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मुझे लिखना है

मुझे लिखना है 

बहुत कुछ कोरेपन को छाटना है 
चलना है शुन्य की पगडंडियों तक 
और वहां तक जहाँ यह धरती और आकाश हो विलीन 
बिलकुल शांत निह्शब्ध स्वर हीन 
चाहता हूँ इक संगीत रचना 
चुनना है  रेट के ढेर से अनगिनत चमकते टुकड़ों को 
गिनना है आकाश में असंख्य तारा गण को  
बुनना है अपनी आदि और अंत की सीमाएं 
कुतरना है अपने अन्ताजाल को 
और फिर दीवारें लांघना है परिवर्तन की  
और फिर लौटकर…
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Added by ajay sharma on April 25, 2013 at 10:00pm — 4 Comments

गजल : कितनी भला कटुता लिखें

भर्त्सना के भाव भर, कितनी भला कटुता लिखें?

नर पिशाचों के लिए, हो काल वो रचना लिखें।  

 

नारियों का मान मर्दन, कर रहे जो का-पुरुष,

न्याय पृष्ठों पर उन्हें, ज़िंदा नहीं मुर्दा लिखें।

 

रौंदते मासूमियत, लक़दक़ मुखौटे ओढ़कर,

अक्स हर दीवार पर, कालिख पुता उनका लिखें।

 

पशु कहें, किन्नर कहें, या दुष्ट दानव घृष्टतम,

फर्क उनको क्या भला, जो नाम, जो ओहदा लिखें।

 

पापियों के बोझ से, फटती नहीं अब ये धरा

खोद कब्रें, कर…

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Added by कल्पना रामानी on April 25, 2013 at 10:00pm — 67 Comments

परेशां है समंदर तिश्नगी से - ग़ज़ल

परेशां है समंदर तिश्नगी से 

मिलेगा क्या मगर इसको नदी से



अमीरे शहर उसका ख़ाब देखे  

कमाया है जो हमने मुफलिसी से

 …

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Added by वीनस केसरी on April 25, 2013 at 10:00pm — 12 Comments

होता रहा नीलाम है ये आम आदमी

सदियों रहा गुलाम है ये आम आदमी 

होता रहा नीलाम है  ये आम आदमी 


रोता है बिलखता है जाता है  बहल फिर
 बच्चों सा ही मासूम है  ये आम आदमी …
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Added by ajay sharma on April 25, 2013 at 9:30pm — 8 Comments

नेतागिरी का कीड़ा - व्यंग्य

नेतागिरी का कीड़ा - व्यंग्य 

इस बार चुनाव लड़ने की 

हमने भी ठानी है,

हमारे अंदर नेतागिरी का कीड़ा है

यह बात हमने अभी…

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Added by Usha Taneja on April 25, 2013 at 6:30pm — 22 Comments

मै बरगद का पेड

|| मै बरगद का पेड ||

मै बरगद का पेड सयाना, चिरस्थिर खडा था आँगन मे ।

कितने मौसम आते जाते, देखे है मैने जीवन मे ।

सदीया बीती नदिया रीति, वो गाँवो का शहर बन जाना  ।

अब मै डरा सहमा सा खडा हुआ हू, इन  कंक्रीटो के वन मे

वो बडॆ प्यार से अम्मा बाबा का, मुझे धरा मे रोपना ।

वो खुद के बच्चो जैसा मेरा, लाड प्यार से पाल पोसना ।

वो पकड के मेरी बाहो को, मुन्ना मुनिया का झुला झुलना

वो चढ के मेरे कंधो पर, कटी…

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Added by बसंत नेमा on April 25, 2013 at 12:30pm — 11 Comments

पंचतंत्र की रोचक कहानियां और बच्चें

वर्तमान समय में हमारे बच्चों को मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध हैं। इनमे सबसे प्रमुख है टी . वी . जिस पर प्रसारित होने वाले कार्टून बच्चों को बेहद पसंद आते हैं। पर बच्चे इनसे क्या सीखते हैं यह सोंच का विषय है।

कई कार्टून चरित्र जो बच्चों में बहुत लोकप्रिय हैं जैसे स्पाइडरमैन, बैटमैन, बेन टेन इत्यादि। बच्चे इन चरित्रों से बहुत…

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Added by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 25, 2013 at 11:30am — 7 Comments

शक करने का काम

शक करने का काम

 

वो शक करता है

हर मिलने-जुलने वालों पर

और अपने गुर्गों द्वारा

करता रहता पड़ताल

कहीं कोई भेदिया तो

बदल कर भेस 

घुस आया हो

उसके आभा-मंडल में....

