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तेरे बाद

तुमने जो भी बात कही थी

सबको माना तेरे बाद

हो गई अपनी पीर पराई

हँस के जाना, तेरे बाद

बोझिल राते खुल के बोलीं

दिन बतियाया तेरे बाद

तेरे रहते था मैं बूढ़ा

खिली जवानी तेरे बाद

तुझे देख जो बादल गरजे

जमकर बरसे तेरे बाद

हो गई सारी दरिया खारी

रो-रो जाना, तेरे बाद

तेरे रहते दर-दर भटका

मंजिल पाई तेरे बाद

हाथों की वो चंद लकीरें

बनीं मुकद्दर तेरे बाद

यह भी तेरी…

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Added by राजेश 'मृदु' on May 2, 2013 at 4:46pm — 15 Comments

वीर छंद - लक्ष्मण लडीवाला

वीर छंद (३१ मात्राएँ/ १६ मात्राओं पर यति, १५ मात्राओं पर पूर्ण विराम/ अंत गुरु लघु)

सरबजीत भव पार गया है ---छोड़ गया वह देश जहान।  

अमर शहीदो से मिलने वह-- चला गया देकर फरमान। …

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 2, 2013 at 3:00pm — 22 Comments

एक सवाल

(1)

कब मैंने तुमसे

वादा किया था कोई

अपने को मैंने कब बंधन में बाँधा

जो किया , तुमने ही किया

हर सुबह आलस्य तजकर

पूजा की थाल सजा

अरूणोदय होता तेरे दर्शन से .

(2)

मिथ्या लगी

जग की सारी बातें

जब मैंने तुमसे प्रीत की

अब क्रोध करूँ या मान करूँ

या करूँ अपने आप पर दया

रीति रिवाजों के नाम पर

खींच दी तुमने सिंदूर की लम्बी रेखा

भाग्य ने लिख दी माथे पर मृत्युदण्ड

चेहरे पर घूँघट खींचकर .

(3)…

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Added by coontee mukerji on May 2, 2013 at 11:30am — 17 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गीत : चन्दन हमें बबूल लगे..................

तुमको जो प्रतिकूल लगे हैं

वे हमको अनुकूल लगे

और तुम्हें अनुकूल लगे जो

वे हमको प्रतिकूल लगे...............

हम यायावर,जान रहे हैं…

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Added by अरुण कुमार निगम on May 2, 2013 at 10:27am — 41 Comments

!!! लखनऊ शहर !!!

!!! लखनऊ शहर !!!

जीवन है सरस लखनऊ सदा!!!

नवाबी सुरूर,

बागों की हूर

हुस्न औ शबाब,

हजरत आदाब।

अमनों शहर मजहबी सजदा।

जीवन है सरस लखनऊ सदा!!1

मस्जिद आजान

मंदिर रस गान

अमृत औ नीरज

साहित्य धीरज।

शायर कवि कहते बेपरदा।

जीवन है सरस लखनऊ सदा!!2

भूल भुलईया

दिलकुशा छइयां

गंजो का गंज

बागों का ढंग।

यहां हरियाली रहती फिदा।

जीवन है सरस लखनऊ सदा!!3

गलियों की महक

अहातों की चहक

पतंगी जुनून

फाखता…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 2, 2013 at 9:23am — 18 Comments

उनके लिए...गजल

जो जुटाते अन्न, फाकों की सज़ा उनके लिए।

बो रहे जीवन, मगर जीवित चिता उनके लिए।

 

सींच हर उद्यान को, जो हाथ करते स्वर्ग सम,

नालियों के नर्क की, दूषित हवा उनके लिए।

 

जोड़ते जो मंज़िलें, माथे तगारी बोझ धर,…

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Added by कल्पना रामानी on May 2, 2013 at 8:53am — 34 Comments

पहले की तरह .....हास्य व्यंग

आजकल सुबह सुबह

मुर्गे की जगह

लाउडस्पीकर

बाँग दे रहा है

क्योकि

चुनाव आ रहा है.

