"करमजली"
गुलाबो की अम्मा
बचपन में ही छोड़ गयी थी
बचपन क्या १ दिन की थी
१ दिन की थी तभी
छोड़ गयी थी
इस करमजली को
ममत्व मर कैसे गया
उसकी माँ का…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 31, 2012 at 12:39pm — 1 Comment
माहिया (12,10,12)
(1)
अम्बर पे बदरी है
देखो आ जाओ
तरसे मन गगरी है
(२)
सागर में नाव चली
बिन तेरे कुछ भी
चीजें लगती न भली
(३)
चुनरी पे नौ बूटे
सुन तकते- तकते
कहीं डोरी न टूटे
(४)
सूरज सिन्दूरी ना
मिल न सके कोई
इतनी भी दूरी ना
(५)
मैं माँ घर जाउंगी
पैर पकड़ लेना
वापस नहीं आउंगी
Added by rajesh kumari on July 30, 2012 at 10:00pm — 10 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 30, 2012 at 9:00pm — 4 Comments
"मुझे चाहिए ऐसी ही रौशनी "
लिखता हूँ
जो मन करता है
दिमाग की नशें नहीं खींचता
जोर आजमाइश कर कुछ नहीं निकलता
सिवाए तेल के
अब कोल्हू का बैल तो हूँ नहीं
मोती तो गहराई में होते हैं…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 30, 2012 at 2:00pm — 3 Comments
"स्याही"
पता है तुम्हे
तुम जानती हो
तुम हर्फ़ हर्फ़ की रूह हो
गलत कुछ भी नहीं
सफाह तुम बिन तन्हा है
खाली है, कोरा है
धूल जम चुकी है
डायरी में…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 30, 2012 at 1:08pm — No Comments
ख़ुदाकी जलाई शम्मा तो कबसे रौशन है
कोई है तो खुद अपनी दानाई चिल्मन है
कुछ किताबें, कपड़े, एक तोशक, तकिया
और तेरी फुर्कतसे चरागाँ मेरा नशेमन है
न होता इश्क तो हुस्न की कद्र क्या थी
आशिकों को दीवाना कहना पागलपन है
क्यूँ भला पूछें हम बगलगीरों के मसाइल
अपना-अपना घर अपना-अपना आँगन है
हुए खानाखराब इश्कमें फिरेहैं खानाबदोश
रहलेवें हैं हम जिस शह्रमें जैसा चलन है
मौत किस तरहा मुश्कबूसी…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on July 29, 2012 at 8:30pm — No Comments
जीवन
जीवन
तुम हो
एक अबूझ पहेली,
न जाने फिर भी
क्यों लगता है
तुम्हे बूझ ही लूंगी.
पर जितना तुम्हे
हल करने की
कोशिश करती हूँ,
उतना ही तुम
उलझा देते हो.
थका देते हो.
पर मैंने भी ठाना है;
जितना तुम उलझाओगे ,
उतना तुम्हे
हल करने में;
मुझे आनद आएगा.
और
इसी तरह देखना;
एक दिन
तुम मेरे
हो…
Added by Veena Sethi on July 29, 2012 at 6:35pm — 1 Comment
मैं पैदा ही हुआ हूँ दर्द को जीने के लिए
जैसे लहरें बनींहैं जाँकश सफीनेके लिए
मुझको क्या गिजा चाहिए जीने के लिए
तुम्हारा गम काफी है पूरे महीने के लिए
कुछ तो चाहिए दिलको गम दवा या दारु
इकअदद आब काफी नहींहै पीने के लिए
क्यूँ बढ़ालीहैं हमने अपनी सब ज़रुरीयात
बढ़ीहुई तंख्वाह चाहिए हर महीने के लिए
मैं भटकता हुआ दरिया हूँ समंदर है कहाँ
कोई ठहराव चाहिए तामीरेनगीने के लिए
अपनी…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on July 29, 2012 at 11:50am — 2 Comments
बैंगलोर शहर से चिंतामणि, (जिला चिक्काबल्लापुर) और फिर वहाँ से कोलार तक का कार का सफर. ऊँचे नीचे खेत खलिहानों में तस्वीर सा चस्पां कर्नाटका सूबे का देहाती जीवन, छोटी छोटी पहाडियों के पसेमंज़र साफ़ सुथरे घरों की कतारें, और बीच बीच में आते जाते गाँव कसबे- सब कुछ बहुत ही दिलकश था. ताड़ और नारियल के दरख्त खेतों में अपनी मह्वियत में खड़े थे और नज़र भर भर कर सब्जियत के साये नज़रों में तहलील हो रहे थे. मैं सोच रहा था लोग गाँवों को छोड़ शहरों की ओर क्यूँ जाते हैं. दूर खलिहानों से बहके आती खुनक हवाएं…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on July 29, 2012 at 11:20am — No Comments
"चाय "
आज सुबह उठा तो सोचा चाय बना लूं
पानी लिया
श्याही सा
हर्फ़ हर्फ़
चाय के दाने
तैरने लगे
एहसासों की चीनी डाल
चढ़ा दिया पतीली को…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 29, 2012 at 9:48am — No Comments
Added by Dr.Prachi Singh on July 28, 2012 at 5:30pm — 13 Comments
मानो तो रूह क़ा नाता है जी ये राखी
न मानो कच्चा धागा है जी ये राखी .
