दारोगा बाबू का स्थानांतरण शहर से दूर एक छोटे थाने में कर दिया गया था । काफी शिकायतें आयीं थी, कि बगैर घूस लिए काम ही नहीं करते थे । नया क्षेत्र बहुत ही शांत था। थाने में कोई केस नहीं । सभी सिपाही, हवलदार, दिन भर मानों समय काटते । जैसे तैसे एक महिना निकल गया, 'बोहनी’ तक नसीब नहीं हुई थी ।
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 13, 2013 at 3:00pm — 35 Comments
सब कुछ अपने पर सहती है,
तूफान उड़ा ले जाते मिटटी,
सीना फाड़ के नदी बहती है !
सूर्यदेव को यूँ देखो तो,
हर रोज आग उगलता है,
चाँद की शीतल छाया से भी,
हिमखंड धरा पर पिघलता है !
ऋतुयें आकर जख्म कुदेरती,
घटायें अपना रंग…
ContinueAdded by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on February 13, 2013 at 12:30pm — 11 Comments
आज मैं जिस परिस्थिति में हूँ वहां पर खुद को एक दोषी के रूप में देख रहा हूँ ! मेरे पेट में दर्द बढ़ रहा है ! हस्पताल वाले मुझे सांत्वना दे रहे हैं कि आप चिंता न करिए अभी थोड़ी देर में ही आपका ऑपरेशन हो जायेगा और आप सही सलामत हो जायेंगे ! मैं उनको कह रहा हूँ की मुझे ऑपरेशन से बहुत डर लग रहा है ! तभी एक नर्स ने मुझे बताया कि डरने की कोई बात नहीं है आपका ऑपरेशन निशा शर्मा करेंगी जो की जानी - मानी डॉक्टर हैं ! उनके आज तक सभी ऑपरेशन सफल हुए हैं ! ये नाम सुनकर ही मेरे होश उद्द गए और मैं अपने अतीत…
ContinueAdded by Parveen Malik on February 13, 2013 at 12:00pm — 21 Comments
सन्नाटे के भूत मेरे घर आने लगते हैं
छोड़ मुझे वो जब जब मैके जाने लगते हैं
उनके गुस्सा होते ही घर के सारे बर्तन
मुझको ही दोषी कहकर चिल्लाने लगते हैं
उनको देख रसोई के सब डिब्बे जादू से
अंदर की सारी बातें बतलाने लगते हैं
ये किस भाषा में चौका, बेलन, चूल्हा, कूकर
उनको छूते ही उनसे बतियाने लगते हैं
जिसकी खातिर खुद को मिटा चुकीं हैं, वो ‘सज्जन’
प्रेम रहित जीवन कहकर पछताने लगते…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 13, 2013 at 11:59am — 28 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 13, 2013 at 8:35am — 24 Comments
हर आहट पे सांस थमी है आ भी जाओ ना॥
सूनी दिल की आज गली है आ भी जाओ ना॥
अरमानों के गुलशन में बस तेरा चर्चा है,
हरसू तेरी बात चली है आ भी जाओ ना॥
पूनम की इस रात में तेरी याद बहुत आती है,
तारों की बारात सजी है आ भी जाओ ना॥…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on February 13, 2013 at 1:30am — 20 Comments
पथ मेरे ये अंधेरों में घिरने लगे…
ContinueAdded by Pushyamitra Upadhyay on February 13, 2013 at 12:30am — 13 Comments
त्रिभंगी सलिला:
ऋतुराज मनोहर...
संजीव 'सलिल'
*
ऋतुराज मनोहर, प्रीत धरोहर, प्रकृति हँसी, बहु पुष्प खिले.
पंछी मिल झूमे, नभ को चूमे, कलरव कर भुज भेंट मिले..
लहरों से लहरें, मिलकर सिहरें, बिसरा शिकवे भुला गिले.
पंकज लख भँवरे, सजकर सँवरे, संयम के दृढ़ किले हिले..
*
ऋतुराज मनोहर, स्नेह सरोवर, कुसुम कली मकरंदमयी.
बौराये बौरा, निरखें गौरा, सर्प-सर्पिणी, प्रीत नयी..
सुरसरि सम पावन, जन मन भावन, बासंती नव कथा जयी.
दस दिशा तरंगित, भू-नभ…
Added by sanjiv verma 'salil' on February 12, 2013 at 8:30pm — 12 Comments
इस मलिन बस्ती से,
दूर जाना चाहता हूँ !
सब स्वार्थ से घिरे है ,
थोड़ा आराम चाहता हूँ !
ऐसा नहीं कि मै कमज़ोर हूँ ,
इनसे नहीं लड़ सकता !
अपनत्व दिखाते है फिर भी ,
चलते हैं चाल कुटिलता…
Added by ram shiromani pathak on February 12, 2013 at 7:00pm — 6 Comments
उर्वशी की बाहर पुकार हो रही थी। वह शीशे के आगे खड़ी अपना चेहरा संवारती -निहारती कुछ सोच में थी। तभी फिर से उर्वशीईइ .....! नाम की पुकार ने उसे चौंका दिया।
उर्वशी उसका असली नाम तो नहीं था पर क्या नाम था उसका असल में , वह भी नहीं जानती !
