Added by Dr.Prachi Singh on July 24, 2012 at 5:52pm — 11 Comments
वर्षा के दो रूप (मदन छंद या रूपमाला पर मेरा पहला प्रयास )
(हर पंक्ति में २४ मात्राएँ ,१४ पर यति अंत में गुरु लघु (पताका) २१२२ ,२१२२ ,२१२२ ,२१ संशोधित मदन छंद )
घनन घन बरसे बदरिया ,झूमती हर डाल|
भीगता आँचल धरा का ,जिंदगी खुश हाल|
प्यास फसलों की बुझी अब, आ गए त्यौहार-
राग मेघ मल्हार सुन-सुन, हृदय झंकृत तार||…
Added by rajesh kumari on July 24, 2012 at 2:00pm — 12 Comments
"ग़ज़ल"
मंजिलों को पा रहा हूँ, दूर खुद से जा रहा हूँ
आइने से रू-ब-रू होकर के धोखा खा रहा हूँ
इश्क हूँ मैं हूँ सनम भी, हू-ब-हू हूँ औ जुदा भी
रूह बनके मैं समाया फिर भी खोजा जा रहा हूँ
दर्द दे ऐ दोस्त मुझको, गमगुसारे यार हूँ मैं
बाँट ले हर दर्द अपना, नज्म मीठी गा रहा हूँ
जिंदगी भर प्यास ले के जी रहा था दीद की मैं
आज मेरा है खुदा वो प्यार उसका पा रहा हूँ
हूँ बड़ा ही भ्रष्ट लोगो, और हूँ मैं…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 24, 2012 at 2:00pm — No Comments
सुबह-सुबह हेलमेट और गुटखे की पान की टपरी पे मुलाकात हो गई.
Added by AVINASH S BAGDE on July 24, 2012 at 1:01pm — 1 Comment
सब धर्मो का इक तीर्थ बनाएं भारत में
आओ ऐसा नव दीप जलाएं भारत में
अब छेड़ प्रेम की तान मिलाएं हाथ चलो
रख याद वतन की आन मिलाएं हाथ चलो
अब आपस का ये द्वेष भुलाएँ भारत में
सब धर्मो का इक तीर्थ बनाएं भारत में
आओ ऐसा नव दीप जलाएं भारत में
गंगा यमुना भी भेद नहीं करती लोगो
है सबकी पावन गोद यही धरती लोगो
ये जाति-पाति का रोग मिटाएं भारत में
सब धर्मो का इक तीर्थ बनाएं भारत में
आओ ऐसा नव…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 24, 2012 at 12:00pm — 3 Comments
हिसाब का सिलसिला
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 24, 2012 at 11:30am — 4 Comments
"गांधी जी के बन्दर"
राहों में चलते जाइए
और चलिए
थोडा और
देखिये
देखिये न
देखा !!!!!!!!!!!!!!!
राम राम !!
ये राम को क्यूँ याद किया…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 24, 2012 at 10:55am — No Comments
मुख मण्डल उसका सतरंगा
सबका भेद करे वह नंगा
आज हि काम का कल बेकार
क्या वह टीवी ? नहीं अखबार
देह है भूरी मुख है लाल
पिछवाड़े से मुँह में डाल
बारिश में हो जाती चीड़ी
क्या वह कीड़ी ? नहिं भाई बीड़ी
रोज़ रात को मुँह में डालूं
चूस चास के पूरा खा लूँ
हाय वो मीठे रस की खान
क्या रसगुल्ला ? नहिं भई पान
गुड़ से ज़्यादा मीठी लागे
उसके पीछे मनवा भागे
नूरी नूरी रौशन रौशन
क्या वह सजनी ? नहीं पड़ोसन …
Added by Albela Khatri on July 24, 2012 at 10:00am — 10 Comments
उगते रिश्ते ,ढलते रिश्ते ;
रुकते रिश्ते चलते रिश्ते .
मन के रिश्ते मन से रिश्ते
तन के रिश्ते तन से रिश्ते
अपने रिश्ते बनते रिश्ते
सपने रिश्ते तनते रिश्ते .
उसके रिश्ते इसके रिश्ते
रिसते रिश्ते ,घिसते रिश्ते .
