फाइलातुन फइलातुन फइलुन/फैलुन
मुझ पे इलज़ाम अगर लगता है
आपके ज़ेरेअसर लगता है
तुझमे खूबी न जिसे आये नज़र
वो बड़ा तंगनज़र लगता है
इक दिया हमने जलाया था कभी
अब वही शम्सो क़मर लगता है
ढूंढ आये हैं ख़ुशी हम घर घर
ये हमें आखिरी घर लगता है
यूँ तो है बात बड़ी छोटी पर
बात करते हुए डर लगता है
एक तेरे ही नहीं होने से
ये ज़हां ज़ेरोज़बर लगता…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on December 26, 2013 at 11:39am — 28 Comments
(1)
दर्द ए दिल से पहचान यारो मेरी बहुत पुरानी है
आँखो के अश्को की यारो देखो अलग कहानी है
थे पास जब वो मेरे जीवन की अलग रवानी थी
नहीं आयेगी जीवन में बीती शाम जो सुहानी है
(2)
मेरे भी दर्द ए दिल को काश कोई जान लेता
आँखो में छुपे अश्को को भी काश जान लेता
कितना दर्द यारो हमें बिछुडने का अपनो से
मेरे दर्द भरे शब्दे से ही काश कोई जान लेता
(3)
किसने किसको दर्द दिया ना जान पाया मैं
कैसे…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on December 25, 2013 at 11:00pm — 18 Comments
अब तक तेरे पास रहा है
नतीज़तन वो ख़ास रहा है
हिचकी , हिचकी केवल हिचकी
वोआज मौन उपवास रहा है
छुयन का उसकी असर ये देखो
पतझड़ में मधुमास रहा है
मेरा ख्वाब है उसके दिल में
मुझको ये अहसास रहा है
कभी है गहना हया ये उसकी
कभी "अजय" लिबास रहा है
मौलिक व अप्रकाशित
अजय कुमार शर्मा
Added by ajay sharma on December 25, 2013 at 11:00pm — 11 Comments
चितवन
1
सांझ की पड़ी चितवन कटारी
उतर आयी रात आंगन
बिन पिया कैसे मनाऊँ मधुमास
रात की रानी महके
हरसिंगार की झूमर लहके
तारों की बरात लिये
आया कोई पुच्छल तारा
देख सुहानी रात मतवाली
पैरों बाँध घुँघरू
बिरहनी संग यह कैसा परिहास
2
बहक रहा चाँद
लहरों पर थिरक रही चाँदनी
सागर तट पर नाच रहा पवन
बाँध के पैजन
चट्टानों के गृह सखी
चल रहा सम्मोहन
बिन पिया कैसे हो हिय उल्लास
3
दूर गगन से
कोई…
Added by coontee mukerji on December 25, 2013 at 9:44pm — 12 Comments
कुंडलिया -
सबके अन्दर जी रहा , मेरा , मै का भाव
वही डिगाता है सदा , आपस का सदभाव
आपस का सदभाव , मिटाये ऐसी दूरी
रिश्ते का सम्मान , हटा दे हर मजबूरी
टूटे रिश्ते जुड़ें , सामने कहता रब के …
Added by गिरिराज भंडारी on December 25, 2013 at 9:00pm — 19 Comments
आँखों देखी 7 – बर्फ़ की गहरी खाई में
दक्षिण गंगोत्री स्टेशन के अंदर रहते हुए एक डरावना ख़्याल हम सबको अक़्सर परेशान करता था. हम सभी जानते थे कि पूरा स्टेशन लकड़ी (प्लाईवुड) से बना है और इनसुलेशन के लिये दीवारों के दो पर्तों के बीच पी.यू.फोम भरा हुआ है जो ज्वलनशील पदार्थ होता है. यदि किसी कारणवश स्टेशन के अंदर आग लगी तो चिमनीनुमा एकमात्र प्रवेश/निकास मार्ग से होकर बाहर निकलना शायद असम्भव हो जाए. यदि बाहर निकल भी…
Added by sharadindu mukerji on December 25, 2013 at 7:00pm — 21 Comments
बहर ... २२२ २२२ २२
वो जब से सरकार हुए हैं
सब कितने लाचार हुए हैं
जन सेवा अब नाम ठगी का
सपनोँ के व्यापार हुए हैं
धोखे देते बन के साधू
ऐसे ठेकेदार हुए हैं
मज़हब के भी नाम पे देखो
कितने अत्याचार हुए हैं
जो थे अब तक झुक कर चलते
वो अबकी खुददार हुए हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on December 25, 2013 at 6:30pm — 32 Comments
वो हिरनी सी चंचल आंखे
कभी मुसकुराती हुई
खामोश है अब ......
