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सुनो युवाओं....कुण्डलिया

नौटंकी का खेल है, दरबारों का आज

सत्ता चोर छिछोर की, डाँकू का है राज

डाँकू का है राज, झपट यह माल बनाते

पावन धरती खोद, उसे पाताल बनाते

कहते है कविराय, शुरू है उलटी गिनती

युवा आज के समझ रहे सारी नौटंकी

-------

नवपीढी के हाँथ मे, रहे धर्म की डोर

आकर्षित कुछ हो रहे, जो पश्चिम की ओर

जो पश्चिम की ओर, सभ्यता अपनी भूले

कैसे तुम हो पुत्र, प्रिय ! जो जननी भूले

कहते हैं कविराय, चुनो अब ऐसी सीढी

करो राष्ट्र निर्माण, धर्म से हे… Continue

Added by manoj shukla on April 28, 2013 at 8:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल : आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया

बह्र : रमल मुसम्मन सालिम

वक्त ने करवट बदल ली जो अँधेरा छा गया,

आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया,

प्यार के इस खेल में मकसद छुपा कुछ और था,

बोल कर दो बोल मीठे जुल्म दिल पे ढा गया,

बाढ़ यूँ ख्वाबों की आई है जमीं पर नींद की,

चैन तक अपनी निगाहों का जमाना खा गया,

झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,

झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,

तालियों की गडगडाहट संग बाजी सीटियाँ,

देश का नेता हमारा…

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Added by अरुन 'अनन्त' on April 28, 2013 at 4:17pm — 16 Comments

दीवारों पर लकीरें !!!

गाँव के कच्चे घरों में…

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Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 28, 2013 at 11:26am — 22 Comments

अंतस के शब्द....हाइकू

हाइकू का प्रथम प्रयास.....
------
---------
बिंदी काजल
नर के ही कारण
मैला आँचल
---------
बहे पसीना
नही चोख मजूरी
मुश्किल जीना
-------
गुडिया गिट्टी
दानव नर कामी
कर दी मिट्टी
--------
मौलिक व अप्रकाशित

Added by manoj shukla on April 27, 2013 at 9:00pm — 11 Comments

एक लड़की पगली सी

एक लड़की पगली सी -

खड़ी रहती हर सुबह छ्त पर अकेली,

कभी बालों को सँवारती,

होंठों में कुछ गुनगुनाती रहती.

सूरज जब दहलीज पर आता

दे जाता आभा रेशम सी,

सुनहरी किरणों से नहाती औ’

खुशियों से झूम झूम जाती.

एक लड़की भोली सी -

टहलती हुई छ्त पर भरी दोपहर

बालों को फूलों से सजाती,

पवन का झोंका आता ठहर-ठहर

डोल जाती वह कोमलांगिनी

शर्माती, हुई जाती कुछ सिहर-सिहर.

हँसती, कभी मुसकाती एक लड़की -

भोला बचपन गया, कब आया यौवन

समझ न…

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Added by coontee mukerji on April 27, 2013 at 12:05pm — 10 Comments

!!! नारी तुम स्तुति की देवी हो !!!

नारी तुम स्तुति की देवी हो!

मां वसुधा सी प्यारी तुम,

संस्कृति की श्रध्दा देवी हो।

नारी तुम प्रगति प्रदर्शक हो!

कर में वीणा-सुरधारा तुम,

चंचलमय मृदुला देवी हो।

नारी तुम धैर्य-बलशालिनी हो!

अबला सीता क्षमा दान तुम,

मां शक्ति की दुर्गा देवी हो।

नारी तुम राधा सी प्यारी हो!

मीरा बाला सी अनुरागिनी तुम,

सती सावित्री सी देवी हो।

नारी तुम देश की कीर्ति हो!

सच्चे माने में इन्दिरा तुम,

भारत-सौभाग्य की…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 27, 2013 at 7:37am — 20 Comments

बौने मानव

आधी रात के सपने देकर

तुम मुझको बहला देते हो

जब चाहे जी

अपना लेते हो

जब चाहे जी

ठुकरा देते हो

कैसे लिखूं

तुमको पतियां

तुम वादे

झुठला देते हो

आधी रात के ................

