बहर-।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ
...
कभी चाँदनी छूने आया करेगी।
सितारों की ज़ीनत बुलाया करेगी॥
...
बदन की मुलायम तहों में समेटे,
नदी पत्थरों को सुलाया करेगी।
...
भटकता फिरेगा कहीं पे अँधेरा,
कहीं रोशनी गीत गाया करेगी।
...
परिंदों की परवाज़ क्या खूब होगी,
हवा जब उन्हें आज़माया करेगी।
...
नई चूड़ियों से खनकती कलाई,
सवेरे-सवेरे जगाया करेगी।
...
ज़रा सी किसी बात पे रो पड़ूँगा,
कभी ज़िंदगानी हँसाया करेगी।
...
कहूँगा…
Added by Ravi Prakash on December 23, 2013 at 1:00pm — 26 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on December 23, 2013 at 11:31am — 30 Comments
हैं कपड़े साफ सुथरे से , पड़ा काँधे दुशाला है
शहर में भेडि़यों ने आ, बदल अब रूप डाला है
कहानी रोज पापों की, उघड़ कर सामने आती
किसी ने झूठ बोला था, ये दुनिया धर्मशाला है
समझ के आम जैसे ही, आमजन चूसे जाते नित
बनी ये सियासत अब, महज भ्रष्टों की खाला है
मथोगे गर मिलेगा नित, यहाँ अमृत भी पीने को
है सिन्धु सम जीवन, कहो मत विष का प्याला है
किया सुबह शाम झगड़ा , रखी वाणी में दुत्कारें
'मुसाफिर'…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 23, 2013 at 7:30am — 13 Comments
फिर से नई कोपलें फूटीं,
खिला गाँव का बूढ़ा बरगद।
शुभारंभ है नए साल का,
सोच, सोच है मन में गदगद।
आज सामने, घर की मलिका
को उसने मुस्काते देखा।
बंद खिड़कियाँ खुलीं अचानक,
चुग्गा पाकर पाखी चहका।
खिसियाकर चुपचाप हो गया,
कोहरा जाने कहाँ नदारद।
खबर सुनी है,फिर अपनों के
उस देहरी पर कदम पड़ेंगे।
नन्हीं सी मुस्कानों के भी,
कोने कोने बोल घुलेंगे।
स्वागत करने डटे…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on December 22, 2013 at 10:00am — 31 Comments
कुछ इस तरह पुकारा तुमने
कदम भी मेरे लगे बहकने
कुछ इस .........
दामिनी दमक उठी नैनो मे
सरगम छनक उठी साँसों मे
हृद वीणा सी झंकृत कर दी
जागे से लगने लगे सपने
कुछ .......................
अन्तर्भावों की सुरवलियों मे
उद्गारों की हारावलियों मे
शब्द सुशोभित सज्जित कर दी
मन-कानन सब लगे महकने
कुछ .....................
अप्रकाशित एवं…
ContinueAdded by annapurna bajpai on December 21, 2013 at 9:00pm — 22 Comments
जाओ तुम और दूर चले जाओ...
जहां चाहो वहाँ चले जाओ
मगर जी लो न मन भर
एक बार मेरे साथ ....
मेरे ख्वाब... मेरे ख्वाब ... मेरे ख्वाब ....
धीरे से जाना ...
आहट भी न करना
नींद न टूटने पाये मेरी
काँच से नाजुक हैं ये ...
मेरे ख्वाब .... मेरे ख्वाब ... मेरे ख्वाब ....
कुछ तुम भी ले जाना
बहुत हसीन हैं ये
दुःख में हँसा देंगे ये
मुझसे भी प्यारे हैं ये ...
मेरे ख्वाब .... मेरे ख्वाब .... मेरे…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on December 21, 2013 at 8:25pm — 8 Comments
दो हमसफर
एक छत
रहे अजनबी की तरह
लब खुले तो टकरार
ना साँसे टकराती
ना बिन्दीयाँ भाती
ना विदाई
ना स्वागत
नजर चुराते
बीती राते
कभी
तन मन साथ
हँसी उमंग चाहत प्यार
लगी नजर
बने नदी के
दो किनारे
बीच में
शक
केवल शक
बाँट दिया प्यार
एक ना सुनते
एक दूजे की बाते
स्वाभिमान
विद्रोह
गुस्से की
ज्वाला जला रही
प्यार…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on December 21, 2013 at 7:55pm — 12 Comments
Added by shashi purwar on December 21, 2013 at 2:00pm — 15 Comments
Added by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 11:30pm — 58 Comments
किसी से प्यार करके देख लो जी
हसीं इकरार करके देख लो जी /१
दवा है या मरज़ क्या है मुहब्बत
निगाहें चार करके देख लो जी /२
सनम हैं सर्दियों की धूप जैसी
जरा दीदार करके देख लो जी /३
हमेशा जी-हुजूरी ठीक है क्या ?
कभी इनकार करके देख लो जी /४
बिकेगी धूप चर्चा है गली में
यही ब्योपार करके देख लो जी /५
बहुत है फायदा आवारिगी में
धुआं घर-बार करके देख लो जी /६
यक़ीनन बेशरम हूँ मैं हवा हूँ
खड़ी दीवार करके देख लो जी…
ContinueAdded by Saarthi Baidyanath on December 20, 2013 at 10:00pm — 18 Comments
स्कूटर पर जाती महिला
का सड़क से गुज़रना हो
या गुज़रना हो
काँटों भरी संकड़ी गली से ,
दोनों ही बातें
एक जैसी ही तो है।
लालबत्ती पर रुके स्कूटर पर
बैठी महिला के
स्कूटर के ब्रांड को नहीं देखता
कोई भी ...
