For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,140)

लघुकथा -बहुरूपिया

हनुमान के रूप मे लोगों से भिक्षा माँग गुजर बसर कर रहे बहुरूपिये पर बङे आतंक वादी गिरोह के लिए काम करने वालों की नजर पङी।उनका आदमी बहुरूपिये से गणतंत्र दिवस के अवसर पर परेड स्थल पर कमंडल बम जगह जगह रखकर दहशत फैलाने के लिए सबसे उपयुक्त और सुरक्षित आदमी समझकर एकांत मे डील करने के लिए बात की।

आदमी-बाबा ! आपको केवल दस से पंद्रह जगहों पर कमंडल रखने है , बदले मे इतने पैसे मिलेंगे कि आपको रूप बदलकर भीख माँगने की जरूरत नहीं पङेगी ।

बाबा- (कुछ रूक कर) बेटा ! पेट के लिए गरीबी मे बहुरूपिया बन… Continue

Added by shubhra sharma on January 25, 2014 at 5:23pm — 8 Comments

छब्बीस जनवरी

हो गये जो निछावर वतन के लिए ,

याद करने की उनको घड़ी आ गयी ।

आज का दिन मनायें उन्हीं के लिए ,

कहने गणतंत्र कि नव सदी आ गयी ।

ये वीरों की धरती हमारा वतन ।

आकाश भी जिसको करता नमन ।

गाँधी नेहरू की जीवन कहानी है ये ।

नेता जी की तो सारी जवानी है ये ।

ऐसे आज़ाद भारत के वासी हैं हम ,

बात मन में यही फक्र की आ गयी ।

लाल हो जिनके कपड़े कफ़न हो गये ।

जो हिमालय कि हिम में दफ़न हो गये ।

मर के भी दुश्मनों को न बढ़ने…

Continue

Added by Neeraj Nishchal on January 25, 2014 at 3:30pm — 16 Comments

गर्वीला पुष्प (अन्नपूर्णा बाजपेई)

शाख पर लगा 

अलौकिक सौंदर्य पर इतराता 

वसुधा को मुंह चिढ़ाता 

मुसकुराता इठलाता 

मस्त बयार मे कुलांचे भरता 

गर्वीला पुष्प !.......... 

सहसा !!!

कपि अनुकंपा से 

धराशायी हुआ 

कण कण बिखरा 

अस्तित्व ढूँढता 

उसी धरा पर 

भटकता यहाँ से वहाँ 

उसी वसुधा की गोद मे समा जाने को आतुर ... 

बेचारा पुष्प !!! 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

Added by annapurna bajpai on January 25, 2014 at 10:30am — 21 Comments

ग़ज़ल : ओढ़नी नोच डाली गई

बह्र : २१२ २१२ २१२

जब उड़ी नोच डाली गई
ओढ़नी नोच डाली गई

एक भौंरे को हाँ कह दिया
पंखुड़ी नोच डाली गई

रीझ उठी नाचते मोर पे
मोरनी नोच डाली गई

खूब उड़ी आसमाँ में पतंग
जब कटी नोच डाली गई

देव मानव के चिर द्वंद्व में
उर्वशी नोच डाली गई
------------
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 24, 2014 at 9:55pm — 34 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बहर-ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽ

.

झील के पानी में गिर के चाँद मैला हो गया।

स्वाद मीठी नींद का कड़वा-कसैला हो गया॥

.

दो घड़ी भी चैन से मैं साँस ले पाता नहीं,

यूँ तुम्हारी याद का मौसम विषैला हो गया।

.

सभ्यता के औपचारिक आवरण से ऊब कर,

आदमी का आचरण फिर से बनैला हो गया।

.

आँख में मोती नहीं बस वासना की धूल है,

प्यार देखो किस क़दर मैला-कुचैला हो गया।

.

