साथियों, मैं एक शोध पत्र तैयार कर रही हूँ जो आगामी अखिल भारतीय साहित्यकला मंच द्वारा काठमाण्डु (नैपाल) में आयोजित (अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समारोह - 8 जून 2013 से 11 जून, 2013 तक) में पढ़ा जायेगा, इस निमित ओ बी ओ के समस्त साहित्यकारों से विनम्र निवेदन के साथ कहना है कि यदि आप सभी के माध्यम से मुझे विदेशों में रहने वाले भारतीय साहित्यकारों की सूची, उनके द्वारा सृजित साहित्य, व उनके द्वारा सम्पादित पत्र पत्रिकाओं की सूची उपलब्ध हो सकती हो तो कृपया उपलब्ध करायें, यदि आप…
ContinueAdded by asha pandey ojha on March 13, 2013 at 10:30pm — 4 Comments
टूथ-पेस्ट की ट्यूब
और एक दिन ऐसा भी आता है
खूब खूब दबाने से निकलता
चने के दाने बराबर
इत्ता सा टूथ-पेस्ट...
कि बने झाग थोडा सा
मुंह की बदबू दूर हो जाए
मुहलत मिले इतनी कि
शाम खदान से लौटते वक्त
ज़रूर खरीद लाना है
एक नया टूथ-पेस्ट...
अगली सुबह
हड़बड़ी में
वाश बेसिन के सामने
ब्रुश उठाते ही हाथ में
दिख जाता वही
पिचका
चिपटा
तुडा-मुडा टूथपेस्ट
मुंह…
ContinueAdded by anwar suhail on March 13, 2013 at 9:31pm — 4 Comments
बस यूँ ही.....काश ये हलके होते.....
बचपन के सपने
खुली आँखों के सपने
खुला आकाश
आज़ाद पंछी
बहुत से उड़ गए
कुछ सफ़र पूरा कर
वापस पलकों पर आ गए
और अब...
बंद आँखों में नींद कंहा
नींद कभी आई तो
सपने…
ContinueAdded by pawan amba on March 13, 2013 at 7:43pm — 11 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2013 at 7:30pm — 11 Comments
पाधारो म्हारा देश, पलक पावणा बिछा देंगे
तुम जवानों के सिर काट लो, हम चुप नहीं बैठेंगे,कहकर सो जायेंगे
आतंक का नंगा नाच दिखाओ ,भेदिये जुटा देंगे
कोई हमारे सब्र कि परीक्षा ना ले, और हम एक बार फिर फेल हो जायेंगे
खूब रेल जलाओ ,अपहरण करो ,आतंकी रिहा करा देंगे
शोर शराबा किया तो, सम्प्रदाइकता का आरोप लगा ,ध्यान बटा देंगे…
Added by Dr Dilip Mittal on March 13, 2013 at 6:30pm — 9 Comments
चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें (2) की द्वितीय कड़ी में सब अतिथि blogers का स्वागत है. आप के पर्संसात्मक comments का धन्यवाद यह एक लम्बी काव्या कथा है कृपया बने रहें. कोशिश करूंगा आप को निराश न करूं. यदि रचना बोर करने लगे तो कह देना. मैं दुसरे टॉपिक्स में शिफ्ट हो जाऊंगा.
Dr. Swaran J Omcawr
ज्ञानी
दिग्भ्रमित!…
Added by Dr. Swaran J. Omcawr on March 13, 2013 at 5:00pm — 10 Comments
====== ग़ज़ल========
वो दौर और था जिसमे था आबरू पानी
नहीं उबाल रहा अब के है लहू पानी
नदी में फेंक दिए हमने आज कुछ कंकर
दिखा रहा था मेरा अक्स हू-ब-हू पानी
नया है दौर हुई रस्में यहाँ भाप मगर
उड़ा न…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 13, 2013 at 3:00pm — 8 Comments
सरसों तू क्यों फूली-फूली है, सरसो कि मधुमास रसी!
आमन के बिरवा बौराये गये,फगुआ बयार पगलाये रही।।
पीली-पीली सरसों हरषों ज्यों फगुआ बयार हरहराये रही।
धरती के सूनी आॅचल में बसन्त बनो मुस्कराये रही।।
भौंरे गुंजन कर गाये रहे कलियाॅ-तरूणी इठलाये रही।
पवन मलय मद गंध पिेये,बहकाय तू मस्त झूम रही।।
कोयलिया कूक फिरै वन मा,विरहणियाॅ कन्तन खोज रही।
बगिया फूलन की बेल चढ़ी, पुष्पवाण जियन को भेद रही।।
के पी सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 10:17am — 4 Comments
चलो अच्छा हुआ ये भ्रम भी टुटा मेरा
वो हमे प्यार करते थे ये झूठ निकला
चलो अच्छा हुआ धोखा जो खा ही लिया
प्यार एतबार से होता है ये भी झूठ निकला
चलो अच्छा हुआ जो गम ही मेरे दामन में आया
कोशिश हमेशा कामयाब होती है ये भी झूठ निकला…
Added by Sonam Saini on March 13, 2013 at 10:08am — 14 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2013 at 8:49am — 23 Comments
दोहा
तुलसी तुलसी सब कहे, दास न कहता कोए!
