Added by Dr. Vijai Shanker on March 8, 2015 at 12:56pm — 15 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 6, 2015 at 1:09pm — 16 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 5, 2015 at 11:09am — 15 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 3, 2015 at 10:45am — 20 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 1, 2015 at 11:00am — 21 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 25, 2015 at 10:55am — 24 Comments
सुनते आये हैं, सारी नज़ाकत
कायनात को हम नारियों से मिली है ,
बीर बहूटी को मखमल ,
गुलाब को लाली, हमीं से मिली है ,
कायनात खुद कहीं-कहीं बेइंतहा सख्त है ,
चट्टान है, आंधी है , धूल है , तूफ़ान है,
फिर भी गुलाब हैं, तितलियाँ हैं, चाँद है,
चाँदनी है, ठंडी हवाएँ हैं , नदियों में चढ़ाव है.
ये कठोर कायनात की ही करामात है ,
हमारी मासूमियत पर रोज़ ये ग्रहण लगाता कौन है.
हमारी मासूमियत हमसे चुराता कौन है,
बचपन से हमको हरदम डराता कौन है,
ये चेहरे पे…
Added by Usha Choudhary Sawhney on February 24, 2015 at 10:45am — 18 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 23, 2015 at 10:08am — 14 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 22, 2015 at 9:52am — 17 Comments
Added by Usha Choudhary Sawhney on February 22, 2015 at 9:35am — 9 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 18, 2015 at 1:32pm — 25 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 15, 2015 at 11:25am — 8 Comments
॥ पछतावा ॥ ॥ अतुकांत ॥
कहने से नहीं
समझाने से नहीं
कोई अगर गंदगी को चख के ही मानने की ज़िद करे
कौन रोक सकता है
बातें
कर्तव्यों को छोड़
केवल अधिकारों तक पहुँच जाये तब
ज़हर धीमा हो अगर
अमृत तो नहीं कह सकते न
संस्कारों की भूमि में
रिश्ते दिनों से मानयें जायें
ये दिन , वो दिन
अफसोस होता है
पता नहीं क्यों
रोज़ रोते हुये देखता हूँ मैं सपने में
राधा-कृष्ण-मीरा को ,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 14, 2015 at 8:55am — 16 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 14, 2015 at 1:30am — 20 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 11, 2015 at 9:17pm — 20 Comments
॥ मै ईश्वर नहीं ॥
**********
मै ईश्वर नहीं
किसी ईश्वरीय व्यवहार की उम्मीदें न लगायें
मै तो क्या कोई भी चाहे तो ईश्वर नहीं हो सकता
बस दूसरों में ईश्वरीय गुण खोजने में लगे रहते हैं
हम , आप , सब
इसलिये, आज
ये ऐलान है मेरा ,
मुझमें केवल इंसानी गुण ही हैं
अच्छों से उनसे अधिक अच्छा
बुरों से भरसक बुरा
उनके व्यवहार के प्रत्युत्तर में भेज रहा हूँ
कुछ दिल से निकली मौन गालियाँ
कुछ आत्मा से निकली बद…
Added by गिरिराज भंडारी on February 10, 2015 at 10:00am — 21 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 9, 2015 at 11:37am — 17 Comments
Added by Usha Choudhary Sawhney on February 8, 2015 at 7:30pm — 14 Comments
मारते हो पशु
फैलाते हो हिंसा
'नीच' जाति के हो न
असभ्य कहीं के
कभी नहीं सुधरोगे
इतिहास गवाह है...
मारते तो तुम भी हो
'शिकार' के नाम पर
तुम तो 'नीच' न थे
याद है ?
वो शब्द भेदी बाण
जो असमय वरण किया था
अंधों के पुत्र का,
भागे थे हिरण के पीछे
चर्म चाहिए था न
इतिहास गवाह है...
हिंसक तो तुम दोनों ही हो
एक शौक के लिए
तो दूजा भूख के लिए
हाँ जी हाँ, बिलकुल
इतिहास गवाह है…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 7, 2015 at 4:30pm — 28 Comments
धीमी-धीमी सी
हवाओं में
दीपों की टिमटिमाती लौ
दे जाती है
अंतर को भी रोशनी
बे-समय आँधियों ने
कब किया है, रोशन
बस! बुझा दिया
या फूंक दिए है जीवन
उन्ही दीपों से.
अथाह तेज बारिशों ने भी
बहा दिए हैं, जीवन
नदियों के मटमैले
जल से
प्यासा, प्यासा ही रहा
वैसे ही, जैसे
वैशाख-ज्येष्ठ की धूप में
बैठा हो
शुष्क किनारों पर
जीवन को तो
उतनी ही…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on February 7, 2015 at 1:03pm — 23 Comments
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