कंधों पर तू ढो रहा ,क्यों कागज का भार|
आरक्षण तुझको मिले,पढ़ना है बेकार||-------(व्यंग्य)
मन कागज पर जब चले ,होकर कलम अधीर|
शब्द-शब्द मिलते गले ,बह जाती है पीर||
भावों-शब्दों में चले,जब आपस में द्वंद|
मन के कागज पर तभी,रचता कोई छंद||
टूटे रिश्ते जोड़ दे ,सुन, नन्हीं सी जान|
कोप सुनामी मोड़ दे ,बालक की मुस्कान||
फूलों से साबित करें ,कैसी है ये रीत|
कागज का दिल दे रहे ,कैसे समझें प्रीत||
रिश्ते कागज पर बने ,कागज पर…
Added by rajesh kumari on February 16, 2013 at 6:30pm — 33 Comments
ग़म की बस्ती में पड़ा हूँ ,
इस दर्द से उबार दो !
सच्चा ना सही ,
पर झूठा ही प्यार दो !
नफ़रत के इस रेगिस्तान में ,
प्यार की एक फुहार दो!
हमेशा के लिए ना सही,
पल भर के लिए उधार दो!
ग़मों को जो काट सके,
एक ऐसा औज़ार दो!
रस्ते से जो ना भटकाए,
एक ऐसा मददगार दो!
काट दूँ पूरी ज़िन्दगी,
पल ऐसा यादगार दो!
हो हमेशा खुशियाँ ही खुशियाँ,
एक ऐसा त्यौहार दो !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on February 16, 2013 at 3:24pm — 6 Comments
Added by Tushar Raj Rastogi on February 16, 2013 at 1:00pm — 8 Comments
ज़िन्दगी इतने गम क्यूँ देती है
गम के संग आंसू भी देती है
आंसुओं संग दर्द भी देती है
दर्द के संग तनहाइयाँ भी देती है
तनहाइयों संग फिर रुस्वाइयाँ भी देती है ……
फिर भी हर किसी को जीने की ही चाह होगी
हर पल हर किसी को जीवन की…
ContinueAdded by Parveen Malik on February 16, 2013 at 1:00pm — 12 Comments
"बसंत"
मैंने देखा है
आज दीवार के पीछे से
*ढूंक रहा था
कहीं कोई देख न ले
उसको ऐसे नग्न
इस बार प्रेम की
तेज हवाएं
उतार के ले गयीं
उसके पीले वस्त्र
और
बदले में दे गयीं थी
कुछ ताज़ा गुलाब
जिनकी पंखुड़ी पंखुड़ी …
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 16, 2013 at 12:00pm — 12 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 15, 2013 at 10:38pm — 28 Comments
मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
हृदयाश्रुओं का अर्घ्य दे
हर भाव को सामर्थ्य दे
विह्वल हृदय में गूँजती
मृदुनाद सी सुरधीत है....
मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
सूर्यास्त नें चूमा उदय
दे हस्त…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on February 15, 2013 at 8:00pm — 35 Comments
||ग़ज़ल|
हमसफ़र तुमसा प्यारा मिले न मिले !
साथ मुझको तुम्हारा मिले न मिले !
इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो !
ऐसा मौक़ा दुबारा मिले न मिले !
जीले खुशिओं की पतवार है हाँथ में…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on February 15, 2013 at 7:00pm — 13 Comments
निशा की आँखे दर्द कर रही थी, कई दिनों से जलन हो रही थी बस हर बार खुद का ख्याल न रखने की आदत और हर बार अपना ही इलाज टाल जाना उसकी आदतों में शुमार हो गया था । सुनील आज जबरदस्ती उसको दृष्टि क्लिनिक ले ही गये .. . सामने कतार लगी थी । इतने लोग अपनी आँखे टेस्ट करने आये हैं, सोच कर निशा को हैरानी हुई । अपना नंबर आने पर भीतर गयी और डाक्टर की बताई जगह पर चुपचाप बैठ गयी .. आँखे टेस्ट करते हुए डाक्टर की आँखों में खिंच आई चिंता की लकीरों को निशा ने…
ContinueAdded by Neelima Sharma Nivia on February 15, 2013 at 6:30pm — 9 Comments
सभी आदरणीय सदस्यों को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं
"माँ शारदा स्तुति"
दोहा-
विद्या दाती शारदे, दो विद्या का दान
मोह लोभ का नाश हो , मिटे दंभ अभिमान
चौपाई-
वागीश्वरि माँ शारद प्यारी| पूजें तुमको सब नर नारी ।।
माँ सब तुमसे वाणी पाते| देव दनुज नर सारे ध्याते ।।
श्वेत वर्ण सम चन्द्र सुशोभित| चार भुजा मुख मंडल…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 15, 2013 at 4:00pm — 8 Comments
करुणा निधान माया तेरी.
करूं गुणगान किस मुख से
कैसे करूँ बखान हस्ती तेरी...
मै नादान, माया तेरी
समझ न पाई छाया तेरी
कण कण तू, ज़र्रे ज़र्रे तू
है पत्ते पत्ते झांकी तेरी...