पहले की तरह

इस बार भी

स्वामी जी

वोट माँगने आयेंगे

पुल्हिया बनवाने

वजीफा दिलवाने

की शपथ खायेंगे

और पहले की तरह

चालिस वोटों से

हार जायेंगे.

पहले की तरह ही

श्रीमती देवी जी

भी आयेंगी

अपने सम्बोधन से

जनता को लुभायेंगी

कुछ नये कुछ पुराने

सवाल उठायेंगी

सत्तापक्ष पर

ताने कसेंगी

और

पहले की तरह… Continue

Added by manoj shukla on May 2, 2013 at 7:00am — 12 Comments

पंच सब टंच

पंच सब टंच

जिंदगी की जंग से अंग  सब तंग लेकिन

पाश्चात्य के रंग सब हुए मतवाले हैं।

निर्धन अधनंग पिसे, महंगाई के पाट बीच

चूर चूर स्वप्न मिले आंसुई परनाले हैं।।…

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Added by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on May 2, 2013 at 6:00am — 6 Comments

प्रेम का प्रारब्ध

अश्रुओं से सींचता 

हर स्वप्न मन का ,

प्रेम का प्रारब्ध 

परिवर्तित विरह में ,

इन्द्र धनुषी हास 

अधरों के निकट आ,

दे रहा प्रतिक्षण 

प्रशिक्षण वेदना को !…

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Added by भावना तिवारी on May 1, 2013 at 9:30pm — 11 Comments

माँ //कुशवाहा //

माँ //कुशवाहा //

----

कोई याद रहे या न रहे

कोई साथ रहे या न रहे

हम रहें या  न रहें

तुम रहो या न रहो

हमेशा वो  रहती है

स्वयं और…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 1, 2013 at 5:04pm — 9 Comments

मजदूर





आप सब को मजदूर दिवस की हार्दिक शुभकामनायें 



मजदूर



मजबूर हूँ मजदूरी से पेट का 



गुजरा अब हाथ से निकल रहा, 



अब हम चुप कब तक रहे, 



हृदय हमारा पिघल रहा, 



मेहनत करके नीव रखी देश की, 



अब सब बिफल रहा, 



अपने हकों के लिए चुना नेता, 



देखो हम को ही निगल रहा, 



डिग्री लेकर कोई इंजिनियर 



कुर्सी पर जो रोब जमता है



देखा जाय तो बिन मजदूर…

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Added by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on May 1, 2013 at 3:32pm — 3 Comments

तुम, मेरी पहचान !

                              तुम, मेरी पहचान !

            

                 

             तुम अति-सुगम सरल स्नेह से मेरी

                                            प्रथम पहचान

             मेरे   कालान्तरित   काव्य   की

             अंतिम कड़ी,

             गीतों की गमक…

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Added by vijay nikore on May 1, 2013 at 1:30pm — 26 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मजदूर दिवस की बधाई हो !!!

खुरदुरी हथेलियाँ 

कटी  फटी उंगलियाँ 
पच्चीस की उम्र में 
पचास के जैसी चेहरे पर
प्रौढ़ता की  लकीरें 
दस बीस इंटों से भरा तसला
सर पर ढोती 
बीच- बीच में दूर एक झाड़ी पर 
बंधे पुराने चिथड़ों से बने 
झूले पर नजर डालती ,
ना जाने उसका नन्हा 
कब भूख से बिलबिलाने लगे 
सोचकर अपने भीगे ब्लाउज को 
अपनी फटी धोती के पल्लू से…
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Added by rajesh kumari on May 1, 2013 at 11:37am — 23 Comments

!!! मां !!!

!!! मां !!!



मां -एक मात्र ऐसी स्तम्भ है,

जिस पर सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड टिका है।

और हम अज्ञानी-अहंकारी-विकारी,

मां का अनादर करते है-

लज्जित करते है।

हम इस ब्रहमाण्ड को परे रख कर

स्वयं को सर्वज्ञ - अभिन्न,

विधाता बने फिरते है।

सुखी-स्वस्थ्य-सम्पन्न होने की चाह,

दया-मुक्ति-परमार्थ होने की आश,

धिक-धिक-धिक है हमारी सोच।

धिक्कार है! ऐसा आत्मबोध!

