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व्यंग्य - उफ ! ये क्रिकेट की किचकिच

अभी विश्वकप क्रिकेट का दौर चल रहा है। खिलाड़ी जो प्रदर्शन कर रहे हैं, वो जैसा भी हो, मगर हर कोई अपना राग अलाप रहा है। स्थिति तो ऐसी हो गई है कि जितने मुंह, उतनी बातें। विश्वकप कोई भी टीम जीते, लेकिन जुबानी जमा खर्च करने में हर कोई माहिर नजर आ रहे हैं। यही कारण है कि क्रिकेट की किचकिच में देश का हर मुद्दा चर्चा से गायब हो गया है। फिलहाल क्रिकेट में सब उलझे हुए हैं। जब क्रिकेट की बात शुरू होती है तो क्रिकेटेरिया के हर बाहरी खिलाड़ी अपने तर्क का हथौड़ा लगाने तथा बातों-बातों में दो-दो हाथ आजमाने से… Continue

Added by rajkumar sahu on March 28, 2011 at 12:52am — No Comments

भ्रष्टाचार.....नेमीचन्द पूनिया "चन्दन"

भ्रष्टाचार-

हाकिम से लेकर अर्दली तक नौेकर से लेेेकर व्यौपारी तक।।

भ्रष्टाचार फैला देश में।मेरे गाॅव से दिल्ली तक।।

गाय से लेकर हाथी तक।कुते चूहे से लेकर बिल्ली तक।।

पेशोपेश में हैं पशु-पक्षी।बाज से लेकर तित्ल्ली तक।।

भ्रष्टाचार फैला देश…

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Added by nemichandpuniyachandan on March 27, 2011 at 8:30pm — 2 Comments

दुल्हन की दास्ताँ

 जो कल उन्मुक्त बेखौफ़ चलती थी

आज अकेले खामोश बैठी है

कल तक जिसका अलग अस्तित्व था

अब दुसरो से पहचान ही उसका अस्तित्व होगा

कल तक जो हर जिम्मेदारी से बचती थी

मदमस्त उल्लासित हो चहकती थी

अब दूसरो की जिम्मेदारी संभालेगी

अपनी हँसी लुप्त कर दूसरो को सँवारेगी

दुल्हन के सुर्ख लाल जोड़े में

एक बंदनी की भाँति लग रही

फ़ेरो की पवित्र अग्नि में

उसकी ख्वाहिशे सुलग रहीं          

सर पर जड़ित स्वर्ण टीका

उसके विषाद मे…

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Added by Mayank Sharma on March 27, 2011 at 3:00pm — 1 Comment

"निभाते जो साथ तो बात कुछ और थी”

मेरी जिन्दगी का मतलब काश की समझे होते,    

होते न आज इतने दूर  तो बात कुछ और होती.

है किस्मत कितनी बुरी बोलती है ऐ मेरे हाँथ की लकीरे,        

तुम पास होते तो बात कुछ और होती.                        

मै अब मेरी जिंदगी से करू क्या शिकवा गम नहीं मरने का,     

तुम साथ होते तो बात कुछ और होती.                            

एक लम्बी प्रेम पारी हम साथ…

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Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 27, 2011 at 11:30am — 3 Comments

होली की गुझियाँ

 

श्री नवीन जी लीजिये गुझिया खासमखास

मावा इनमे नहीं पर ...,  भरा प्रेम अहसास१ 
मेरी राधा विरह में , आहें भरे हज़ार ...
श्याम-सलोने के बिना क्या होली त्यौहार...२ 
रंग लगा कुछ इस तरह, रंगा सकल विश्वास 
श्याम रंग से बिखरता, चारो ओर प्रकाश ३.
जलती होली में जला अपने सारे पाप
मन दर्पण को कीजिये भैया पहले साफ़ ...४.
जलती होली से निकल सिया कहें हे राम !
पावनता तो बिक चुकी अब शंका के दाम…
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Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on March 27, 2011 at 10:00am — 2 Comments

भावनात्मक दरारें

माता पिता की ज़ख्मों वाली पीठ,

को न सहलाना,

परिवार की मुस्कुराहटों में,

न मुस्काना,

दोस्तों की खामोशियों में,

चुप रह जाना,

अपनों के दिलों में,

न झाँक पाना,

हमारी मजबूरियां नहीं,

कमजोरियां हैं,

जो अक्सर अपने,

बंधनों के,

एक धागे को,

तोड़ जाती हैं,

भावनात्मक दरारें हैं ये,

नहीं भरो तो,

निशान छोड़ जाती हैं .