या देवी का

जयघोष तो करते

फिर क्‍योंकर

चुभला देते हो

अपने छत पर

बाग लगाकर

कलियों को

दहला देते हो

आधी रात के ................

कहती हूं जो

तुमको…

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Added by राजेश 'मृदु' on April 26, 2013 at 2:41pm — 17 Comments

सरकारी नौकरी

सरकारी नौकरी

 

 

काश दो दिन दफ़्तर लगता ,

होती छुट्टी पाँच दिन,

खाते खेलते,सोते घर में

मौज मनाते पाँच दिन ।

 

बच्चे रोते भाग्य पर,

पर पत्नी खुश हो जाती,

हाथ बटाएगा काम में,

यह सोच मंद मुस्कुराती।

 

आ जाती तनख्वाह एक…

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Added by akhilesh mishra on April 26, 2013 at 12:45pm — 10 Comments

रोने धोने का काम नहीं |

दहाड़ते चलो सभी रण में ,  मारो दुश्मन को ललकार |
आगे बढ लक्ष्मी बाई सा , रोको इनका अत्याचार |
मानव ना ये दानव सा हैं , करते पशुवो सा व्यवहार |
रोने धोने का  काम नहीं , देख  करो इनका संहार | …
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Added by Shyam Narain Verma on April 26, 2013 at 11:38am — 5 Comments

'बदलाव'

उद्येश्य बदल गया-
भावों की पहरन
शब्द का
परिमाण बदल गया,
साहित्य,दर्पण समाज का
धुंधला हो गया।
प्रतिद्वंदी
तलवार का,कलम
लोकेष्णा का दास बन गया।
बाढ़ है, तो बारिश भी है
आऽज,भावेश का
बहाव बदल गया।
साहित्य का...
उद्येश्य बदल गया।
परिवेश बदल गया।।
-विन्दु
(मौलिक/अप्रकाशित)

Added by Vindu Babu on April 26, 2013 at 11:03am — 17 Comments

डमरू घनाक्षरी

नियम : ३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में .

 

प्रणय पवन बह, रस मन बरसत

बढ़त लहर जस, तन मन गद गद

चमक दमक बस, चलत नगर घर

पग पग हर पल, रहत मदन मद

 

मन भ्रमर चलत, उड़त गगन तक

इत उत भटकत, उठत बहत रह

प्रणय ललक वश, बहकत सम्हरत

चरफर महकत, चटक मटक रह

                 - बृजेश नीरज

Added by बृजेश नीरज on April 26, 2013 at 10:25am — 10 Comments

कुछ हाइकु ...

सूरज -चंदा 
धरती हवा पानी 
आदमी गन्दा 
------
रिश्तों का खून 
पडोसी का धरम 
तेज नाखून .
----
अभी तो थी वो 
किलकारियां थमी 
रो रही थी वो !!!!!!!
--
बढ़ता धर्म 
कम होता विश्वास 
शापित कर्म 
-----
बचपन में 
खिलौने खेले कैसे 
डर मन में ...
----
अन्जाने  हाथ 
चाकलेट…
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Added by AVINASH S BAGDE on April 26, 2013 at 12:01am — 8 Comments

नेता बनने के हुनर.....हास्य व्यंग

बेटा- पापा मै देश के लिये कुछ करना चाहता हूँ

बडा होकर मै नेता बनना चाहता हूँ



पापा बोले-

बेटा

नेता बनने के लिये

बहुत पापड

बेलने पडते है

उसे देश और जनता

दोनो के साथ

खेलने पडते है



उसे विरोधियो को

लताडना होगा

शेर की तरह

दहाडना होगा

एक सफल नेता

बडी चतुराई से

लोगो के कीमती वोट

माँग लेते है

क्योकी

मुरगे की तरह

बिना चूके

बडे नियम से

रोजाना बाग देते है



एक नेता को

यह… Continue

Added by manoj shukla on April 25, 2013 at 10:52pm — 14 Comments

मुझे लिखना है

मुझे लिखना है 

बहुत कुछ कोरेपन को छाटना है 
चलना है शुन्य की पगडंडियों तक 
और वहां तक जहाँ यह धरती और आकाश हो विलीन 
बिलकुल शांत निह्शब्ध स्वर हीन 
चाहता हूँ इक संगीत रचना 
चुनना है  रेट के ढेर से अनगिनत चमकते टुकड़ों को 
गिनना है आकाश में असंख्य तारा गण को  
बुनना है अपनी आदि और अंत की सीमाएं 
कुतरना है अपने अन्ताजाल को 
और फिर दीवारें लांघना है परिवर्तन की  
और फिर लौटकर…
Continue

