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कोकिला मुझको जगाती- जवाहर

कोकिला मुझको जगाती, उठ जा अब तू देर न कर

देर पहले हो चुकी है, अब तो उठ अबेर न कर

उठ के देखो अरुण आभा, तरु शिखर को चूमती है

कूजते खगवृन्द सारे, कह रहे अब देर न कर

उठ के देखो सारे जग में, घोर संकट की घड़ी है

राह कोई भी निकालो, सोच में तू देर न कर

देख कृषकों की फसल को, घोर बृष्टि धो रही है,

अन्नदाता मर रहे हैं,  लो बचा तू देर न कर

ईमानदारी साथ मिहनत, फल नहीं मिलता है देखो,   

लूटकर धन घर जो लावे, उनके…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on April 9, 2015 at 3:00pm — 2 Comments

शिलाचित्र

मिट्टी के तत्वों से

गल चुके सैंकङों शब्द

कि शिलालेख की अर्थवत्ता खो चुकी.

जब कि,

अक्षम शिलालेख के नीचे

हस्ताक्षर सा शिलाचित्र

वयक्त कर रहा था सबकुछ.



कई-कई पुरूषों के बीच

अपह्रीत नारी, उसकी अस्मिता,

संकुचित देह से जैसे फटकर

निकलते आत्मरक्षार्थ हाथ.



पुरुषत्व के आगे याचनावत् थी नारी.



मिट्टी के तत्वों ने

शब्दों की तरह गलाया नहीं उसे,



इसलिए कि वह शिलाचित्र था

सर्वत्र के धरातल पर

सर्वदा की विषैली… Continue

Added by shree suneel on April 9, 2015 at 2:46pm — No Comments

याद मे

हम छोटे छोटे थे 

जब माँ 

कोयले की राख़ से 

गोले बनाती थी 

हम भी बैठे बैठे 

गोले बनाते थे 

ये वाला मेरा 

ये वाला तेरा 

मेरा गोला ज्यादा मोटा 

तेरा वाला पतला गोला 

धूप मे गोले 

फैला दिये जाते 

सूरज अपनी तपन से 

हवा अपने वेग से 

गोले को सूखा देते 

शाम को अम्मा 

उन्हे उठाती 

तब भी हम लड़ते 

ये तेरा वाला 

ये मेरा वाला 

अंगीठी मे एक एक करके 

गोले जलाये…

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Added by Amod Kumar Srivastava on April 9, 2015 at 1:30pm — 2 Comments

आधुनिकता

अपनी मांसल देह का, करे प्रदर्शन नार !

कम कपड़ों में घूम रही, देखो बीच बजार !!

आधुनिकता के नाम पर, देखो ये करतूत !

वस्त्र हैं इसने तज दिए, बस चिंदी संग- सूत !!

लिव-इन-रिलेशन में रहे, देखो नारी आज !

कथा के पचड़े कौन पड़े, जब यों-ही मिले परसाद !!

यों-ही मिले परसाद, रिलेशन महिमां गाओ !

इक से मन भर जाए, तो झट दूजा ले आओ !!

स्वतंत्रता की होड़ में,विवेक गया है छूट !

नारी खुद है लुट रही,औ पुरुष रहा है लूट !!

आज नए इस…

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Added by rajkumarahuja on April 9, 2015 at 11:30am — 14 Comments

कुत्ते की बेइज्जती

कुत्ते की बेइज्जती   

------------------------------------                                                                                                                                                                                                                                                    

एक बार सब मिलकर

हाथ जोडो

और कुत्ते की वफादारी को बेइज्जत

करना छोडो                                                                

कुत्ता जो एक टूक रोटी…

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Added by umesh katara on April 9, 2015 at 8:13am — 16 Comments

तेरे बिन ........

हवा क्यूँ है ?

ये सूरज क्यूँ है ?

क्या करूँगा मैं किरणों का

ये सूरज निकलता क्यूँ है ?

