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All Blog Posts Tagged 'गज़ल' (117)

है ताब मुझे / एक ताज़ा तरही गज़ल

2122 1212 112

इश्क में जायेगी ये जान भी क्या

सब्र तोड़ेगा इम्तेहान भी क्या

.

ठोकरें हमको कर गयीं हैरां

आपने बदली है जबान भी क्या

.

गिर के नज़रों में कोई तुम ही कहो

जीत पायेगा ये जहाँन भी क्या

.

चाँद देखा था रात सहमा सा

'इस जमीं पर है आसमान भी क्या'

.

काट दे पर मेरे है ताब मुझे

रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या

.

फिर मुझे प्यार पर यकीन हुआ

नर्म दिल में तेरा निशान भी क्या

.

एक जुम्बिश हुयी है दिल में…

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Added by वेदिका on June 18, 2014 at 12:42am — 40 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
सोच बदलेगी न जब तक.........अरुण कुमार निगम

संस्कारों की कमी से , मनचले होते रहेंगे

कुछ न बदलेगा जहां में , हादसे होते रहेंगे.



दोष इसका दोष उसका मूल बातें गौण सारी

तालियाँ जब तक बजेंगी , चोंचले होते रहेंगे .



मौन धरने उग्र रैली , जल बुझेगी मोमबत्ती

आड़ में कुछ बाड़ में कुछ सामने होते रहेंगे .



आबकारी लाभकारी लाडला सुत है कमाऊ

और  भी  तो  रास्ते  हैं , फायदे  होते रहेंगे .



ये गवाही वो गवाही, है बहुत ही चाल धीमी

जानता  है  हर  दरिंदा , फैसले  होते …

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Added by अरुण कुमार निगम on June 7, 2014 at 12:00am — 14 Comments

गज़ल - वतन को लहू की नज़र कर दिया है - इमरान

122 122 122 122



सियासी जमातो! ग़दर कर दिया है,

वतन को लहू की नज़र कर दिया है।



निशाँ भी नहीं है कहीं रोशनी का,

के हर सू अँधेरा अमर कर दिया है।



डरी और सहमी है औलादे आदम,

ज़हन पर कुछ ऐसा असर कर दिया है।



नई नस्ले नफरत को पाने की धुन में,

रगों में रवाना ज़हर कर दिया है।



यहाँ कल तलक थी हज़ारों की बस्ती,

बताओ के उसको किधर कर दिया है।



ये वादा था सिस्टम बदल देंगे सारा,

मगर और देखो लचर कर दिया है।



गबन…

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Added by इमरान खान on April 15, 2014 at 1:30pm — 11 Comments

गज़ल - जलते नयन बेतहाशा - इमरान

221 221 22



ठंडी पवन बेतहाशा,

जलते नयन बेतहाशा।



धरती पराई, सताये,

यादे वतन बेतहाशा।



ज़िन्दा अगर हो तो सुन्न क्यों,

ख़ूने बदन बेतहाशा।



मैला बदन कैसे पहनूँ,

उजला क़फन बेतहाशा।



मौसम चुनावी, मिलेंगे,

झूठे वचन बेतहाशा।



नेता न छोड़ेंगे करने,

भारी गबन बेतहाशा।



माज़ी जिगर का बना है,

कोई वज़न बेतहाशा।



मिलने लगे हैं कुछ अपने,

डाले शिकन बेतहाशा।



देखो न अंधा बना… Continue

Added by इमरान खान on April 6, 2014 at 8:30pm — 31 Comments

ग़ज़ल

फकत वोटों की खातिर झूठे वादे करने वालों को

सबक सिखलाएंगे अब के छलावे करने वालों को ...



नहीं गुमराह होंगे हम किसी की बातों में आ कर 

न गद्दी पर बिठाएंगे तमाशे करने वालों को...

गरीबी,भुखमरी,बेरोजगारी से लड़ेंगे वो

चलो हम हौसला देवें इरादे करने वालों को ...

चुनावी वायदे अपने कभी पूरे नहीं करते

बहाना चाहिए कोई बहाने करने वालों…

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Added by Ajay Agyat on March 23, 2014 at 3:00pm — 9 Comments


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फ़क़त दो चार पल की बात है ये ( ग़ज़ल - गिरिराज भन्डारी )

1222     1222     122 

फ़क़त दो चार पल की बात है ये

हाँ, बस इक रात जैसी रात है ये

कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर

कहूँ क्या? आदमी की जात है ये

 

रफ़ाक़त आप कैसे कह रहे हैं ?

असल में पीठ…

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Added by गिरिराज भंडारी on March 18, 2014 at 5:00pm — 25 Comments


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बह के पानी की तरह अब दूर तक वो जायेगा ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122   2122  2122    212

बंदरों को फिर मिला शायद मसलने के   लिये

फूल ने मंसूबा कल बान्धा था खिलने के लिये

 

बह के पानी की तरह अब दूर तक वो जायेगा

दर्द  को मैने  रखा था  कल पिघलने के लिये 

 …

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Added by गिरिराज भंडारी on February 10, 2014 at 6:30pm — 16 Comments


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फिर हुई जीने की इच्छा आज मन में ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122       2122       2122  

फिर हुई जीने की इच्छा आज मन में

फिर बुलाया आज  कोई  है सपन में

फड़फड़ाने फिर लगा कोई परों को

फिर उड़ेगा वो किसी नीले गगन में

फिर से पीड़ा मीठी सी कुछ हो रही है…

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Added by गिरिराज भंडारी on January 20, 2014 at 9:30pm — 31 Comments


