मैं
और
तन्हाई
लड़ते रहते हैं
कभी बिखरते
कभी संवरते
रहते हैं.
ओ तन्हाई !
तुम क्यों
दुःख -पीड़ा को
रखती हो अपने साथ
फिरती हो यहाँ वहां
लिये हाथों में हाथ…
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 11, 2012 at 5:04pm — 1 Comment
काल खंड को मापने के लिए जिस यन्त्र का उपयोग किया जाता है उसे काल निर्णय, काल निर्देशिका या कलेंडर कहते हैं|
दुनिया का सबसे पुराना कलेंडर भारतीय है | इसे स्रष्टि संवत कहते हैं,इसी दिन को स्रष्टि का प्रथम दिवस माना जाता है| यह संवत १९७२९४९११३ यानी एक अरब, सत्तानवे करोड़ ,उनतीस लाख, उनचास हज़ार,एक सौ तेरह वर्ष (मार्च २०१२ तक, विक्रम संवत २०६९ के प्रारंभ तक ) पुराना है|
हमारे ऋषि-…
Added by dr a kirtivardhan on January 11, 2012 at 4:30pm — 3 Comments
वफाओं के किस्सों की,
तो कोई किताब ही नहीं...
यह तो वो ज़ज्बात हैं,
जिनके लिए कोई अल्फाज़ ही नहीं...
कैसे बाँधा है किसी ने,
वफाओं को अल्फाजों में,
ये तो वो किस्से है,
जिनकी कोई जुबाँ ही नहीं...
Added by Yogyata Mishra on January 11, 2012 at 11:01am — 1 Comment
चल पड़ा हूँ इक सफ़र पर,
एक अनजानी डगर पर |
मजिल पता है, कि जाना कहाँ है |
पर रास्ता नहीं, वो कहीं खो गया है |
वो मंजिल मैं अब हर डगर ढूँढता हूँ |
कभी तो मिलेगी, अगर ढूँढता हूँ |
जज्बों में हिम्मत, इरादे बड़े हैं |
मगर राह में ऊंचे पर्वत खड़े हैं |
इन्हें पार करना भी मुश्किल बड़ा है |
मगर अब ये बंद भी जिद पे अड़ा है|
इन्हें लांघने का सबब ढूँढता हूँ |
कभी तो मिलेगा अगर ढूँढता हूँ |
किसी कि दुआएं…
Added by Vikram Srivastava on January 11, 2012 at 2:00am — 1 Comment
सूद पहले फिर असल दो
इक मुहब्बत की ग़ज़ल दो
जो परिन्दे छत पे आयें
उनको दाने और जल दो
शक्ल वैसी ही रहेगी
आईना चाहे बदल दो
धर्मशाला है ये दुनिया
रात काटो और चल दो
ये बदन कल तक नया था
अब पुराना है बदल दो
तुम सवेरे-शाम आओ
मेरे जीवन में खलल दो
......दीपक कुमार
Added by दीपक कुमार on January 10, 2012 at 7:13pm — 14 Comments
तूफां से सागर की पहचान नहीं होती ,
झील कितनी बड़ी हो,सागर नहीं होती|
गर दुष्टों को सम्मान मिला करता जहाँ मे,
शराफत की कोई पहचान नहीं होती|
बनता है कोई सागर सा,मन की गहराइयों से,
टूटी हुई तलवार की,कोई म्यान नहीं होती|
हीरे ,मोती,मानिक के,सब हैं लुटेरे,
हर निगाह ज्ञान के मोती की,कद्रदान नहीं होती|
किसी किसी पे बरसती है रहमत खुदा की,
बेईमानों की कीमत,उनकी जुबान नहीं होती|
भागते हैं जो लोग फकत दौलत के पीछे,
ईमानदारी की बातें,उनका इमान नहीं…
Added by dr a kirtivardhan on January 10, 2012 at 4:00pm — 2 Comments
गीत :
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
संजीव 'सलिल'
*
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
मेरा जीवन वन प्रांतर सा
उजड़ा उखड़ा नीरस सूना-सूना.
हो गया अचानक मधुर-सरस
आशा-उछाह लेकर दूना.
उमगा-उछला बन मृग-छौना
जब तुम बसंत बन थीं आयीं..
*
दिन में भी देखे थे सपने,
कुछ गैर बन गये थे अपने.
तब बेमानी से पाये थे
जग के…
Added by sanjiv verma 'salil' on January 10, 2012 at 10:00am — 1 Comment
सामान उठाते हैं
अब लौट के जाते हैं
दिल मेरा दुखाने को
अहबाब भी आते हैं
ये चाँद-सितारे भी
रातों को रुलाते हैं
जो टूट के मिलते थे
वो रूठ के जाते हैं
मैं उनका निशाना हूँ
वो तीर चलाते हैं
हम अपनी उदासी को
हँस-हँस के छुपाते हैं
की ख़ूब अदाकारी
पर्दा भी गिराते हैं
.......दीपक कुमार
Added by दीपक कुमार on January 10, 2012 at 12:25am — 10 Comments
बेवफा होना तेरा क्या क्या सितम ढाने लगा
अब तो मैं मंदिर में भी जाने से घबराने लगा
हो अलग तुमने जला डाली थी मेरी याद तक
मैं तेरी तस्वीर से दिल अपना बहलाने लगा
भोर की पहली किरण मैंने चुराकर दी जिसे
दूसरे के घर को अब वो फूल महकाने लगा
सर्द रातों में लिपट जाता था कोहरे की तरह
मैं बना सूरज तो दुःख का चाँद शरमाने लगा
घर के आगे जब से इक ऊँची ईमारत बन गई
मेरे घर आने से अब सूरज भी कतराने लगा
………………………………….. अरुन…
ContinueAdded by Arun Sri on January 9, 2012 at 2:00pm — 4 Comments
तुम्हारी याद मे........