ना जमीं मेरी है

ना आसमां मेरा

बस इन अंधेरों का अँधेरा मेरा !

ये चमन क्यूँ है

ये फूल मुरझाये क्यूँ नहीं अब तक

ये तितलियाँ... ये भंवरे

घर गये क्यूँ नहीं अब तक

पेड़ों ने पत्तियाँ गिराई नहीं ?

हर चीज़ क्यूँ मुरझाई नहीं अब तक

धड़कनें क्यूँ चल रही हैं धक धक

जब तू ही नहीं

तो क्यूँ है ये दुनियाँ अब तक…

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Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 9, 2015 at 7:33am — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - लफ्ज़ सजाना पड़ता है.... (मिथिलेश वामनकर)

22—22—22—22—22—2

 

पलकों से हर लफ्ज़ सजाना पड़ता है

आँसू पीकर गीत बनाना पड़ता है  

 

मंहगाई में  झूठा रौब जताने को…

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Added by मिथिलेश वामनकर on April 9, 2015 at 1:30am — 16 Comments

न जाने किये कौन से रतजगे हैं /// हिंदी गजल (प्रयास जारी}

 

  मुतकारिब मुसम्मन सालिम

 122   122   122   122

 

न जाने  किये कौन से रतजगे हैं      

मुझे आप से तुम वो कहने लगे है

 

पिया है अमिय रूप वह जो तुम्हारा

पड़ा हूँ ,  सभी रोम रस में पगे हैं

 

हुआ  पाटली नैन  का जोर जादू

खड़े  इंद्र  गन्धर्व सब तो ठगे हैं

 

जिन्हें काम का देवता लोग कहते 

तुम्हे  देखकर काम उनके जगे हैं

 

हुआ है अभी  यह नया नेह बंधन

कि  लगते मुझे वे सगों से…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 8, 2015 at 8:20pm — 16 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - सूरज से आँख उसने मिलाई हुई तो है -- गिरिराज भंडारी

221    212 1   1221     212 

 

बदली ने टांग अपनी अड़ाई हुई तो है

सूरज से आँख उसने मिलाई हुई तो है

 

कहने लगे हैं नक़्श हरिक शक्ल के यही

चक्की में ज़िन्दगी  की पिसाई हुई तो है

 

बातों में तेवरी है बग़ावत की, मान ली

लेकिन जो सच थी बात, उठाई  हुई तो है

 

देखें कि घर में रोशनी आती है कब तलक

तारीकियों के संग लड़ाई हुई तो है  

 

सद शुक्र, ऐ तबीब दवा और मत लगा

उनकी हथेलियों से सिकाई हुई तो…

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Added by गिरिराज भंडारी on April 8, 2015 at 3:30pm — 32 Comments

बिटिया थोड़ी छोटी हो जा

बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा

नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा

 

अब किसी बात की फरमाइश नहीं होती

गालों पे चुम्बन की बारिश नहीं होती

नयी नयी ड्रेस की सिफारिश नहीं होती

नयी डिश के लिए मस्कापालिश नहीं होती

मूवी जाने के लिए साजिश नहीं होती

माँ को पटाने की अब कोशिश नहीं होती

 

थोड़ी सी फिर से लहरी हो जा

नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा

बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा

 

मीटिंग के बहाने ऑफिस जल्दी जाना

रात को देर से आना फिर…

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Added by Nidhi Agrawal on April 8, 2015 at 1:04pm — 14 Comments


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मुक्ति बोध (लघु कथा ...'राज')

   

 रोहित का आठवाँ  जन्मदिवस है मम्मी पापा उत्साहित हैं, कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते उसके जन्म दिवस की पार्टी की तैयारी में,  तन मन  से लगे हैं  ये सोचकर की शायद उनका लाडला नार्मल हो जाए उसके चेहरे पर एक बार मुस्कराहट वापस आ जाए|

पापा ने बड़े प्यार सेपूछा ”बोलो बेटा क्या लोगे ? जो भी तुम इस बर्थ डे पर मांगोगे मैं तुम्हे वही लाकर दूंगा"

