ये दिल आज भी मचलता है तुम्हारे लिए।
अश्कों का दरिया बहता है तुम्हारे लिए।।
मैं जी नहीं पा रही हूँ तुमसे अलग होकर,
सीने में एक दर्द पिघलता है तुम्हारे लिए।।
जाने क्यों मैं आज भी ज़िंदा हूँ तुम्हारे बिन,
मैं आख़िर मर क्यों नहीं जाती तुम्हारे लिए।।
तू मेरी ज़िन्दगी,मेरी जान,मेरा सब कुछ है,
ये साँस आज भी चलती है सिर्फ़ तुम्हारे लिए।।
ताउम्र रहेगा तेरा इंतज़ार मुझको मेरे साथी,
मरकर भी ये आँखें खुली रहेंगी…
Added by Savitri Rathore on April 20, 2013 at 11:30pm — 10 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 20, 2013 at 8:08pm — 11 Comments
चलो मुसाफिर देख लो , कहाँ होगा गुजार | |
ना दे सहारा कोई , फिर से करो विचार | |
खंजर मारें पेट में , दूर से मेहमान | |
देख चिच्लाते चीखते, खुश हों बेईमान | |
अब किस पर यकीन करे,… |
Added by Shyam Narain Verma on April 20, 2013 at 3:07pm — 3 Comments
"ख्यालों से मेरे उतर आये सामने तू कभी
थम जाये ये वक़्त भी ,उस पल को वहीँ
आ भी जा इक पल को कभी यूँ भी…
Added by Kedia Chhirag on April 20, 2013 at 10:57am — 5 Comments
आंखों देखी
बात फ़रवरी 1986 की है. भारत का पाँचवा वैज्ञानिक अभियान दल अंटार्कटिका में अपना काम समाप्त कर चुका था. शीतकालीन दल के सभी 14 सदस्य भारतीय अनुसंधान केंद्र “ दक्षिण गंगोत्री ” में पहुँच चुके थे. इस दल को अगले एक वर्ष तक यहीं रहना था. ग़्रीष्मकालीन दल के करीब सब अभियात्री 15 किलोमीटर दूर खड़े जहाज “ एम.वी. थुलीलैण्ड “ में थे. मौसम बेहद खराब हो जाने की वजह से एक दो वैज्ञानिक जहाज में नहीं पहुँच पाये थे. कुछ और औपचारिकताएँ बाकी थीं...इंतज़ार था मौसम के ठीक होने का. मौसम का आलम यह था…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on April 20, 2013 at 4:07am — 10 Comments
Added by shikha kaushik on April 19, 2013 at 11:09pm — 5 Comments
सफ़र में आँधियाँ तूफ़ान ज़लज़ले हैं बहुत॥
मुसाफ़िरों के भी पावों में आबले हैं बहुत॥
ख़ुदा ही जाने मिलेगी किसे किसे…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on April 19, 2013 at 12:30pm — 11 Comments
मुलाकातें हमारी, तिश्नगी से
किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से
महब्बत यूँ मुझे है बतकही से
निभाए जा रहा हूँ खामुशी से
उन्हें कुछ काम शायद आ पड़ा है
तभी मिलते हैं मुझसे खुशदिली से
उजाला बांटने वालों के सदके
हमारी निभ रही है तीरगी से
ये कैसी बेखुदी है जिसमे मुझको
मिलाया जा रहा हैं अब मुझी से
उतारो भी मसीहाई का चोला
हँसा बोला…
Added by वीनस केसरी on April 19, 2013 at 12:14am — 16 Comments
तू ये ना समझना , तेरी याद ने रुलाया है ,
तेरी आँख का कोई आँसू है , मेरी आँख से आया है ,
तू ये ना समझना , तेरे खुशबू ने बुलाया है ,
हवा का कोई झोंका है , तेरे ज़िस्म को छू के आया है ,…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 18, 2013 at 11:00pm — 7 Comments
कहीं पे चीख होगी और कहीं किलकारीयाँ होंगी ! |
अगर हाकिम के आगे भूख और लाचारियाँ होंगी !! |
अगर हर दिल में चाहत हो शराफ़त हो सदाक़त हो ! |
मुहब्बत का चमन होगा ख़ुशी की क्यारियाँ होंगी !!… |
Added by SALIM RAZA REWA on April 18, 2013 at 9:30pm — 18 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2013 at 6:23pm — 5 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2013 at 4:45pm — 15 Comments
Added by Dr.Ajay Khare on April 18, 2013 at 4:30pm — 9 Comments
शर्मा जी की यूँ तो आदत बहुत खाने की है, बुराई एक है अपने खाने में से वो किसी को पूंछते नहीं कि भैया जी थोडा सा आप भी खा लो. धार्मिक इतने कि कार्यालय कभी प्रातः साढ़े ग्यारह से पहले नहीं आते और चार बजे कार्यालय छोड़ देते . कारण पूछो तो बताते कि पूजा पर बैठते हैं.
