मन मंगल मन मीत है, मन मारूत मन मीन!
मन मारत मन जीत है, मन मान मन मलीन!!1
पानी पियास हरि कहें, तुरतहि तन में वारि!
तोय भुलावत रोग बढे़, पावत पय उध्दारि!!2
हरि हरि हरिनाम रसना,हर हर भव जस जान!
हरि हर हार जात विधना,हरि नारद अस मान!!3
जपत निरन्तर राम राम, तन मन में सिय राम!
अहम को जय राम कहें, विनय भजे श्री राम!!4
रस रसे रस चाहना, रस रस कर रस जाय!
रस रस कर रस बांटना, रस रस मन हरषाय!!5
हरि अनन्त हरि संत है,…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 15, 2013 at 5:00am — 3 Comments
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 14, 2013 at 11:28pm — 12 Comments
गणात्मक “मनहरण घनाक्षरी “
(रगण जगण)x2 +रगण+लघु, (रगण जगण)x2 +रगण
(चार चरण प्रति चरण ३१ वर्ण १६,१५ पर यति)
आन बान शान ध्यान, में रखे उठो जवान
मान देश का घटे न, स्वाभिमान लाइए
कर्मशील धीर वीर, सत्य मार्ग में रुके न
काम क्रोध मोह त्याग, धर्म को बढाइये
भूल लोक-लाज धर्म, जो हुआ युवा अचेत
रीत प्रीत शंख फूंक, नींद से जगाइए
लाज नार की लुटे न, देवियाँ यही महान
नारियाँ पुनीत पूज्य, देश में बचाइए
संदीप पटेल…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on March 14, 2013 at 10:46pm — 1 Comment
ये फिजाएं खोलती हैं राज गहरे कई
इस कली में बंद हैं नादान भौंरे कई
हम तो आशिक हैं हमारा क्या बहल जाएंगे
आपके दामन पे हैं ये दाग गहरे कई
देर तक खामोश सी रोती रही जिंदगी
छूटते हैं जो यहां…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on March 14, 2013 at 10:00pm — 6 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 14, 2013 at 8:55pm — 1 Comment
अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
उनकी प्रतीक्षा में थक गए नैन,
अधरों से मेरे फूटते नहीं है बैन।
कटती नहीं मुझसे विरह की रैन,
आता नहीं मेरे मन को कहीं चैन।
उनके बिना होता नहीं कोई काम -काज।
अकेले क्यों आये हो तुम ऋतुराज,
क्यों नहीं साथ लाये मेरे प्रिय को आज?
बिना उनके फीका सौन्दर्य तुम्हारा,
कोयल के गीतों ने भी उन्हें पुकारा।
बिना प्रिय के अधूरा श्रृंगार हमारा,
काम -बाणों ने बेध दिया तन-मन सारा।
तुमसे ये…
Added by Savitri Rathore on March 14, 2013 at 8:05pm — 5 Comments
मैं अर्जुन भौतिक अनूसारा। तिरगुण पुट अखण्ड लाचारा।।
नाथ हृदय अति दीर्घ संदेहू। नश्वर देहि आपहु धरेहू ।।
तुम प्रभु सर्व समर्थ सनाथा। अष्ट योग-चैबिस तत्व गाथा।।
त्रिअवस्था अखण्डहि बृन्दा। होइ कोउ तुम्हारा गोविंदा ।।
हम भीरू कल्मष अनुरागी । मेरे ईष्ट कुटुम्ब अभागी ।।
हम गुरू पितु मातु बंधु के हंता।केहि विधि सुफल राज के संता।।
आपहु भौतिक रूप आचारू। गुरू पितु मात बंधु व्यवहारू।।
कस होइ हित बधे कुटुम्बा। क्षत्रिय नाम विलास अचम्भा।।
आपहु अंश-भिन्नांश न जानें ।…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 14, 2013 at 7:16pm — 2 Comments
आयो होली को त्यौहार
रंग सतरंगी लेकर आई एक छैलछबिली नार,
आ के पास कर गई मेरे रंग बिरंगे गाल ।
कि आयो होली को त्यौहार्, कि आयो होली को त्यौहार् ॥.…
ContinueAdded by बसंत नेमा on March 14, 2013 at 2:00pm — 8 Comments
झूठ की गलियों में सच तक का सफ़र मेरा भी है
है ज़रा मुश्किल मगर रब राहबर मेरा भी है
बेबफा तुझसे बिछड़कर हाले दिल अब क्या कहें
जो उधर है हाल तेरा वो इधर मेरा भी है
मुंतज़िर होना नहीं खलता है हमको अब सनम
वक़्त का पाबंद तुझ सा मुंतजर मेरा भी है
दूध पीने की खबर पर यूँ पुजारी कह पड़े
संग में रब है मगर कुछ तो हुनर मेरा भी है
टूट कर बिखरा हुआ इक आइना इतरा रहा
शहरे बुत में हो रही हलचल असर मेरा भी…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 14, 2013 at 1:13pm — 7 Comments
राष्ट्र् पिता परमात्मा, परम सनेही जान!