” पापा मुझे एक तोता ला दो”|

सुनते ही जैसे पापा को  पंख लग गए तुरंत एक तोते का पिंजरा ले आये| मम्मी पापा दोनों की ख़ुशी…

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Added by rajesh kumari on April 8, 2015 at 10:28am — 32 Comments

बात गज़ब की करते हो -- डॉo विजय शंकर

हालात बदलने की बात करते हो

आदमी बदल देते हो

हालात बदल नहीं पाते ,

या बदलना नहीं चाहते हो।

खुद को तरक्की पसंद कहते हो

तरक्की की बात करते हो

काम करने के पुराने तरीके

नहीं बदलते हो ,

आदमी बदल देते हो ।

उसने बहुत सहा , अब तुम सहो ,

इसी को सामाजिक न्याय कहते हो ,

गज़ब करते हो बिना हींग फिटकरी के

रंग चोखा करते हो ॥

तरक्की की बात करते हो

खुद को तरक्की पसंद कहते हो ॥

अच्छा करते हो कि बुरा, पता नहीं

पर बात गज़ब की करते हो… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on April 8, 2015 at 9:42am — 27 Comments

एक गज़ल,

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

---------------------------------------------------



बारिषॊं मॆं भीग जाना नित नहाना याद है !!

आसमां पर उन पतंगॊं का उड़ाना याद है !!(१)



टप-टपातीं बूँद बादल गरजतॆ आषाढ़ मॆं,

पॊखरॊं कॆ मध्य मॆढक टर-टराना याद है !!(२)



घॊड़ियॊं कॆ झुंड आतॆ थॆ कभी जब गाँव मॆं,

पूँछ उनकी खींचतॆ ही हिनहिनाना याद है !!(३)



श्रावणी त्यॊहार तॊ हॊता अनॊखा था बहुत,

लड़कियॊं का ताल मॆं कजली बहाना याद है!!(४)



खूब रॊतीं थी…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 8, 2015 at 3:30am — 12 Comments

बहुत कुछ दांव पे लगाया है .....

१ २ २ २ १२ १ २२२
बड़ी मुश्किल उसे मनाया है ॥
बहुत कुछ दांव पे लगाया है ॥
किसे कहते कि बेवफा है वो ,
हँसा हम पे जिसे बताया है ॥
बसा दिल-ओ-दिमाग में वो ही ,
अचानक सामने जो आया है ॥
लगे ऐसा हमें खुदा ने उसे ,
हमारे के लिए बनाया है ॥
हुआ है एहसास जन्नत का ,
जो माँ ने गोद में सुलाया है ॥
कहाँ होशो-हवास की बातें ,
किसी पे जब शबाब आया है ॥
लगे है वो पवित्र गंगा सा ,
करिंदा जो पसीने से नहाया है ॥
मौलिक /अप्रकाशित

Added by Nazeel on April 7, 2015 at 9:30pm — 15 Comments

नवगीत : चंचल नदी

चंचल नदी

बाँध के आगे

फिर से हार गई

बोला बाँध

यहाँ चलना है

मन को मार, गई

 

टेढ़े चाल चलन के

उस पर थे

इल्ज़ाम लगे

उसकी गति में

थी जो बिजली

उसके दाम लगे

 

पत्थर के आगे

मिन्नत सब

हो बेकार गई

 

टूटी लहरें

छूटी कल कल

झील हरी निकली

शांत सतह पर

लेकिन भीतर

पर्तों में बदली

 

सदा स्वस्थ

रहने वाली

होकर बीमार…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 7, 2015 at 1:44pm — 28 Comments

एक हिंदी ग़ज़ल/आ चली आ सितम

बह्र-212 212 212 212

बाअदब नजरे पेश

---------------------

चीज है क्या ज़रा देख लूँ बेरहम।

दर्द की है कसम आ चली आ सितम। (१)