किसी शीतल सुबह,

अपनी हथेलियों में,

ओस की बूँदें भरो,

अपने अहं को कर किनारे,

उसमे मिलाओ,

प्रेम… Continue

Added by neeraj tripathi on March 26, 2011 at 3:25pm — 15 Comments

यूं मेरे हाथ मुझ को छुड़ानें न दो,

यूं मेरे हाथ मुझ को छुड़ानें न दो,

बहुत याद आयेंगें हम, हमें जानें न दो.



गर हमें प्यार है, तो फ़िर डर कैसा,

अब कोइ राज़-ए-महोब्बत छुपानें न दो.



तेरी सांसों की महक की है ज़रूरत मुझको,

अब मेरे दिल में किसी और को आनें न दो.



इस तरह रोतें रहोंगे तो भला क्या होगा,

अश्क आंखों में मेरी जान कभी आनें न दो.



कर लो अब तो तुम मेरी महोब्बत का यक़ीन.

तुम मुझे अब और क़समें खानें न दो.



'अमी' तेरे प्यार के रंग में सराबोर है… Continue

Added by अमि तेष on March 26, 2011 at 12:51am — 2 Comments

नवगीत: कब होंगे आज़ाद हम संजीव 'सलिल'

नवगीत

 

कब होंगे आज़ाद हम



संजीव 'सलिल'

*

कब होंगे आजाद?

कहो हम

कब होंगे आजाद?



गए विदेशी पर देशी

अंग्रेज कर रहे शासन

भाषण देतीं सरकारें पर दे

न सकीं हैं राशन

मंत्री से संतरी तक कुटिल

कुतंत्री बनकर गिद्ध-

नोच-खा रहे

भारत माँ को

ले चटखारे स्वाद

कब होंगे आजाद?

कहो…

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Added by sanjiv verma 'salil' on March 26, 2011 at 12:29am — 2 Comments

तू अकेला है (दीपक शर्मा कुल्लुवी)

तू अकेला है


किस किस की खातिर तू रोता रहेगा
दिल में…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 25, 2011 at 3:30pm — 2 Comments

दिलों का वास्ता कैसा सवालों के जहां साए ?

तेरे दीदार की हसरत, हमारे दिल में पलती है



हुई मुद्दत मेरी नज़रें, तुम्हारी राह तकती हैं



यही ख्वाहिश थी बस दिल में, मैं तेरे दर पे आ बैठा



और उसपे पूछना तेरा, बताओ क्यों यहां आए ?





अनूठे यार हो तुम भी, गज़ब के प्यार हैं हम भी



भले मझधार हो तुम भी, सुनो पतवार हैं हम भी



सवालों से तेरे घबरा गया तो ख़ाक याराना



दिलों का वास्ता कैसा सवालों के जहां साए ?





यही इल्ज़ाम है तुम पर, कि दिल बर्वाद करते… Continue

Added by Aakarshan Kumar Giri on March 25, 2011 at 12:07pm — 4 Comments

KHEL

खेल खेले जाते है

विश्व भर मै.लिए सद्भावना
 और सहकारिता का आधार
जीवन भी तो खेल है,
आईए इस पर करें विचार
शबनमी धुप पाने से पहले
गुजरना पड़ता है
सर्द हवाओं के दौर से
जीत हासिल करने से पहले
गुजरना पड़ता है
कठिन श्रम के दौर से
हारे गर आज तो 
जीतेंगे कल 
यही विचार 
बढाए रखता है मनोबल
लिए श्रम ओर विश्वास का सम्बल
हार जाओ तो भी…
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Added by rajni chhabra on March 24, 2011 at 11:06pm — 4 Comments

पानी बहाने के फायदे बनाम मेरा वाटर बैंक

होली के रंग उतारने में बड़ी मशक्‍कत करनी पड़ी। अब रंग तो उतर गया लेकिन चेहरे पर हल्‍की जलन व खिंचाव अभी भी है। नाते रिश्‍तेदारों को दोष न दूंगी, मैं इतनी सभ्‍य नहीं कि होली पर तिलक लगाकर फोटो खिंचवाऊं और खुद को जागरुक नागरिक घोषित करूं। क्‍योंकि असभ्‍य नागरिक होने का खामियाजा तो चेहरे का रंग उतारने पर भुगत ही रही हूं। सोचती हूं मैंने असभ्‍य होने के लिए कितना पानी बहाया होगा?



