इस बार सरकार के सामने जो प्रस्ताव आया था वह चोंकाने वाला था। उनकी माँग थी कि राष्ट्रीय ध्वज में चक्र के स्थान पर गाय का चेहरा दिखाया जाय। अन्य धार्मिक संगठनों ने भी इस माँग का समर्थन कर डाला। इसके पीछे उनकी दलील थी कि इससे देश और विदेश में गाय का सम्मान बढ़ेगा और महत्व भी। इस नीति से गाय के विरुद्ध होने वाली हिंसा भी रुकेगी| अतः सरकार को झुकना पड़ा। सरकार का इरादा था कि इस नीति को गुप्त रखा जाय और चुनाव के वक्त खुलासा किया जाय। एक तरह से सरकार इस नीति को हथियार के रूप में चुनाव में भुनाना…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 30, 2018 at 11:30am — 8 Comments
सुबह जरूर आयेगी - लघुकथा –
वह रात सूरज और संध्या के जीवन की ऐसी रात थी कि दोनों की ही अग्नि परीक्षा की घड़ी आगयी थी। कौन खरा उतरेगा , यह तो ऊपर वाला ही तय करेगा ।
दोनों की शादी को जुम्मे जुम्मे आठ दिन भी नहीं हुए थे कि दोनों ने अकेले पिक्चर देखने, वह भी नाइट शो, का प्रोग्राम बना लिया। शहर के बिगड़े माहौल को देखते हुए घर में कोई भी उनके इस फ़ैसले से खुश नहीं था। मगर सूरज की ज़िद और अति आत्मविश्वास के आगे सब चुप थे। क्योंकि वह एक फ़ौज़ी अफ़सर जो था।
फ़िल्म देखकर निकले तो सूरज…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 25, 2018 at 12:40pm — 12 Comments
गंगा सूख गयी - लघुकथा –
प्यारी "माँ"
तुम्हारी ऊँच नीच की तमाम नसीहतों को दरकिनार करते हुए, मैंने अपने परिवार से बड़े और धनवान खानदान के रवि से प्रेम विवाह किया था। हालांकि हम सब बहुत खुश थे। मेरे प्रति सब का व्यवहार बेहद आत्मीय था।
एक साल बाद गुड़िया ने जन्म लिया। अचानक से परिवार के लोगों का नज़रिया बदल गया। शायद सब को पुत्र की चाहत थी। गुड़िया को तो कोई भी गोद लेना तो दूर, छूता तक नहीं था। यहाँ तक कि रवि, उसका पिता होने के बावज़ूद , उसे प्यार नहीं करता था। मुझे यह सब बहुत…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 21, 2018 at 8:47am — 16 Comments
चुनावी घोषणायें - लघुकथा –
मंच से नेताजी अपने चुनावी भाषण में आम जनता के लिये लंबी लंबी घोषणायें राशन की तरह बाँट रहे थे।
"अरे साहब यह सब घोषणायें तो घिसी पिटी हैं। हर चुनाव में दोहराई जाती हैं"। नीचे से एक गाँव का आदमी चिल्लाया।
नेताजी ने मुस्कुराते हुए अपनी दाढ़ी पर हाथ फ़िराते हुए कहा,"अब मैं ऐसी घोषणा करने जा रहा हूँ जो इस देश के इतिहास में पहली बार होगा"।
सारे श्रोता गण एकाग्र होकर साँस रोक कर नेताजी की अगली घोषणा का इंतज़ार करने लगे।
"हमारी सरकार एक…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 19, 2018 at 1:00pm — 16 Comments
पतझड़ - लघुकथा –
केशव ने जैसे ही अपने घर के बाहर लगे पेड़ के नीचे से अपना साईकिल रिक्शा उठाया, उसके पड़ोसी रहमान ने उसका हाथ पकड़ लिया,
"यह क्या कर रहे हो केशव? कल तुम्हारे पिता का देहांत हुआ है और आज तुम रिक्शा लेकर काम पर चल दिये"?
