बिरादरी में ऊँची नाक रखने वाले, दौलतमंद, पर स्वभावतः अत्यधिक कंजूस, सुलेमान भाई ने अपने प्लाट पर एक घर बनाने की ठानी| मौका देखकर इस कार्य हेतु उन्होंने, एक परिचित के यहाँ सेवा दे रहे आर्कीटेक्ट से बात की| आर्कीटेक्ट नें उनके परिचि त का ख़याल करते हुए, बतौर एडवांस, जब पन्द्रह हजार रूपया जमा कराने की बात कही, तो सुलेमान भाई अकस्मात ही भड़क गए, और बोले, "मैं पूरे काम के,…
Added by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 8:30am — 20 Comments
हिंदी दिवस मना रहे, अंग्रेजी की खान/
कैसे हो हिंदी भला, मिले इसे सम्मान//
मिले इसे सम्मान,ज्ञान का कोष अनूठा/
हर जिव्हा पर आज,शब्द परदेशी बैठा//
कह अशोक सुन बात,भाल पर जैसे बिंदी/
करो सुशोभित आज, देश की भाषा हिंदी//
लाओ फिरसे खोज कर,हिंदी के वह संत/
जिनसे थी प्रख्यात ये,चुभे विदेशी दंत//
चुभे विदेशी दंत, बहा दो हिंदी गंगा/
करते जो बदनाम, करो अब उनको नंगा//
कह अशोक यह बात,…
Added by Ashok Kumar Raktale on September 12, 2012 at 8:30am — 13 Comments
एक छोटी सी कविता मेरी,
ना जाने कहाँ खो गयी है
सुबह, सीढियां चढ़ते वक्त तो थी
मेरी ही जेब में
फिर ना जाने कहाँ गयी
सारे दिन की भाग दौड़ में
मुझे भी न रहा ध्यान
न जाने कब खो गयी वो
छोटी सी ही थी
उस कविता में,
एक पेड़ था
पेड़ पे एक झूला
झूले पर झूलते मेरे दोस्त
आवाज़ देकर बुलाते हुए
वो सब उसी कविता में ही तो थे
अब वो भी ना जाने कैसे मिलेंगे?
खो गये वो भी
उस कविता में था
एक बेघर हुआ
चिड़िया का छोटा सा…
Added by Pushyamitra Upadhyay on September 11, 2012 at 10:07pm — 7 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on September 11, 2012 at 6:00pm — 21 Comments
Added by राजेश 'मृदु' on September 11, 2012 at 2:52pm — 9 Comments
तुम कंचन हो,
मै कालिख हूँ!
तुम पारस, मै
कंकड़ इक हूँ!
तुम सरिता हो,
मै कूप रहा!
तुम रूपा, इत
ना रूप रहा!
जो मानव नहीं है उसको, देव की पांत है असंभव!
है तुलना न अपनी कोई, मिलन की बात है असंभव!
तुम ज्वाला हो,
मै…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on September 11, 2012 at 2:30pm — 58 Comments
दोपहर शाम शब् सहर जन्नत
हर घडी आ रही नज़र जन्नत
वक्ते फुरकत लगा जहन्नम सा
खंडहर हो गया है घर जन्नत
भूलना आपको हुआ मुश्किल
याद कर कर के हर पहर जन्नत
जिन्दगी किस तरह जियें तुझको…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 11, 2012 at 2:08pm — 4 Comments
तेरे बगैर मज़ाभी क्या आये जीने का
शराब न हो तो क्या हो आबगीने का
तेरी ज़ुल्फ़से दोचार नफ्स मांग लेतेहैं
तेरेही इश्कने काम बढ़ाया है सीने का
तू नमाज़ी है तो पाबन्द है औकातका
मैं खराबाती हूँ कोई वक्त नहीं पीनेका
नतुम न दरियएइश्क पार करनेको है
नाखुदा है खुदा काम क्या सफीने का
राज़ ज़रा संभल के खर्च करो मआश
अभीतो पूरा महीना पड़ा है महीने का
© राज़…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 11, 2012 at 7:45am — 6 Comments
मान और सम्मान की,नहीं कलम को भूख
महक मिटे ना पुष्प की , चाहे जाये सूख |
खानपान जीवित रखे , अधर रचाये पान
जहाँ डूब कान्हा मिले , ढूँढो वह रस खान |…
Added by अरुण कुमार निगम on September 11, 2012 at 12:00am — 14 Comments