शासक रिश्ते शासित रिश्ते ,
बेदम रिश्ते ,बा-दम रिश्ते .
रिश्ते नीरज ,नीरस रिश्ते
रिश्ते सुधा कहीं गरल रिश्ते .
आंगन रिश्ते उपवन रिश्ते ,
हैं धरा जलद गगन रिश्ते .
रिश्ते पूनम क़ा चाँद भी हैं ,
तारे नयनाभिराम भी…
Added by DEEP ZIRVI on July 24, 2012 at 6:30am — 2 Comments
Added by Rekha Joshi on July 23, 2012 at 10:48pm — 25 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 23, 2012 at 9:47pm — 5 Comments
चल चंदा उस ओर,
जहां नहाती प्रिया सुन्दरी थामें आंचल कोर ।
स्वच्छ चांदनी छटा दिखाना,
भूलूं यदि तो राह दिखाना।
विस्मृत हो जाये तन सुध तो,
देना तन झकझोर.........................।
मस्त बसंती हवा बहाना,
उसको प्रिय का पता बताना।
हवा तनिक भूले पथ जो,
कर देना उस ओर........................।
देख निशा गहराती जाती,
बुझती लौ घटती रे बाती।
लौ तनिक तेज करना,
भरना सुखद अजोर....................।
सनी नीर…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 23, 2012 at 8:00pm — 19 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 23, 2012 at 7:44pm — 2 Comments
छोड़ देना मत मुझे मेरे खुदा मझधार में.
सर झुकाए हूँ खडा मैं तेरे ही दरबार में.
राह में बिकते खड़े हैं मुल्क के सब रहनुमा,
रोज ही तो देखते हैं चित्र हम अखबार में.
देश की गलियाँ जनाना आबरू की कब्रगाह,
इक इशारा है बहुत क्या क्या कहें…
ContinueAdded by Sanjay Mishra 'Habib' on July 23, 2012 at 7:00pm — 7 Comments
Added by Ashok Kumar Raktale on July 23, 2012 at 2:09pm — 6 Comments
मदन-छंद या रूपमाला
****************************************
है मदन यह छंद इसका, रूपमाला नाम.
पंक्ति प्रति चौबीस मात्रा, गेयता अभिराम.
यति चतुर्दश पंक्ति में हो, शेष दस ही शेष,
अंत गुरु-लघु या पताका, रस रहे अवशेष..
****************************************
चाँदनी का चित्त चंचल, चन्द्रमा चितचोर.
मुग्ध नयनों से निहारे, मन मुदित मनमोर.
ताकता संसार सारा, देख मन में खोट.
पास सावन की घटायें, चल…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on July 23, 2012 at 1:30pm — 18 Comments
झींगुर की रुन झुन
रात्रि में घुंघरू का
मुगालता देती हैं
बदरी की चुनरी चंदा पर
घूंघट का आभास कराती है
नीर भरी छलकती गगरी
सागर का छलावा देती हैं
अल्हड शौख किशोरी
के गुनगुनाने का
भ्रम पैदा करते हैं
बारिश की टिप- टिप
संगीत सुधा बरसाती हैं
दामिनी की चमक
श्याम मेघों की गर्जना
विरहणी के ह्रदय की
चीत्कार बन जाती है
अन्तरिक्ष में सजनी साजन
के मिलन की कल्पनाएँ
मिलकर करती हैं जो…
Added by rajesh kumari on July 23, 2012 at 1:00pm — 8 Comments
इक तरफ सुन्दर, जग-जमाना,
इक तरफ लुटता, मैं खज़ाना,
इक तरफ प्याला, है मदहोश,
इक तरफ लब, मेरे खामोश,
इक तरफ बिजली, हैं बादल,
इक तरफ आशिक, मैं पागल,
इक तरफ सागर, है गहरा,
इक तरफ खाली, मैं ठहरा,…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 23, 2012 at 11:22am — No Comments
Added by Pradeep Bahuguna Darpan on July 23, 2012 at 10:29am — No Comments
वक़्त (कुछ दोहे)
Added by Dr.Prachi Singh on July 23, 2012 at 10:00am — 30 Comments
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