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बीर छंद या आल्हा छंद

बीर छंद या आल्हा छंद

(यह छंद १६-१५ मात्रा के हिसाब से नियत होता है. यानि १६ मात्रा के बाद यति होती है. वीर छंद में विषम पद की सोलहवी मात्रा गुरु (ऽ) तथा सम पद की पंद्रहवीं मात्रा लघु (।) होती है. )

एक प्रयास किया है मैंने गुरुजनों का अमूल्य सुझाव मिलेगा ऐसी अपेक्षा है !!

कूद पड़ी जब रण में माता ,दानव दल में हाहाकार !

एक हाथ में भाल लिए थी ,दूजे हाथ पकड़े तलवार !!



हाथ काटती पैर काटती ,कछु दुष्ट का लै सिर उपार !!

दौड़ा -दौड़ाकर तब माता…

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Added by ram shiromani pathak on April 9, 2013 at 2:30pm — 11 Comments

अदृष्ट का भय

मन की

विभिन्न चेष्टाओं के

फिसलने धरातल पर

असंख्य आवर्तन

धकेलती कुण्ठाओं के.

 

पूर्वजों से

अर्जित संस्कारों का क्षय

आत्मघाती विचारों का

प्रस्फुटन और लय.

 

क्षितिज अवसादों के,

दिखाते शिथिल आयामों की

सूनी डगर

टूटते स्वप्नों पर

पथराई नजर.

 

उभरती शंकाएं, विचलित श्रद्धाएं.

हाहाकार करते, प्रश्रय खोजते

थके हारे प्रयास

अनन्त शून्य की अनन्त यात्रा

भय से…

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Added by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on April 9, 2013 at 2:30pm — 11 Comments

मिमांस

दुखी सभी हैं यहाँ अपने अपने सुख के लिए..

तेरे लिए तो न कोई भी रोने वाला है ..

हजारों लोग इधर से गुज़र गए फिर भी ...

ये सिलसिला न कभी बंद होने वाला है..…

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Added by Amod Kumar Srivastava on April 9, 2013 at 11:30am — 2 Comments

!!! श्री हनुमान जी !!!

सवैया...किरीट एवं दुर्मिल !!! श्री हनुमान जी !!!

कोमल कोपल बीच लुकावत, लंक निसाचर रावन आवत।

काढि़ कृपान नशावत कोपत, क्रोध बढ़े हनुमान छिपावत।।1



तिनका रख ओट कहे बचना, सिय रावन को डपटाय घना।

नहि सोच विचार करे विधना, अबला हिय हाय बचे रहना।।2

रावन कॅाप गयो तन से मन, आंख झुकाय कियो भुइ राजन।

पीठ दिखाय गयो जब रावन, सीतहि त्रास भयो धुन दाहन।।3

मन दीन मलीन हरी रट री, हनुमान सुजान दिये मुदरी।

लइ मातु बुझाय रही दुखरी,जय राम…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 9, 2013 at 8:04am — 22 Comments

आत्म-विश्लेषण

मेरे पास है --



वैचारिक विमर्श के विविध रूप में 

काम आने वाला कबाड़ ,

प्रेम के अप्कर्श का पथ ,

पिछला बाकी सनसनाता डर ,

संजीदा होती साँसें ,

वही पुरानी मजिलें , और 

प्रतिभावान काया,



मुझे --



करनी है, सार्थक पहल , 

नाक की लड़ाई के लिए ,

पूछने है सवाल, चुपके चुपके ,

लयात्मक खुश्बू के लिए ,

करने है खारिज़ व बेदखल ,

व्यवस्था विरोध के स्वर ,

चलना…

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Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 9, 2013 at 7:30am — 7 Comments

नई कविता - वीनस केसरी

नई कविता जो आज रात पुरानी हो गई



मैं चाहता था

ख़्वाब मखमली हों और उनमें परियां आएँ

सूरज की तरह किस्मत हर दिन चमकदार हो

और जब सलोना चाँद रास्ता भटक जाए,

तो तारों से राह पूछने में उसे शर्म न लगे

 

ये भी चाहा कि,

मैं पूरी शिद्दत से किसी को पुकारूं

और वो मुड कर मुझे देख कर मुस्कुराए  

हम सुलझते सुलझते, थोडा सा फिर उलझ जाएँ

प्यार करते करते लड़ पड़ें

और…

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Added by वीनस केसरी on April 9, 2013 at 3:11am — 10 Comments

ये आनन्द चीज क्या कैसा??