मैं खोयी थी अपने इन्द्रधनुषी सपनों में
अचानक बादलों की एक गडगडाहट ऩे
मुझे तुमसे मिला दिया|
लेकिन मैं कभी मन से
तुम्हारी न बन सकी|
तुम्हारा नियंत्रण मेरी देह पर था,
परन्तु मन आज भी
उन्ही इन्द्रधनुषी सपनों मे
रंगा हुआ था |
धीरे धीरे हमारे बीच दूरियाँ बढ़ने लगी,
बात बेबात तकरारे बढ़ने लगी,
आँगन मे गुलाब के साथ
कैक्टस भी फलने फूलने लगा|
और एक दिन
जब तुम चले गए
मुझे छोड़कर तन्हा
कहीं दूसरे…
Added by dr a kirtivardhan on January 8, 2012 at 9:00pm — 1 Comment
सपना ---
लंगड़े की बैशाखी,बच्चे का खिलौना,
रेल आई -रेल आई,लेकर दौड़ा छोना |
.
सुख की परिभाषा उस बच्चे से पूछो,
ना खाने को रोटी,ना सोने का बिछोना|
.
खेलता है फिर भी,रुखी रोटी खा,
मांगता नहीं वह कार या खिलौना|
.
देखा है मैंने उसको सपने सजाते,
खुले गगन तले चाहता है वह सोना|
.
धरती से अम्बर उसकी सीमाएं हैं,
देखता है सबको रोटी का वह सपना|
.
.
डॉ अ कीर्तिवर्धन…
Added by dr a kirtivardhan on January 8, 2012 at 8:30pm — 8 Comments
Added by mohinichordia on January 8, 2012 at 8:47am — 8 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 7, 2012 at 11:58pm — 3 Comments
अंदाज़ क्या खूब हैं उनकी नज़रों के या रब,
Added by AjAy Kumar Bohat on January 7, 2012 at 9:00pm — 6 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on January 7, 2012 at 7:00pm — 2 Comments
जब भी तुझको पाने का ख्याल आए |
पाए किस तरह ज़हन में सवाल आए ||
.
छोड़ कर हिया वो आ लगे गले से ,
जब उनसे हम पूछने उनका हाल आए |
.
बिन उनके तो हम बैठे रहें बुझे से ,
उन्हें देख कर सूरत पे…
Added by Nazeel on January 7, 2012 at 12:00pm — 3 Comments
याद आता है
अपना बचपन,
जब हम उड़ान में रहते थे
बेफिक्री के असमान में रहते थे
दिन गुजरता था बदमाशियों में
पर रात अपने ईमान में रहते थे !
याद आता है,
दिन भर तपते सूरज को चिढाना
आंधियो के पीछे भागना
उनसे आगे निकलने की कोशिश करना
जलती तेज हवाओं से हाथ मिलाना,
और फिर ..............
पता ही नही चला कि
कब माँ की कहानियों की गोद से उठकर
हमारी नींद सपनो के आगोश में चली गई !
दिन से अच्छी थी रातें
हमेशा से
और…
Added by Arun Sri on January 7, 2012 at 11:00am — 6 Comments
कमर-तोड़ महंगाई पे,बारम्बार चुनाव!
Added by AVINASH S BAGDE on January 6, 2012 at 7:58pm — 15 Comments
प्यास बुझती नहीं ..
देश था परतंत्र
गुजरे ज़माने की बात है
मुद्दतों बाद तुमसे मुलाकात है.
गुलामी की ज़ंजीर डली थी पाँव मे.
तपती धूप
दोपहरी जेठ की
कौन बैठता था छाओं में.
पर प्यास तो थी
जीभ पर नहीं
ज़हन में…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on January 6, 2012 at 12:00pm — 3 Comments
तुझ बिन जिंदगी हमसे, कुछ ऐसे फिसल रही है ,
ज्यों कतरा कतरा जान, हर दम निकल रही है .
हर आहट पे तू आया, गफलत मुझे सताती ,
ख्वाबों से घायल नींदें , हर पल संभल रही है .
तुझे बेवफा जो कहते, वो लोग हैं बहुत से ,
लोगों को तू दिखा दे, वो वफ़ा मचल रही है .
.
मैं जानता हूँ जानम , तेरी मजबूरियों को ,
तू एक बार आ जा, मेरी…
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 5, 2012 at 4:49pm — 3 Comments
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