आज सुबह-सुबह बड़कऊ का बेटा कविता ’पुष्प की अभिलाषा’ पर रट्टा मार रहा था --"चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ.. ." मैथिली शरण गुप्त जी ने बाल कविता लिखी है. शब्दों का चयन, सन्निहित भाव सबकुछ कालजयी है. आँखो को मूँदे कविता को आत्मसात करता हुआ मन ही मन राष्ट्रकवि को नमन किया. अभी मन के दरवाजे पर कुछ और शुद्ध विचार दस्तक देते कि घर के दरवाजे पर दस्तक हुई. सारे शुद्ध विचार एक बारगी हवा हो गये.. "कौन कमबख़्त सुबह-सुबह फ़ोकट की चाय पीने आ गया, यार ?" झुंझलाता-झल्लाता…
ContinueAdded by Shubhranshu Pandey on September 10, 2012 at 9:00pm — 11 Comments
ये तो नही है
सपनों का भारत
देश ये मेरा
जला असम
कश्मीर में आग
सुलगे देश
आतंकवाद
का भारत देश में
है बोलबाला
भटक रहा
दर दर ईमान
फलता पाप
हुए पराये
हम भारत वासी
देश अपना
कोलगेट पे
मच रहा बवाल
है मुहं काला
ये तो नही है
सपनों का भारत
देश ये मेरा
Added by Rekha Joshi on September 10, 2012 at 8:00pm — 20 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 10, 2012 at 7:18pm — 29 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 10, 2012 at 4:42pm — 4 Comments
शाम जन्नत हुई सहर जन्नत
आप आये हुआ ये घर जन्नत
जो पड़े हैं कदम तुम्हारे यूँ
हो गया है मेरा शहर जन्नत
राह मुश्किल भरी रही लेकिन
आपके साथ था सफ़र जन्नत
ख्वाब क्या और क्या हकीकत में…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 10, 2012 at 3:00pm — 16 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 10, 2012 at 2:24pm — 3 Comments
"मौलिक संतान"
कोख
माँ की कोख
प्यारी न्यारी
जीव का प्रारंभ
उसकी जन्नत
माँ की कोख
सबसे खूबसूरत
कोई शै नहीं
इस सारे जहाँ…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 10, 2012 at 1:25pm — 2 Comments
मेरे सपनो का भारत ऐसा तो नहीं था
इतना कमजोर , इतना खोखला
ऐसा देश तो मैंने कभी चाहा ही नही था
बाहर से जितना साफ अंदर से उतना ही गन्दा
मेरे सपनो का भारत ....................
सोचा था मैंने तो कि ये चमन खूब महकेगा
अपने परिंदों के चहकने से खूब चहकेगा
मगर ये क्या --- इसे तो इसके ही फूलो ने कांटे चुभोये
लहू देशभक्तों का बो कर भी गद्दार उगाये
मेरे सपनो का भारत ये तो नहीं था
मेरे सपनो का भारत ऐसा ......................
.
मैंने चाहा…
Added by Sonam Saini on September 10, 2012 at 9:30am — 10 Comments
आज ९ सितम्बर २०१२, रविवार को इलाहाबाद के वर्धा विश्वविधालय क्षेत्रीय सभागार में एक काव्य गोष्ठी सह मुशायरा का आयोजन किया गया जिसमें अकबर इलाहाबादी को उनकी पुन्य तिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया | कार्यक्रम की शुरुआत अकबर इलाहाबादी साहब के चित्र पर माल्यार्पण से हुयी | तत्पश्चात इलाहाबाद के तंज़ ओ मजाह के सशक्त हस्ताक्षर फरमूद इलाहाबादी साहब ने तंज़ ओ मजाह के महान शायर अकबर इलाहाबादी साहब को याद करते हुए अकबर साहब की ग़ज़ल के चंद अशआर पढ़े तथा उसके पश्चात सभी कवियों…
ContinueAdded by वीनस केसरी on September 10, 2012 at 2:00am — 1 Comment
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on September 10, 2012 at 1:00am — 9 Comments
पेड़ों के झुरमुट में
छुप छुप भरमाता है
मेघों के अंचल में
अटक अटक जाता है
यायावर सा फिरता
मतवाला चाँद
उषा- रश्मियों से घिर
धुंधलाता जाता है
अरुणाभा में, नभ की
डूबता- उतराता है
चलाचली की बेला
कहता सूरज को विदा
पवन से पराग की
पीकर हाला चाँद
Added by Vinita Shukla on September 9, 2012 at 9:43pm — 3 Comments
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