जो राखी को दम्भ-आडम्बर मानते हैं ;
उन का मन भी तो अपनाता है ये राखी .
बहना के मन से उपजी हर इक दुआ है ये ;
भाई-बहन से बंधवाता है ये राखी .
सभ्य समाज की नींव के पत्थर नातों का…
ContinueAdded by DEEP ZIRVI on July 27, 2012 at 7:00pm — 1 Comment
प्यार से मुझको, अनमोल नगीना दे दो,
जिंदगी को बस , इक और महीना दे दो,
हम जितना उनको देख मुस्कुराते चले गए,
वो उतना ही दिल कसम से दुखाते चले गए,
हुस्न की फिर से, कुछ अदाएं ढूंढ़ लाया हूँ,
आज अपनी खातिर, सजाएं ढूंढ़ लाया हूँ.....…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 27, 2012 at 4:25pm — 10 Comments
"पल्लू"
मुख
मलीन हो रहा है
तेज नष्ट भ्रष्ट
मुझे छोड़ दिया न
तुमने
गोरी के पल्लू ने
धीरे से कानों में कहा
देखो सब घूर रहे हैं…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 27, 2012 at 3:56pm — 6 Comments
"किताबें "
किताबें
खटखटा रही हैं
दरवाजे दिमाग के
लायी हैं कुछ
सवाल कुछ जबाब
छू रहीं है
दिल को…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 27, 2012 at 3:13pm — 5 Comments
मैं शून्य का उपासक हूँ
मुझे मेले में भी सब अकेले लगते हैं
इसीलिए सबसे मिल के हँस बोल लेता हूँ
न जाने हंगाम के हंगामे में
कब मुझे मेरा इष्ट (खुदा) मिल जाए
मुकम्मल रास्ते इख्तियार करता हूँ
मंजिल तक जाने के लिए…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 27, 2012 at 2:42pm — 4 Comments
दोस्त ....दोस्त वो नहीं रहा,
दिल के मारे, दिल नहीं रहा,
बहता पानी, आँख में नमी,
सागर छूटा, अब नहीं रहा,
धड़कन धीमी, और हो गयी,
काबू खुद पर, जो नहीं रहा,
अब बस तेरा, इंतज़ार है,…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 27, 2012 at 2:04pm — 6 Comments
==========ग़ज़ल==============
दिलो जिगर निसार दूं है गर हसीन आपसा
किसे न चाहिए यहाँ 'प' महजबीन आपसा
बिना मिले बिना सुने दिलो के हाल जान लूं
हुनर कमाल का लिए न दूरबीन आपसा
बदल रहे अजीब रंग बात बात पर गुमा
नहीं दिखा अभी तलक…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 27, 2012 at 1:30pm — 5 Comments
रिहा कर खूबसूरत दिखने की चाह की कैद से मुझे,
ए आईने मेरी सादगी को ज़मानत दे दे।
...................
हम समता करना सीख गए सुख और दुख के हर रंग में,…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on July 27, 2012 at 11:30am — 12 Comments
पञ्च हाइकू
१.
कर ले कर्म
बस यही है धर्म
जीवन मर्म
२.
छाये बहार.
आत्मिक अभिसार
प्यार में धार .
३.
जुड़ें बेतार
जोड़ ले लगातार
दिलों के तार
४.
मन मुस्काए
किस्मत बन जाए
क्यों घबराए
५.
त्याग दे स्वार्थ
स्वीकार परमार्थ
उठ जा पार्थ
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Added by Er. Ambarish Srivastava on July 27, 2012 at 12:30am — 17 Comments
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