चारू चरण
चारण बनकर
श्रृंगार रस
छेड़ती पद चाप
नुुपूर बोल
वह लाजवंती है
संदेश देती
पैर की लाली
पथ चिन्ह गढ़ती
उन्मुक्त ध्वनि
कमरबंध बोले
लचके होले
होले सुघ्घड़ चाल
रति लजावे
चुड़ी कंगन हाथ,
हथेली लाली
मेहंदी मुखरित
स्वर्ण माणिक
ग्रीवा करे चुम्बन
धड़की छाती
झुमती बाला कान
उभरी लट
मांगमोती ललाट
भौहे मध्य टिकली
झपकती पलके
नथुली नाक
हंसी उभरे गाल
ओष्ठ…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 1, 2014 at 9:44am — 8 Comments
Added by रमेश कुमार चौहान on January 16, 2014 at 9:54pm — 9 Comments
दिल पर रख कर हाथ तुम, कर लो कुछ विचार ।
देश धर्म के रक्षण पर, करते निज उपकार ।।
समय अभाव सभी कहे, समय साथ ना कोय ।
साथ समय का जो चले, निर्धनता ना होय ।।
समय बहुमूल्य रत्न है, मिले सदा बेमोल ।
पर्स रखे जो वक्त को, मगन रहे दिल खोल ।।
हल्ला भ्रष्टाचार का, करते हैं सब कोय ।
जो बदलें निज आचरण, हल्ला कैसे होय ।।
घुसखोरी के तेज से, तड़प रहे सब लोग ।
रक्तबीज के रक्त ये, मिटे कहां मन लोभ ।।
मिट रहा अपनापन अब, नही बचा चितचोर…
Added by रमेश कुमार चौहान on January 16, 2014 at 9:04am — 13 Comments
1. लच्छो
लच्छो तेरा प्यार अब, रग दौड़े बन खून ।
हृदय की तू ही कंपन, तुझ बीन सब शून ।।
तुझ बीन सब शून, प्यार जीवन संवारे ।
तू प्यार की मूरत, प्रेम का मै मतवारे ।।
तन तेरा चितचोर, मन की तुम तो सच्चो ।
तू जीवन संगनी, मेरी दुलारी लच्छो ।
2. नेता कहे
सारे नेता कह रहे, अब ना होंगे दीन।
मिट जायेंगे दीनता, हम से रहो न खिन्न ।।
हम से रहो न खिन्न, कुर्सी हमको दिलाओ ।
मुफ्त में सब देंगे, कटोरा तुम ले आओ ।।
करना…
Added by रमेश कुमार चौहान on November 18, 2013 at 10:30pm — 7 Comments
घने जंगल
वह भटक गया
साथी न कोई
आगे बढ़ता रहा
ढ़ूंढ़ते पथ
छटपटाता रहा
सूझा न राह
वह लगाया टेर
देव हे देव
सहाय करो मेरी
दिव्य प्रकाश
प्रकाशित जंगल
प्रकटा देव
किया वह वंदन
मानव है तू ?
देव करे सवाल
उत्तर तो दो
मानवता कहां है ?