हर किसी को सादगी के नाम से नफ़रत हुई,

कल जिसे कहते थे मजनूँ,आज लैला हो गया।…

Continue

Added by Ravi Prakash on January 24, 2014 at 5:00pm — 16 Comments

अँधेरे रास हैं आए वफ़ा तुझसे निभाने में [गजल]

बड़ी मुश्किल से कुछ 'अपने' मिले हमको ज़माने में

कहीं उनको न खो दूँ ख्वाहिशें अपनी जुटाने में /



बने जो नाम के अपने हैं उनसे दूरियाँ अच्छी

मिलेगा क्या भला नजदीकियां उनसे बढ़ाने में/



उजाले छोड़े हैं तेरे लिए रहना सदा रोशन

अँधेरे रास हैं आए वफ़ा तुझसे निभाने में /



हसीं यादों ने छोड़े हैं सफ़र में ऐसे कुछ लम्हे

रँगें हैं हाथ अपने अब निशाँ उनके मिटाने में /



दिलों को तोड़ते हैं जो विदा कर यार को ऐसे

जो थामे धडकनें तेरी न डर…

Continue

Added by Sarita Bhatia on January 24, 2014 at 3:30pm — 9 Comments

ग़ज़ल (अजय कुमार शर्मा)

सच कहता है शख्स वो ,भले बोलता कम है

बहुत सोचता है , भले वो लब खोलता कम है



कितनी भी हावी सियासत हो गयी हो आज भी

वो वादे निभाता तो नहीं , मगर तोड़ता कम है

कहीं जज़बात के रस्ते में कोई दुश्वारियां न हों

वो ख़त भी रखता है , तो लिफाफा मोड़ता कम है

मशीनी हो गयी है , रफ़्तार-ए -ज़िन्दगी , अब

आदमी हाँफता ज़िआदा , मगर दौड़ता कम है



फुटपाथों पे वो नंगे ज़िस्म सो रहा है , "अजय"

चीथड़े पहनता तो है वो , मगर ओढ़ता कम…

Continue

Added by ajay sharma on January 23, 2014 at 11:30pm — 5 Comments

मेरी अनकही बातों पर ऐतबार न कर.

जमाना बेताब है मुश्किलें पैदा करने को,

मेरी अनकही बातों पर ऐतबार न कर.

बढ़ते रहे दरमियाँ दिलों के बीच,

चाहत ये जमाने की कामयाब न कर.

एक लकीर है हमारे और उसके बीच,

डर है गुम  होने का, उसे पार न कर.

कल का सूरज किसने देखा है,

आ भर ले बाहों में इन्कार न कर.

यक़ीनन ढला ज़िस्म फौलाद के सांचें में,

पर दिल है शीशे का, तू वार न कर.

शक अपनों पर, परायों के खातिर,

यकीं नहीं है तो फिर प्यार न…

Continue

Added by अनिल कुमार 'अलीन' on January 23, 2014 at 11:30pm — 12 Comments

मसूरी के हिमपात पर

बर्फ की ये चादरी सफ़ेद ओढ़कर

पर्वतों की चोटियाँ बनी हैं रानियाँ

पत्ती पत्ती ठंड से ठिठुरने लगी,

फूल फूल देखिये हैं काँपते यहाँ ।



काँपती दिशाएँ भी हैं आज ठंड से,

बह रही हवा यहाँ बड़े घमंड से ।

बादलों से घिरा घिरा व्योम यूं लगे,

भरा भरा कपास से हो जैसे आसमाँ।। पर्वतों की .....



