बेरोजगारी निवारण विधेयक वापस लो.. वापस लो, सरकार की मनमानी नहीं चलेगी...नहीं चलेगी.....
“मम्मी मम्मी जल्दी आओं, टीवी पर पापा को दिखा रहे हैं.”
“अच्छा....”
“मम्मी ये बेरोजगारी निवारण विधेयक क्या है ?”
“पता नहीं बेटा, शाम में जब तेरे पापा आयेंगे तो पूछ कर बताउंगी.”
“सुनिए जी, आज आपको मुन्ना टीवी पर देख बहुत खुश हो रहा था. वैसे एक बात बताइये ये बेरोजगारी निवारण विधेयक क्या है ?”
“पता नहीं यार, मैंने नहीं…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 20, 2015 at 4:40pm — 25 Comments
२१२२/१२१२/२२ (सभी संभावित कॉम्बिनेशन्स)
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ज़िन्दगी हाल का सफ़र न हुई
जैसे इक रात की सहर न हुई.
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तेरी जानिब मैं देखता ही रहा
मेरी जानिब तेरी नज़र न हुई.
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फ़ायदा क्या हुआ ग़ज़ल होकर
तर्जुमानी तेरी अगर न हुई.
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पहले पहले हया का पर्दा रहा
फिर ज़रा भी अगर मगर न हुई .
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दिल की मिट्टी पे पड़ गयी मिट्टी
याद तेरी इधर उधर न हुई.
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ख़ुद को भूला तुझे भुलाने में
कोई तरकीब कारगर न हुई.
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‘नूर’ बिखरा…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2015 at 4:00pm — 29 Comments
तुम दीया हो तो मुझे बाती बनना होगा
तेरा साथ पाने को चाहे मुझे जलना होगा !
तुम अगर रात हो तो मुझे अँधेरा बनना होगा
तुम से मिलने को मुझे सवेरों से लड़ना होगा !
तुम ग़र दरिया हो तो मुझे समन्दर बनना होगा
तुमको फिर मुहब्बत में मुझ से मिलना होगा !
तुम अगर हवा हो तो मुझे धूल बनना होगा
मुझे आगोश में ले आँधियों में तुम्हें उड़ना होगा !
तुम अगर चाँद हो तो मुझे चकोरी बनना होगा
तुमको हर रात मेरा मिलन का गीत सुनना होगा…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 20, 2015 at 1:25pm — 16 Comments
Added by Samar kabeer on April 20, 2015 at 10:30am — 28 Comments
धरती रोती है ,मैंने देखा है धरती रोती है
छीज रहा उसका आँचल
बिखर रहा सारा संसार
त्रस्त कर रही उसको निस दिन
उसकी ही मानव संतान
विगत की तेजोमय स्मृतियाँ
वर्तमान में तीव्र विनाश
आगत एक भयावह स्वप्न
भग्न - बिखरती आस
पशु - पक्षी जीव वनस्पति
सब ही हैं उसकी संतति
पर मानव ने मान लिया
धरा को केवल अपनी संपत्ति
शक्ति मद में भूल गया
वह…
ContinueAdded by Tanuja Upreti on April 20, 2015 at 10:00am — 20 Comments
“गुरु देव !”
“हाँ बोलो बेटा !”
“लेखन में आपने बहुत कुछ सिखा दिया पर !”
“पर क्या ?”
“पर लगता है आप कहीं चूक गए !”
“अच्छा ! कैसे और तुम्हे ऐसा क्यों लगा ?”
“मेरे लेखन मैं वो बात नहीं आ पा रही है !”
अब गुरु जी थोड़ी देर तक सोचते रहे और तभी एक आवाज़ आई ...पटाक !
शिष्य का गाल लाल हो चुका था , आँख के आगे तारे दिखाई देने लगे .
“अब बोलो बेटा !”
“जी ,समझ गया गुरूजी, बस यही ‘झन्नाटा’ नहीं आ पा रहा था !”
© हरि प्रकाश…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on April 19, 2015 at 9:30pm — 10 Comments
‘’आपने आज का अखबार पढ़ा अशफ़ाक मियां” कश्मीर में हालात और बेकाबू हो गये हैं!