कोई तीस लीटर जितना। जो कि तीन व्‍यक्तियों के लिए तीस दिन की प्‍यास बुझाने के लिए  काफी हो। पृथ्‍वी पर उपलब्‍ध… Continue

Added by praveena joshi on March 24, 2011 at 10:53pm — 5 Comments

जन्म मृत्यु के लिए..



कितना अजीब सत्य है न! हम सभी आखिर जन्मे हैं मरने के लिए ही तो,कोई भी तो अमर नहीं है यहाँ.किन्तु चिरनिद्रा में विलीन होने से पहले,हम…
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Added by Lata R.Ojha on March 24, 2011 at 1:24pm — 4 Comments

ग़ज़ल ( बार बार ) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

ग़ज़ल ( बार बार ) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

हमनें तो ख्वाव के सहारा पे घर बनाया था

बूटा काँटों का अपनें हाथों से लगाया था…

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Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 24, 2011 at 1:15pm — 2 Comments

गीत- भर आए परदेशी छालों से पाँव, चलो लौट चलें.

            गीत

 

                   भर आए परदेशी छालों से पाँव, चलो लौट चलें.

                   दुखियारे तन-मन से गीतों के गाँव, चलो लौट चलें.   

                …

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Added by राजेश शर्मा on March 23, 2011 at 7:17pm — 2 Comments

अहमद फ़राज़ शायरी/गजल

फराज के कुछ बेहतरीन शेर -

ढूँढ उजडे हुए लोगों में वफ़ा के मोती

ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें



तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा

दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें…



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Added by Tapan Dubey on March 23, 2011 at 4:20pm — No Comments

गजल

गजल



हमें धर जमाने में जमाने लगे ।

मिटाने में उन्हें चंद बहाने लगे ।।



मसीहा उस वक्त वो बन गये मेरे ।

जहाॅ के गम जब भी सताने लगे ।।



बचपन की यादें ताजा हो गई ।

जब छत पे पतंग उडाने लगे ।।



होश उस दम फाख्ता हो गए मेरे ।

वो जब मुझको मुझसे चुराने लगे ।।



जिनको अपने दर रहने को जा दी।

अफसोस वो हमें दरबदर कराने लगे।।



जिनको हमने जीने के लिए जिया दी।

अफसोस वो अंधेरे में घुमाने… Continue

Added by nemichandpuniyachandan on March 23, 2011 at 1:30pm — 1 Comment

कुछ तो में खोया सा हूँ..

कुछ तो में खोया सा हूँ
कुछ ये शाम खोयी सी है

पहलुओं की आड़ से खुद को बचा के चल दिए
बेखुदी तमाम खोयी सी है

इक ना-काफ़िर के अब ना रहे मुहताज हम
आदत-ए-आम खोयी सी है

खो गयीं वो सूरतें जो बादलों में यों हीं दिखती थीं
तालीम-ए-हाराम खोयी सी है

हज़ार पन्ने भर दिए कैफियत पर ना हुई
सूरत गुमनाम खोयी सी है

Added by Bhasker Agrawal on March 23, 2011 at 10:20am — No Comments

jhamele ho gaye

आसमां के हाथ मैले हो गये
ये महल कैसे तबेले हो गये
 
जो खनकते थे कभी कलदार से 
अब सरे बाज़ार धेले हो गये
 
घूमती थी बग्घियाँ किस शान से
आजकल सड़कों पे ठेले हो गये
 
इस शहर में कौन बोलेगा भला 
लोग ख़ामोशी के चेले हो गये
 
देखिये तो छक्के पंजे जब मिले 
कल के नहले आज दहले हो गये
 
अपनी खुद्दारी…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 22, 2011 at 10:41pm — 7 Comments

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"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
16 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
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"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
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"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
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"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
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Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
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Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
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"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
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