राम चरित मानस पढ़े, दोनहु परगट होए !!
तुलसी के जस राम हैं, सूर कहें घनशाम !!
राम रामायण दिनकर, सूर सागर सुभान!!
मोल बड़ा अनमोल है, राम चरित के बोल!
घट घट में बस जात है, दया.दान रस घोल!!
मंगल मेरी कामना, जड़. चेतन चित लाय!
मन की ऐसी भावना, मंगल दोष न जाय !!
मंगल मूरति दास की, चित बैठाये राम !
क्षण ही संकट.दोस मिटे, सुमरे जस हनुमान!!
बन बड़वानल उभरे ,…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 7:30am — 10 Comments
माथे पर सलवटें;
आसमान पर जैसे
बादल का टुकड़ा थम गया हो;
समुद्र में
लहरें चलते रूक गयीं हों,
कोई ख्याल आकर अटक गया।
…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 7:17am — 18 Comments
रे सजनी तुझ बिन चैन कहाँ !
नगर का शोर छोड़ कर ध्याऊ !
जहाँ बजे शंख और ढोल !!
रे सजनी तुझ बिन चैन कहाँ !
प्यार का घर ममता सब छोडूँ !
फसूं मंदिर और दरगाह !!
रे सजनी तुझ बिन चैन कहाँ !
पाहन पूजूं गिरि पर चढ़ि .चढ़ि !
भूखे रहे दिन और रात !!
रे सजनी तुझ बिन चैन कहाँ !
दर .दर ढ़ूं ढ़ूं नगर .सगर में !
ढ़ूं ढ़ूं वन और रेगिस्तान !!
रे सजनी तुझ बिन चैन कहाँ !
‘सत्यम‘शिव मन में ही निहित है !
छोडो द्वेष और अभिमान !!
रे सजनी…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 6:56am — 4 Comments
ज़िंदगी की राह के किनारे लगी
ऊंचे दरख्तों की झुकी डालें नंगी हैं.
एक बेचैन सन्नाटे को पछाडकर,
मैं, एक खामोश कोलाहल में,
परेशान भटक रहा हूँ.
शायद अकारण ही!
शायद आगे उस मोड़ पर
कोई तूफ़ान मिल जाए;
शायद उन कँटीली झाड़ियों के पीछे
कोई झुरमुट मिल जाए -
पर आह,
मेरे सपनों के गुलमोहर
इन राहों में बिखरे पड़े हैं.
उन्हें कुचल नहीं सकता, बटोर रहा हूँ -
आँसुओं की नमी में पलकर
वे अभी मुरझाए नहीं…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on March 13, 2013 at 3:30am — 9 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 12, 2013 at 10:42pm — 6 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 12, 2013 at 9:03pm — 10 Comments
समीक्षा: उपन्यास ‘पहचान’
जद्दोजहद पहचान पाने की
-जाहिद खान
किसी भी समाज को गर अच्छी तरह से जानना-पहचाना है, तो साहित्य एक बड़ा माध्यम हो सकता है। साहित्य में जिस तरह से समाज की सूक्ष्म विवेचना होती है, वैसी विवेचना समाजशास्त्रीय अध्ययनों में भी मिलना नामुमकिन है। कोई उपन्यास, कहानी या फिर आत्मकथ्य जिस सहजता और सरलता…
ContinueAdded by anwar suhail on March 12, 2013 at 9:00pm — 1 Comment
जय! जय! जय! बजरंग बली!
हे! बजरंगी दया तुम्हारी, सदा राम नाम गुन गाया है!
तेरी ही कृपा से मैंने, प्रभु पाद सरस रस पाया है!! जय.....
तेरे अन्तरमन में ज्यों, सिया राम छवि सुख छाई है!
मन उत्कण्ठा अविकार लिये, मैंने भी अलख जगाई है!! जय.....
कृपा करो हे! पवन पुत्र, फिर वरद तुम्हारा आया है!
तेरी ही कृपा दृष्टि से, यह सम्मान पुनः मिल पाया है!!
जय जय जय बजरंग बली, जय जय जय बजरंग बली!
जय जय जय बजरंग बली, जय जय जय बजरंग बली!!
के’पी’सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 12, 2013 at 6:42pm — 4 Comments
चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें (1)
देश में बहती है जो गंगा वह है क्या?
वह पानी की धारा है या ज्ञान की?
भई दोनों ही तो बह रही हैं साथ साथ, शताब्दियों से!
आज इक्कीसवीं शताब्दि में लेकिन दृष्य कुछ और है.
इस महान् देश की दो महान् धारायें अब शाष्वत नहीं, शुद्ध नहीं, मल रहित नहीं.
धारा में फंसा है ज्ञान या ज्ञान में फंस गई है धारा!
कौन…
Added by Dr. Swaran J. Omcawr on March 12, 2013 at 5:30pm — 14 Comments
फागुन के रंग छंदों के संग
सवैया
गोल कपोल गुलाल लगे तन सोह रही अति सुंदर चोली
केश घने घन से लगते करते अति चंचल नैन ठिठोली
रूप अनूप धरे हँसती कह कोयल सी मन मोहक बोली
रंग फुहार करे मदमस्त लगे तन मादक खेलत होली
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 12, 2013 at 3:30pm — 2 Comments
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