अप्सराओं की तरह बेहद सुंदर रूप ने उसका नाम उर्वशी रखवा दिया और भूख -गरीबी और मजबूरी ने उसे स्टेज -डांसर बना दिया। वह छोटे - बड़े समारोह या विवाह समारोह में डांस कर के परिवार का भरण -पोषण करती है अब , आज-कल।
गन्दी , कामुक , लपलपाती नज़रों के…
ContinueAdded by upasna siag on February 12, 2013 at 5:24pm — 19 Comments
चमक रही
सूरज की तरह
पीली सरसों
...............
बिखर गई
खुशिया सब ओर
आया बसंत
................
लाल गुलाबी
रंग बिरंगे फूल
लाया बसंत
.................
बगिया मेरी
महक उठी आज
आया बसंत
..............
नमन तुझे
दो मुझे वरदान
माता सरस्वती
मौलिक और अप्रकाशित रचना
Added by Rekha Joshi on February 12, 2013 at 4:43pm — 9 Comments
घर की मुर्गी या दाल
देख पडोसी की बीबी, मेरी तबियत भडकी,
मिली नजर उससे तो, मेरी आंख फडकी,
कई दिनो तक रहा, यही सिलसिला…
ContinueAdded by बसंत नेमा on February 12, 2013 at 4:00pm — 6 Comments
Added by Abhinav Arun on February 12, 2013 at 3:00pm — 16 Comments
सॉहब गान (जन हित मे जारी)
सर आप महान है
हम आपकी संतान है
आप हमारे राजा राम
हम आपके हनुमान है
सर आप महान है
आपके अधीनस्थ है यही अभिमान है
खुफिया है आपके, आपके ही कान है
आपकी खुराक का हमे पूरा घ्यान है
आप हमारे सेनापति हम आपके जवान है
सर आप महान है
आपके के कारण कार्यालय का नाम है
आपकी कार्यशैली का सब करते गुणगान है
बड़े बड़ों नेताओं से आपकी…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on February 12, 2013 at 12:30pm — 9 Comments
ये रिश्तों की दुनिया है बड़ी ही निराली
प्यार और विश्वास से खिलती है ये क्यारी
त्याग और समर्पण मांगे ये दुनिया हमारी
खुशियों में लगती है ये दुनिया जन्नत हमारी
गम के सायों में हौसला देती है ये दुनिया हमारी
ये रिश्तों की दुनिया है बड़ी ही निराली…
Added by Parveen Malik on February 12, 2013 at 11:00am — 3 Comments
चंद द्विपदियाँ;
संजीव 'सलिल'
*
जब तक था दूर कोई इसे जानता न था.
तुमको छुआ तो लोहे से सोना हुआ 'सलिल'.
*
वीरानगी का क्या रहा आलम न पूछिए.
दिल ले लिया तुमने तभी आबाद यह हुआ..
*
जाता है कहाँ रास्ता? कैसे बताऊँ मैं??
मुझ से कई गए न तनिक रास्ता हिला..
*
बस में नहीं दिल के, कि बस के फिर निकल सके.
परबस न जो हुए तो तुम्हीं आ निकाल दो..
*
जो दिल जला है उसके दिल से दिल मिला 'सलिल'
कुछ आग अपने दिल में लगा- जग उजार दे.. ..…
Added by sanjiv verma 'salil' on February 12, 2013 at 11:00am — 6 Comments
पीले पीले वेश में ,आया आज बसंत
परिवर्तन की गोद में ,जा बैठा हेमंत
जा बैठा हेमंत ,खेत में सरसों फूली
महक उठा ऋतुकंत,प्रेयसी झूला झूली
रसिक भ्रमर को भाय,मनोहर वदन सजीले
कह ऋतुराज बसंत ,अमिय रस पीले पीले
*******************************************
Added by rajesh kumari on February 12, 2013 at 10:30am — 16 Comments
दोस्तों बहार के इस हसीन प्रथम सप्ताह पे पेशेखिदमत है इक ग़ज़ल
जवाँ दिलो में प्यार के, हसीन पल बहार के
दिलों में इक खुमार के, हसीन पल बहार के
नयी नयी हयात औ, खिलि खिली सी कायनात
हैं रौनक-ए-बज़ार के, हसीन पल बहार के
नज़र नज़र में है खुदा, महक रही है ये फजा
हैं नूर औ निखार के, हसीन पल बहार के
खुदी से एक जंग है , दिलों में इक उमंग है
हैं मौज में शुमार के , हसीन पल बहार के
कली कली है खिल रही, नज़र नज़र से मिल…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 11, 2013 at 6:42pm — 4 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 11, 2013 at 12:30pm — 3 Comments
आगामी बसंत पंचमी पर 'सरस्वती पूजन' के आयोजन का कार्यक्रम है, उसीके उपलक्ष्य में इस वंदना की रचना किया हूँ ! सभी आदरणीयों से सादर निवेदन है कि कृपया इसके गुणों, दोषों से अवगत कराएं तथा आवश्यक प्रतीत होने पर उपयुक्त परिवर्तन भी सुझाएँ ! धन्यवाद !
(मौलिक व अप्रकाशित)…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on February 10, 2013 at 2:05pm — 10 Comments
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