For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,119)

फागुन मन कंगाल सखी (राजेश कु0 झा)

बनिक भए

रंगरेज मेरे

बिछुआ, पायल

बेहाल सखी

फन काढ़

समीरन लाल चले

अंतर धधके सौ ज्‍वालमुखी

गठ जोड़ नयन

स्‍वादे आहट

कनखी जी का

जंजाल सखी

इत राग महावर

झाईं पड़े

उत फागुन है उत्‍ताल सखी

मन के झूमर

चुप बैठ गए

चूते अमिया

दुरकाल सखी

भ्रू-चाप चुने

महुआ नागर

मुसकै भदवा बैताल सखी

रस रस गलती

चलती चरखी

हर आस भई

पातालमुखी

अरदास…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on March 12, 2013 at 1:52pm — 11 Comments

मत्तगयंद सवैया(एक प्रयास )

दूर करैं सब कष्ट महा प्रभु ,जाप करो शिव शंकर नामा ! 

जो नर ध्यान धरै नित शंकर ,ते नर पावत शंकर धामा !!

ध्यान लगाय भजो नित शंकर ,लालच मोह सबै तजि कामा !

जो भ्रमता भव बंधन में तब,पावत ना वह जीव विरामा !!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"…

Continue

Added by ram shiromani pathak on March 12, 2013 at 12:31pm — 8 Comments

वो वीराना

अँधेरे में डूबकर

सन्नाटे से बतियाता

वो वीराना

समय से दौड़ में पिछड़ा

वह बेबस, कर्महीन खंड है…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on March 12, 2013 at 12:04pm — 18 Comments

प्रेम की अभिव्यक्ति- - - ।

 

प्रेम नाम है-- अहसास का,

अहसास जो करे -

कर सकता है,अभिव्यक्त वही।

घर आँगन में प्यारी सी,  

कलियों की खुशबु से महक

सास का…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 12, 2013 at 11:30am — 28 Comments

--छन्द --

--छन्द --


तन जरत, मन बरत, लगत सर, टप-टप टपकत चलत रकत धर।
हरत न भव-भय मन इरष कर, हर-हर बरषत झरत छपर घर।।
तन क्षरत मन कस न ठगत नर, जल घट भर-भर भरत नगर सर।
तन-मन-धन सब धरन कंत घर,हस-हस मरकर सरग चलत नर।।4
सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाषित रचना

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 12, 2013 at 10:40am — 7 Comments

दोहा --:ःबम-बम भोलेःः--

दोहा --:ःबम-बम भोलेःः--


तन मन भय रगड़ भसम, सब गण करत बखान!
कण कण सत रज तम रमत,समरथ सकल इशान!!1

चरण कमल रज लख करत,शत शत नमन महेश!
भजत भजन हर हर भवम, भय तज मरम गणेश!!2

सगर-तगड़-तरवर-तरन, हर जन धरत परान!
अलख झलक नर मन समझ,पल क्षण बनत महान!!3

जनत झरत लट पट उड़़त, हलचल अवघड़ जान!
तमस शमन भव भय हरत, सत मन बरगद शान!!4

सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित रचना

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 12, 2013 at 10:30am — 6 Comments

करो कुछ नवनिर्माण

(मौलिक और अप्रकाशित)



अरुणोदय से हुआ

नील गगन लोहित सा

गिरीश्रृगों के मध्य से

ललाट उठा रहा

संदेश दे रहा

जनमानस को

उठो जागो

आलस त्यागो

करो कुछ नवीन

गत दिवस के अनुभव

अपने मानस में पिरोकर

भूलों को सुधारो

अर्द्धकार्य पूर्ण करो

बनो संकल्पवान

अर्द्धविक्षिप्त से

अपूर्ण मत बनो

पूर्ण बनकर

पूर्ण कार्य करो

भरते जैसे नयी उमंग

पक्षी हृदय में

अरुणोदय वेला

भरो निजमानस में

हे मानव!

