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अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये......

 

कैसे – कैसे मंजर आये प्राणप्रिये

अपने सारे हुये पराये प्राणप्रिये |



सच्चे की किस्मत में तम ही आया है

अब तो झूठा तमगे पाये प्राणप्रिये |



ज्ञान भरे घट जाने कितने दफ्न हुये

अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये |



भूखे - प्यासे हंसों ने दम तोड़ दिया

अब कौआ ही मोती खाये प्राणप्रिये |



यहाँ राग - दीपक की बातें करता था

वहाँ राग – दरबारी गाये प्राणप्रिये |



सोने…

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Added by अरुण कुमार निगम on August 5, 2012 at 10:31am — 12 Comments

हरिगीतिका छंद एक प्रयास.

(चार चरण, १६ + १२ =२८ मात्राएं और अंत में लघु गुरु)

 

हरि जनम हो मन आस  लेकर, भीड़ भई  अपार  है/

हरि भजन गुंजत चहुँ दिसी अरु,भजत सब नर नार हैं//

झांझ बाजै है झन झनक झन , ढोल की  ठपकार  है/

मुरली बाजत  मधुर  शंख  ही,  गुंजाय   दरबार …

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Added by Ashok Kumar Raktale on August 4, 2012 at 10:30pm — 11 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
कुछ कह मुकरियाँ

1.

उस बिन दुनिया ही धुंधलाए 

नयना दुख-दुख नीर बहाए,

है सौगात, नायाब करिश्मा,

ऐ सखि  साजन ? न सखी चश्मा l



2.

नज़र नज़र में ही बतियाए,

देख उसे मन खिल खिल जाए,

सुबह शाम उसको ही अर्पण,

ऐ सखि साजन? न सखी दर्पण l



3.

साथ बिताएँ रैन दोपहरी ,

बातें करता मीठी…
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Added by Dr.Prachi Singh on August 4, 2012 at 6:30pm — 33 Comments

"न जाने भला या बुरा कर रहा है"

न जाने भला या बुरा कर रहा है;

वो चिंगारियों को हवा कर रहा है; (१)



वो मग़रूर है किस कदर क्या बताएं?

हर इक बा-वफ़ा को ख़फ़ा कर रहा है; (२)



नहीं उसको कुछ भी पता माफ़ कर दो,

वो क्या कह रहा है, वो क्या कर रहा है; (३)



वो नादान है बेवजह बेवफ़ा की,

मुहब्बत में दिल को फ़ना कर रहा है; (४)



है जिसने भी देखा ये जलवा तेरा उफ़,

वो बस मरहबा-मरहबा कर रहा है; (५)



भुला दी हैं मैंने वो माज़ी की बातें,

तू अब बेवजह तज़किरा…

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Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 4, 2012 at 5:30pm — 26 Comments

कहानी ( जज़्बातों का जनाज़ा )

कहानी
 
जज़्बातों का जनाज़ा
6 अगस्त 2012 को मेरी प्यारी नानी का चवर्ख कुल्लू हिमाचल में होना निश्चित हुआ था I हम लोग देहली में रहते हैं , दफ्तर के कार्यों की…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 4, 2012 at 4:54pm — 5 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३१

ज़िंदगी क्या है? बचपन गुज़र गया, जवानी बीत गई, ज़ईफ़ी उफ़ुक़ (क्षितिज) पे आ चुकी है. बेफिक्री, नाइल्मी, मासूमी, और मौजोमस्ती के दौर अब रहे नहीं; मआशी (आर्थिक), इज्देवाजी (दाम्पत्य), इन्फिरादी (व्यक्तिगत), कुनबाई (पारिवारिक), और समाजी फिक्रों के तानेबानों में पल पल की राह ढूँढते रहते हैं. हमें किसकी तलाश रहती है, दिल क्यूँ कभी खुश तो कभी रंजोगम (दुःख और दर्द) से माज़ूर (व्यथित) होता है, इक ही सूरत को पहने माहौल कभी क्यूँ दिलकश तो कभी दिल पे गराँ (भारी) लगते हैं?

