फिर सावन का सोमवार है बाबाजी
फिर पूजा है, मन्त्रोच्चार है बाबाजी
आज हमारे जन्म दिवस के मौके पर
नाग पंचमी का त्यौहार है बाबाजी
सुबह सवेरे जल्दी उठ कर स्नान करूँ
घरवाली का ये विचार है बाबाजी
बीवी को वश में करने का मन्तर दो
विनती तुम से बार बार है बाबाजी
वोटर का दुःख उसे दिखाई न देगा
जब तक वो कुर्सी सवार है बाबाजी
उम्मीदों पर बार बार जो वार करे
वही सही उम्मीदवार है बाबाजी
जूतों की…
Added by Albela Khatri on July 23, 2012 at 10:00am — 8 Comments
हिसाब ना माँगा कभी
अपने गम का उनसे
पर हर बात का मेरी वो
मुझसे हिसाब माँगते रहे ।
जिन्दगी की उलझनें थीं
पता नही कम थी या ज्यादा
लिखती रही मैं उन्हें और वो
मुझसे किताब माँगते रहे ।
काश ऐसा होता जो कभी
बीता लम्हा लौट के आता
मैं उनकी चाहत और वो
मुझसे मुलाकात माँगते रहे ।
कुछ सवाल अधूरे रह गये
जो मिल ना सके कभी
मैंने आज भी ढूंढे और वो
मुझसे जवाब माँगते…
ContinueAdded by deepti sharma on July 22, 2012 at 7:39pm — 18 Comments
दांत भींच कर उसे दबाऊं
फिर भी उसको रोक न पाऊं
निकले बाहर लगती फाँसी
क्या सखि खाँसी? नहिं रे हाँसी
कदम-कदम पर उसका पहरा
आँख का…
Added by Albela Khatri on July 22, 2012 at 6:00pm — 16 Comments
प्रीत के उपहार
Added by Dr.Prachi Singh on July 22, 2012 at 12:00pm — 21 Comments
==========नज्म/गीत ==========
हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर
इस दिल को मिले करार, तुम से मिलकर
पल पल भी मुश्किल से कटता है तुम बिन
इक पल भी इक साल सा लगता है तुम बिन
घडी का काँटा रुक रुक चलता है तुम बिन
सूरज चढ़ के देर से…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 22, 2012 at 10:45am — 5 Comments
मेहनत से यदि डर जाओगे बाबाजी
जीवन में क्या कर पाओगे बाबाजी
रोते रोते आये जैसे दुनिया में
वैसे ही तुम घर जाओगे बाबाजी
बाइक पर मोबाइल से मत बात करो…
Added by Albela Khatri on July 22, 2012 at 10:30am — 18 Comments
तशवीशात के अजीमुश्शान महल में जैसे खो गया हूँ. हज़ार रास्ते, मगर कौन सही है, दीवारें जो दिख रहीं हैं वो आँखों का धोखा तो नहीं. दरीचों में समाया मंज़र शायद वहम हो. जगह जगह फिक्रों के फानूस टंगे हैं, अज़ीयतों के जौहर से दरोदीवार आरास्ता हैं. दूर कहीं आँगन में अंदेशों के आबशार से बह रहे हैं, बगीचे खौफ के दरख्तों से गुंजान और उलझनों के टिमटिमाते चरागों से शबिस्ताँ रौशन है. गलियारों में कशीदगी के कालीन बिछे हैं, कफेपा से जिनपे दिल की शोरीदगी के नक्श उभर आए हैं. बैठकखानों में मखफी सायों की मजलिस…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on July 21, 2012 at 8:00pm — 4 Comments
वो कोमल थे, वो कंटीले थे,
आँखें सूखीं थी, हम गीले थे,
रास्ते फूलों के, पथरीले थे,
जख्मी पग, कांटें जहरीले थे,
ढहे पेंड़ों से, पत्ते ढीले थे,
बिखरे हम, कर उसके पीले थे,
नाजुक लब, नयना शर्मीले थे,…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on July 21, 2012 at 5:30pm — 7 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on July 21, 2012 at 1:00pm — 12 Comments
============= गीत =============
मेरी इबादत हो तुम्ही, मेरा हो पूजन, ऐ मेरे सजन
मेरा ये तन औ ये मन, तुमको है अर्पण, ऐ मेरे सजन
सुबहो शाम, रात दिन, याद मुझे आ रहे
वो बिताये पल सुहाने नैनों में समा रहे
खिल रहे नए पुष्प, मन की वाटिका में गा रहे
तुमसे ही चलती हैं साँसे तुमसे है जीवन, ऐ मेरे सजन
मेरी इबादत हो तुम्ही, मेरा हो पूजन, ऐ मेरे सजन
मेरा ये तन औ ये मन, तुमको है अर्पण, ऐ मेरे सजन
छा रहे है मेघ घने आपकी ही प्रीत के…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 21, 2012 at 12:28pm — 8 Comments
नीयत हो यदि साफ़ हमारी बाबाजी
नियति भी तब लगेगी प्यारी बाबाजी
पुस्तक, सी डी और दवायें बेच रहे
सन्त नहीं, वे हैं व्यापारी बाबाजी
कोई किसी का सगा नहीं है दुनिया में…