आह! अकेला ही रह जाएगा,

मां को छोड़...

और मां!

फिर भी मां है।

अन्त समय में भी मां…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 1, 2013 at 7:58am — 10 Comments

मंच के पंच

(रचना 1996 में एक संस्थान के निदेशक को समर्पित थी, पर आज के राष्ट्रीय सन्दर्भ में भी सटीक लगती है)



मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें

शिकायत जायज़ है, प्रजा साथ नहीं

कल तक थे जहां, हैं वहीं के…

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Added by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on May 1, 2013 at 6:00am — 8 Comments

डमरू घनाक्षरी / गीतिका 'वेदिका'

डमरू घनाक्षरी अर्थात बिना मात्रा वाला छंद

३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में

लह कत दह कत, मनस पवन सम 

धक् धक् धड़कन, धड कत परबस

डगमग डगमग, सजन अयन पथ,

बहकत हर पग, मन जस कस तस 

बस मन तरसत, बस मन पर घर 

अयन जतन तज, अचरज घर हँस 

चलत चलत पथ, सरस सरस पथ,

सजन सजन पथ, हरस हरस हँस 

                 …

Continue

Added by वेदिका on May 1, 2013 at 2:00am — 11 Comments

नेक काम करो |

चाँद बसे आकाश में , फिर भी लगता पास |
मंजिल कितनी दूर हो , रहे मिलन की आस |
जब  ऊँची उडान भरो , दुनिया में हो  नाम | 
सब को अच्छी राह का , सदा मिले पैगाम…
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Added by Shyam Narain Verma on April 30, 2013 at 12:01pm — 8 Comments

!!! जै मां !!!



मां!

आंचल-आशीष, प्यार-दुलार

दया-दान, क्षमा-उपकार है।

सहज-प्रकृति-अभिव्यक्ति

सृष्टि-दृष्टि-संस्कार है।

माया-मोह, ममता-मनमोहनी

सानिध्य-सहिष्षुण-सद्व्यवहार है।

मां!

श्रृध्दा-गरिमा, प्रेरक-उध्दारक

धूप-छांव, सर्दी-गर्मी-बरसात है।

लक्ष्मी-सरस्वती, सीता-सावित्री

दुर्गा-शारदा, काली-कपाली-चामुण्डा है।

ज्योति-ज्ञान, विचारक-संवाहक

आचार-विचार, शब्द-उच्चारण है।

मां!

पूजा-पाठ, आस्था-सद्गुरू

पतित-पावनी गंगा-जमुना-गोदावरी है।

हां! यही…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 30, 2013 at 9:12am — 12 Comments

अरु नदिया पछताय ( कुछ दोहे )

नदिया का यह नीर भी, कुछ दिन का ही हाय |

उथला जल भी नहि बचा, जलप्राणी कित जाय ||

नदिया जल मल मूत्र सब, कैसा बढ़ा विकार |

मानव अवलम्बित धरा, सहती अत्याचार ||

क्षुधा तृप्त करता…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on April 30, 2013 at 8:07am — 22 Comments

!!! हे मां !!!

!!! हे मां !!! 

मां अर्थात् गुरू !

गुः - गुप अंधेरा, गहन तिमिर।

रूः - प्रकाशमय, अतिशय उजियारा।

अर्थात् तमसो मा जोतिर्गमय!

अंधकार से प्रकाश की ओर प्रेरित करने वाली

जननी! मां!

अनादि काल से

सब कुछ सहती आ रही है।

हां! प्रसव पीड़ा के सम 

नवजात के जन्म सरीखा ही।

नरक में उलटे टंगे को

स्वर्ग में सीधे पैरों पर खड़ा करने तक,

अन्धकार-अज्ञान को

प्रकाशवान-ज्ञानमय '

बनाने के लिए उद्वेलित…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 30, 2013 at 12:38am — 11 Comments

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