****

नूर तो आँख का ले गये हो चुरा,

चाँदनी रात का दे रहे क्यों भरम। (२)

****

हो रही नग्न है नाचती ये ख़ुशी,

क्या नजर चाहती देखना ये हरम। (३)

****

देश को बेचतें आज भी लोग जो,

मोल दे दो उन्हें बेच देगें धरम। (४)

****

माँगते हम नहीं भीख तुमसे कभी,

राह चलते गिरें सम्हलें क्या शरम।… Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on April 7, 2015 at 1:30pm — 27 Comments

चंद लफ़्ज़ों के लिये दूरियां बढती चली गयी

चंद लफ़्ज़ों के लिये दूरियां बढती चली गयी 

डोर बनी थी कड़वाहट की बस कसती चली गयी

रंग भरे थे ख्वाब उसके, मंजिल तलक था जाना 

राह उसकी बस लाल रंग में बदलती चली गयी

खुशियाँ ही चाहती थी वो अपनों की आँखों में 

कालिख क्यों उनके चेहरे बिखरती चली गयी

जीना ही तो चाहती थीं न वो दिलों में बसकर 

बेटियाँ तो तस्वीर बनकर लटकती चली गयी

चोटियों पर पहुँचने का अरमान रखा उसने 

इच्छायें दायरों में ही "निधि" बंधती चली…

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Added by Nidhi Agrawal on April 7, 2015 at 1:30pm — 9 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
हाँ ये खबर जफ़ा की, बनाई हुई तो है - ग़ज़ल

221 2121 1221 212

लोगों के दरमियान उड़ाई हुई तो है

हाँ ये खबर जफ़ा की, बनाई हुई तो है

 

हों तेरे दिल में रश्क़ो हसद तो हुआ करे

आखिर ये आग तेरी लगाई हुई तो है

 

सच ही कहा ये आपने आज़ार देखकर

इक चोट मेरे दिल ने भी खाई हुई तो है

 

गलियों में ये पड़े हुए खाशाक* देखिये                *कूड़ा करकट

इस शह्र में कहीं पे सफाई हुई तो है

 

चटखी हैं उँगलियाँ वो भुजायें फड़क गईं

शामत किसी की “आप” में आई हुई तो…

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Added by शिज्जु "शकूर" on April 7, 2015 at 12:11pm — 28 Comments

ग़ज़ल : पूँजी की ग्रोथ रेट सवाई हुई तो है

बह्र : 221 2121 1221 212

 

रोटी की रेडियस, जो तिहाई हुई, तो है

पूँजी की ग्रोथ रेट सवाई हुई तो है

 

अपना भी घर जला है तो अब चीखने लगे

ये आग आप ही की लगाई हुई तो है

 

बारिश के इंतजार में सदियाँ गुज़र गईं

महलों के आसपास खुदाई हुई तो है

 

खाली भले है पेट मगर ये भी देखिए

छाती हवा से हम ने फुलाई हुई तो है

 

क्यूँ दर्द बढ़ रहा है मेरा, न्याय ने दवा

ज़ख़्मों के आस पास लगाई हुई तो…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 7, 2015 at 11:52am — 20 Comments

खुदा तेरी ज़मीं का..............

1222 1222 1222 122



खुदा तेरी ज़मीं का जर्रा जर्रा बोलता है

करम तेरा जो हो तो बूटा बूटा बोलता है



किसी दिन मिलके तुझमें, बन मै जाऊँगा मसीहा

अना की जंग लड़ता मस्त कतरा बोलता है



बिछड़ना है सभी को इक न इक दिन, याद रख तू

नशेमन से बिछड़ता जर्द पत्ता बोलता है



हुनर का हो तू गर पक्का तो जीवन ज्यूँ शहद हो

निखर जा तप के मधुमक्खी का छत्ता बोलता है



बहुत दिल साफ़ होना भी नही होता है अच्छा

किसी का मै न हो पाया,ये शीशा…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 7, 2015 at 9:00am — 16 Comments

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