 

वो शक करता है

अपने दरबारी, सिपहसालारों पर

चमचों-चाटुकारों पर

इसीलिये कुछ को देता रहता है सज़ाएँ

कुछ को पुरस्कार

कुछ का तिरस्कार....

 

वो शक करता…

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Added by anwar suhail on April 24, 2013 at 10:04pm — 8 Comments

कुंडलिया छंद -लक्ष्मण लडीवाला

कुंडलिया छंद 

पत्नी लागी दाँव पर, गए युधिष्ठिर  हार,

महासमर के वार का, धर्म बना आधार |

धर्म बना आधार, द्रोपदी चीर हरण का,

कृष्ण बने मझधार, तन पर बढ़ते चीर का  

दुशासन मढ़े…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 24, 2013 at 10:00pm — 16 Comments

कैसा समाज // कुशवाहा//

कैसा समाज // कुशवाहा//

-------------------------

जनम लेत बालिका जननी न सुहात है 

माम सुन चाहत है मात नही भात है 

कृष् काय बदन लिये तन पर नहि गात है 

चौराहे अन्न सडत कैसा सुप्रभात है 

वैभव विहीन वो जनम काली रात है 

कली न खिली अभी भंवरे मडरात हैं  

खग गगन उड़न चहे बाजों का राज है 

सखि संग खेलन गयी संझा की बात है 

मैला आंचल हुआ लुटी सगरी रात है 

दोषी भला ये क्यों अपने ही भ्रात हैं 

संस्कार विहीन ये अपराध सम्राट…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 24, 2013 at 4:25pm — 14 Comments

जय हो भारत , बस जग में |

छोड़ पाप मन का , सत पथ पर चल  , लफडा करना , अब छोडो  |
तज काम क्रोध को , छोड़ लोभ मद  , हरी भजन में  , मन जोड़ो |
लोग शिक्षा पायें , ज्ञान कमायें , प्रेम बढायें , हर जन में |
जहाँ लोग देखें , खुश हो जायें , बस ऐसे बन  , हर मन…
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Added by Shyam Narain Verma on April 24, 2013 at 3:25pm — 4 Comments

शादी बनाम बहुमत

हास्य - व्यंग

शादी बनाम बहुमत



एक दिन श्रीमती जी का आसन डोला ,

मेरा छोटा सुपुत्र…

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Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 24, 2013 at 10:00am — 8 Comments

‘‘गजल‘‘

‘‘गजल‘‘

एक प्रयास के फलस्वरूप प्रस्तुत है।

वज्न......1222 1222 1222 1222

कुसुम को तोड़कर किसने, हसीनों को रिझाया है।

रूहानी जानकर उसने, मकानों को सजाया है।।1

जहां में और भी किस्से, सुनाया नाम पाया है।

चुराकर रात का काजल, सुनयनों को लगाया है।।2

चला है शाम से नश्तर, सितम भी खूब ढाया है।

वतन को छोड़ आफत में, बेगानों को छिपाया है।।3

यहां कातिल वहां मंजिल, बहानों से बुलाया है।

खुदा को भूल आया वो, सकीनों को रूलाया…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 24, 2013 at 9:32am — 30 Comments

पं.हरिराम द्विवेदी " हरि भइया " को साहित्य अकादमी का भाषा पुरस्कार !

                               गभग  आधी सदी से भोजपुरी बोली -  भाषा का परचम राष्ट्रीय  अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर कामयाबी के साथ फहराने वाले लोक कवि पंडित हरि राम द्विवेदी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए साहित्य अकादमी ने प्रतिष्ठित 'भाषा पुरस्कार' प्रदान करने की घोषणा की है ।…

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Added by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 9:30am — 5 Comments

पीर की माला

फिर तुम्हारी याद में 
इक पीर की माला बनायी ...