Added by Albela Khatri on July 21, 2012 at 11:00am — 19 Comments
मुक्तिका "सावन"
मेघों का गर्जन है सावन
बूंदों का अर्पण है सावन
हरियाली चहुँ ओर बिखेरे
कितना मन रंजन है सावन
दीनों की छत से टप टप स्वर
दुःख का अनुरंजन है सावन
शीतल बूंद गिरे जब तन पर
अतिशय तप भंजन है सावन
छेड़े धुन मल्हार पवन जब
मीठा स्वर गुंजन है सावन
"दीप" सजे सब मंदिर देखो
भोले का पूजन है सावन
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 21, 2012 at 9:00am — 3 Comments
कोई भी हो नहीं देखी गई सरकार सदमे में।
मगर जनता है जो देखी गयी हर बार सदमे में॥
मुहब्बत करने वाले हैं ज़माने के निशाने पर,
है फतवा खाप पंचायत का सुनकर प्यार सदमे में॥…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 20, 2012 at 9:54pm — 11 Comments
(नोट: अपने हिंदुस्तान में ही हिंदी को हर कदम पर अपमानित होना पड़ रहा है ये हिंदुस्तान के अस्तित्व पर ये सवालिया निशान लगता है)
मैं अपने ही घर में कैद हूँ
मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए
रोती बिलखती सर पटकती रही मैं
अब मेरी आवाज को एक आवाज चाहिए
जी रही हूँ कड़वे घूँट पीकर
न मेरी राह में कांटे उगाइये
मैं अपने ही घर में कैद हूँ
मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए
पराये मेरे दुःख पे आंसू बहा रहे हैं
मेरे जख्मों पे फिर भी मरहम लगा…
Added by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on July 20, 2012 at 5:00pm — 5 Comments
पानी था, या हवा था,
वो किस दिल, की दुआ था,
ठंडा मौसम, कड़ी लू
वो गम था, या दवा था,
लगता था, वो खुदा पर,
किस्मत था, या जुआ था,
बेवजह…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on July 20, 2012 at 11:37am — 19 Comments
सुर है लेकिन ताल नहीं है बाबाजी
पॉकेट है पर माल नहीं है बाबाजी
क्योंकर कोई चूमे हमको सावन में
अपने चिकने गाल नहीं है बाबाजी
दर्पण से उनको नफ़रत हो जाती है…
Added by Albela Khatri on July 20, 2012 at 12:00am — 32 Comments
सत्य जानकर नहीं मानता, उहापोह में मन जी लेता
अमिय चाहता नहीं मिले तो, खूं के आँसू ही पी लेता..
अलकापुरी न जा पायेगा, मेघदूत यह ज्ञात किन्तु नित-
भेजे पाती अमर प्रेम की, उफ़ न करे लब भी सी लेता..
सुधियों के दर्पण में देखा चाह चदरिया बिछी धुली है...
आसों की…
Added by sanjiv verma 'salil' on July 19, 2012 at 9:00pm — 8 Comments
लहू से लतपथ, उम्मीदों का कोना है,
कि मैं घडी भर हूँ जागा, उम्र भर सोना है,
मिला लुटा हर लम्हा, जीवन का तिनका सा,
लबों पे रख कर लफ़्ज़ों को, जी भर रोना है,
छुड़ा के दामन अब वो दोस्त, अपना बदला,
मिला के आँखों का गम, सारा आलम धोना है,…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 19, 2012 at 6:15pm — 10 Comments
सौ साल बाद एक पैसे का सिक्का गढ्ढे से बाहर निकला। एक ऊँची इमारत बनाने के लिए खुदाई चल रही थी। एक मजदूर के फावड़े से टकराकर मिट्टी के साथ उछला और जाकर सड़क के किनारे गिरा। वर्षों बाद उसने खुली हवा में साँस ली और अपने आस पास नजर घुमाई तो उसे कई निर्माणाधीन इमारतें दिखाई पड़ीं। थोड़ी देर खुली हवा में साँस लेने के बाद धीरे धीरे उसकी चेतना लौटने लगी। उसे याद आने लगा कि कैसे वो एक सेठ की थैली से निकलकर गढ्ढे में गिर गया था। सेठ ने उसे निकालने की कोशिश की मगर अंत में थक हारकर सेठ ने उसे गढ्ढे में ही…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 19, 2012 at 5:56pm — 18 Comments
बातों ने ली ऐसी करवट
रिश्तों में आ गई सिलवट
बदला ज़रा - जरा मैं जब
सूरत से था हटा घूँघट
पानी बहा नदी का तब
बखेरी जे वो सुखा कर लट,
कलेजा निकाल कर लाया,
वो रख गयी जुबां पर हट,
आँचल हवा से उड़ता है,
जीवन न अब रहा है कट
Added by अरुन 'अनन्त' on July 19, 2012 at 5:30pm — 3 Comments
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