बच्चे छोटे थे…

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Added by राज़ नवादवी on August 4, 2012 at 2:10pm — No Comments

किसान

किसान,

प्रतीक अथक श्रम के

अतुल्य लगन के ;

प्रमुख स्तंभ

भारतीय अर्थव्यवस्था के,

मिट्टी से सोना उगानेवाले

आज उपेक्षित हैं

परित्यक्त हैं…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 4, 2012 at 10:45am — 12 Comments

हे मनुज! तुम दिया बनो

हे मनुज! तुम दिया बनो
वो दिया...जो जलता है
प्रकाश के लिए, 
नवनिर्माण के लिए,
भटके को राह दिखाने के लिए,
प्रभु की आराधना के लिए,
हे आर्य! आत्मसात कर लो
इसके गुणों को,
अपना लो इसका स्वभाव,
प्रतीक बनो क्रांति के आगमन का,
सूचक हो परिवर्तन का,
मिटा…
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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 3, 2012 at 10:00pm — 12 Comments

मर्यादा

अगर हम उन्हें अपना नहीं मानते 

तो ये रिश्ते बनते कैसे 

हर वक़्त हर पल , हम और तुम 

इश्क की आग में जलते कैसे 

क्यूँ दस्तक देती रोज़ हमारी चौखट पर

क्यूँ चौंकते हम रोज़ तुम्हरी आहट पर 

दर्पण में हर बार तुमहरा चेहरा था 

मन , जल में रह जल बिन सा था 

जब नाम खुदा का लेते थे , 

पर नाम तेरा ही आता था 

हर बार बुझी सी आँखों में…

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Added by Ashish Srivastava on August 3, 2012 at 9:00pm — 4 Comments

एकांत सुहाना लगता है

जिस राह में तुम साथ न हो ,

रास्ता वीराना लगता है

यूँ तो हजारों थे साथ मगर

फिर भी अकेलापन लगता है

जब तन्हाई में तनहा होता हूँ 

यादों की मुंडेर पर बैठकर

यादें चुनने लगता हूँ 

उस बिखरे सन्नाटे में

तुमसे बातें करने लगता हूँ 

जानता हु की तुम मुझसे दूर बहुत

लेकिन अहसास तुम्हारा लगता है

आंसू सूख गए शायद

या किसने रोका होगा

आँखों में सागर मुझको

बंधित…

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Added by yogesh shivhare on August 3, 2012 at 7:30pm — 9 Comments

अँधेरा

अँधेरा 

कदम खुद ही चलते हैं 
अँधेरे के निशा ढूंढ़ने !
रोक न पायें जब खुद को,
हम अँधेरे को क्यों दोष दें !
उजाला हर किसी की ओढ़नी
हम अँधेरे को ही ओढ ले !
उजालों ने थकाया हमें 
निगाहों ने लुटाया हमें !
कदमो ने…
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Added by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on August 3, 2012 at 6:30pm — 5 Comments

"टै" बोलने का इंतजार (लघुकथा)

बच्चे ने पूछा - दादी, आप भगवन को प्यारी कब होंगी ? बूढी दादी बोली-बेटा,भगवान् की पूजा करना ही अपने हाथ में है,बाकी सब भगवान पर है | बच्चे ने फिर पूछा- दादी आप "टै" कब बोंलेगी ? दादी कुछ देर विस्मय से बच्चे को गुहारती रही,फिर सोच कर बोंली- सौरभ बेटे "टै" बोलने से क्या होता है ? चल तू कहता है तो अभी ही बोल लेती हूँ -टै | इस पर सौरभ बोंला - दादी. रात को माँ पापा से कह रहा था कि आप नयी कार कब खरीदोंगे | मम्मी-पापा बात कररहे थे कि दादी के पास बहुत सारा धन है | पर जब वह "टै" बोल जायेगी तब ही…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 3, 2012 at 5:30pm — 13 Comments

कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है

कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥

तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥

 

भले जुड़ जाये समझौते से पहले सा नहीं रहता,

मुहब्बत का अगर इक बार शीशा टूट जाता है॥

 

क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,

सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥

 

कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,

कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥

 

यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,

मगर…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on August 3, 2012 at 5:00pm — 15 Comments

अगर किसी को न भाई हो

कुछ हल्का-फुल्का

इश्क-विश्क का फंडा ,यारा टेंशन वेंशन भूल .

और झमेले लाखों यारा ,रख अपने को cool .

'हिंदी वाले 'फूल' से चेहरे ,दिल्फैंकों को अक्सर .