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2013 at 4:00pm — 19 Comments
भारी भरकम काया,है बड़ी विचित्र माया ,
खुद खाती ठूसकर ,मुझपे चिल्लाती है !
हुआ वजन सौ किलो ,फिर भी दम ना लेती ,
गुंडई तो देखो इसे ,डाइटिंग बताती है !!
खर्राटे जब लेती है,मानो भूकंप आ गया ,
पड़ोसियों की भी तब ,नींद टूट जाती है !
अपने को…
Added by ram shiromani pathak on April 18, 2013 at 4:00pm — 18 Comments
लो पत्थर इश्क़ करना चाहता है
मेरी मानिंद जलना चाहता है
लगा के हौसलों के पर युवा अब
बड़ी परवाज़ भरना चाहता है
फलक में जा भुला बैठा जो सबको
ज़मीं पर क्यूँ उतरना चाहता है
सहारे की ज़रूरत है उसे क्या
जो गिर के अब सँभलना चाहता है
बना हमदाद दुनिया में वही जो
सभी के दिल मे बसना चाहता है
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 2:57pm — 7 Comments
एक प्रयास,,आप सबकॆ चरणॊं मॆं सादर समर्पित है,,,
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(१) मदिरा सवैया =
==============
मारति गॆंद गिरी यमुना जल, बीचहिँ धार बहात चली !!
भाषत राज गुनीजन जानहु, मानहुँ कुम्भ नहात चली !!
त्रॆतहिँ कॆवट की तरिनी जसि, राम चढ़ॆ उतिरात चली !!
आनहुँ गॆंद अबै मन-मॊहन, ग्वालन ग्वालन बात चली !!
(२) मदिरा सवैया =
==============
भूल हमारि भई मनमॊहन, खॆल खॆलाइ लियॊ तुम का !!
दाँव हमारि रहै तबहूँ हम, दाँव दिलाय दियॊ…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 18, 2013 at 2:30pm — 18 Comments
स्वतंत्रता के 66 वर्ष बाद, जन सामान्य को क्या मिला? आज भी सोने की चिड़िया के बचेखुचे पंख, भक्षक बन कर रक्षक ही नोच रहे हैं, अल्पसंख्यकों का एक वर्ग असुरक्षा के नाम पर बहुसंख्यकों पर अविश्वास कर रहा है- राजनेताओं की दादुरनिष्ठाओं से सभी हतप्रभ हैं: - संस्कारहीन समाज अपनी दिशाहीन यात्रा के उन मील के पत्थरों पर नाज कर रहा है जिनके नीचे शोषितों की आहें दफन हैं। ऐसे में, भारतीय लोकतन्त्र का चेहरा किस स्वर्णिम आभा से चमक…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on April 18, 2013 at 1:30pm — 6 Comments
मेरे साजन घर ना आये , सूना सूना लागे | |
जब से छोड़ कर गये विदेश , घर में मन ना लागे | |
दिन में कहीं चैन ना आये , रतिया बीते जागे | |
उनके बिना कुछ ना सुहाये , नैनन निद्रा भागे | |
आकर… |
Added by Shyam Narain Verma on April 18, 2013 at 1:11pm — 3 Comments
नीर के बापू ये तुम ठीक नहीं कर रहे हो एक ही तो रोजी रोटी का सहारा है ये बकरी उसे भी बेचना चाहते हो गोमती ने कलुवे के हाथ से रस्सी छुडाते हुए कहा कलुआ गुस्से में लगभग चीखता हुआ बोला बकरी तो फिर आ जायेगी भागवान देश का इतना बड़ा मंत्री एक गरीब के झोंपड़े में रोज थोड़े ही आता है आएगा तो चार आदमियों के खातिरदारी का बंदोबस्त तो करना ही पड़े है न तभी तो हमारा भी कुछ उद्धार हो पायेगा । अगले दिन सुबह से कलुवे के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे मंत्री जी का स्वागत सजी धजी…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 18, 2013 at 12:19pm — 13 Comments
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