बूटा काँटों का अपनें हाथों से लगाया था…
Added by rajkumar sahu on March 28, 2011 at 12:52am — No Comments
भ्रष्टाचार-
हाकिम से लेकर अर्दली तक नौेकर से लेेेकर व्यौपारी तक।।
भ्रष्टाचार फैला देश में।मेरे गाॅव से दिल्ली तक।।
गाय से लेकर हाथी तक।कुते चूहे से लेकर बिल्ली तक।।
पेशोपेश में हैं पशु-पक्षी।बाज से लेकर तित्ल्ली तक।।
भ्रष्टाचार फैला देश…
Added by nemichandpuniyachandan on March 27, 2011 at 8:30pm — 2 Comments
जो कल उन्मुक्त बेखौफ़ चलती थी
आज अकेले खामोश बैठी है
कल तक जिसका अलग अस्तित्व था
अब दुसरो से पहचान ही उसका अस्तित्व होगा
कल तक जो हर जिम्मेदारी से बचती थी
मदमस्त उल्लासित हो चहकती थी
अब दूसरो की जिम्मेदारी संभालेगी
अपनी हँसी लुप्त कर दूसरो को सँवारेगी
दुल्हन के सुर्ख लाल जोड़े में
एक बंदनी की भाँति लग रही
फ़ेरो की पवित्र अग्नि में
उसकी ख्वाहिशे सुलग रहीं
सर पर जड़ित स्वर्ण टीका
उसके विषाद मे…
ContinueAdded by Mayank Sharma on March 27, 2011 at 3:00pm — 1 Comment
मेरी जिन्दगी का मतलब काश की समझे होते,
होते न आज इतने दूर तो बात कुछ और होती.
है किस्मत कितनी बुरी बोलती है ऐ मेरे हाँथ की लकीरे,
तुम पास होते तो बात कुछ और होती.
मै अब मेरी जिंदगी से करू क्या शिकवा गम नहीं मरने का,
तुम साथ होते तो बात कुछ और होती.
एक लम्बी प्रेम पारी हम साथ…
Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 27, 2011 at 11:30am — 3 Comments
श्री नवीन जी लीजिये गुझिया खासमखास
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on March 27, 2011 at 10:00am — 2 Comments
Added by neeraj tripathi on March 26, 2011 at 3:25pm — 15 Comments
Added by अमि तेष on March 26, 2011 at 12:51am — 2 Comments
नवगीत
कब होंगे आज़ाद हम
संजीव 'सलिल'
*
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
गए विदेशी पर देशी
अंग्रेज कर रहे शासन
भाषण देतीं सरकारें पर दे
न सकीं हैं राशन
मंत्री से संतरी तक कुटिल
कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे
भारत माँ को
ले चटखारे स्वाद
कब होंगे आजाद?
कहो…
Added by sanjiv verma 'salil' on March 26, 2011 at 12:29am — 2 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 25, 2011 at 3:30pm — 2 Comments
Added by Aakarshan Kumar Giri on March 25, 2011 at 12:07pm — 4 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 25, 2011 at 12:00pm — 2 Comments
Added by rajni chhabra on March 24, 2011 at 11:06pm — 4 Comments
Added by praveena joshi on March 24, 2011 at 10:53pm — 5 Comments
Added by Lata R.Ojha on March 24, 2011 at 1:24pm — 4 Comments
बूटा काँटों का अपनें हाथों से लगाया था…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 24, 2011 at 1:15pm — 2 Comments
गीत
भर आए परदेशी छालों से पाँव, चलो लौट चलें.
दुखियारे तन-मन से गीतों के गाँव, चलो लौट चलें.
…
ContinueAdded by राजेश शर्मा on March 23, 2011 at 7:17pm — 2 Comments
फराज के कुछ बेहतरीन शेर -
ढूँढ उजडे हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें
तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें…
Added by Tapan Dubey on March 23, 2011 at 4:20pm — No Comments
Added by nemichandpuniyachandan on March 23, 2011 at 1:30pm — 1 Comment
Added by Bhasker Agrawal on March 23, 2011 at 10:20am — No Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 22, 2011 at 10:41pm — 7 Comments
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