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भाई दूज

सजाये कुमकुम अक्षत की थाल

मन में भर अटूट प्रेम स्नेह

आशीष भरे हाथ तिलक लगाएँ

भाई के भाल पर।

बीती बातें बचपन की

वो लड़ाई झगडे भाई बहन के

स्नेह प्यार ही बचे रहे

भाई-बहन के ह्रदय में।

अनमोल वादा रक्षा का

बहन पाए भाई से

भाई-दूज के अवसर पर

मन क्यों न हर्षित हो जाये।

दूर रहे या पास रहे भाई

खुशहाली की कामना लिए भाई की

स्नेह प्रेम का दीप जलाये बहन

ऐसा ही रिश्ता भाई-बहन…

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Added by Neelam Upadhyaya on November 8, 2018 at 4:00pm — 6 Comments

'डस्ट-मून्ज़' (लघुकथा)

"देखो, हम सेलिब्रिटीज़ की ज़िन्दगी के साथ मीडिया ऐसे ही बर्ताव करता रहता है! टेंशन मत लो!"

"सब कुछ मेंशन हो चुका है! तुम तो सिर्फ़ यह बता दो कि मैं तुम्हारा पहला चांद हूं या दूसरा या फिर तीसरे नंबर का?"

"क्या मतलब?"

"देखो अर्थ! अब ज़्यादा मत इतराओ! मैंने भी तुम्हारी उन दोनों लैलाओं के बयान सुन लिए हैं टेलीविज़न पर!"

"देखो शशि! मुझ पर और तुम स्वयं पर विश्वास रखो! तुम्हीं मेरा पहला और आख़री चांद हो, तुम्हीं इंदु, विधु और तुम्हीं मेरी चंदा हो डार्लिंग!"

"फ़िर वे दोनों…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 8, 2018 at 9:00am — 4 Comments

दोहे

दोहे

दीप जलाएं मौज से, रखें सदा ही ध्यान

आगजनी होवे नहीं, हरपल हो कल्यान ll 1

दीपों की लड़ियाँ जले, हो प्रकाश चहुँओर

ज्ञान पुंज से हर कहीं, होवें सभी विभोर ll 2

घोर तमस मन का मिटे, जीवन हो खुशहाल

भाई भाई सब मिले, कभी न रखें मलाल ll 3

जगमग दीपक सा बनें, तभी बनेगी बात

निरालम्ब को दीजिए, खुशियों की सौगात ll 4

तम आडम्बर का मिटे, मिटे अंधविश्वास

ज्योतिर्मय जग ये करें, दुख ना आये पास ll…

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Added by डॉ छोटेलाल सिंह on November 7, 2018 at 9:30pm — 8 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६७

1212 1122 1212 22

.

हमारी रात उजालों से ख़ाली आई है

बड़ी उदास ये अबके दिवाली आई है //१



चमन उदास है कुछ यूँ ग़ुबारे हिज्राँ में

कली भी शाख़ पे ख़ुशबू से ख़ाली आई है //२ 




फ़ज़ा ख़मोश है घर की, अमा है सीने में

हमारा सोग मनाने रुदाली आई है //३ 



मवेशी खा गए या फिर है मारा पालों ने

कभी कभार ही फ़सलों पे बाली आई है…

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Added by राज़ नवादवी on November 7, 2018 at 12:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल -- नेकियाँ तो आपकी सारी भुला दी जाएँगी / दिनेश कुमार

2122---2122---2122---212

.

नेकियाँ तो आपकी सारी भुला दी जाएँगी

ग़लतियाँ राई भी हों, पर्वत बना दी जाएँगी

.

रौशनी दरकार होगी जब भी महलों को ज़रा

शह्र की सब झुग्गियाँ पल में जला दी जाएँगी

.

फिर कोई तस्वीर हाकिम को लगी है आइना

उँगलियाँ तय हैं मुसव्विर की कटा दी जाएँगी

.

इनके अरमानों की परवा अह्ले-महफ़िल को कहाँ

सुबह होते ही सभी शमएँ बुझा दी जाएँगी

.

