छा है
ये अलग बात कि सूरत न भली हो लेकिन
कुछ न कुछ हर कोई करता ही कमाल अच्छा है
हम जवाबों से परखते हैं रज़ामन्दी को
मुस्कुरा दे वो अगर समझो सवाल अच्छा है
हद से बाहर तो हर इक चीज़ बुरी लगती है
हद में रह कर जो किया जाए धमाल अच्छा है
अस्मतें रोज़ ही माँ बहनों की बिकती हैं…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 5, 2021 at 12:57pm — 5 Comments
मन में जब है प्यास रे जोगी
क्या लेना सन्यास रे जोगी।१।
*
महलों जैसे सब सुख भोगे
क्यों कहता बनवास रे जोगी।२।
*
व्यर्थ किया क्यों झूठे मद में
यौवन का मधुमास रे जोगी।३।
*
हम से कहता वासना त्यागो
छिप के करता रास रे जोगी।४।
*
खुद ही जब ये निभा न पाया
औरों से क्या आस रे जोगी।५।
*
मत कह बन्धन मुक्त हुआ है
तू भी हम सा दास रे जोगी।६।
*
तन का है या मन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2021 at 7:30am — 6 Comments
नए वर्ष चल थाम उंगली दिखाऊँ
तुझ को बहुत काम करने को हैं
दिये जो जख्म गत वर्ष तूने
इस साल तुझ ही को भरने को हैं
आ चल दिखाऊँ तुझे यह स्कूल
दीवारों पे जाले हैं खाली पड़ा है
भरोसा दिलाना, घर से बुलाना
जिम्मा तुम्हारा यह सचमुच बड़ा है
आ चल दिखाऊँ सड़कें वो पटरी
वीरान चक्का भोंपू बहरा हैं
इंजन को जंग है चालक उनींदे
महीनों से सब कुछ यहीं ठहरा है
आ चल दिखाऊँ तुझको वीरानी
वीरान झूले…
ContinueAdded by amita tiwari on January 3, 2021 at 12:00am — 1 Comment
बलात्कार - लघुकथा –
चौबीस पच्चीस साल की युवती रोशनी पुलिस स्टेशन के गेट पर एक अनिर्णय और असमंजस की स्थिति में खड़ी थी।कभी एक कदम अंदर की ओर बढ़ाती लेकिन अगले ही पल पुनः उस कदम को पीछे कर लेती।
उसकी इस मनोदशा को उसका मस्तिष्क तुरंत ताड़ गया,"क्या हुआ? इतने जोश में निकल कर आईं थी।सब जोश ठंडा पड़ गया थाने तक आते आते।"
"नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।मैं कुछ आगे पीछे की ऊँच नीच के बारे में सोच रही हूँ।"
"कमाल है, इसमें सोचना क्या है? बलात्कार हुआ है तुम्हारे साथ।"
तभी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 1, 2021 at 6:36pm — 9 Comments
1222 1222 122
उसे पहले कभी देखा नहीं था
वो दिल के पास जो रहता नहीं था (1)
लगी है शह्र की इसको हवा अब
हमारा गाँव तो ऐसा नहीं था (2)
बहुत कुछ बोलती थीं आँखें उसकी
ज़ुबाँ से वो कभी कहता नहीं था (3)
अँधेरों ने रखा था क़ैद जब तक
उजाला दूर तक फैला नहीं था (4)
न जाने क्या हुआ भरता नहीं है
पुराना घाव तो गहरा नहीं था (5)
वही तन कर खड़ा रहता है आगे
कभी जो सामने बैठा नहीं…
Added by सालिक गणवीर on January 1, 2021 at 2:30pm — 6 Comments
भूल मन पीड़ा विगत की गा रहा है
शुभ रहे नव वर्ष ये जो आ रहा है।१।
*
आँख जब आँसू झराने को विवश थी
अन्त उस मौसम का होने जा रहा है।२।
*
जिन्दगी होगी सुहानी आज से फिर
भोर का सूरज हमें समझा रहा है।३।
*
बह न पाए फिर लहू इन्सानियत का
ये वचन मन को सभी के भा रहा है।४।
*
पेट भर भूखे को रोटी नित मिलेगी
साथ यह उम्मीद साथी ला रहा है।५।
*
बाँटना …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2021 at 8:25am — 11 Comments
अपूर्ण मानव की अर्ध-क्षमताओं का पूर्ण उपहास उड़ाता
बीतते बीतते बीत गया यह साल
धरा चलती रही ,परिक्रमा करती रही
निज धुरी की भी सूरज की भी ...