मान के चलते सोच के चलते , इंग्लिश वाले 'fool '

कलयुग आया ,लड़का लडकी प्रेमिका प्रेमी कम हैं ;

इक दूजे को use ये करते समझ समझ के tool .

खूब निभे गी यारी यारा मेरी तेरी सब की ;

खुद की ego मार दबा दे ,दे न खुद को तूल.

आप को जो इक लाफा…

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Added by DEEP ZIRVI on August 3, 2012 at 2:30pm — 1 Comment

जिन्दा हूँ मुझमे अगर तुम हो

साँसों पे छाई खबर तुम हो,

मेरी आँखों की नज़र तुम हो,

 

हंसा हूँ पाकर साथ तुम्हारा,

खुशियों में होता असर तुम हो,

 

मर जाऊँगा मैं भूल ना जाना,

जिन्दा हूँ मुझमे अगर तुम हो,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on August 3, 2012 at 11:30am — 6 Comments

कबीरा खड़ा बाजार में

 [ एक ]

कठपुतली भी हँस रही, देख मनुज का हाल.

सबसे बड़ा मदारी वो , लिखे जो सबका भाल.

कौन नचाता है किसे, क्या इसका परमान.

सबकी डोर पे पकड़ जिसे, कहते कृपानिधान.

 जिस उर में लालच बसे ,वहाँ कहाँ ईमान .

देय वस्तु पर नेह जिसे , सबसे बड़ा नादान.

जीवन गगरी माटी की , जिसका करम कोंहार .

सरग - नरक येही ठौर है , जिसका जस व्यवहार .

देने वाले ने दिया , एक सूर्य और सोम .

किन्तु मनुज ने बाँट ली , धरती नदियाँ व्योम .

कहत अभागा नियति का , नीयत नियत…

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Added by satish mapatpuri on August 3, 2012 at 1:27am — 6 Comments

समस्त ओबीओ परिवार की ओर से आप सभी को श्रावणी पर्व (रक्षा बंधन) की हार्दिक बधाई !

 

कह-मुकरी

मन-मोहक मृदु रूप में आये.

सजे कलाई अति मन भाये.

नेह-प्रीति की वह है साखी.

क्या सखि कंगन? नहिं सखि राखी!!

 

रूपमाला/मदन छंद

आज वसुधा है खिली ऋतु, पावसी शृंगार. 

थाल बहना बन सजाये, श्रावणी त्यौहार.

बादलों से…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on August 2, 2012 at 2:30pm — 32 Comments


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रक्षा बंधन - स्मृतियाँ



राह तकती है तुम्हारी,

आज यह सूनी कलाई....

स्मृति बस स्मृति ही ,

शेष है सूने नयन में

बिम्ब दिखता है तुम्हारा,

आज मधु मंजुल सुमन में

यूँ लगा कि द्वार खुलते

ही मुझे दोगी दिखाई

राह तकती है तुम्हारी

आज यह सूनी कलाई.........................

आरती की थाल कर में

दीप आशा का जलाये

इस धरा पर कौन है जो

नेह की सरिता लुटाये

श्रावणी वर्षा हृदय में

आज मेरे है समाई

राह तकती है तुम्हारी

आज यह सूनी…

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Added by अरुण कुमार निगम on August 2, 2012 at 1:18pm — 21 Comments

मेरी माँ है सबसे प्यारी

मेरी माँ है सबसे प्यारी 

मोहपाश

दादा-दादी की दुलारी
मेरी माँ है सबसे प्यारी  
है बहुत…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 2, 2012 at 11:00am — 5 Comments

अरे गुलामी छोड़ो यारों हरित-क्रांति कर के कुछ पा लो

अरे गुलामी छोड़ो  यारों 

हरित-क्रांति कर के कुछ पा लो 

--------------------------------------

तुम गरीब हो भूखे प्यासे 

लिए कटोरा घूम रहे 

दो टुकड़ों की खातिर दिल को 

छलनी अपनी करवाते 

इज्जत मान प्रतिष्ठा अपनी 

घूँट -घूँट विष पी जाते 

अरे गुलामी छोड़ो  यारों 

हरित-क्रांति कर के कुछ पा लो 

---------------------------------------

पेट भरे -ना-हुयी पढाई 

'आदिम मानव' जग हुयी हंसाई 

पीछे…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 2, 2012 at 12:00am — 6 Comments

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