देखा जाता है तो
महिला का फिगर
ऊपर से नीचे तक
और बरसा दिए जाते हैं फिर
अश्लील नज़रों के जहरीले कांटे ..
काँटों की गली से गुजरना
इतना मुश्किल नहीं है
जितना…
ContinueAdded by upasna siag on December 20, 2013 at 9:00pm — 12 Comments
प्रेम तृणों से …….
पलक पंखुड़ी में प्रणय अंजन से
सुरभित संसृति का श्रृंगार करो
भ्रमर गुंजन के मधुर काल में
कुंतल पुष्प श्रृंगार करो
तृप्त करो तुम नयन तृषा को
मिलन क्षणों को स्वीकार करो
अपने उर में अपने प्रिय की
अनुपम सुधि से श्रृंगार करो
विस्मृत कर…
Added by Sushil Sarna on December 20, 2013 at 8:00pm — 22 Comments
२१२२/२१२२/२१२
.
जब कि हर इक फ़ैसला मंज़ूर है,
फिर भी वो कहता हमें मगरूर है.
.
दोष है फ़ितरत का, ज़ख्मों का नहीं,
ज़ख्म जो प्यारा है वो नासूर है.
.
ख़ासियत कुछ भी नहीं उसमे, फ़क़त,
वो मेरा क़ातिल है सो मशहूर है.
.
नब्ज़ मेरी थम गयी तो क्या हुआ,
जान मुझ में आज भी भरपूर है.
.
जिस्म है बाक़ी हमारे दरमियाँ,
पास है, लेकिन अभी हम दूर है.
.
बात अब उनसे मुहब्बत की न कर,
लोग समझेंगे, नशे में चूर है.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on December 20, 2013 at 5:00pm — 27 Comments
(1)
हमारे सपने लेते रहे आकार
बड़े और बड़े
महानगर की इमारतों की तरह
भव्य और विशाल
हमारे सपने
बढ़ते रहे
आगे और…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 20, 2013 at 12:30pm — 22 Comments
2122 2122 2122 2122
गुम्बदों से क्यों कबूतर आज कल डरने लगे हैं
दूरियाँ रख कर चलेंगे फैसले करते लगे हैं
पतझड़ों की साजिशों से, अब बहारों में भी देखो
हर शज़र मुरझा गया, पत्ते सभी झड़ने लगे हैं
अपने ख़्वाबों को…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 20, 2013 at 7:30am — 41 Comments
2112 2112 2112 112
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दाग चंदा को लगे हैं, सूरज का क्या गया
ढूँढ लेगा रात को वो, फिर से कोई घर नया
बादलों को थी मनाही , कैसे करते बारिसें
उसके सूखे दामनों पर, आँसुओं ने की दया
कौन बोले, किसको बोले, इस सियासत में बुरा
सब हमामों के चरित्तर, शेष किसमें है हया
बाज के थे सहायक चील , कौवे औ’ उलूक
फिर अकेली बाज से, कब तलक लड़ती बया
सोच…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2013 at 7:00am — 8 Comments
ख्वाबों में मेरे आकर खुद ही तो बताते हो
है मुझसे मोहब्बत ये ज़माने से छुपाते हो
बढ़ जाती है क्यूँ धड़कन कभी दिल से ये पूछा है
रुक जाते हो क्यूँ मिलकर कभी दिल से ये सोचा है
फिर भी मेरा ये इश्क क्यूँ किताबी बताते हो
ये दिल का मसअला है , दिल से ही ये सुलझेगा
ज़ज़्बात की बातों से , ये और भी उलझेगा
उलफत भी है मुझसे और मुझको ही सताते हो
महफ़िल में हज़ारों की , तन्हाई में रहते हो
कहते हो नही फिर भी क्या-क्या…
Added by ajay sharma on December 19, 2013 at 11:24pm — 9 Comments
(1)
आयो मेरे पास आयो
.
देश मेरा उजड़ रहा है
आओ मेरे पास आओ
कितने ही दुख भोग रहा है
आओ मेरे पास आओ
एक तरफ चाकू है चलता
दूसरी तरफ नरसंहार है
आतंकवाद है उससे ऊपर
सबसे ऊपर बलात्कार है
कितनों के दिल तोड़े इसने
घर कितनो के उजाड़े हैं
आँख के तारे छीने इसने
माँग के सिंदूर उजाड़े हैं
पाप की नगरी से डर लगता
आकर मुझको गले लगाओ
तुमसे बिछड़ न जाऊँ कहीं मैं
आयो मेरे पास…
Added by NEERAJ KHARE on December 19, 2013 at 9:00pm — 7 Comments
कुण्डलियां-1
कुत्ता प्यारा जीव है, वफादार बलवान।
घर की नित रक्षा करे, रख पौरूष अभिमान।।
रख पौरूष अभिमान, गली का शेर कहाए।
चोर और अंजान, भाग कर जान बचाए।।
द्वार रहे गर श्वान, शान ज्यों माणिक मुक्ता।
पर मानव मक्कार, अहम वश कहता कुत्ता।।
के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 19, 2013 at 7:00pm — 23 Comments
दर्द का सावन ……
.
दर्द का सावन तोड़ के बंधन
नैन गली से बह निकला
मुंह फेर लिया जब अपनों ने
तो बैगानों से कैसा गिला
जो बन के मसीहा आया था
वो बुत पत्थर का निकला
मैं जिस को हकीकत समझी थी
वो रातों का सपना निकला
है रिश्ता पुराना कश्ती का
सागर के किनारों से लेकिन
जब दुश्मन लहरें बन जाएँ
तो कश्ती से फिर कैसा…
Added by Sushil Sarna on December 19, 2013 at 7:00pm — 18 Comments
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