नाम पत्थर पर शहीदों के लिखे तो जाएँगे

हाँ, मगर क़ुर्बानियाँ उनकी भुला दी…

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Added by दिनेश कुमार on November 7, 2018 at 10:22am — 15 Comments

"आहरण या चीर-हरण" (लघुकथा)

"आज न छोड़ेंगे, सोते हुओं को चेतायेंगे!"

"घोर अन्धकार है महाराज! सुझावों, चेतावनियों, प्रतिबंधों और घोषणाओं को चुनौती देकर पटाखों, आतिशबाज़ियों और वैद्युत-सजावटों से ही इनका राष्ट्र दहक रहा है, चमक रहा है! इतना तो आपके दहन-आयोजन के आडंबर मेंं भी नहीं होता!"

"...'आडंबर'..! मत कहो मेरे नई सदी के 'सक्रीय अस्तित्व' और 'सांकेतिक स्मरण' को 'आडंबर'..! मेरे दशानन की बदलती भूमिकाएं नहीं मालूम क्या तुम्हें?" नई सदी के नवीन दस मुखौटों वाले विशाल शरीर में अपनी आत्मा लिए दीपावली पर भारत-भ्रमण…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 7, 2018 at 9:30am — 1 Comment

जलूँ  कैसे  तुम्हारे बिन - लक्ष्मण धामी"मुसाफिर" ( गजल )

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२

अकेला हार जाऊँगा, जरा तुम साथ आओ तो

अमा की रात लम्बी है कोई दीपक जलाओ तो।१।



ये बाहर का अँधेरा तो  घड़ी भर के लिए है बस

सघन तम अंतसों में जो उसे आओ मिटाओ तो।२।



कहा बाती  मुझे  लेकिन  जलूँ  कैसे  तुम्हारे बिन

भले माटी, स्वयं को अब चलो दीपक बनाओ तो।३।



गरीबी, भूख,  नफरत, वासनाओं  का मिटेगा तम

इन्हें जड़ से मिटाने को सभी नित कर बटाओ तो।४।



महज दस्तूर को दीपक जलाते इस अमा को सब

बने हर जन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 7, 2018 at 7:36am — 13 Comments

गीत...दीप कहाँ से लाऊँ

इस गीत के साथ ओबीओ परिवार के सभी मनीषियों को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं

सारा जग उजियारा कर दे

दीप कहाँ से लाऊँ

अंधकार ने फन फैलाया

मैला हर इक मन है

सूरज भी गुमसुम सा बैठा

विस्मित नील गगन है

मन को मनका मोती कर दे

सीप कहाँ से लाऊँ

सारा जग उजियारा कर दे

दीप कहाँ से लाऊँ

गली गली में घूमे रावण

हर घर में इक लंका

प्यार मुहब्बत भाईचारा

मिटने की आशंका

कण कण राम बिराजें ऐसा

द्वीप…

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Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 6, 2018 at 11:00pm — 12 Comments

अंतर्द्वन्द्व

अंतर्द्वन्द्व

 

कितने बर्फ़ीले दर्द दिल में  छिपाए

किन-किन  बहानों  से  मन  को  बहलाए

भीतर  की गहरी गुफ़ा से  आकर

तुम्हारे सम्मुख आते ही हर बार

हँस देता हूँ ,  हँसता चला जाता हूँ

स्वयं को  छल-छल  ऐसे

तुमको  भी... छलता चला जाता हूँ 

 

ऐसे  में  मेरी हर हँसी में  तुम  भी

हँस देती हो ... नादान-सी

मेरे उस मुखौटे से अनभिज्ञ

न जानती  हो, न जानना चाह्ती  हो

कि अपने सुनसान अकेलों…

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Added by vijay nikore on November 6, 2018 at 2:00pm — 14 Comments

ग़ज़ल (ख़त्म कर के ही मुहब्बत का सफ़र जाऊंगा)

(फाइ इलातु न _फ इ लातुन _फ इ लातुन _फ़े लुन)