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जो गुज़र गया वो गुज़र गया ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

11212  11212  11212   11212

 

उसे भूल जा तू न  याद कर, जो गुज़र गया वो गुज़र गया

जिसे तख़्ते दिल में बिठाया था,वो उतर गया तो उतर गया

 

यहाँ आंधियों का वो ज़ोर है ,कि  उजड़ गया है मेरा चमन 

मेरी चाहतें मिली ख़ाक में , मेरा ख़्वाब था जो बिखर गया

 …

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Added by गिरिराज भंडारी on January 9, 2014 at 6:30pm — 47 Comments


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मेरी शायरी का असर है तू ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

॥ नये साल की पहली ग़ज़ल मेरे भगवान को समर्पित ॥

 ॐ श्री साई नाथाय नमः

   11212        11212

मेरी शायरी का  असर  है  तू

मेरी ज़िन्दगी का  हुनर है  तू

मै हूँ एक बुझती सी आग बस

मुझे फिर जला दे ,…

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Added by गिरिराज भंडारी on January 1, 2014 at 8:30am — 35 Comments

एक गज़ल ....

बहर ... २२२ २२२ २२ 

वो जब से सरकार हुए हैं

सब कितने लाचार हुए हैं

जन सेवा अब नाम ठगी का

सपनोँ के व्यापार हुए हैं

धोखे देते बन के साधू

ऐसे ठेकेदार हुए हैं

मज़हब के भी नाम पे देखो

कितने अत्याचार हुए हैं

जो थे अब तक झुक कर चलते

वो अबकी खुददार हुए हैं

 

मौलिक  एवं अप्रकाशित 

Added by MAHIMA SHREE on December 25, 2013 at 6:30pm — 32 Comments


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"अपने ख़्वाबों को खिलाऊँ क्या, पिलाऊँ क्या बताओ " - गज़ल - ( गिरिराज भंडारी )

2122    2122    2122     2122

 

गुम्बदों से क्यों कबूतर आज कल डरने लगे हैं

दूरियाँ रख कर चलेंगे फैसले करते लगे हैं

 

पतझड़ों की साजिशों से, अब बहारों में भी देखो

हर शज़र मुरझा गया, पत्ते सभी झड़ने लगे हैं

 

अपने ख़्वाबों को…

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Added by गिरिराज भंडारी on December 20, 2013 at 7:30am — 41 Comments


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राह मे दुश्वारियां थीं जब चले थे घर से हम ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122  2122   2122  212

सिलसिले उनके छिपे, कांटो से भी मिलते गये 

फिर भी ऐसा क्यों हुआ वो फूल सा खिलते गये

 

राह मे दुश्वारियां थीं जब चले थे घर से हम

बिन रुके चलते रहे तो रास्ते मिलते गये 

 …

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Added by गिरिराज भंडारी on December 12, 2013 at 9:30pm — 32 Comments


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गर्म हवा है खूब यहाँ की ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

गर्म हवा है खूब यहाँ की

************************

2 2  2 2  2 2   2 2

.

जो भी मुझसे सम्बंधित है

सुख पाने से वो वंचित है

 

मौन यहाँ है सबसे…

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Added by गिरिराज भंडारी on November 30, 2013 at 5:00pm — 22 Comments


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प्राण जिसमें है मरेगा ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122  2122 ( बिना रदीफ )

जो भरा है वो बहेगा   

रिक्तता है तो भरेगा

 

डर हमे काहे सताये

प्राण जिसमें है मरेगा

 

कानों सुनके आँखों देखे

चुप भला कैसे…

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Added by गिरिराज भंडारी on November 25, 2013 at 7:00pm — 37 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
धनक से रंग लाये हैं तुम्हें जी भर लगायें हम ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

1222    1222      1222     1222   

धनक से रंग लाये हैं तुम्हें जी भर लगायें हम

***********************************

तमन्नाओं की कश्ती में तुझे ऐ दिल बिठायें हम

तेरी इन डूबती सांसों की उम्मीदें जगायें हम

 

बहुत ठोकर मिली…

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Added by गिरिराज भंडारी on November 18, 2013 at 1:30pm — 42 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
दुन्दुभी क्या? वो बाँसुरी होगी -- ( ग़ज़ल ) गिरिराज भन्डारी

दुन्दुभी क्या? वो बाँसुरी होगी

*******************************

 2122    1212       22

 

काई ज़ज़्बात पर जमी होगी

दूरी ,क्या यूँ ही बन गयी होगी  ?

पूर्ण तो बस ख़ुदा ही होता है…

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Added by गिरिराज भंडारी on November 12, 2013 at 6:00pm — 31 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
बलाये आसमानी में ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

1222       1222        1222     1222

 

कभी फूलों मे कलियों में, कभी झरनों के पानी में

मुझे महसूस तू होता, हवाओं की रवानी में

कभी बेकस की आहों में ,निगाहे बेबसी में भी 

कभी खोजा किया तुझको, किसी गमगीं कहानी में

मुदावा मेरी…

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Added by गिरिराज भंडारी on October 28, 2013 at 7:30am — 41 Comments


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जो भी है आपका करम है सब ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

 2122       1212      22

ज़र्फ़ अंदर न पास है दिल में

आ गया हूँ ,अदब की महफ़िल में

वक़्त रद्दे अमल का आया तो 

तुम रहम खोजते  हो क़ातिल में

कुछ तड़प , दर्द और बेचैनी

और क्या खोजते हो…

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Added by गिरिराज भंडारी on October 24, 2013 at 7:00pm — 37 Comments

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