भूत को क्यों याद करूँ
क्यों याद करूँ भूत को,
क्या दिया,
क्या सोचा था मेरे बारे में,
क्या रखा था भविष्य के लिए,
क्या अच्छा किया की,भूत को,
मैं याद करूँ ।
देखूंगा अपने भविष्य को,
सोचूंगा अपने भविष्य को,
कर्म करूँगा भविष्य के लिए,
संघर्ष करूँगा जीवन में,
सफल बनूँगा भविष्य में,भूत को क्यों,
मैं याद…
ContinueAdded by akhilesh mishra on April 18, 2013 at 10:30am — 6 Comments
"शुभ प्रभात"
उदय सूर्य हुआ , नभ मंडल में , सब दुनिया मे उजियारा हो ,
मन भाव उठे , संग शब्द सजे , तब मन का दूर अंधियारा हो .
जब गूँज उठे , शंख मंदिर मे , आह्लाद सा…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 18, 2013 at 8:00am — 8 Comments
बेटी के शव को पथराई आँखों से देखते रहे वह.बेटी के सिर पर किसी का हाथ देख चौंक कर नज़रें उठाई तो देखा वह था. लोगों में खुसुर पुसुर शुरू हो गयी कुछ मुठ्ठियाँ भींचने लगीं इसकी यहाँ आने की हिम्मत कैसे हुई. ये देख कर वह कुछ सतर्क हुए आगे बढ़ते लोगों को हाथ के इशारे से रोका और उठ खड़े हुए. वह चुपचाप एक किनारे हो गया.
तभी अचानक उन्हें कुछ याद आया और वह अन्दर कमरे में चले गए. बेटी की मुस्कुराती तस्वीर को देखते दराज़ से वह…
ContinueAdded by Kavita Verma on April 18, 2013 at 12:00am — 15 Comments
प्यासा था मैं कुछ बूंदों का, कब सागर भर पीना चाहा,
बस चाहा था दो पल जीना, कब जीवन भर जीना चाहा,
जग को होगा स्वीकार नहीं, ये अपना मिलन मैं शंकित था,
रिश्तों सा कुछ माँगेगा ये प्रमाण हमसे मैं परिचित था,
पर था मुझको विश्वास कभी छोड़ेगा ये जड़ता अपनी,
लेकिन निकला ये क्रूर बहुत दिखला दी निष्ठुरता अपनी,
तुम क्यों विकल्प हो गयी मेरा तुमको ही क्यों चुनना चाहा,
भावुक मन का मैं बोझ उठा कब तक बोलो चलता रहता,
जो गरल बन गया जीवन रस कब तक बोलो पीता…
ContinueAdded by ajay sharma on April 17, 2013 at 11:30pm — 7 Comments
तोहरे दुआरे मात, खड़े दोउ कर जोरे,
अब तो आप आइके, दरस दिखाइए |
तोहरी शरण आया, तेरा ये कपूत मात,
सेवक को मां अपनी, शरण लगाइए |
इक आस तोरी मात, दूजा को सहाई मोर,
अइसे न आप मोरी, सुधि बिसराइए |…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on April 17, 2013 at 10:30pm — 14 Comments
हे लक्ष्मण तू बड़भागा है श्री राम शरण में रहता है ,
ये भरत अभागा पापी है प्रभु से वियोग जो सहता है !
प्रभु इच्छा से ही संभव है प्रभु सेवा का अवसर मिलना ,
हैं पुण्य प्रताप तेरे लक्ष्मण प्रभु सेवा अमृत फल चखना ,
मेरा उर व्यथित होकर के क्षण क्षण ये मुझसे कहता है !
ये भरत अभागा पापी है प्रभु से…
ContinueAdded by shikha kaushik on April 17, 2013 at 10:00pm — 5 Comments
‘‘गजल‘‘
एक प्रयास के फलस्वरूप प्रस्तुत है।
वज्न......1222 1222 1222 1222
हमारी जिन्दगी का जब सलीका सादगी नम है।
यहां बन्दे कयामत हैं तभी तो बन्दगी कम है।।1
सुना है शाम से पहले बनायें पाक दामन को।
अभी तो आपका *दम बस यहां शर्मिन्दगी गम है।।2......*अहंकार
कहो तो हम वजू करके नमाजी बन करें सजदा।
खुदा को गर गुनाही का बताओ गन्दगी *थम है।।3.....*रूकना
बने हम पन्च वक्ता पीर समझाए मुहम्मद को।
तभी तो…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 17, 2013 at 7:52pm — 9 Comments
कहने से डरते हैं आशिक चाह छुपाए होते हैं
दिल के इक कोने मे अक्सर आह छुपाए होते हैं
दिखते हैं आज़ाद परिंदे पर लौटें दिन ढलते ही
घर औ बच्चों की वो भी परवाह छुपाए होते हैं
हमको है मालूम जमाना छेड़ेगा इन ज़ख़्मों को
प्यारी सी मुस्कान में उनकी थाह छुपाए होते हैं
मजबूरी में जो तुमसे डंडे खाते हैं मूक बने
भूल नहीं वो तूफ़ानी उत्साह छुपाए होते हैं
दर दर भटके खूब युवा थक हार गये चलते चलते
भ्रष्टाचारी मंज़िल की हर राह…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 17, 2013 at 2:59pm — 8 Comments
Added by बसंत नेमा on April 17, 2013 at 2:00pm — 6 Comments
जो जग में सब को ले आती , जननी महिमा अपरम्पार | |
जग में यदि माँ ही ना होती , चल ना पाता ये संसार | |
जलचर थलचर या नभचर हो , माँ सबकी है पालनहार | |
जननी से ही ये दुनिया है , ना तो सब कुछ है बेकार |… |
Added by Shyam Narain Verma on April 17, 2013 at 11:41am — 3 Comments
तेरे सपनो की कोई औकात नहीं
मेरे सपने हैं बहुत बड़े
मुझसे जब यह बात कही उसने
मेरे दिल ने बस एक बात कही......