एक ज्वार भाटा आकर
बहा ले गया है सब ...
वो रिक्त आंखे
अब नहीं देखती
कोई सपना मधुर
क्योंकि उनसे छीना है
किसी ने हक़
स्वप्न देखने का ।
वे अब नहीं ताकती
किसी की राह
क्योंकि वे खामोश है
शायद पत्थर हो गई है........
किसी ने छीना है
उनसे जीने की खुशी
उनकी मुस्कुराहट
उनकी चंचलता
किसी व्याघ्र…
ContinueAdded by annapurna bajpai on December 25, 2013 at 6:30pm — 10 Comments
तीर चलते हैं मगर तरकश नजर नहीं आता
चाहत में निगाहों को सफर नजर नहीं आता
अंजाम जान के भी पलकों में घर बनाते हैं
क्यूँ दिल टूटने का उन्हें हश्र नजर नहीं आता
आसमान को छूने की तमन्ना करने वालो
क्यों ज़मीं पर तुम्हें टूटा पंख नजर नहीं आता
लगा दिया इल्जाम बेवफाई का उनके सर
क्यूँ आँख से गिरा अश्क नजर नहीं आता
जिस तकिये पे मिल कर गुजारी थी रातें
उस भीगे तकिये का दर्द नजर नहीं आता
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on December 25, 2013 at 12:30pm — 14 Comments
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22
मौत के साथ आशिकी होगी,
अब मुकम्मल ये जिंदगी होगी,
उम्र का ये पड़ाव अंतिम है,
सांस कोई भी आखिरी होगी,
आज छोड़ेगा दर्द भी दामन,
आज हासिल मुझे ख़ुशी होगी,
नीर नैनों में मत खुदा देना,
सब्र होगा अगर हँसी होगी,
आखिरी वक्त है अमावस का,
कल से हर रात चाँदनी होगी.
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on December 25, 2013 at 12:30pm — 25 Comments
कल तक थी जाने कहाँ
आज आ रही है पास वो
देख नहीं पाये जो
जीवन के रंगों को
ले रही उन्हें भी
अपने आगेाश में वो
ना सुना नाम कभी
ना जाना पहचान ही
चुपके से चली आयी वो
तोड़ने उनकी सॉसे को
इल्जाम कभी लेती नहीं
अपने दामन पर वो कभी
है इल्जाम उनहीं पे
खत्म करती जिसका
जीवन वो
जीवन में नहीं रंग उतने
नाम उनका उतना हैं
आ जाती है चुपके से वो
जाने कब जीवन…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on December 25, 2013 at 11:00am — 14 Comments
प्यार जिससे भी आप करते है
जिसकी खातिर सदा संवरते हैं
ख़्वाब में सामने भी आये तो
कुछ भी कहने में आप डरते हैं
जितना ज्यादा हैं सोचते उनको
वैसे वैसे ही वो निखरते हैं
इस सियासत के दांव पेंचों में
कितने मासूम हैं जो मरते हैं
आशिकी का यही उसूल रहा,
करती नजरें है आप भरते हैं
आँख रोने को जरूरी तो नही
अश्क गजलों से भी तो झरते हैं
अनुराग सिंह "ऋषी"
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Anurag Singh "rishi" on December 25, 2013 at 9:38am — 9 Comments
गरीब का पेट
बड़ा जालिम होता है
गरीब का पेट
नहीं देता देखने
सुन्दर-सुन्दर सपने
गरीबी के दिनों में
छीन लेता है वह
सपना देखने का हक
जब कभी
देखना चाहती है आंख
सुंदर सा सपना
मागने लगता है पेट
एक अदद सूखी रोटी
आंख ढूंढ ने लगती है तब
इधर उधर बिखरी जूठन
और फैल जाते हैं हाथ
मागने को निवाला
गरीबी के दिनों में
दूसरों के सम्मुख फैले हुए हाथ
सपना देखती आंख के
मददगार नहीं होते…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 25, 2013 at 6:30am — 10 Comments
यह मोरपंखी मन !
न जाने क्यूँ प्रिये पागल –
हुआ जाता तुम्हारी याद मे यह मोरपंखी मन !
पहाड़ों पर कभी भटके
ढलानों पर कभी घूमे
कभी यह चीड़ के वन से –
घटाओं को बढ़े चूमे ।
यहाँ ठंडी हवाओं मे बढा जाता बहुत सिहरन
न जाने क्यूँ प्रिये पागल अरे यह मोरपंखी मन !
