“आपकी लड़की हमको बहुत पसंद है !”
“ बहुत –बहुत शुक्रिया आप दोनों का !”
“ बस बहन जी, थोडा लेन- देन की बात भी...!”
“हाँ-हाँ क्यों नहीं, भाई-साहब, बहन जी बताइये- बताइये ?”
“ अरे आप तो जानती हीं हैं आजकल का चलन, और फिर मेरा लड़का अच्छा खासा सरकारी इंजीनीयर है , कम से कम ४० लाख नकद और एक गाडी तो बनती ही है !” …
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on April 15, 2015 at 9:43pm — 10 Comments
खुशी जो हमने बांटी गम कम तो हुआ
हुए बीमार भार तन का कम तो हुआ
माँगी जो हमने कीमत मिली हमें दुआ
उनके बजट का भार कुछ कम तो हुआ
मरहूम हो गए दुःख सहे नही गए
उनके सितम का भार कुछ कम तो हुआ
माना कि मेरे मौला है नाराज इस वकत
फक्र जिनपे था भरोसा कम तो हुआ
मालूम था उन्हें हमसे हैं वो मगर
उनकी नजर में एक ‘मत’ कम तो हुआ
अन्नदाता बार बार कहते है जनाब
भूमि का भागीदार एक कम तो हुआ
(मौलिक व अप्रकाशित)
मैंने गजल…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on April 15, 2015 at 8:00pm — 15 Comments
इतनी मुश्किल से तो बेठने की जगह मिली, ऊपर से गाड़ी लेट ! उस पर साथ मे पहले से बेठा आवारा सा लड़का जो लगातार उसे घूरता ही जा रहा है ! और वो गुस्से मे अनदेखा करके थोड़ा पीछे हटकर मुह घुमाकर बेठ गयी I अचानक पड़ा लिखा सुदर्शन युवा बीच के थोड़ी से स्थान मे फस कर बेठ गया, और लड़की अचानक आवारा लड़के से बोल पड़ी,
"भैया गाड़ी लेट क्यूँ हो गयी ?"!
मोलिक अपकाशित
Added by aman kumar on April 15, 2015 at 5:00pm — 15 Comments
"कुछ सिखाओं अपनी माँ को | शहर में रहते पच्चीसों साल हो गये पर रही गंवार की गंवार |"
" बड़े साहब कितनी बार कहें बैठ जाओ पर ये बैठी नहीं |"
"कइसे बैठती जी, वो 'पैताने' बैठने को कहत रहा | "...सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by savitamishra on April 15, 2015 at 4:30pm — 29 Comments
सरगम भरता, कल-कल करता,
झर-झर झरता निर्झर सस्वर I
तम को छलता, पग-पग चलता,
धक्-धक् जलता सूरज सत्वर II
सन-सन बहता, गुम-सुम रहता,
क्या-कुछ कहता रह-रह मारुत I…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 15, 2015 at 4:30pm — 20 Comments
(१). बदरंग संवेदनाएँ
"घोषणा करवा दो कि कल हम पूरा दिन अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे।"
"क्यों नेता जी ? कल तो कोई व्रत उपवास भी नहीं है।"
"अरे कल अम्बेदकर जयंती है न, पता नहीं किस किस बस्ती में जाना पड़ जाए ।"
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(२). सफ़ेद साँप
"आज तो स्पेशल जश्न होना चाहिए।"
"तो भेजें किसी को दारू सिक्का लाने ?"
"दारू सिक्के के साथ साथ मेरे लिए नत्थू की लौंडिया पकड़ कर…
Added by योगराज प्रभाकर on April 15, 2015 at 4:00pm — 17 Comments
Added by Samar kabeer on April 15, 2015 at 11:28am — 13 Comments
जवानी की दहलीज़ पार कर चुकी विनीता ने फिर से लड़के वालों के आने की खबर सुनते ही अपने घर जाने के अरमानों को संजों लिया. अपनी माँ के खटिया पकड़ने के बाद, उसे अपने पिता समान बड़े भाई और माँ के दर्जे वाली भाभी से ही आशायें बंधी हुई है. आज फिर एक कुलीन परिवार का लड़का, अपनी सहमती जताकर लौट गया. मेहमानों के लौटते ही भाभी ने विनीता से कहा..