भवरा भी तू,और फूल भी
जीवन बगिया महकी मेरी
कर नूर तेरे की बारिश से
तर…
ContinueAdded by Aarti Sharma on February 15, 2013 at 2:00pm — 14 Comments
माँ सरस्वती के चरणों में अर्पित आज का पुष्प
कल की पयस्विनी पय को भटक रही,
ममता की मारी माँ मय को गटक रही।
आँचल में दूध नहीं पानी आँख का गया,
सहरी सैलाब में सील वो सटक रही।
खिलने दिया नहीं वो बीज ही मसल दिया,
बागवां खामोश सब कलियाँ चटक रही।
दूध में ही पी के दर्द भर लिया कलेजे में,
कदर कोई नहीं बात ये खटक रही।
पूजनीया देवों की अब लूट नीया हो गई,
बच्चों की जमात भी कितना…
Added by mrs manjari pandey on February 15, 2013 at 11:00am — 12 Comments
पीत वसन से सजी धरती सखि
सोन से भाव में तोलि रही सब
सोंधी सी खुश्बू हिया अब उमड़ति
प्रीति के चन्दन लपेटि रही अंग
कुसुमाकर बनि काम कुसुम तन
सिहरन बनि झकझोरि रहे हैं
नील गगन रक्तिम बदरी मुख …
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 14, 2013 at 11:56pm — 17 Comments
ऋतु बसंत का आगमन,खुशियों का उन्माद,
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 14, 2013 at 10:26pm — 14 Comments
पत्थर दिलों के पिघलने तो दो
ज़रा होश अपने संभलने तो दो
सारा चमन तो जलाया है तुमने
कोई फूल अब थोडा खिलने तो दो
हर शाख पर अब तो उल्लू है बैठा
कहीं इन परिंदों को मिलने तो दो
अंधेरों से डरते सभी हैं यहाँ पर
जरा तुम ये सूरज निकलने तो दो
ये आँखें ही कल की हकीकत रचेंगी
मगर आज ख्वाबों को पलने तो दो
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Added by Pushyamitra Upadhyay on February 14, 2013 at 6:50pm — 7 Comments
सूनेपन का रंग ...
पतझड़ के सूखे पत्तों -सा पीला,
मेले में खो गए भयभीत
बालक की नब्ज़-सा नीला,
या अमावस के गहन
अंधकार-सा गंभीर और काला,
सूनेपन का रंग
कैसा होता है?
घोर आतंक-सा वातावरण,
मौसम पर मौसम बेचैन,
जँगली हाँफ़ती हवाएँ
दानव-सी हँसी हँसती,
हर मास एक और पन्ना पलट
करता है गए मास का
अंतिम संस्कार।
पर सूनापन पड़ा रहता है,
वहीं का वहीं,
पुराने…
Added by vijay nikore on February 14, 2013 at 4:00pm — 18 Comments
प्रेम प्रणय का आज क्यूँ ,हो पाता इज़हार |
प्रीत दिवस के बाद क्या ,खो जाता है प्यार ?
सच्चे मन से कीजिये ,सच्चे दिल का प्यार |
निश्छल दिल ही दीजिये,जब करना इज़हार||
पश्चिम का तो चढ़ रहा ,प्रेम दिवस उन्माद |
अपने पर्वों के लिए ,पाल रहे अवसाद||
युवक युवतियों के लिए ,दिन है बहुत विशेष |
खुली मुहब्बत का मिले ,हर दिल को संदेश||
पश्चिम के त्यौहार का ,डंका बजता आज |
प्रेम दिवस के सामने ,गुमसुम है…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 14, 2013 at 11:00am — 24 Comments
भोली जनता को नेता जी मूर्ख बनाना बंद करो।
जनता जाग गई अब दिल्ली धौंस दिखाना बंद करो॥
जन्तर मन्तर से जनता का आजादी अभियान शुरू।
झूठे वादे तानाशाही गया जमाना बंद करो॥
हम सब के मत से ही नेता तुम इतने मतवाले हो।
है तेरी कुछ औकात नहीं रौब दिखाना बंद करो॥
चूस रहे हो खून हमारा अब हमको अहसास हुआ।
शहद लगे विषधर डंकों को पीठ चुभाना बंद करो॥
हम सबके श्रम के पैसों से पाल रहे हो तुम गुण्डे।
परदे के पीछे से छुपकर तीर चलाना बंद…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 14, 2013 at 5:00am — 19 Comments
पत्थरों के शहर मे दिल ही टूटते थे अभी,
भरम भी टूट गया अब के, अच्छा ही हुआ..
दोस्ती लफ्ज़ से नफ़रत थी हमको पहले भी,
रहा सहा यकीं भी उठ गया अच्छा ही हुआ..
खुली थी आँखें फिर भी नींद आ गयी जाने,
तुमने झकझोर के जगा दिया अच्छा ही हुआ..
ज़मीन होती क़दम तले तो भला गिरते क्यों,
हवा मे उड़ने का अंजाम मिला अच्छा ही हुआ..
ख्वाब था या के हादसा था जो गुज़र ही गया,
यकीं से अपने यकीं उठ गया अच्छा ही हुआ..
यूँ भी मुर्दे पे सौ मन मिट्टी थी पहले से,
एक मन और पड़ गयी…
Added by Sarita Sinha on February 13, 2013 at 11:52pm — 16 Comments
क्यों मिल गयी संतुष्टि
उन्मुक्त उड़ान भरने की
जो रौंध देते हो पग में
उसे रोते , कराहते
फिर भी मूर्त बन
सहन करना मज़बूरी है
क्या कोई सह पाता है रौंदा जाना ???
वो हवा जो गिरा देती है
टहनियों से उन पत्तियों को
जो बिखर जाती हैं यहाँ वहाँ
और तुम्हारे द्वारा रौंधा जाना
स्वीकार नहीं उन्हें
तकलीफ होती है
क्या खुश होता है कोई
रौंधे जाने से ??
शायद नहीं
बस सहती हैं और
वो तल्लीनता…
ContinueAdded by deepti sharma on February 13, 2013 at 9:26pm — 15 Comments
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