विश्व सकल परिवार है, अन्तरमन लें ठान!!
भाषा तुलसी दास सी, भाव हो शशी सूर !
देश का सम्मान बढे़, संवाद निरमल नूर!!
राष्ट्र् मेरा भारत मा, कमल तिरंगा शेर !
मयूरा नाचत दिल मा, रहा चक्र् को फेर!!
अच्छा संस्कारी देश, भारत जिसका नाम!
सदियों से यह पल रहा,मिला हड़प्पा शान!!
के’पी’सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 14, 2013 at 12:38pm — 3 Comments
नारी का मन
तुम समझ सकोगे क्या ? ...
कि मेरी झुकी समर्पित पलकों के पीछे
सदियों से स्वरहीन
मेरी मुरझाई आस्था आज…
ContinueAdded by vijay nikore on March 14, 2013 at 12:30pm — 22 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 14, 2013 at 12:26pm — 4 Comments
शख़्स जब वो इधर से गुजरा है
एक पत्थर जरूर पिघला है।
दिल मेरा बार-बार धडका है,
क्यूँ मुझे कोई डर सा रहता है।
मेरा महबूब मेरा इतना है,
ज़िन्दगी भर की कोई आशा है।
चाँदनी आज और बढ गई है,…
Added by सूबे सिंह सुजान on March 14, 2013 at 7:00am — 11 Comments
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झाँसी की रानी रहॊगी प्राण लॆकर ही मेरॆ,
मौनी बाँध बैठी हॊ बॊल न उचारती हॊ ॥
बनाय खाय सिगड़ी बुझाय बिस्तर लगा,
औंधी पड़ी खाट पर तुम डकारती हॊ ॥
सात फॆरॆ जॊ लॆ लियॆ तुम्हॆं धॊबी मिल गया,
कपड़ॆ दिन मॆं सात जॊड़ी उतारती हॊ ॥
बताती रहती हॊ धौंस माई बाप की मुझॆ,
चमचॆ सॆ बॆलन सॆ झाड़ू सॆ मारती हॊ ॥
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सखी तरकीब तूनॆ नहीं है बताई मुझॆ,
प्रॆम-सौंदर्य कॊ कैसॆ तुम निखारती हॊ ॥
आतॆ हैं पिया पीकर…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 14, 2013 at 3:00am — 3 Comments
राहत के दो दिन दे रब्बा,
कुछ अलग से पल छिन दे रब्बा |
दर्द उदासी कितनी बाकी,
आज मुझे तू गिन दे रब्बा |
नाचे थिरके दिल मेरा भी,
ताक धिना धिन-धिन दे रब्बा |
करदे पूरी हर हसरत जो,…
ContinueAdded by shyamskha on March 14, 2013 at 2:30am — 10 Comments
Added by Deepika Mandal on March 13, 2013 at 11:30pm — 10 Comments
भ्रष्टाचार जड़ विकट, माया-मोह-गठजांेड़।
कहे सुने बढ़ जात है, अहं-विकार-मदलोभ।।
पंडित वेद कुरान पाठ, करि सब हुए मसान।
नेता-भ्रष्टाचार-आतंक, सब बनगै श्रीमान।।
भ्रष्टाचार बन जगदगुरु, लूटे देश समूल ।
रामदेव-अन्ना हजारे, लिए हाथ मा तूल।।
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जनता निरीह गाय-भैंस, लठैत है सरकार।
दूध दुहन को वोट बैंक, फिर पीछे मक्कार।।
नेता सब ज्रागत भये, सोवत संसद बीच ।
जनता जस जागरण करे, मारे झोंटा खींच।।
बंदर बांट-रेवड़ी बांट, बांट जो जोहे…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 11:17pm — 7 Comments
धीरे धीरे शाम उतर आयी
धरती पर
मेरा इंतजार अभी भी बरकरार है
कि कब तेरा दीदार हो
और मेरी सुब्ह हो
तेरा जज्ब ए अमजद
या चाहत का असर
ओढ़ता बिछाता हूं…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 11:15pm — 5 Comments
जग मान जरा भव कालहि!
’जग’ सागर कै बुल्ला ज्यों, तनिक छुवे मिट जाता है!
अहम ईर्षा लोभ क्षोभ जो, फॅसत निकल नहि पाता है!!
काम-’मान’ घास-पूस सो, यह चिनगी पाय दहकाता है!
मन नहि माने ’जरा’ सुनाये, तब बुध्दि योग उलझाता है!!
गृहस्थ ’भव’ स्वः विदेह जानो, राम नाम गुण गाता है!
केवल इस साधना भक्ति में, सद्गुरू ही पता बताता है!!
मित्र कुटुम्ब ’कालहि’ समान, छिन-छिन भ्रमहि कपट कहिहै!
सत्यम ज्ञान विराग लुटावहिं, जगमा न जरा भव का लहिहै!
सत्यम/मौलिकएवं…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 10:58pm — 1 Comment
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 13, 2013 at 10:51pm — 6 Comments
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