Added by Dr.Prachi Singh on June 13, 2012 at 11:09pm — 20 Comments
कितने ही प्रतिष्ठित समाजसेवी संगठनों में उच्च पद-धारिका तथा सुविख्यात समाज सेविका निवेदिता आज भी बाल श्रम पर कई जगह ज़ोरदार भाषण देकर घर लौटीं. कई-कई कार्यक्रमों में भाग लेने के उपरान्त वह काफी थक चुकी थी. पर्स और फाइल को बेतरतीब मेज पर फेंकते हुए निढाल सोफे पर पसर गई. झबरे बालों वाला प्यारा सा पप्पी तपाक से गोद में कूद आता है.
"रमिया ! पहले एक ग्लास पानी ला ... फिर एक गर्म गर्म चाय.........."
दस-बारह बरस की रमिया भागती हुई पानी लिये सामने चुपचाप खड़ी हो जाती है.
"ये…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 12:00pm — 20 Comments
ये सज़ा मिली मुझको तुमसे दिल लगाने की
मिल रही हें बस मुझको ठोकरें ज़माने की
फैसला हे ये मेरा मैं तुम्हें भुला दूंगा
तुमको भी इजाज़त हे मुझको भूल जाने की
ख़ाब अब मुहब्बत के मैं कभी न देखूँगा
ताब ही नहीं मुझमे फिर से ज़ख्म खाने की
रह गयी उदासी हीअब तो मेरे हिस्से में
अब…
ContinueAdded by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on June 11, 2012 at 12:44pm — 14 Comments
= जीवन सन्दर्भ =
खेत की मुंडेर पर चहकते पक्षियों की ढेर सारी बातें,
गेहूँ की बालियों के आँचल की मदमाती भीनी-भीनी सुगंध,
सर्दी की धूप का मेरी पीठ पर रखा दोस्ताना हाथ,
एक लय होकर काम करते हुए अनेक जीवन,
बैलों के गले की घण्टियों का राग,
यहाँ वहाँ उछलकूद करते बछड़े,
रंभाती गायें,
इन परिदृश्यों का स्वार्गिक…
Added by डॉ. नमन दत्त on June 12, 2012 at 5:02pm — 6 Comments
यह जो शहरीकरण हो रहा बाबाजी
हरियाली का हरण हो रहा बाबाजी
चीलें, कौए, चिड़ियाँ, तोते, तीतर संग
वनजीवन का…
Added by Albela Khatri on June 6, 2012 at 12:00pm — 20 Comments
प्रति चरण ३२ अक्षर, १६-१६ पर दो विश्राम, इक्त्तीस्वां (३१ वाँ) दीर्घ, बत्तीसवां (३२ वाँ ) लघु
शारदा कृपा कर दो मुझको नादान जान
भरो खाली झोली माता ज्ञान का दो वरदान
मैं तेरा ध्यान कर के छंद की रचना करूँ
देश देश गायें सब भारत की बढे शान
छंद मेरे पढ़ें जो भी…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 3, 2012 at 7:00pm — 11 Comments
मौज कोई सागर के किनारों से मिली
साँसे अपनी दिल के इशारों से मिली
सोंधी सी महक बारिश का इल्म देती है
गुलशन की खबर ऐसे बहारों से मिली
आंधी ने नोच डाले हैं दरख्तों से पत्ते
जुदाई की भनक आती बयारों से मिली
चाँद खुश है रोशन करेगा बज्मे- जानाँ
आस नभ में चमकते सितारों से मिली
हरेक लब उसे अकेले में गुनगुनायेंगे
ऐसी कोई नज्म संगीतकारों से मिली
पंहुच गई है परदेश में निशा की डोली
खबर भोर में आते…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 3, 2012 at 9:03pm — 27 Comments
साहित्य साधना इष्ट आराधना
पवित्रतम ह्रदय निस्सृत पूजा है,
निर्मल निर्झर भाव सरिता ये
उद्गम अन्तः मन जिसका है,…
Added by Dr.Prachi Singh on May 30, 2012 at 7:30pm — 34 Comments
आज 31 मई विश्व तम्बाकू विरोधी दिवस पर एक विशेष रचना
सुट्टों ने सोखा जिस्म, सेहतमन्दगी गई
धुंए का शौक लग गया तो ज़िन्दगी गई
छुप छुप के पीना छोड़, खुल्लेआम पी रहे
माँ की लिहाज़, बाप से शरमिन्दगी गई
गुटखा चबाने वाले की…
Added by Albela Khatri on May 31, 2012 at 4:30pm — 40 Comments
"|| "शुद्धगा छंद" ||"
(२८ मात्रा "१ २ २ २ १ २ २ २ १ २ २ २ १ २ २ २ ")
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यहाँ पर प्रेम पूजा प्रेमियों की जानता हूँ मैं
जहाँ पर है सखी भगवान जैसी मानता हूँ मैं
मिले जब…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 21, 2012 at 2:00pm — 14 Comments
लघुकथा :- चिंगारी …
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 19, 2012 at 1:00pm — 53 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on May 16, 2012 at 12:00am — 24 Comments
ज़िंदगी कर दी सनम तेरे हवाले अब तो।
तू भी बढ़के मुझे सीने से लगा ले अब तो॥
दूर रहता हूँ तो आँखों में नमी रहती है,
मैं भी हँस लूँ तू ज़रा पास बुला ले अब तो॥…
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 7, 2012 at 9:30pm — 18 Comments
लघु कथा :- गिद्ध…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 25, 2012 at 11:46am — 42 Comments
Added by MAHIMA SHREE on April 15, 2012 at 2:00pm — 38 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 15, 2012 at 8:00pm — 51 Comments
हम पंछी एक डाल के
Disclaimer:यह कहानी किसी भी धर्म या जाती को उंचा या नीचा दिखाने के लिए नहीं लिखी है, यह बस विषम परिस्थितियों में मानवी भूलों एवं संदेहों को उजागर करने के उद्देश्य से लिखा है. धन्यवाद.…
ContinueAdded by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 6, 2012 at 10:00am — 19 Comments
(चतुष्क-अष्टक पर आघृत)
पदपदांकुलक छंद (१६ मात्रा अंत में गुरू)
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सपनों पर जीत उसी की है,
जिसके मन में अभिलाषा है.
वह क्या जीतेंगे समर कभी,
जिनके मन घोर निराशा है ..
चींटी का सहज कर्म देखो,
चढ़ती है फिर गिर जाती है.
अपनें प्रयास के बल पर ही,
मंजिल वह अपनी पाती है..
स्वप्न की उन्नत…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 3, 2012 at 3:00pm — 24 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 1, 2012 at 4:00pm — 20 Comments
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