महानतम
मैने बनाया तुझे
सृष्टि रक्षक
मत बन भक्षक
प्राणी जगत
सभी रचना मेरी
सिरमौर तू
मुखिया मुख जैसा
पोषण कर सदा…
Added by रमेश कुमार चौहान on November 11, 2013 at 9:30pm — 10 Comments
दीप पावन तुम जलाओ, अंधियारा जो हरे ।
पावन स्नेह ज्योति सबके, हृदय निज दुलार भरे ।
वचन कर्म से पवित्र हो, जीवन पथ नित्य बढ़े ।
लीन हो ध्येय पथ पर, नित्य नव गाथा गढ़े ।
कीजिये कुछ परहित काज, दीन हीन हर्षित हो ।
अश्रु न हो नयन किसी के, दुख दरिद्र ना अब हो ।
सीख दीपक से हम लेवें, हम सभी कैसे जियें ।
मन सभी निर्मल रहे अब, हर्ष अंतर्मन किये ।
शुभ करे लिये शुभ विचार, मानव का मान करे ।
भटक ना जाये मन राह, अधर्म कोई न करे ।
कायम हो…
Added by रमेश कुमार चौहान on November 3, 2013 at 1:00pm — 11 Comments
देख तमाशा
नेता मांगते भीख
लोकतंत्र है ।
जांच परख
आंखो देखी गवाह
जज हो आज ।
खोलता वह
आश्वासनों का बाक्स
सम्हलो जरा
कागजी फूल
चढ़ावा लाया वह
हे जन देव
मदिरा स्नान
गहरा षडयंत्र
बेसुध लोग
चुनोगे कैसे
लड़खड़ाते पांव
ड़ोलते हाथ
होश में ज्ञानी
घर बैठे अज्ञानी
निर्लिप्त भाव
जड़ भरत
देश के बुद्धिजीवी
करे संताप…
Added by रमेश कुमार चौहान on October 27, 2013 at 10:30pm — 11 Comments
दोहा
बज रही बड़ी जोर की, चुनावी शंखनाद ।
निंद उड़े जहां उनकी , तुम दिल रख लो हाथ ।।
सोरठा
लोकतंत्र पर्व एक, उत्सव मनाओं सब मिल ।
बढ़े देश का मान, कुछ ऐसा करें हम मिल ।।
ललित
वोट का चोट करें गंभीर, अपनी शक्ति दिखाओं ।
जो करता हो देश हित काज, उनको तुम जीताओं ।।
गीतिका
देश के मतदाता सुनो, आ रहा चुनाव अभी ।
तुम करना जरूर मतदान, लोकतंत्र बचे तभी ।।
राजनेता भ्रश्ट हों जो, मुॅह बंद…
ContinueAdded by रमेश कुमार चौहान on October 23, 2013 at 10:36pm — 5 Comments
पहेली बूझ !
जगपालक कौन ?
क्यो तू मौन ।
नही सुझता कुछ ?
भूखे हो तुम ??
नही भाई नही तो
बता क्या खाये ?
तुम कहां से पाये ??
लगा अंदाज
क्या बाजार से लाये ?
जरा विचार
कैसे चले व्यापार ?
बाजार पेड़??
कौन देता अनाज ?
लगा अंदाज
हां भाई पेड़ पौधे ।
क्या जवाब है !
खुद उगते पेड़ ?
वे अन्न देते ??
पेड़ उगे भी तो हैं ?
उगे भी पेड़ !
क्या पेट भरते हैं ?
पेट पालक ??
सीधे सीधे नही तो
फिर…
Added by रमेश कुमार चौहान on October 14, 2013 at 4:30pm — 5 Comments
Added by रमेश कुमार चौहान on October 8, 2013 at 8:05pm — 7 Comments
1.
भ्रष्ट नेता रे,
लालची मतदाता,
लोकतंत्र है ?
2.
पढ़े लिखे हो ?
डाले हो कभी वोट ?
क्यो देते दोष ??
3.
देख लो भाई,
कौन नेता चिटर ?
तुम वोटर ।
4.
तुम हो कौन ?
सरकार है कौन ?
जनता मौन ।
5.
क्या मानते हो ?
ये देश तुम्हारा है ।
मौन क्यों भाई ??
.
...........‘‘रमेश‘‘............
मोलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 27, 2013 at 11:00am — 11 Comments
नेता स्वार्थ के अपने, बदल रहे संविधान ।
करने दो जो चाहते, डालो न व्यवधान ।।
डालो न व्यवधान, है अभी उनकी बारी ।
लक्ष्य पर रखो ध्यान, करो अपनी तैयारी ।।
बगुला बाट जोहे, बैठे नदी तट रेता ।
शिकारी बन बैठो, शिकार हो ऐसे नेता ।।
.............................................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 24, 2013 at 10:49pm — 11 Comments
प्रेम दुलार जगावत मानवता मन भावत भारत प्यारा ।
गीत खुशी सब गावत नाचत मंगल थाल सजावत न्यारा ।
बंधु सभी मिल बैठ करे नित चिंतन सुंदर हो जग प्यारा ।
ये सपना मन भावन देख ‘‘रमेश‘‘ खुशी मन गावत न्यारा ।
.........................................................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 24, 2013 at 10:34am — 8 Comments
मोर दशा वह देखत सोचत अविरल प्रेम अश्रु जल ढारे ।
पागल जो बन घूम रहा दर बे दर प्यार छुपा मन मारे ।
दोष रहा किसका वह बन चातक ढूंढ रहा दिल हारे ।
मै वरती उसको पर ये दुनिया भई प्रेम दुश्मन हमारे ।
मोर - मेरा/मेरी
..................................
मोलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 22, 2013 at 10:00am — 7 Comments
हिन्दी हिन्द की बेटी, ढूंढ रही सम्मान ।
घर गली हर नगर नगर, सारा हिन्दूस्तान ।।
सारा हिन्दूस्तान, दासत्व छोड़े कैसे ।
उड़ रहे आसमान, धरती पग धरे कैसे ।।
‘रमेश‘ कह समझाय, अपनत्व माथे बिन्दी ।
स्वाभीमान जगाय, ममतामयी है हिन्दी ।।
.....................................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 20, 2013 at 11:30am — 9 Comments
काम कैसे कठिन भला, हो करने की चाह ।
मंजिल छुना दूर कहां, चल पड़े उसी राह ।।
चल पड़े उसी राह, गहन कंटक पथ जावे ।
करे कौन परवाह, मनवा जो अब न माने ।।
जीवन में कुछ न कुछ कर, जो करना हो नाम ।
कहत ‘रमेश‘ साथी सुन, जग में पहले काम ।।
......................................
मौलिक अप्रकाशित (प्रथम प्रयास)
Added by रमेश कुमार चौहान on September 11, 2013 at 11:30pm — 7 Comments
जीवन है क्या ?
मन के यक्ष प्रश्न
सुख या दुख ।
मेरा मन
पथ भूला राही है,
जग भवर ।
देख दुनिया,
जीने का मन नही,
स्वार्थ के नाते ।
मन भरा है,
ऐसी मिली सौगात,
बेवाफाई का ।
कैसा है धोखा,
अपने ही पराये,
मित्र ही शत्रु ।
जग मे तु भी,
एक रंग से पूता,
कहां है जुदा ?
क्यों रोता है ?
सिक्के के दो पहलू
होगी सुबह ।
........‘रमेश‘.........
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 8, 2013 at 11:42am — 7 Comments
राजनीतिज्ञ,
कुशल अभिनेता,
मूक दर्शक।
कुटनीतिज्ञ
कुशल राजनेता
मित्र ही शत्रु
शकुनी नेता
लोकतंत्र चैसर
बिसात लोग
लोकराज है
लोभ मोह में लोग
यही तो रोग
अपनत्व है ?
देश से सरोकार ?
फिर बेकार ।
सपना क्या था ?
शहीद सपूतो का
मिले आजादी ?
आजादी कैसी
विचार परतंत्र
वाह रे तंत्र
गांधी विचार
कैसे भरे संस्कार
कहां है खादी ?
विकास गढ़े…
Added by रमेश कुमार चौहान on September 4, 2013 at 9:30pm — 9 Comments
दोहा
मातृभूमि है मेरी, स्वर्ग से भी भली ।
माथा झुका नमन करू, प्रस्सुन ले अंजुली ।।
चैपाई
लहर लहर तिरंगा लहराता । रवि जहां पहले शिश झुकाता
जय हो जय हो भारत माता । तेरा वैभव सकल जग गाता
उत्तर हिमालय मुकुट साजे । उन्नत शिखर रक्षक बन छाजे
गंगा यमुना जहां से निकली । केदार नंदा तट है बद्री
दक्षिण में सिंधु चरण पखारे । दहाड़ता जस हो रखवारे
सेतुबंध कर शंभू जापे । तट राम रामेश्वर थापे
पूरब कोणार्क जग थाती …
Added by रमेश कुमार चौहान on September 2, 2013 at 11:00pm — 9 Comments
मेरे मन मे वह बसी है किस तरह ,
फूलों में सुगंध समाई हो जिस तरह ।
अपने से अलग उसे करूं किस तरह,
समाई है समुद्र में नदी जिस तरह ।
उसके बिना अपना अस्तित्व है किस तरह,
नीर बीन मीन रहता है जिस तरह ।
उसकी मन ओ जाने मेरी है किस तरह,
देह का रोम रोम कहे राम जिस तरह ।
अलग करना भी चाहू किस तरह,
वह तो है प्राण तन में जिस तरह ।
मौलिक अप्रकाशित - रमेशकुमार चैहान
Added by रमेश कुमार चौहान on August 24, 2013 at 8:49pm — 6 Comments
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