“बिन्नो!! मैं ऑफिस के लिए बहुत लेट हो गई हूँ. तुम बच्चों को तैयार कर स्कूल भिजवा देना, माँ जी का कमरा और कपडे देख लेना और सुनो.. मैं तुम्हारे लिए आज…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on April 15, 2015 at 10:30am — 20 Comments
22-22-22-22-22-2 जो रह-रहकर इस सीने में उठता है |
तेरा मेरा दर्द पुराना किस्सा है |
|
उनकी आँखों से उतरे हर आँसू से |
ग़ज़लों को भी गीला होते देखा है… |
Added by मिथिलेश वामनकर on April 15, 2015 at 10:30am — 17 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on April 15, 2015 at 10:24am — 20 Comments
22 22 22 22 2
शहर ज़रा सा मुझमें भी तो आया है
यही सोच के गाँव गाँव शर्माया है
मुर्दों जैसा नया सवेरा है सोया
किस अँधियारे ने इसको भरमाया है
याराना कुह्रों से है क्या मौसम का
आसमान तक देखो कैसे छाया है
चौखट चौखट लाशें हैं अरमानों की
किस क़ातिल को गाँव हमारा भाया है
सूखी डाली करे शिकायत तो किस को
सूरज आँखें लाल किये फिर आया है
छप्पर चुह ते झोपड़ियों का क्या…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 15, 2015 at 8:30am — 27 Comments
हमारे अंदर का बनिया
सब कुच्छ बेचता है,
राम भी, कृष्ण भी,
धर्म और ईमान भी,
तीर और कमान भी.
अब उसके दुकान में
नये- नये समान हैं,
झूठाई, सपनों की मिठाई,
दंभ के साथ बढ़ती ढिठाई
ईन्हे वो रोज नई नई
जगहों पे सजाता है
ज़ोर से आवाज़ लगाता है
हिंदू हो या मुसलमान,
सिख हो या ख्रिस्तान,
उसके लिए सभी बराबर हैं.
वो बड़ी ईमानदारी से
बेईमानी बेचता हैं
दरअसल जो बिकता है
वही टिकता है.
मौलिक वा…
ContinueAdded by Dr.Vijay Prakash Sharma on April 15, 2015 at 8:00am — 12 Comments
मनहरण घनाक्षरी -
इस छन्द का विन्यास 8, 8, 8, 7 वर्णो की आवृति पर अथवा 16-15 वर्णों की यति पर कुल 31 वर्ण से किया जाता हैं। इसके चरणान्त में ।s लघु गुरू या s।s गुरू लघु गुरू रखने पर लय-गति में निरन्तरता बनी रहती है।
1
अम्ब, अम्ब सत्य ज्ञान, ताल छन्द के विधान,
रास रंग संग में उमंग के प्रमान हैं।
दिव्य शुभ्र शारदे बिसार के कलंक काल,
सूर्य-चन्द्र ज्योति से सजा रही वितान है।।
अखण्ड ब्रह्म तेज में, धरा-व्योम प्रेम करें
सृ-िष्ट रूप में अनादि…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2015 at 10:00pm — 5 Comments
मुख पर स्थाई भाव
न राग न द्वेष
शांत और निच्छल
पूर्णता को प्राप्त
जिन्दगी की भाग-दौड़
बहू की भुन-भुन
बेटे की झिड़की
पत्नि की देखभाल
और ....