रूठना फिर मनाना
इक रीत है
हाँ हमारे बीच
अपनी प्रीत है
इसी पूजा में रहे
हम मग्न
तो आवाज आयी
फिर तुम्हारी याद में ...

एक अद्भुत
अलौकिक संगीत है
हाँ तुम्हारी याद
मेरी मीत है
ध्यान जो तेरा धरूँ
तो आँसुओं ने
झिर लगायी
फिर तुम्हारी याद में ....

                  योगेश्वर 'राग'

Added by योगेश्वर 'राग' on April 24, 2013 at 4:44am — 14 Comments

छोटी -छोटी बातें

छोटी छोटी बातों पर 

अनायास ही अनचाहे 

मन मुटाव हो जाता है 

दुराव हो जाता है 

दूरी बढ़ जाती है 

हम तिलमिला जाते हैं 

मौन हो जाते हैं 

अहम भाग जाता है …

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 24, 2013 at 12:09am — 12 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
गुरु वंदन //छंद झूलना (प्रथम प्रयास) ...डॉ० प्राची

छंद झूलना 

(२६ मात्रा,  ७,७,७,५ पर यति , चार पद , अंत गुरु लघु )

गुरु ज्ञान दो, उत्थान दो, वंदन करो स्वीकार 

अनुभव प्रवण, उज्ज्वल वचन, हे ईश दो आधार 

तज काग तन, मन हंस बन, अनिरुद्ध ले विस्तार 

प्रभु के शरण, जीवन- मरण, पाता सहज उद्धार.....

Added by Dr.Prachi Singh on April 23, 2013 at 11:00pm — 35 Comments


मुख्य प्रबंधक
मर्द // गणेश जी "बागी"

आज फिर उसका मन व्यथित था
हाहाकार कर रहा था हृदय
एक कथित पुरुष में
हैवान साकार हुआ था फिर.. 
फिर हैवानियत जीत गई थी 
नरपिशाच के पंजों में
आ गई थी 
फिर एक नन्ही…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 23, 2013 at 10:00pm — 36 Comments

इंसान की फ़ितरत

इंसान की फ़ितरत

मुझे M B C (मॉरिशस ब्रॉड्कास्टिंग कॉर्पोरेशन) में स्पीकर पोस्ट के लिये एक साक्षात्कार देना था . उस दिन तेज़ बारिश हो रही थी . मैं इंटरव्यू देकर बाहर खड़ी , बारिश के रुकने की प्रतीक्षा करने लगी . पानी था कि रुकने का नाम नहीं ले रहा था . एक तो जुलाई का महीना उस पर क्यूपीप की सरदी . ठंड से मेरे दाँत बजने लगे थे . मेरे पास ढंग का स्वेटर भी नहीं था जो साथ लेती . शाम के पाँच बज गये थे और अंधेरा भी होने लगा था. मैं चिंतित होने लगी थी अगर बस छूट जाएगी तो मैं क्या करूँगी ? इसी सोच…

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Added by coontee mukerji on April 23, 2013 at 9:27pm — 4 Comments

जन जन के संताप........कुण्डलिया

सरकारें अब खेलती, यह शतरंजी खेल

ऊँट ऊँट मे मित्रता, हाँथी कसी नकेल

हाँथी कसी नकेल, बजीर हुआ अंजाना

घोडा तिरछी चाल, चले तो पाये दाना

कहते है कविराय, लडा के सबको मारेँ

प्यादों मे तकरार , कराती है सरकारें

----------

कोटा पर जो मिल रहा, चावल चीनी तेल

उसमे क्या क्या हो रहा, कैसा कैसा खेल

कैसा कैसा खेल, खेलते हैं व्यापारी

जीता कोटेदार, बिचारी जनता हारी

कहते हैं कविराय, लगाओ दस दस शोंटा

ठगने खातिर आज, उठाते हैं जो कोटा

-----

चाँदी… Continue

Added by manoj shukla on April 23, 2013 at 9:00pm — 13 Comments

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