“हाँ श्रीवास्तव जी पढ़ा!” इतना कहकर अशफ़ाक मियां चुप हो गये।
‘’आखिर मौकापरस्तों के चंगुल में जनता कैसे फँस जाती है ?" श्रीवास्तव जी फिर बोल पड़े।
कुछ देर चुप रहने के बाद अशफ़ाक मियां गहरी साँस लेते हुए बोले---
‘’घर का मामला जब अदालत में जाये तो यही अंजाम होता है’’!
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 19, 2015 at 2:30pm — 16 Comments
२१२२/१२१२/२२ (सभी संभावित कॉम्बिनेशन्स)
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तुम तो सचमुच सराब हो बैठे.
यानी आँखों का ख़्वाब हो बैठे
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साथ सच का दिया गुनाह किया
ख्वाहमखाह हम ख़राब हो बैठे.
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फ़िक्र को चाटने लगी दीमक
हम पुरानी क़िताब हो बैठे.
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उनकी नज़रों में थे गुहर की तरह
गिर गए!!! हम भी आब हो बैठे.
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अब हवाओं का कोई खौफ़ नहीं
कुछ चिराग़ आफ़्ताब हो बैठे.
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ऐरे ग़ैरों के…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 19, 2015 at 12:18pm — 26 Comments
शायद हो ख्वाब
तुम्हे व्योम में उड़ते देखा
तुम्हारे बाल बल खाते
और
लहराता प्यार का आँचल
उड़ने की होती है अपनी ही मुद्रा
परियो के अनुराग सी
नैनों के राग सी
प्रात के विहाग सी
इस उड़ने में नहीं कोई स्वन
या पद संचालन की अहरह धुन
उड़ते ही रहना मीत
धरणि पर न आना
रेशम सी किरणों पर मधु-गीत गाना
दूर तो रहोगी, पर दृग-कर्ण-गोचर
पास आओगी तो
फिर एक अपडर
धरती पर टिकते ही परी जैसे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 19, 2015 at 11:17am — 7 Comments
212---212---212---212 |
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तीरगी सा मैं पसरा रहा रात भर |
दीप मन का भी जलता रहा रात भर |
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पा पटक के गया आज पंछी कोई… |
Added by मिथिलेश वामनकर on April 19, 2015 at 10:30am — 15 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on April 19, 2015 at 9:57am — 14 Comments
२२२ /२२२ /२२२
हाँ ये हसीन काम हमने ही किया
खुद को तो तमाम हमने ही किया
आगाजे-बरबादी तेरा करम
अंजाम इंसराम हमने ही किया (अंजाम इंसराम=अंजामिंसराम ) इंसराम = व्यवस्था
हुस्न पे तू सनम न कर यूँ गुमान
जहाँ में तेरा नाम हमने ही किया
रोज ये कहना कि न आयेंगे पर
कू पे तेरी शाम हमने ही किया
हर सुबह न मुँह को लगायेंगे…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 19, 2015 at 9:00am — 4 Comments
चलो
लौट चलो
फिर उसी झील के किनारे
जहां आज तक
लहरों पे चाँद मुस्कुरता है
किनारों की कंकरियां
झील में सुप्त अहसासों को
जगाने के लिए आतुर हैं
वो शिला जिस पर बैठ कर
हमने दृग स्पर्शों से
मौनता का हरण किया था
आज एकान्तता में
उन्ही मधु पलों को जीने के लिए
कसमसा रहा है
हाँ और न के अंतर्द्वंद से
स्वयं को निकालो
प्रणय पलों के स्पंदन से
यूँ आँख न चुराओ
लौट आओ
हम अपने अस्तित्व को
अमर पहचान देंगे
अपने…
Added by Sushil Sarna on April 18, 2015 at 7:01pm — 8 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २
जीवन में कुछ बन पाते
हम इतने चालाक न थे
सच तो इक सा रहता है
मैं बोलूँ या वो बोले
पेट भरा था हम सबका
भूख समझ पाते कैसे
हारेंगे मज़लूम सदा
ये जीते या वो जीते
देख तुझे जीता हूँ मैं
मर जाता हूँ देख तुझे
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 18, 2015 at 4:49pm — 20 Comments
“हमे औरत समझ के कमजोर मत आंकना | आज की औरत मर्दों से कमजोर नहीं है” मिसिज चौबे बस के दरवाजे पर खड़े युवक को हडकाते हुए अंदर घुसी ही थी, कि ठसाठस भरी बस में सामने एक सीट पर बैठे एक बूढ़े आदमी को कमजोर जान चिल्लाते हुए बोली |
“ओ बुढऊ ! कुछ शरम वरम है कि नही, उठो बैठना है हमे, जानते नहीं क्या..लेडीज फर्स्ट”
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sudhir Dwivedi on April 18, 2015 at 3:30pm — 6 Comments
एक दिन महानगर के किसी बस स्टाप के पास खड़ी, एक सुन्दर युवती के पास एक कार आकर रुकती है ! कार का दरवाज़ा खुलता है और अन्दर बैठे दो युवकों में से एक,उतर कर लड़की के पास आता है ! दोनों में कुछ बातें होतीं है, और लड़की गाड़ी में सवार हो जाती है !