तुम भी… Continue

Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 12, 2013 at 9:00am — 10 Comments

नारी (घनाक्षरी)

नारियों के सम्मान में,मिल अभियान करें,
लाज आज देवियों का,देश में बचाइये।
प्रेम की प्रतीक नारी,जीवन सरीक नारी,
माँ-बहन रूप नारी,सकल बचाइये॥
नारियां जो नहीं रहीं,नर भी बचेंगे नहीं,
प्रकृति और पुरुष,रूप को बचाइये।
दुर्गा-भवानी पूजे,घर में बहू को फूँकें,
बेटी-भ्रूण कोख मारें,सृष्टि को बचाइये॥

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 12, 2013 at 7:58am — 5 Comments

ग़ज़ल - जिससे सब घबरा रहे हैं ...- वीनस

हज़रात,

एक और ताज़ा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले कर रहा हूँ, लुत्फ़ लें .....

-

-

जो ये जानूं, मुख़्तसर हक आप पर मेरा भी है |

तब तो समझूं, मुन्तज़िर हूँ, मुन्तज़र मेरा भी है |



जिससे सब घबरा रहे हैं वो ही डर मेरा भी है |…

Continue

Added by वीनस केसरी on March 12, 2013 at 3:30am — 8 Comments

पत्थरों के शहर में शीशे का घर मेरा भी है

पत्थरों के शहर में शीशे का घर मेरा भी है।

खौफ़ में साये में जीने का हुनर मेरा भी है॥

क़त्ल, दहशत, बम धमाके, हैं दरिंदे हर तरफ,

वहशतों के दौर…

Continue

Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 11, 2013 at 10:30pm — 14 Comments

याद तेरी

ये बहारें ये फिजा सौगात तेरी आ गयी है

चांद ने घूंघट उतारा बात तेरी आ गयी है

 

याद आई, तू न आया, क्या गिला करना किसी से

रात भर आंसू बहाएं बात तेरी आ गयी है

 

इन घटाओं ने न जाने कौन सा जादू किया जो…

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 11, 2013 at 10:18pm — 11 Comments

कलियुग मंथन

कलियुग मंथन

कलिकाल अकाल बढ़ा जग मा। अस मात विक्राल हलाहल सा।।

जन जीव अजीव समीर दुःखी । जगती तल अम्बर ताल बसी।।

सब देव अदेव गंधर्ब डरे । ब्रहमा - विशनू - महदेव कहे ।।

अब तो बस एक उपाय करें। गुरू नाम जपें सब राम रटे ।।

जग मा रस गंध सुगन्ध बहे । भजनादि संकीर्तन गूॅज रहे ।।

मन -मान समान धरे उर मा। सतसंग उमंग अनन्य रस मा।।

कह गीत सुनीति कही सुनहीं। पर मान बढ़ाहि बुझाइ सही ।।

इतना कहिके प्रभु जोरि हॅसें । कलि काल सुमीत मिले जिनसे।।

चित शान्ति विचार उठा नभ…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 11, 2013 at 9:56pm — No Comments

यह नारा कमजोर था, नारा नारीखोर-

मौलिक/अप्रकाशित

नारा की नाराजगी, जगी आज की भोर ।

यह नारा कमजोर था, नारा नारीखोर ।

नारा नारीखोर, लगे सड़कों…

Continue

Added by रविकर on March 11, 2013 at 9:04pm — 4 Comments

"गर्मी "

(1)तपता तन
सूरज की किरणें
लाचार जन

(2)धूप का घर
तरुवर की छाया
ठंडी बयार

(3)सभी बेकल
अनुभव करते
उष्ण कम्बल

(4)संध्या हो जाये
रजनी आगमन
सभी मगन

(५) उड़ती जाती
बंद मुठ्ठी में कैद
भाप बनती

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on March 11, 2013 at 8:45pm — 8 Comments

आत्म साक्षात्कार

       इस सृष्टि के प्रारम्भ से ही मानव ह्रदय में अपने अस्तित्व को लेकर अनेक प्रश्न उठते रहे हैं। 'मैं कौन हूँ' 'इस धरती पर मेरे आगमन का क्या औचित्य है' ' वह कौन है जो इस सम्पूर्ण सृष्टि को नियंत्रित करता है'…