धरती भी गीत शीत के गा रही,

दिशा दिशा भी मंद मंद मुस्कुरा रही।

झरनों में बर्फ का संगीत बज उठा,

और हवा गा रही है अब रूबाईयाँ॥ पर्वतों की .....…



Continue

Added by Pradeep Bahuguna Darpan on January 23, 2014 at 9:30pm — 5 Comments

उसका वो पागलपन

याद है मुझे

उसका वो पागलपन

लिखता मेरे लिए प्रेम कवितायेँ

जिनमें होते मेरे लिए कई प्रेम सवाल

उसमें ही छुपी होती उसकी बेपनाह ख़ुशी

क्योंकि जानता न था वो मेरे जवाब

वो उसकी आजाद दुनिया थी

जिसमें नहीं था किसी का दखल

उसके दिल के दरवाजे पर खड़ी रहती मैं

उस पार से उससे बतियाती

उसका पा न सकना मुझे

मेरा खिलखिला कर हँसना

और टाल देना उसका प्रेम अनुरोध

देता उसको दर्द असहनीय

जैसा आसमान में कोई तारा टूटता

और अन्दर टूट जाते उसके ख़्वाब…

Continue

Added by Sarita Bhatia on January 23, 2014 at 6:11pm — 4 Comments

है पानी का बुलबुला ....

जीवन दर्शन पर ३ मुक्तक :



1.है पानी का बुलबुला ....

है पानी का बुलबुला ....ये जीवन तेरा जीव

बड़े भाग से मानव का ...मिला तुझे शरीर

आती जाती साँसों का ...नहीं कोई विश्वास

आत्म सुख के वास्ते हर ले किसी की पीर

2.मूर्ख मानव काया पे …

मूर्ख मानव काया पे ....तू काहे करे गुमान

नश्वर इस संसार में .....व्यर्थ है अभिमान

जान के भी अंजाम को क्योँ बनता अंजान

तू माया की…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 23, 2014 at 5:30pm — 13 Comments

धीरे-धीरे समझे हम

इस दुनिया के तौर तरीके

धीरे धीरे समझे हम

गुलदस्तों की ओट में खंजर

धीरे-धीरे समझे हम|  …

Continue

Added by Gul Sarika Thakur on January 23, 2014 at 3:30pm — 12 Comments

मंदरा मुंडा

मंदरा मुंडा के घर में है फाका,

गाँव में नहीं हुई है बारिश,

पड़ा है अकाल.

जंगल जाने पर

सरकार ने लगा दी है रोक ,

जंगल, जहाँ मंदरा पैदा हुआ,

जहाँ बसती है,

उसके पूर्वजों की आत्मा.

भूख विवेक हर लेता है.

उसके बेटों में है छटपटाहट.

एक बेटा बन जाता है नक्सली.

रहता है जंगलों में.

वसूलता है लेवी.

दुसरे को कराता है भरती

पुलिस में.

बड़े साहब को ठोक कर आया है सलामी

चांदी के बूट से .

चुनाव…

Continue

Added by Neeraj Neer on January 23, 2014 at 2:00pm — 6 Comments

दोहे : अरुन 'अनन्त'

बद से बदतर हाल है, नाजुक हैं हालात ।

बोझिल लगती जिंदगी, पल पल तुम पश्चात ।१।



बरसी हैं कठिनाइयाँ, उलझें हैं हालात ।

हर पल भीतर देह में, जख्म करें उत्पात ।२।



दिन काटे कटते नहीं, मुश्किल बीतें रात ।

होता है आठों पहर, यादों का हिमपात ।३।



रूठी रूठी भोर है, बदली बदली रात ।

दरवाजे पर सांझ के, पीड़ा है तैनात ।४।



आती जब भी याद है, बीते दिन की बात ।

धीरे धीरे दर्द का, बढ़ता है अनुपात ।५।



व्याकुल मन की हर दशा, लिखते हैं हर…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on January 23, 2014 at 11:30am — 16 Comments

कहो तुम चाँद से इतना (ग़ज़ल ) - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222 1222  1222 1222