दूसरे दिन महानगर के किसी बस स्टाप के पास खड़ी, एक सुन्दर सी युवती के पास वही कार आकर रुकती है ! कार का दरवाज़ा खुलता है और अन्दर बैठे दो युवकों में से एक, उतर कर लड़की के पास आता है ! दोनों…
ContinueAdded by rajkumarahuja on April 18, 2015 at 2:00pm — No Comments
दीवारों में
दिये के आले
दीपक का स्वागत करते हैं
रश्मि राग में
मगन हुई
ज्योति
पताका लहराती है
तमस वज्र को तोड़
आलय को रोशनी से भर देते हैं
और
दिये के आले
बदले में
दिये से
काजल के झाले
खुद अन्तस में
धर लेते हैं
@आनन्द 18/04/2015 "मौलिक व अप्रकाशित"
Added by anand murthy on April 18, 2015 at 1:28pm — 5 Comments
१२२२/ १२२२ / १२२
न जानें क्या से क्या जोड़ा करेंगे
तुम्हारे ग़म में दिल थोडा करेंगे.
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तुम्हारे साथ हम पीते रहे हैं
तुम्हारी नाम की छोड़ा करेंगे.
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तुम्हारी आँख का हर एक आँसू
हम अपनी आँख में मोड़ा करेंगे.
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घरौंदे रेत के क्यूँ ग़ैर तोड़े
बनाएंगे, हमीं तोडा करेंगे.
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नपेंगे आज सारे चाँद तारे
हम अपनी फ़िक्र को घोडा करेंगे.
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ख़ुदा को…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2015 at 11:12am — 14 Comments
“ कुछ कीजिये..सर!! आप ने तो भाषण दे दिया कि प्राकृतिक आपदा के कारण, गुणबत्ता रहित अनाज भी समर्थन मूल्य पर खरीद लेंगे. इससे हम लोगों को नुक्सान हो जायगा. चुनावी फंड, रिफंड करने का अच्छा अवसर है..”
“ अरे!! आप लोग व्यापारी हो, इतना भी नही समझते. किसानो को पैसों की बहुत जरुरत है. अभी भाषण ही दिया है , लिखित आदेश की गति बहुत धीमी होती है.."
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on April 18, 2015 at 9:40am — 20 Comments
आज भोपाल के चौक में रौनक जरा कम नजर आ रही थी । सारे दुकानदार सहमे से अतिक्रमण दस्ता के तरफ देख रहे थे । अफरा तफरी का माहौल देख कर वहां खरीदारी करने आये लोग परेशान हो इधर उधर हो रहे थे ।
"अरे भाई , इनको क्या परेशानी है ...? अगर दुकानदार समानों को सजाकर नही दिखाये तो ग्राहक को भी कैसे समझ में आये । " -- बेहद परेशान अजीज भाई कह उठे थे ।
"चौक के अंदर तक गाडियों का प्रवेश वर्जित कर दे , तो जरा बात भी बने । नाहक ही यह प्रसाशन , ग्राहक और दुकानदार दोनों को परेशान कर रहे है । "--- वहीं…
Added by kanta roy on April 18, 2015 at 9:30am — 14 Comments
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