ये आनन्द चीज क्या कैसा??

 

ये आनन्द चीज क्या कैसा क्या इसकी परिभाषा

भाये इसको कौन कहाँ पर कौन इसे है पाता

उलझन बेसब्री में मानव जो सुकून कुछ पाए

शान्ति अगर वो पा ले पल भर जी आनंद…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2013 at 12:11am — 12 Comments

किस्मत का खेल है अनोखा , कोई हँसता या रोता |

इल्जाम
किस्मत का खेल   है अनोखा , कोई हँसता या रोता  |
जब कोई इल्जाम लगाये , किसी की नाव डूबोता |
सदा नीचा दिखाये बैरी, कल बल छल हरदम ढोता | 
तड़पते देख खुश होता है ,  चैन की नींद न…
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Added by Shyam Narain Verma on April 8, 2013 at 5:00pm — 3 Comments

तन्हाई

सुनो!!!

यु तनहा रहने का

शउर

सबको नही आता

तनहा होना अलग होता हैं

अकेले होने से

और

मैं तनहा हूँ

क्युकी तुम्हारी यादे

तुम्हारी कही /अनकही बाते

मुझे कमजोर करती हैं

लेकिन

तुम्हारी हस्ती

मेरे वजूद में एक हौसला सा बसती है

परन्तु

यह  तन्हाई

सिर्फ मेरे हिस्से में ही नही आई हैं

तेरी हयात…

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Added by Neelima Sharma Nivia on April 8, 2013 at 4:59pm — 13 Comments

जिन्दगी तू इतनी आसान नही है

 

जिन्दगी तू इतनी आसान नही है

 

जिन्दगी तू इतनी आसान नही है , जितनी की लोगो से तेरी…

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Added by बसंत नेमा on April 8, 2013 at 1:30pm — 5 Comments

हार न मानें लड़ें

जीवन में सभी के साथ कोई न कोई कठिनाई होती है। कठिनाईयां तो जीवन का एक हिस्सा हैं। उनसे हार नहीं मानना चाहिए। कठिनाईयों से लड़कर ही उनसे पार पाया जा सकता है न कि उनके सामने घुटने टेक कर। धैर्य, हिम्मत एवं थोड़ी सी सूझ बूझ से मुश्किलों का हराया जा सकता है। किन्तु अक्सर हम समस्याओं से इतने भयभीत हो जाते हैं कि अपना धैर्य खो बैठते हैं। समस्याओं के प्रति हमारा नकारात्मक रवैया हमें अधिक तकलीफ पहुंचाता है।

इसके लिए आवश्यक है कि हम…

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Added by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 7, 2013 at 7:30pm — 9 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
जन्मदिन !!

(1)

विधि ने सुंदर गीत रचा,

अलि कुल स्वर सा यह गुंजन –

विश्व चराचर,

अविरत निर्झर,

श्वासों का यह स्पंदन.

कितना विस्मय,

कितना मधुमय,

कितना अनुपम,

मानव जीवन !

(2)

नक्षत्र खचित अम्बर में

किसके, उज्ज्वल स्नेह का प्रकाश ?

किसके इंगित पर मुस्काते हैं

यह धरती और यह आकाश ?

किसके सौरभ से

सुरभित यह मन,

अश्रु शिशिर,

नहीं क्रंदन !

किसके कर में क्रीड़ा करते

जीवन – मरण,

मरण – जीवन -

उसको अर्पित…

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Added by sharadindu mukerji on April 7, 2013 at 4:30am — 17 Comments

प्रश्न

करूणा के वशीभूत होकर

हृदय ने,पूछा मुझसे यह,

जीवन की निर्जन-बेला में,

तू बता,मुझे कौन है वह?

 विशाल जीवन-सागर में

चलता है साथ तेरे जो,

क्या है कोई इस संसार में,

समझ सके विचार तेरे वो?

हृदय के इस प्रश्न ने,

डाल दिया मुझे सोच में।

फिर मन-ही-मन मैं लगी,

 स्वयं से यह पूछने।

इस विशाल-संसार में होगा

कहीं पर ऐसा कोई क्या?

दुःख-दग्ध और करूणा से पूर्ण,

समझेगा मेरे हृदय की व्यथा।

सोचा है मन में जो कुछ मैंने,

संभव…

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Added by Savitri Rathore on April 6, 2013 at 11:21pm — 18 Comments

कथा......‘‘जो ध्यावे फल पावे सुख लाये तेरो नाम...........।‘‘

गतांक...3 से आगे.---.