ख़त्म कर के ही मुहब्बत  का सफ़र जाऊंगा l

तू ने ठुकराया तो कूचे में ही मर जाऊँगा l

जो भी कहना है वो कह दीजिए ख़ामोश हैं क्यूँ

आपका फ़ैसला सुनके ही मैं घर जाऊँगा l

वकते आख़िर है मेरा पर्दा हटा दे अब तो

छोड़ कर मैं तेरे चहरे पे नज़र जाऊँगा l

आ गए वक़ते सितम अश्क अगर आँखों में

मैं सितमगर की निगाहों से उतर जाऊँगा l

लौट कर आऊंगा मैं सिर्फ़ तू इतना कह दे …

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on November 6, 2018 at 10:30am — 20 Comments

'राहगुज़र : दिव्यालोक' [कुछ हाइकु: भाग-3]

1-
आलोक पर्व
सेतु ये जन-हेतु
प्रकाश-स्तंभ


2-
राहगुज़र
अंधेरे का निस्तार
प्रकाश-पर्व


3-
अपनापन
दीप से विस्तारित
आत्मकेंद्रित

4-
रूप चौदस
सौंदर्य प्रसाधन
आध्यात्मिकता

5-
दूज सुबोध
भ्रातृ-भगिनि योग
दिव्य-आलोक


(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 6, 2018 at 10:09am — 8 Comments

'बिसात पर नूरा-कुश्ती' (लघुकथा)

"हमने कई थी न कि देर है अंधेर नईं! सबके साथ सबके दिन फिर रये! सो अपने भी दिन फिरहें!" नदी किनारे बैठे हुए एक बाबा ने दूसरे साथी बाबाओं से किया अपना दावा दोहराते-सिद्ध करते हुए कहा - "अपने कित्ते बाबा अंतर्राष्ट्रीय हो गये, ध्यान और योग से उद्योग जम गओ, ... एक और बाबा हाईटेक हो गओ!"

"हओ! मंत्री बनत-बनत रह गये; लेकिन अब रस्ता खुल गओ अपने लाने! धंधा-पानी भी संग-संग चलो करहे अब राम-नाम जपने के साथ! दुनिया खों आयुर्वेद को भेद बहुतई अच्छी तरा समझ में आ गओ!"

"लेकिन गुरु, धरम-करम और…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 6, 2018 at 12:11am — 2 Comments

हमेशा तो नहीं होती बुरी तकरार की बातें(ग़ज़ल)

1222 1222 1222 1222



हमेशा तो नहीं होती बुरी तकरार की बातें

इसी तकरार से अक्सर निकलतीं  प्यार की बातें।

नज़र मंजिल पे रक्खो तुम बढ़ाओ फिर कदम आगे

नहीं अच्छी लगा करतीं हमेेशा हार की बातें।

अँधेरे में चरागों-सा उजाला इनसे मिल जाता

गुनी जाएं तज्रिबे  के  सही गर सार की बातें।

अलग हैं रास्ते चाहे है मंजिल एक पर सबकी

जो ढूंढें खोट औरों में करे वो रार की…

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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 5, 2018 at 8:30pm — 17 Comments

'मर्म-सौगातें : सोने का देश' [कुछ हाइकु: भाग-2]

1-

मन-हर्षाता

धन्य धन-तेरस

मां लक्ष्मी दाता

2-

धन तेरस

दे अब के बरस

सोने का देश



3-

धन तेरस

सोने की ये चिड़िया

धन से धन्य

4-

धनोपार्जन

से धन-विसर्जन

चादर मैली



5-

धन की दास्तां

धनी-निर्धन व्यथा

कथा में कथा



6-

लड़ी में ज्वाला

प्रकाश, आग, भाग

आत्मायें लड़ीं



7-

पर्व ही गर्व

संदेश सम्प्रेषित

धन का दर्द



8-

दिल की…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 5, 2018 at 8:24pm — 8 Comments

मेरी धरोहर - लघुकथा -

मेरी धरोहर - लघुकथा -

"सुधा, मेरा सफेद कुर्ता पाजामा निकाल दो। शीघ्रता से।"

"अरे विनोद, यह क्या सुन रहा हूँ? यहाँ सब लोग दिवाली की पूजा की तैयारी में व्यस्त हैं और तुम ये क्या सफेद कपड़ों की फरमाइश कर रहे हो?"