"भाई, मेरे रिक्शा ना चलाने से जाने वाला तो वापस नहीं आयेगा। लेकिन भूख प्यास से मेरे बच्चे भी मेरे पिता की तरह मुरझा जायेंगे"|
" हम लोग क्या मर गये हैं? इतने बेगैरत नहीं कि दो चार दिन अपने पड़ोसी के बच्चों को खाना भी ना दे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 14, 2018 at 7:08pm — 18 Comments
बिजली – लघुकथा -
"गुड्डो बेटा, क्यों इस लालटेन की रोशनी में आँखें फ़ोड़ रही है। थोड़ा इंतज़ार करले, बिजली का"।
गुड्डो के कुछ बोलने से पहले ही उसकी माँ बोल पड़ी," तुम्हारी बिजली ना आज आयेगी ना कल। छोरी को लालटेन से ही पढ़ने दो"।
"अरे भाग्यवान, मैं तो इसके भले की बात कर रहा हूँ। लड़की जात है। चश्मा लग गया तो शादी में भी अड़चन पड़ेगी"।
"कुछ ना होता।बबली इसी लालटेन से पढ़कर डाक्टर बन गयी और आँखें भी सही सलामत हैं।इस बिजली के भरोसे कब तक बैठे रहो"।
"आज पंचायत में विधायक…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 9, 2018 at 10:33pm — 14 Comments
जूठन - लघुकथा –
रघुबीर लगभग चालीस का होने जा रहा था पर अभी तक कुँआरा था। इकलौता बेटा था इसलिये माँ को शादी की बहुत चिंता रहती थी। बाप दो साल पहले मर चुका था| माँ अपने स्तर पर बहुत कोशिश कर चुकी थी लेकिन बेटे की छोटी सी नौकरी के कारण बात नहीं बनती थी।
उसकी पड़ोसन ने बताया कि आज अपनी जाति वालों का सामूहिक विवाह सम्मेलन हो रहा है, अतः बेटे को बुला लो,शायद बात बन जाये।
माँ बेटा समय पर तैयार होकर सम्मेलन में शामिल हो गये। रघुबीर देखने में गोरा चिट्टा स्मार्ट बंदा था। इसलिये…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 5, 2018 at 11:33am — 22 Comments
आपसी सहयोग - लघुकथा –
साहित्यकार तरुण घोष के नवीनतम लघुकथा संग्रह "अपने मुँह मियाँ मिट्ठू" को वर्ष -2018 का सर्वश्रेष्ठ लघुकथा संग्रह चुना गया और साहित्य जगत का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान "सूक्ष्मदर्शी" दिया गया।
यह समाचार मिलते ही उनकी प्रिय लेखनी अत्यधिक वाचाल हो गयी। सुबह से बस एक ही गुणगान किये जा रही थी,
"देखा, मेरी ताक़त को, क़माल की शक्ति और सोच है मेरे पास। आज मेरे कारण साहब का मस्तक सातवें आसमान पर है"।
घोष साहब की लिखने की मेज पर मौजूद स्याही की दवात, लिखने…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 26, 2018 at 12:11pm — 10 Comments
समाज सेवा - लघुकथा –
दद्दू नब्बे का आंकड़ा पार कर चुके थे। पूरा परिवार शहर में बस गया था लेकिन दद्दू गाँव में अपनी पुस्तैनी हवेली में ही पड़े थे। उनकी देखभाल और तीमारदारी के लिये बड़ी बहू साथ में थी। खाने पीने से ज्यादा दद्दू की दवाईयों का ख्याल रखना पड़ता था। यूं कहो कि दद्दू दवाओं के सहारे ही जीवित थे। दद्दू की दुनियाँ एक बिस्तर पर सिमट चुकी थी।
"दद्दू, मुँह खोलो, दवा खालो"?