Added by ajay sharma on April 25, 2013 at 10:00pm — 4 Comments

गजल : कितनी भला कटुता लिखें

भर्त्सना के भाव भर, कितनी भला कटुता लिखें?

नर पिशाचों के लिए, हो काल वो रचना लिखें।  

 

नारियों का मान मर्दन, कर रहे जो का-पुरुष,

न्याय पृष्ठों पर उन्हें, ज़िंदा नहीं मुर्दा लिखें।

 

रौंदते मासूमियत, लक़दक़ मुखौटे ओढ़कर,

अक्स हर दीवार पर, कालिख पुता उनका लिखें।

 

पशु कहें, किन्नर कहें, या दुष्ट दानव घृष्टतम,

फर्क उनको क्या भला, जो नाम, जो ओहदा लिखें।

 

पापियों के बोझ से, फटती नहीं अब ये धरा

खोद कब्रें, कर…

Continue

Added by कल्पना रामानी on April 25, 2013 at 10:00pm — 67 Comments

परेशां है समंदर तिश्नगी से - ग़ज़ल

परेशां है समंदर तिश्नगी से 

मिलेगा क्या मगर इसको नदी से



अमीरे शहर उसका ख़ाब देखे  

कमाया है जो हमने मुफलिसी से

 …

Continue

Added by वीनस केसरी on April 25, 2013 at 10:00pm — 12 Comments

होता रहा नीलाम है ये आम आदमी

सदियों रहा गुलाम है ये आम आदमी 

होता रहा नीलाम है  ये आम आदमी 


रोता है बिलखता है जाता है  बहल फिर
 बच्चों सा ही मासूम है  ये आम आदमी …
Continue

Added by ajay sharma on April 25, 2013 at 9:30pm — 8 Comments

नेतागिरी का कीड़ा - व्यंग्य

नेतागिरी का कीड़ा - व्यंग्य 

इस बार चुनाव लड़ने की 

हमने भी ठानी है,

हमारे अंदर नेतागिरी का कीड़ा है

यह बात हमने अभी…

Continue

Added by Usha Taneja on April 25, 2013 at 6:30pm — 22 Comments

मै बरगद का पेड

|| मै बरगद का पेड ||

मै बरगद का पेड सयाना, चिरस्थिर खडा था आँगन मे ।

कितने मौसम आते जाते, देखे है मैने जीवन मे ।

सदीया बीती नदिया रीति, वो गाँवो का शहर बन जाना  ।

अब मै डरा सहमा सा खडा हुआ हू, इन  कंक्रीटो के वन मे

वो बडॆ प्यार से अम्मा बाबा का, मुझे धरा मे रोपना ।

वो खुद के बच्चो जैसा मेरा, लाड प्यार से पाल पोसना ।

वो पकड के मेरी बाहो को, मुन्ना मुनिया का झुला झुलना

वो चढ के मेरे कंधो पर, कटी…

Continue

Added by बसंत नेमा on April 25, 2013 at 12:30pm — 11 Comments

पंचतंत्र की रोचक कहानियां और बच्चें

वर्तमान समय में हमारे बच्चों को मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध हैं। इनमे सबसे प्रमुख है टी . वी . जिस पर प्रसारित होने वाले कार्टून बच्चों को बेहद पसंद आते हैं। पर बच्चे इनसे क्या सीखते हैं यह सोंच का विषय है।

कई कार्टून चरित्र जो बच्चों में बहुत लोकप्रिय हैं जैसे स्पाइडरमैन, बैटमैन, बेन टेन इत्यादि। बच्चे इन चरित्रों से बहुत…

Continue

Added by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 25, 2013 at 11:30am — 7 Comments

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