शक करने का काम
वो शक करता है
हर मिलने-जुलने वालों पर
और अपने गुर्गों द्वारा
करता रहता पड़ताल
कहीं कोई भेदिया तो
बदल कर भेस
घुस आया हो
उसके आभा-मंडल में....
वो शक करता है
अपने दरबारी, सिपहसालारों पर
चमचों-चाटुकारों पर
इसीलिये कुछ को देता रहता है सज़ाएँ
कुछ को पुरस्कार
कुछ का तिरस्कार....
वो शक करता…
ContinueAdded by anwar suhail on April 24, 2013 at 10:04pm — 8 Comments
कुंडलिया छंद
पत्नी लागी दाँव पर, गए युधिष्ठिर हार,
महासमर के वार का, धर्म बना आधार |
धर्म बना आधार, द्रोपदी चीर हरण का,
कृष्ण बने मझधार, तन पर बढ़ते चीर का
दुशासन मढ़े…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 24, 2013 at 10:00pm — 16 Comments
कैसा समाज // कुशवाहा//
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जनम लेत बालिका जननी न सुहात है
माम सुन चाहत है मात नही भात है
कृष् काय बदन लिये तन पर नहि गात है
चौराहे अन्न सडत कैसा सुप्रभात है
वैभव विहीन वो जनम काली रात है
कली न खिली अभी भंवरे मडरात हैं
खग गगन उड़न चहे बाजों का राज है
सखि संग खेलन गयी संझा की बात है
मैला आंचल हुआ लुटी सगरी रात है
दोषी भला ये क्यों अपने ही भ्रात हैं
संस्कार विहीन ये अपराध सम्राट…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 24, 2013 at 4:25pm — 14 Comments
| छोड़ पाप मन का , सत पथ पर चल , लफडा करना , अब छोडो | |
| तज काम क्रोध को , छोड़ लोभ मद , हरी भजन में , मन जोड़ो | |
| लोग शिक्षा पायें , ज्ञान कमायें , प्रेम बढायें , हर जन में | |
| जहाँ लोग देखें , खुश हो जायें , बस ऐसे बन , हर मन… |
Added by Shyam Narain Verma on April 24, 2013 at 3:25pm — 4 Comments
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 24, 2013 at 10:00am — 8 Comments
‘‘गजल‘‘
एक प्रयास के फलस्वरूप प्रस्तुत है।
वज्न......1222 1222 1222 1222
कुसुम को तोड़कर किसने, हसीनों को रिझाया है।
रूहानी जानकर उसने, मकानों को सजाया है।।1
जहां में और भी किस्से, सुनाया नाम पाया है।
चुराकर रात का काजल, सुनयनों को लगाया है।।2
चला है शाम से नश्तर, सितम भी खूब ढाया है।
वतन को छोड़ आफत में, बेगानों को छिपाया है।।3
यहां कातिल वहां मंजिल, बहानों से बुलाया है।
खुदा को भूल आया वो, सकीनों को रूलाया…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 24, 2013 at 9:32am — 30 Comments
लगभग आधी सदी से भोजपुरी बोली - भाषा का परचम राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर कामयाबी के साथ फहराने वाले लोक कवि पंडित हरि राम द्विवेदी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए साहित्य अकादमी ने प्रतिष्ठित 'भाषा पुरस्कार' प्रदान करने की घोषणा की है ।…
Added by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 9:30am — 5 Comments
फिर तुम्हारी याद में
इक पीर की माला बनायी ...
रूठना फिर मनाना
इक रीत है
हाँ हमारे बीच
अपनी प्रीत है
इसी पूजा में रहे
हम मग्न
तो आवाज आयी
फिर तुम्हारी याद में ...
एक अद्भुत
अलौकिक संगीत है
हाँ तुम्हारी याद
मेरी मीत है
ध्यान जो तेरा धरूँ
तो आँसुओं ने
झिर लगायी
फिर तुम्हारी याद में ....
योगेश्वर 'राग'
Added by योगेश्वर 'राग' on April 24, 2013 at 4:44am — 14 Comments
छोटी छोटी बातों पर
अनायास ही अनचाहे
मन मुटाव हो जाता है
दुराव हो जाता है
दूरी बढ़ जाती है
हम तिलमिला जाते हैं
मौन हो जाते हैं
अहम भाग जाता है …
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 24, 2013 at 12:09am — 12 Comments
छंद झूलना
(२६ मात्रा, ७,७,७,५ पर यति , चार पद , अंत गुरु लघु )
गुरु ज्ञान दो, उत्थान दो, वंदन करो स्वीकार
अनुभव प्रवण, उज्ज्वल वचन, हे ईश दो आधार
तज काग तन, मन हंस बन, अनिरुद्ध ले विस्तार
प्रभु के शरण, जीवन- मरण, पाता सहज उद्धार.....