"जी दादाजी, आपने सही सुना। मुझे मेरे दोस्त अकबर के घर जाना है। उसके अब्बू का इंतकाल हो गया है।"

"तुम्हें पता है आज इस दीपावली के शुभ अवसर पर मैं अपनी वसीयत भी बनाने वाला हूँ। अभी हमारे परिवार के वक़ील आने ही वाले हैं। हो सकता है जो उस वक्त मौजूद ना हों, उन्हें…

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Added by TEJ VEER SINGH on November 5, 2018 at 4:58pm — 14 Comments

कुछ हाइकु

धनतेरस

धन धान्य हो भरा

शुभकामना

  

धन बरसे

लक्ष्मी रहें प्रसन्न

सब हरसें

  

झालर दीप

सुंदर उपहार

सजे बाजार

  

हल्की है ज़ेव

महंगाई की मार

सुस्त ग्राहक

  

प्रथा निभाएँ

धनतेरस पर

थोड़ा ही लाएँ

 

 धनतेरस

खुशियाँ दे अपार

प्यारा त्योहार

 

…. मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on November 5, 2018 at 3:30pm — 7 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६६

२१२२ २१२२ २१२२



है वो मेरा दोस्त, मेरा नुकताचीं भी

शर्म खाए उससे कोई ख़ुर्दबीं भी //१



काविशे सुहबत में आके मैंने जाना

हाँ में उसकी तो छुपा था इक नहीं भी //२



जब उफ़ुक़ पे सुब्ह लाली खिल रही थी

थी हया से सुर्ख थोड़ी ये ज़मीं भी //३



दूर क्यों जाना है ज़्यादा जुस्तजू में

पालती है जबकि दुश्मन आस्तीं भी //४…



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Added by राज़ नवादवी on November 4, 2018 at 7:30am — 10 Comments

'ईको-फ्रेंडली प्रकाश-मित्र' [कुछ हाइकु]

कुछ  'दीवाली-हाइकु' :

 

1-

दिल्ली-दीवाली

(दिली-दीवाली)

दीपक-दिलवाली

ईको-फ्रेंडली

2-

कुम्हार-कला

मिट्टी, भावों से खिला

ये दीपोत्सव

3-

प्रज्जवलित

दीप कुम्हार वाले

सीप के मोती

4-

सीप का मोती

दीवाली-महोत्सव

रिश्तों की खेती

5-

मानवीयता

दानवीयता परे

दीवाली भरे

6-

दिव्य-दीवाली

दशा-दिशा निमित्त…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 4, 2018 at 6:00am — 8 Comments

और इस तरह

मेरी आँखें बंद करो

और इस तरह से

दुनिया को बंद करना

मैं तुम्हें फिर मिलूंगा

तुम  शानदार हो 

जीवित और ज्वलंत

मेरे सीने  से गहरी सांस लेना

मैं तुम्हारी मुस्कान  की तस्वीर बना लूँगा 

तुम्हारी  आंखों के पीछे का नरम  प्रकाश

मेरे दिमाग में यादों का  मीलो  चलना

इच्छा है कि मैं एक चील  की तरह झपट के 

और तुम्हें उस जगह  ले जाऊ 

जिस  जगह जहां आँसू गिरते थे 

जबकि हम आमने-सामने बैठे थे

एक दूसरे के गाल पर हाथ

फुसफुसाते हुए "सब ठीक…

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Added by narendrasinh chauhan on November 3, 2018 at 2:30pm — 2 Comments

काल चक्र - लघुकथा -

काल चक्र - लघुकथा -

"राघव, तुम यहाँ रेलवे प्लेटफार्म पर, इस हालत में?"

मुझे एक बार तो विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बेंच पर बैठा शख्स मेरा मित्र राघव ही है। दाढ़ी , बाल  बढ़े हुए। पैर में हवाई चप्पल। पाजामे के साथ ढीली सी टी शर्ट। मेरा हम उम्र था लेकिन अस्सी साल का बूढ़ा लग रहा था|

मैं जिस राघव का दोस्त था, वह तो सदैव आसमान में उड़ता था। शेर की तरह दहाड़ता था। कालेज के दिनों में वह अकेला बंदा था जो सूट बूट और टाई पहनकर कार में कॉलेज आता था। क्या शानदार  व्यक्तित्व था। हर कोई उसे…

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Added by TEJ VEER SINGH on November 3, 2018 at 12:04pm — 12 Comments

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