                हां! मेरे ईष्ट देव मेरे साथ ही थे और मैंने जो कुछ देखा तथा अनुभव किया। अक्षरशः याद तो नही रहा फिर भी जितना प्रभु ने आदेश दिया स्पष्ट वाक्योे में लिख रहा हूं। मेरे दो शरीर थे। एक जो अस्पताल की शैया पर पड़ा था और दूसरा प्रभु नाम सुमिरन करता हुआ अज्ञात दिशा की ओर चला जा रहा था। राह में कितने दरवाजे पर दरवाजे खुलते जा रहे थे, गिनना मुश्किल था। हर इक द्वार लगता था कि अब यह आखिरी होगा किन्तु वही ढाक के दो पात। अंधेरे में दरवाजे के सिवाय कुछ और…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 6, 2013 at 12:41pm — 2 Comments

कुण्डलियाँ छंद - लक्ष्मण लडीवाला

 
सहन करे आलोचना, नेता वही महान,
ताने सहना सीख ले, नेता असली  मान |
 नेता असली मान, मन में राज छुपाय ले,  
संख्या बल का भान, समर्थन भी जुटाय ले |
वोटो का रख मान, गिद्ध द्रष्टि इनपर धरे,
समय का रखे ध्यान,…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 6, 2013 at 9:30am — 15 Comments

ग़ज़ल - तिश्नगी कर दी !!!

दर्द में आपने कमी कर दी
अपनी यादें जो अजनबी कर दी ।
 
 
आँख भर इश्क का समंदर था
रूठकर कैसी तिश्नगी कर दी ।
 
 
मामला घर में ही सुलझ जाता
बात छोटी सी थी, बड़ी कर दी ।
 
 
फैसला जब दिया तो मक़्तल में
जान आफ़त में थी, बरी कर दी ।
 
 
और क्या देंगे मुफलिसी में तुम्हें
नाम तेरे ये जिंदगी कर…
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Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 5, 2013 at 11:55pm — 21 Comments

वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है "ग़ज़ल"

इक ताज़ा ग़ज़ल पेशेखिदमत है आपके जानिब

 

वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है

ग़मों में मुस्कुराने का बहाना ढूँढ लेता है

 

फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या  

बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है

 

मुसलसल चोट खाता है मगर आशिक है क्या कीजे

मुहब्बत करने को मौसम सुहाना ढूँढ लेता है

 

बुरी आदत है उसकी एक का दो चार करने की

पडोसी पर नज़र रख के फ़साना ढूँढ लेता है

 

अहम् झूठा नहीं करता गिला…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 5, 2013 at 11:08pm — 28 Comments

गज़ल/ एक प्रयास

2122,       2122,      2122,   2

भूख से बिल्ली परेशां जो रही होगी

रोटियां बासी तभी तो खा गयी होगी

 

हौसले परिंदों के भी तो पस्त होते हैं

लाख उड़ने की कला उनमें रही होगी

 

कोयलों की कूक गायब…

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Added by बृजेश नीरज on April 5, 2013 at 6:20pm — 10 Comments

माँ की सीख -पापा के संस्कार

माँ की सीख पापा के संस्कार

फँसी रहती हूँ इनमें मैं बारम्बार

माँ ने सिखाया था – पति को भगवान मानना

पापा ने समझाया था – गलत बात किसी की न सुनना

 

माँ ने कहा - कितनी भी आधुनिक हो जाना

पर अपने परिजनों का तुम पूरा ख्याल रखना

पढ़लिख आधुनिक बनकर रूढीवादी न बनना

और पुरानी परम्पराओं का भी तुम ख्याल करना......

 

पापा ने बताया - भारतीय संस्कृति बहुत अच्छी है

पर इसकी कुछ मान्यताएं बहुत खोखली हैं

बेटे-बेटी में भेदभाव बहुत…

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Added by vijayashree on April 5, 2013 at 3:30pm — 17 Comments

अंतिम स्पंदन

                 अंतिम स्पंदन

   यदि मैं अर्पित करता भी स्नेह

   उमड़ता रहा है जो मन में मेरे

   क्षण-अनुक्षण तुम्हारे लिए,

   कोई अंतरित ध्वनि कह देती है..कि

   स्नेह  इतना  तुम  सह  ही  न  सकती,

   और फिर द्वार तुम्हारे से लौट आए

  …

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Added by vijay nikore on April 5, 2013 at 1:41pm — 34 Comments

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