Added by Dr.Prachi Singh on April 23, 2013 at 11:00pm — 35 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 23, 2013 at 10:00pm — 36 Comments
इंसान की फ़ितरत
मुझे M B C (मॉरिशस ब्रॉड्कास्टिंग कॉर्पोरेशन) में स्पीकर पोस्ट के लिये एक साक्षात्कार देना था . उस दिन तेज़ बारिश हो रही थी . मैं इंटरव्यू देकर बाहर खड़ी , बारिश के रुकने की प्रतीक्षा करने लगी . पानी था कि रुकने का नाम नहीं ले रहा था . एक तो जुलाई का महीना उस पर क्यूपीप की सरदी . ठंड से मेरे दाँत बजने लगे थे . मेरे पास ढंग का स्वेटर भी नहीं था जो साथ लेती . शाम के पाँच बज गये थे और अंधेरा भी होने लगा था. मैं चिंतित होने लगी थी अगर बस छूट जाएगी तो मैं क्या करूँगी ? इसी सोच…
Added by coontee mukerji on April 23, 2013 at 9:27pm — 4 Comments
Added by manoj shukla on April 23, 2013 at 9:00pm — 13 Comments
महानगर के सबसे शानदार इलाके की सबसे अच्छी कोठियों में से एक में ब्रह्मराक्षस रहता है। वो स्वयं को दुनिया का सबसे बड़ा विद्वान समझता है और चाहता है कि उसकी विद्वत्ता के चर्चे चारों दिशाओं में हों। समय समय पर ज्ञान के प्यासे लोग उसके पास आते रहते हैं। वो फौरन उनको अपना शिष्य बना लेता है। फिर उनके कानों में फुसफुसाकर गुरुमंत्र देता है। जैसे ही शिष्य इस गुरुमंत्र का उच्चारण करता है वो कुत्ता बन जाता है। इसके बाद ब्रह्मराक्षस अपनी तमाम पोथियाँ उसके सामने बाँचता है। तत्पश्चात ब्रह्मराक्षस उसके गले…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 23, 2013 at 7:44pm — 12 Comments
| बहते अश्कों ने दिल दुखाया है | |
| गम की गली में कोई आया है | |
| गमगीन चेहरे की क्या कहिये , |
| किसी ने हँसते को रुलाया है | |
| खिला फूल मुरझाया है अब तो ,… |
Added by Shyam Narain Verma on April 23, 2013 at 5:52pm — 4 Comments
मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?

(तस्वीर-गूगल इमेजिस से साभार)
मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?…
ContinueAdded by Usha Taneja on April 23, 2013 at 5:30pm — 9 Comments
बस आस तुम्हारी बाकी है
इस आंख में आंसू बाकी है
जब जब झरनों सी तरूणाई
आ आकर फिर लौटी है
तुम बन करके शीत चुभन
याद तुम्हारी लौटी है
मीत मिले दिन…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on April 23, 2013 at 5:14pm — 19 Comments
१-अँधेरा
जिधर देखो उधर अँधेरा ही अँधेरा
तुम नजर उठाओ तो सही
गाँव ,शहर ,या घर में भी
काली रातें, घोर अन्धेरा
और कहीं
कुछ दिखता है क्या ?
बहुत अंधकार दिख रहा है ना
क्या कोई दीपक जल रहा है
तो उसे जलने दो
२-बूढ़ा बाप-
बेजान कमरे में !
मेरा दम घुटने लगा है
यहाँ से नहीं निकाल सकते तो
कम से कम मार ही डालो मुझे
३-दर्द
न दिखने वाले दर्द से दब गया हूँ
इसलिए रो रहा हूँ की
थोड़ा…
Added by ram shiromani pathak on April 23, 2013 at 2:46pm — 27 Comments
रामनवमी के सुअवसर पर मुझे आगरा -मथुरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर यमुना किनारे स्थित सूरकुटी के नेत्रहीन विद्यालय के नेत्रहीनों के साथ कुछ समय बिताने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।यह क्षेत्र सूर-सरोवर (कीठम-झील) के समीप हैऔर महाकवि सूरदास की कर्मस्थली गऊघाट पर अवस्थित है।यहीं सूर-श्याम मंदिर भी है,जहाँ सूरदास जी श्यामसुंदर की भक्ति में डूबे रहते थे।इसके समीप ही पाँच सौ वर्ष प्राचीन वह कुआँ भी है,जिसके विषय में यह किवदंती प्रचलित है कि एक बार जन्मांध सूरदास जी इस कूप में गिर गए थे,तब भगवान श्रीकृष्ण ने…
ContinueAdded by Savitri Rathore on April 23, 2013 at 1:57pm — 12 Comments
Added by Kedia Chhirag on April 23, 2013 at 1:30pm — 7 Comments
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