Continue

Added by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on March 11, 2013 at 8:30pm — 4 Comments

'सुखद छांव'

मैं श्रमित

जिन्दगी की जद्दोजहद से व्यथित

चली जा रही थी

अज्ञात गन्तव्य की ओर

प्रेममय संवाद सुनकर रुकी

सघन छांव ने दिया ठौर

मतवाली लतिका

तरु के उर पर करती बिहार

गद गद था तरु

जो लतिका बनी गले का हार

तूफां हो या भानु-ताप

थामे थे इक-दूजे का हाथ

मैं 'भाग्यवान ज्यादा',था विवाद का मसला

सुनकर हृदय मेरा मचला और बोला-

मैं धन्य तुम दोनों से कहीं अधिक हूं

शीतल छांव का भाजक एक पथिक हूं

त्याग समर्पण प्रीति के प्राण हैं

चैन… Continue

Added by Vindu Babu on March 11, 2013 at 6:27pm — 9 Comments

दुनिया है रंगों का मेला (चौपाई गीत)

आदरणीय गुरुजनवृंद सादर नमन!यथा सम्भव प्रयास के बाद में ओ.बी.ओ महोत्सव में मैं अपनी उपस्थिति नहीं हो सका,जिसका मुझे हार्दिक कष्ट है।बंगलौर से एक सेमिनार के बाद अभी घर पहुँच रहा हूँ।हालांकि अब तो आयोजन में शामिल नहीं हो सकता किन्तु उसी पृष्टभूमि में एक चौपाई गीत प्रस्तुत कर रहा हूं-

*****************************

दुनिया है रंगों का मेला।

कितना उजला कितना मैला॥



जीवन ने बहु रंग दिखाया।

बचपन अरुण रंग मन भाया॥

यौवन का वह चटकीलापन।

अल्हड़ मस्ती… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 11, 2013 at 6:17pm — 10 Comments

रंगों की दुनियां

ओ बी ओ महोत्सव २९ - विषय - रंग पर यह कुछ लिख डाला था पर सुबह देखा  कि वह तो सिर्फ १० तारीख तक ही के लिए था जबकि आज तो ११ तारीख है| अब सोचा क्यूँ ना उस विषय की इस पोस्ट को यहाँ ओ बी ओ के ब्लॉग में ही डाला जाए,  तो अब उस आड़ी तिरछी रचना को अपने पन्ने पर रख रही हूँ ...



रंगों की दुनियाँ

इस बीच

मैंने पाया है…

Continue

Added by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on March 11, 2013 at 4:30pm — 12 Comments

छंद और कविता (कुंडलिया)

रचें छंद में काव्य



छंदों में ही बात हो,छंदों में लें सांस।

छंद बद्ध कविता रचें,नित्य करें अभ्यास॥

नित्य करें अभ्यास,शिल्प तब सधता जाये।

लेकिन भाव प्रधान,नहीं इसको बिसरायें॥

अंलकार,रस,छंद,और गुण हो शब्दों में।

वेद मंत्र की शक्ति,निहित तब हो छंदो में॥



कविता को मत ढूढ़िये



कविता तो मिल जायगी,यदि हो कवि की दृष्टि।

जिसका जितना पात्र हो,भर पाता जल वृष्टि॥

भर पाता जलवृष्टि,ठीक कविता ऐसी है।

मन में उठी तरंग,और सरिता जैसी… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 11, 2013 at 3:56pm — 8 Comments

आगंतुक

       

 

    (निराश को आशाप्रद करती रचना)

     

 

         आगंतुक

                                        
मन के द्वंद्वात्मक द्वार पर
दिन-प्रतिदिन   दस्तक   देती
ठक-ठक  की वही  एक  आवाज़,
पर दरवाज़े पर खड़ा हर बार
आगंतुक   कोई   और…
Continue

Added by vijay nikore on March 11, 2013 at 12:00pm — 24 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service