नदी , निर्झर , पहाड़ों पर
भ्रमण करता हुआ जाता
फिज़ाओं मे भटकना अब प्रिये !
पलभर नहीं भाता ।
तुम्हारे बिन हुआ जाता बड़ा सूना मेरा उपवन -
न जाने क्यूँ प्रिये ! पागल अरे यह…
Added by S. C. Brahmachari on December 24, 2013 at 6:57pm — 20 Comments
“एक पोता भी नही दे सकी कलमुंही” वार्ड में सास की आवाज़ गूँजी,
इतने में अंदर आते हुये डॉक्टर ने जब ये सुना तो कहा- “पति के शरीर में एक्स- वाई(X-Y) क्रोमोसोम्स होते हैं, पत्नि के शरीर में एक्स-एक्स(X-X) क्रोमोसोम्स होते हैं, पति का वाई(Y) क्रोमोसोम पत्नि के एक्स(X) क्रोमोसोम से मिलता है तो बेटा होता है, पति का एक्स(X) क्रोमोसोम पत्नि के एक्स(X) क्रोमोसोम से मिलता है तो बेटी होती है l
पता नही आपके क्या समझ में आया? लेकिन इतना सच जान लीजिये आपको पोता नही मिला उसका पूरा…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 24, 2013 at 10:30am — 38 Comments
स्कूल के कुछ दोस्त मिलकर घर में पड़े पुराने कम्बल गरीबों में बाँटने को निकले। कम्बल बाँट कर वे ज्यों ही वापस चलने को हुए, एक बुजुर्ग ने आवाज़ लगाई ………
"जी बाबा, आपको तो कम्बल दे दिया न ?"
"बबुआ जी, पिछले तीन दिन से चमचमाती गाड़ियों में साहब लोग आते हैं, कम्बल बाँट कर फ़ोटो खिचवाते हैं और फिर २०-२० रूपया…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 23, 2013 at 8:39pm — 46 Comments
“दाग“
********
मूर्खता है ,
होली में रंगे कपड़ों से
दाग छुड़ाने की कोशिश ।
कोई कहता भी नहीं उसे
दाग दार ।
वो अलग हैं , दागियों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 23, 2013 at 7:30pm — 33 Comments
अब्रे गम जब दिल पे मेरे छा गया
अश्क का दरिया भी रुख पे आ गया
आइना देखा है जब भी दोस्तों
सामने मेरे मेरा सच आ गया
यूं तो गुल लाखों थे बगिया में मगर
दिल को लेकिन कोई कांटा भा गया
वो हसीं गुल आने वाला है इधर
चूम झोंका खुशबू का बतला गया
हाल उनसे कहते दिल का जब तलक
यार नजरों से ही सब जतला गया
जिसने भर दी खार से ये जिन्दगी
फूल नकली दे के फिर बहला…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 23, 2013 at 7:30pm — 18 Comments
बाबा की दहलीज लांघ चली
वो पिया के गाँव चली
बचपन बीता माँ के आंचल
सुनहरे दिन पिता का आँगन
छूटे संगी सहेली बहना भैया
मिले दुलारी को अब सईंया
मीत चुनरिया ओढ़ चली
बाबा की ................
माँ की सीख पिता की शिक्षा
दुलार भैया का भाभी की दीक्षा
सखियों का स्नेह लाड़ बहना का
वो रूठना मनाना खेल बचपन का
भूल सब मुंह मोड चली
वो पिया के ...............
परब त्योहार हमको बुलाना
कभी तुम न मुझको…
ContinueAdded by annapurna bajpai on December 23, 2013 at 5:30pm — 32 Comments
स्त्री को आजादी वैदिक काल से ही मिली हुई है फर्क सिर्फ इतना है कि आज उस आजादी में कुछ निजी स्वार्थ समा गया है | वर्षों पहले से स्त्री को हर तरह की आजादी मिली हुई है अपने मन मुताबिक़ कपड़े पहनने की आजादी.अपने मन मुताबिक़ पति चुनने की आजादी,अपने मर्जी से शिक्षा क्षेत्र चुनने की आजादी यहाँ तक कि वो रण क्षेत्र में भी अपनी मर्जी से जाती थी | उन्हें कोई रोक-टोक नही थी इसके बावजूद वो अपनी पारिवारिक जिम्मदारियां भी बखूबी निभाती थीं और अपने पति के पीछे उनकी प्रेरणा बन के खड़ी रहती थी तो आज ऐसा क्यों नही…
ContinueAdded by Meena Pathak on December 23, 2013 at 2:00pm — 20 Comments
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