महंगी दवाइयों से
मिल गयी मुक्ति
चल पड़ा वो
सब कुछ त्याग
महा-यात्रा…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 14, 2015 at 3:47pm — 23 Comments
कौन हो ? रो क्यों रही हो? - गाँव के बाहर बैठी उस स्त्री से बाल्या ने पूछा
"शहर शहर घूम आई ..धुवें से काली काली हो गयी.. मैं बरसना चाहती हूँ लेकिन सब ने बहाना कर के भगा दिया ..कहाँ जाऊं" उसने रोते रोते कहा
अरे माई . कितना इंतज़ार करवाया .. पिछले दो साल से तुम नहीं आयीं.. उस साल बापू ने रो रो कर इसी पेड़ से लटक कर जान दे दी .. पिछले साल माँ ने कर्ज लेकर बीज बोये और फिर भूखी ही मर गयी... तू यहाँ बरस खेतों पे... अबकी फसल मैं दोनों का श्राद्ध करूँगा…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 14, 2015 at 3:30pm — 6 Comments
212 212 212 212
छोड़ दूँ अब कुंवारा नगर मैं पिया
काट लूँ सँग तुम्हारे सफर मैं पिया
मन न माने मगर क्या बताऊँ तुम्हें
साथ दोगे चलूंगी सहर मैं पिया
पंखुड़ी खिल गयी राग पाकर कहीं
बेज़ुबां अब न खोलूं अधर मैं पिया
मौत का गम नहीं साथ तुम हो मेरे
मुस्करा के पिउंगी जहर मैं पिया
अब तुम्हारे सिवा कुछ न चाहूंगी मैं
दिल मिलाओ मिलाऊं नज़र मैं पिया
दूर से देखकर आज रुकना…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 14, 2015 at 2:49pm — 8 Comments
गजल- आत्मा भरपूर सी...
बह्र - 2122, 2122, 2122, 212
फिर मुझे वह हूर सी लगने लगी।
दुश्मनी भी नूर सी लगने लगी।
गंग जन - मन को सदा पावन करे,
वास्तव में सूर सी लगने लगी।
तट, नदी का मध्य भी उकता गया,
रेत - पन्नी घूर सी लगने लगी।
आस्था की डुबकियॉं नित स्वर्ग हित,
बेवजह मगरूर सी लगने लगी।
आदमी सर-झील-नदियॉं पाट कर,
हस्तियॉं मशहूर सी लगने लगी।
आपदाएं नित्य घर-मन दाहतीं,…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2015 at 12:30pm — 10 Comments
Added by दिनेश कुमार on April 14, 2015 at 10:39am — 22 Comments
2122 2122 2122 212
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आँसुओं से भीगता है रोज अपना बिस्तरा
आपको भी दूर जाकर क्या पता है क्या मिला
एक अरसा हो गया है आपसे हमको मिले
पूछते हैं लोग फिर भी हाल हमसे आपका
खार बनकर चुभ रहे हैं फूल यादों के हमें
आपको भी मिल रही है क्या मुहब्बत की सजा
माँगने पर आजकल तो मौत भी मिलती नहीं
फिर मुहब्बत क्या मिलेगी लाजिमी है भूलना
शर्त पर करना मुहब्बत आपकी फितरत रही
खेलना मासूम दिल से…
Added by umesh katara on April 13, 2015 at 10:00pm — 22 Comments
बैसाखी की सबको शुभकामनाये
(दस माहिया)
(१)
कोठे पे वो पाखी
नाच रहा देखो
अज आई बैसाखी
(२)
गेहुओं की बालियाँ
फसल कटी देखो
नच पीट के तालियाँ
(३)
नच लें औ गायें हम
आई बैशाखी
नव वर्ष मनाएँ हम
(४)
करो तन मन चंगा जी
आज धरा पर खुद
उतरी थी गंगा जी
( ५ )
गुरु गोविंद सिंह हुए
बना खालसा…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 13, 2015 at 11:00am — 21 Comments
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