चंद्रमा ने भी हिम्मत कहाँ हारी
ग्रहणों से ग्रसित होता रहा
मगर परिक्रमाएँ ढोता रहा
तारों ने कहाँ टिमटिमाना छोड़ा
घोड़ों ने कहाँ हिनहिनाना छोड़ा
कोयल भी वैसी ही कूकी
कागा भी वैसे ही कगराया
बस सिसकी…
ContinueAdded by amita tiwari on January 1, 2021 at 3:00am — 2 Comments
नन्हा गुलाब कर रहा विनंती
जीवन दान मुझे, तुम दे दो
खिलने दो मुझको भी पूरा
बस इतना सा वरदान तुम दे दो |
वो देखो उस नन्ही चिड़िया को
उसको उड़ते हुए देखना है मुझको
अभी तो है वह घोंसले में अपने
रहने दो अपनी क्यारी में मुझको |
वो देखो रंग-बी-रंगी तितली को
गुंजन कर रहा भँवरा भी सुन लो
क्यों तोड़ लेते हो हम सब को
जीवन हमको हमारा तुम दे दो |
नहीं लिखवाया अमरपट्टा कोई…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 30, 2020 at 4:49pm — 4 Comments
विचार में प्रवाह हो स्वभाव में उजास हो
नवीन वर्ष में नवीन गीत रंग रास हो
प्रभात धूप हो खिली समीर मस्त हो बहे
अनन्त हर्ष को लिए सुवास भाव भी रहे
कपाट बंद खोल के धरे नवीन ज्ञान को
समर्थ अर्थ में रखे सदैव स्वाभिमान को
रहे कहीं न दीनता सदा यही प्रयास हो
नवीन वर्ष में नवीन गीत रंग रास हो।।१
विकार काम क्रोध मोह लोभ क्षोभ त्याग दे
कुमार्ग पे चले नहीं विनाश का न राग दें
कहीं दिखे अधर्म तो अधर्म देह चीर दें
समाज …
Added by नाथ सोनांचली on December 30, 2020 at 2:54pm — 10 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
धरती माता ने सारे दुख हलधर को दे डाले हैं
लेकिन उसने हँसते हँसते पेट अनेकों पाले हैं।१।
*
उद्योगों को नीर बहुत है करने को उपयोग मगर
इसकी खेती को जल जीवन तो नदियों में नाले हैं।२।
*
इसके हर साधन पर कब्जा औरों की मनमानी का
मौसम के हालातों जैसे हालात स्वयम् के ढाले हैं।३।
*
खेती करके भूखा रहता हलधर देखो रोज यहाँ
व्यापारी के श्वानों के मुँह मक्खन भरे निवाले हैं।४।
*
सरकारों ने पथ पथरीले जो शूलों के साथ दिये
उनके…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 27, 2020 at 8:32pm — 6 Comments
इक मैं थी इक मेरा साथी,सुन्दर इक संसार था
संसार नहीं था एक समंदर,बसता जहां बस प्यार था
छोटे बडे़ सभी रिश्तों की,मर्यादा यहाँ पालन होती थी
प्यार की हर नदिया का,सम्मान यहाँ पर होता था
मिलती जब कोइ नदिया समुद्र से,हर्षोल्लास बरसता था
बाहें फैला समुद्र भी अपनी,सबका स्वागत करता था
ना जाने फिर इकदिन कैसा एक बवंडर आया था
सारा समंदर सूख गया,बस मरुस्थल ही बच पाया था
आज प्रयत्न मैं कर रही,मरुभूमि में कुछ पुष्प खिलाने का
कुछ सुकूं…
ContinueAdded by Veena Gupta on December 26, 2020 at 10:54pm — 2 Comments
अब जब दामिनी चली गई है
चले जा चुके हैं उसके हत्यारे भी
वो नर पशु
जिनसे सब स्तब्ध रहे
दरिंदगी से त्रस्त रहे
हर तरफ मौत की मांग उठती रही
दबती रही उठती रही बिलखती रही
मेरी भी एक मांग रही
कि एक बार मुझे उन नर-पशुओं की माताओं से मिलाया…
ContinueAdded by amita tiwari on December 26, 2020 at 3:00am — 2 Comments
122 122 122 122
यहाँ तो बहुत हैं अभी यार मेरे
मगर याँ अदू भी हैं दो-चार मेरे (1)
कभी भूलकर भी न उनको सज़ा दी
रहे उम्र-भर जो गुनहगार मेरे (2)
हिकारत से अब देखते हैं मुझे भी
यही लोग थे कल तलबगार मेरे (3)
मुझे टुकड़ों में बाट कर ही रहेंगे
हैं दुनिया में जो लोग हक़दार मेरे (4)
जो रिश्ते सभी तोड़ कर जा चुका है
उसी से जुड़े हैं अभी तार मेरे (5)
वही मिल…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on December 24, 2020 at 11:00pm — 10 Comments
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