"बहू, अब ये दवाओं का सिलसिला खत्म कर दो। एक बार बस छुट्टन को बुलादो। उससे मिलकर अलविदा कह…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 7, 2018 at 11:50am — 14 Comments
चरित्र - लघुकथा –
"वर्मा साहब, अपना सामान समेट लीजिये। आज और अभी आपको वृद्धाश्रम में जाना है”।
इतना कह कर वह युवक गुस्से में तेजी से निकल गया।
वर्मा जी का मस्तिष्क संज्ञा शून्य हो गया। वह सोचने पर विवश होगये कि आज उनका इकलौता पुत्र किस तरह व्यवहार कर रहा है।
कमिशनर जैसे बड़े पद से सेवा निवृत हुये करीब बारह साल हो गये। इस बीच पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया।
"आपने अभी तक पैकिंग नहीं की"? वही युवक पुनः बड़बड़ाते हुये आया|
"अचानक यह फ़ैसला, वह भी बिना मेरी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 5, 2018 at 10:05am — 12 Comments
तन की बात - लघुकथा –
नंदू स्कूल का बैग पटक कर चिल्लाया,"माँ, मैं खेलने जा रहा हूँ। आज स्कूल की छुट्टी होगयी"।
"अरे रुक तो सही, क्या हुआ। अभी गया था और तुरंत वापस आगया। बता तो,क्यों हो गयी छुट्टी"? ममता रसोईघर से हाथ पौंछते हुई निकली|
"माँ, स्कूल की एक लड़की ने स्कूल में आत्म हत्या कर ली"।
इतना बोलकर नंदू खेलने दौड़ गया।
ममता यह खबर सुनकर बेचैन हो गयी।वह भी तुरंत स्कूल पहुंच गयी ।भीड़ लगी हुई थी।पुलिस वाले भी आ चुके थे।लोगों में कानाफ़ूसी चल रही थी।
कोई…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on April 24, 2018 at 6:03pm — 14 Comments
गुहार - लघुकथा –
मंत्री जी की गाड़ी जैसे ही बँगले से बाहर निकली, एक जवान औरत हाथ में खून से सनी दरांती और गोद में छोटी बच्ची लिये गाड़ी के आगे आकर खड़ी होगयी। ड्राइवर ने बताया कि वह सुबह से आपसे मिलने की ज़िद कर रही थी। दरबान ने नहीं आने दिया।
"क्या हुआ बेटी। यह क्या हालत बना रखी है"?
"साहब मैं एक फ़ौज़ी की विधवा हूं। मेरा ससुर और देवर मेरी ज़मीन और मेरे शरीर के लिये मुझे परेशान करते हैं”|
"तुम थाने क्यों नहीं गयी। वहाँ जाकर रिपोर्ट लिखाओ"?
"गयी थी साहब।…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on April 21, 2018 at 11:42am — 10 Comments
पथरीली डगर - लघुकथा –
"माँ, अब से हम अकेले स्कूल नहीं जाया करेंगे"?
"क्यों, क्या हुआ, मेरी बच्ची"?
"आप बापू से बोलो, हमें स्कूल छोड़ने और लेने आया करें"।
"अरे कुछ बतायेगी भी कि बस एक ही रट लगा रखी है"?
"क्या बतायें, कुछ बताने लायक बात हो तब ना"?
"बिटिया, तेरे बापू को काम पर जाना होता है। कैसे तेरे साथ जायेगा"?
"तो फिर हम पढ़ाई छोड़ देते हैं"?
"कैसी बात करती है मेरी लाड़ो? तू हमारी इकलौती संतान है। हम दोनों तेरे भविष्य के लिये ही तो रात…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on April 13, 2018 at 3:45pm — 6 Comments
मानवता की मौत -- लघुकथा –
दिल्ली की ब्लू लाइन बस में आश्रम से सफ़दरगंज अस्पताल जाने के लिये एक बूढ़ी देहाती औरत अपने साथ एक जवान गर्भवती स्त्री को लेकर चढ़ रही थी।
"अरे अम्मा जी, बस में पैर रखने को जगह नहीं है। इस बाई की हालत भी ऐसी है कि ये खड़ी भी न हो पायेगी। कोई और सवारी देख लो"? बस कंडक्टर ने सुझाव दिया|
"एक घंटो हो गयो, खड़े खड़े। लाड़ी के दर्द शुरू हो गये। अस्पताल पहुंचनो जरूरी है| सारी सवारी गाड़ियों की हड़ताल है, सरकार ने पेट्रोल के दाम बढ़ा दिये, इसलिये| घनी मजबूरी है…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on April 8, 2018 at 8:02pm — 12 Comments
कच्ची फसल - लघुकथा –
"माँ, मुझे अभी और पढ़ना है। आप बापू को समझाओ ना। वे इतनी जल्दी क्यों मेरा विवाह करना चाहते हैं"?
"ठीक है बेटी। मैं आज एक बार और कोशिश करके देखती हूँ"।
श्यामा के स्कूल जाते ही, राधा खेत पर मोहन के लिये खाना लेकर पहुँच गयी।
"मैं सोच रही थी कि आज इस गेंहू की फसल को काट लेते हैं। जल्दी से फ़ारिग हो जायेंगे"।
"पगला गयी हो क्या राधा, । फसल पकने में वक्त है अभी।
"क्या फ़र्क पड़ता है, दो चार दिन पहले काट लेंगे तो। मुझे श्यामा को लेकर…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 29, 2018 at 10:51am — 16 Comments
अपाहिज - लघुकथा –
"अरे चन्दू भैया, यह क्या कर रहे हो? आपको देखकर तो हमको भी शर्म आ रहा है"?