हमारी प्यास ले जाओ, जरा सूरज घटाओं तक

समय इतना नहीं बाकी, खबर भेजें हवाओं तक



तुम्हारी कोशिशें थी नित, यहाँ केवल दवाओं तक

हमारा भाग भा खोटा, न जा पाया दुआओं तक



कहाँ से भेजता रब भी, मदद को रहमतें अपनी

पहुचनें ही न पायी जब, सदा मेरी खलाओं तक



कहो तुम चाँद से इतना, सितारों रोशनी मकसद

रहा मत कर सदा इतना, सिमटकर तूँ कलाओं तक



सुना है हो गये हो अब, खुदा तुम भी मुहब्बत के

हमारी हद सहन तक ही,…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2014 at 7:30am — 12 Comments

गीत

भ्रष्ट मंत्र है भ्रष्ट तंत्र है

इसे बदलना होगा

अब सत्ता के गलियारों में

हमें पहुंचना होगा

 

वीरों ने हुंकार भरी है

दुश्मन सभी दहल जाओ

भ्रष्टाचारी रिश्वतखोरों…

Continue

Added by sanju shabdita on January 22, 2014 at 7:30pm — 23 Comments

ग़ज़ल - वही जाने रज़ा उसकी - पूनम शुक्ला

1222. 1222

दिखी अबकी सबा उसकी
कहीं गुम थी सदा उसकी

ठिकाना ढ़ूँढ़ते थे हम
बताने को ज़फा उसकी

लगा वो अब तलक अबतर
न देखी थी सफ़ा उसकी

कहाँ था आज तक अनवर
छुपी क्यों थी वफा़ उसकी

हमें मालूम हो कैसे
वही जाने रज़ा उसकी

पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Poonam Shukla on January 22, 2014 at 4:01pm — 6 Comments

साथी! तोड़ न मेरे पात...

साथी! तोड़ न निर्दयता से चुन चुन मेरे पात...



नन्हीं एक लता मैं  निर्बल,

मेरे पास न पुष्प न परिमल,

मेरा सञ्चित कोष यही बस,

कुछ पत्ते कुम्हलाये कोमल,

तोड़ न दे यह शाख अकिञ्चन, निर्मम तीव्र प्रवात...



मैं हर भोर खिलूँ मुस्काती,

पर सन्ध्या आकुलता लाती,

साँस साँस भारी गिन गिन मैं,

रजनी का हर पहर बिताती,

एक नये उज्ज्वल दिन की आशा, मेरी हर रात...



पड़ती तेरी ज्वलित दृष्टि जब,

भीत प्राण भी हो जाते तब,

सहमी सकुचायी मैं…

Continue

Added by अजय कुमार सिंह on January 22, 2014 at 3:30pm — 20 Comments

चिंता के कुछ दोहे

नैतिकता के पतन से, फैला कंस प्रभाव॥
मात- पिता सम्मान नहि, नस नस में दुर्भाव॥

पश्चिम संस्कृति जी रहे, हम भूले निज मान।
कहते हम संतान कपि, जबकि हैं हनुमान॥

निज गौरव को भूलकर, बनते मार्डन लोग।
ये भी क्या मार्डन हुए, पाल रहे बस रोग॥

अपने घर में त्यक्त है, वैदिक ज्ञान महान।
महा मूढ़ मतिमंद हम, करते अन्य बखान॥

लौटें अपने मूल को, जो है सबका मूल।
पोषित होता विश्व है, सार बात मत भूल॥

मौलिक व अप्रकाशित

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 22, 2014 at 12:30pm — 16 Comments

नवगीत: आकाश उसी का है !

नवगीत 
********
उड़ने की जो ठान ले 
आकाश उसी का है  
पंखों में हो 
कमी अगरचे 
या फिर ना-ना 
के हो चर्चे 
इन बातों से ना घबराना 
दिल ने सीखा है
…… आकाश उसी का है  
अगर-मगर जो  
अगर करेगा 
कैसे पहली 
पेंग भरेगा 
सच कहता हूँ सुनो कसम से 
मुद्दा तीखा है  
..... आकाश उसी का है…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on January 21, 2014 at 11:30pm — 10 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
yesterday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
yesterday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service