एक बार वो लड़की बनकर तो देखे
खुद- ब- खुद समझ जायेगा मेरी मज़बूरी को
क्यों…
Added by Sonam Saini on April 17, 2013 at 10:30am — 8 Comments
हास्य - व्यंग
"अंगुली पर नचाती थी"
मेरे एक दोस्त ने, किस्सा कुछ यूँ सुनाया ,
एक मामले में बीमा अफ़सर ने , घोटाला था पाया |
बात, इस हद तक थी बिगड़ी ,
इसमें लगी, उन्हें साजिश कुछ तगड़ी |
मामला था, कि एक महिला की अंगुली कटी ,
अंगुली थी मानो , हीरे से पटी |
अंगुली का हुआ लाखों भुगतान…
ContinueAdded by अशोक कत्याल "अश्क" on April 17, 2013 at 8:00am — 8 Comments
हक़ीकत की सफेद दीवार पर
तजुर्बों की भीड़ ने,
अहसास नाम की
नन्हीं सी कील ठोक दी थी.
मैं,
अरमानो की इस टेढ़ी-मेढ़ी गली से
यूँ ही गुजर रहा था –
अटपटा सा लगा
तो सोचा,
क्यों न काँच से मढ़े हुए
इस “ मैं “ को
उस पर टाँग दूँ –
गली में भटकने वालों का
इसे तोड़ने और जोड़ने में
शायद मन बहल जाए.
न जाने उस तसवीर के
कितने ही टुकड़े हो गये होंगे,
कितने ही असावधानी तमाशबीन
उन टुकड़ों की नुकीली धार से,
लहू-लुहान हुए होंगे !
मुझे तो अब…
Added by sharadindu mukerji on April 17, 2013 at 2:44am — 13 Comments
फरमाबरदार बनूँ औलाद या शौहर वफादार ,
औरत की नज़र में हर मर्द है बेकार .
करता अदा हर फ़र्ज़ हूँ मक़बूलियत के साथ ,
माँ की करूँ सेवा टहल ,बेगम को दे पगार .
मनसबी रखी रहे बाहर मेरे घर से ,
चौखट पे कदम रखते ही इनकी करो मनुहार .
फैयाज़ी मेरे खून में ,फरहत है फैमिली ,
फरमाइशें पूरी करूँ ,ये फिर भी हैं बेजार .
हमको नवाज़ी ख़ुदा ने मकसूम शख्सियत…
Added by shalini kaushik on April 17, 2013 at 1:36am — 6 Comments
मैं इतनी धार्मिक प्रवृत्ति की नहीं हूँ लेकिन नास्तिक भी नहीं हूँ . सारे धार्मिक त्योहार पूरी निष्ठा के साथ मनाती हूँ . मुझे भगवान की आरती सुनना बेहद अच्छा लगता है .
पिछ्ले साल की बात है . दिल्ली से हम लखनऊ रहने आ गये . शारदीय नवरात्र चल रहा था . हम पास के एक मंदिर में माँ दुर्गा की पूजा करने गये . आरती जब शुरू हुई तो आँखें बंद कर मैं पूरी तन्मयता से उसमें लीन हो गयी . आरती समाप्त हो गयी लेकिन मैं आँखें मूँदे ध्यानमग्न रही , तभी पण्डाल में हड़कम्प मच गया . मैं कुछ समझ पाती इससे पहले…
Added by coontee mukerji on April 17, 2013 at 12:14am — 7 Comments
Added by Vindu Babu on April 16, 2013 at 11:24pm — 10 Comments
हम कहीं भी महफ़ूज नहीं है
वो कभी भी, कहीं भी, हमारी हत्या कर सकते हैं
हम इंसान हैं
वो आतंकवादी
पर वो नहीं जानते
कि हम पर चलाई गई हर गोली
उनके धर्म की छाती में जाकर धँसती है
हम फिर पैदा हो जायेगें
सौ मरेंगे तो हजार और पैदा हो जायेंगे
पर उनका धर्म एक बार मर गया
तो हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा
धर्म जान लेने या देने से नहीं
जान बचाने से फैलता है
और ख़ुदा,…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 16, 2013 at 11:08pm — 8 Comments
आप ग़लत थे,
मैं सही था |
आप के कहे को
मान दिया था,
अनुचित आदेश को
मान लिया था |
आप पर विश्वास था,
मिला था आशीर्वाद-
एक अफलित आशीर्वाद |
हे पूज्य!
आप ग़लत थे,
मैं सही था |
आपने तोड़ा था विश्वास,
किंचित, मुझे नही मानना था
संकुचित आदेश,
मुझे नही देना था-
अंगूठा,
दिखला देना था-
अंगूठा,
क्या होता ?
नालायक कहलाता !
अल्प काल के…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2013 at 8:30pm — 23 Comments
1-
लड़ती पीट तालियाँ, हज़ार देती गालियाँ,
अच्छे भले दिमाग का, दही कर देती है |
हर पल तंग करे, उल्टे पुल्टे कर्म करे,
मंगल जैसे ग्रह को, शनि कर देती है |
यदि देख लिया पैसा, पूछे नही कि है कैसा,
झट-पट बटुए को, खाली कर देती है…
Added by ram shiromani pathak on April 16, 2013 at 6:13pm — 6 Comments
Added by नादिर ख़ान on April 16, 2013 at 5:52pm — 5 Comments
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