"अब तू ही बता, शंकर, हम क्या करें?, इंजीनियरिंग की डिग्री लिये बैठे हैं। तीन साल हो गये, नौकरी खोजते खोजते। इंटर्व्यू में जाने के लिये भी पैसा नहीं है। उधारी भी अब कोई नहीं देता। माँ बापू से मांगने में भी शर्म लगता है"।
"चन्दू भैया, ऐसे भीख माँगने से कितना दिन तक गुजारा होगा"?
"आठ दस दिन में जो पैसा इकट्ठा होता है, उससे दो चार जगह इंटर्व्यू दे आते हैं। तू बता, कितने समय…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 16, 2018 at 11:10am — 8 Comments
महामूर्ख - लघुकथा –
"दुर्योधन, तुम इस विश्व के सबसे बड़े मूर्ख हो, महामूर्ख"।
"माते, आप यह कैसी भाषा बोल रही हैं? मैं तो सदैव ही आपका सबसे प्रिय पुत्र रहा हूँ"।
"मगर आज तुमने अपने आप को महामूर्ख प्रमाणित कर दिया"।
"माँ, आप इस साम्राज्य की महारानी हैं।मैं आपका अपमान नहीं करना चाहता , लेकिन आपकी यह कटु वाणी मेरी सहनशीलता को धैर्यहीन बना रही है"।
"दुर्योधन, तुमने अपनी माँ के आदेश की अवज्ञा करके अपनी मृत्यु को स्वंय दावत दी है"।
"मैंने जो कुछ भी किया…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 7, 2018 at 9:29pm — 16 Comments
शिक्षा - लघुकथा –
"माँ, मैं भी होली खेलने जाऊं क्या? बस्ती के सब बच्चे होली खेल रहे हैं"।
"नहीं रेशमा,नहीं मेरी बच्ची, तेरे पास फ़टे पुराने कपड़े तो हैं नहीं। मुश्किल से एक जोड़ी तो कपड़े हैं, उन्हें भी होली में खराब कर लेगी तो कल से स्कूल कैसे जायेगी"?
"माँ, यह कैसा मज़ाक़ है, दिवाली पर कहती हो कि तुम्हारे पास नये कपड़े नहीं हैं इसलिये घर से मत निकलो। और होली पर कहती हो तुम्हारे पास पुराने कपड़े नहीं हैं, सो होली मत खेलो"?
"क्या करें मेरी बच्ची, ऊपरवाले ने हम गरीबों के…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 6, 2018 at 11:24am — 10 Comments
लघुकथा – अनकही -
सुनिधि की ससुराल में इस बार पहली होली थी। वह पिछले तीन दिन से अपने देवर को याद दिला रही थी कि होली में तीन दिन बचे हैं।तैयार हो जाओ।
"भाभीजी, मैं होली नहीं खेलता"।
"पर हम तो खेलते हैं।
"आप खेलो ना, आपको किसने रोका है"।
होली के दिन सुनिधि ने देवर के कमरे में झाँक कर देखा, देवर अपने कंप्यूटर में व्यस्त था, वह चुपके से दोनों हाथों में गुलाल लिये गयी और पीछे से देवर के गालों पर मल दिया।देवर एकदम चीख पड़ा,
"माँ, कहाँ हो, जल्दी आओ, भाभी ने…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 5, 2018 at 3:00pm — 12 Comments
प्रतिज्ञा - लघुकथा –
एक खूँखार आतंकी संगठन के सिरफ़िरे मुखिया ने राज्य के मुख्यमंत्री को खूनी चुनौती भरा संदेश भेज कर पूरे राज्य में दहशत फ़ैला दी थी। उसने हिदायत की थी कि इस बार होली पर लाल चौक पर एक भी बंदा गुलाल या किसी भी प्रकार के रंग के साथ दिखा तो लाल चौक को खून से रंग दिया जायेगा। यह हमारा त्यौहार नहीं है इसलिये हम हमारे राज्य में किसी को भी होली खेलने की इज़ाज़त नहीं देंगे। मुख्यमंत्री की नींद उड़ चुकी थी।
आपातकालीन बैठक बुलाई गयी थी। पूरे राज्य में रेड अलर्ट तथा अघोषित…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 3, 2018 at 1:38pm — 8 Comments
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