Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 31, 2017 at 2:26pm — 4 Comments
2122 2122 2122 212
दिन सुहाने हो गए राते सुहानी हो गईं,
उनके आते ही बहारें जाफ़रानी हो गईं।
रंग और खुशबू की बातें अब कहानी हो गईं,
मुश्किलें लगता है जैसे जाविदानी हो गईं।
आसमाँ ने जब उफ़क पर चूम धरती को लिया,
कमसिनी को छोड़कर ऋतुएं सुहानी हो गईं।
बेकरारी आज जितनी है कभी पहले न थी,
आदतें भी सब्र की जैसे कहानी हो गईं।
मिहनतों को जब मिला तेरा सहारा ए ख़ुदा,
मुश्किलें भी मेरी घट कर दरमियानी हो गईं।
रेत का इक सैल…
Added by Ravi Shukla on March 31, 2017 at 11:06am — 17 Comments
एक स्टोर के अंदर हाथ में ब्लैक चेक्स शर्ट लेकर खड़ी ऋषिता अमन को दिखाकर पूछ रही थी- "ये रहा तुम्हारा मन पसंद कलर" ! अमन शर्ट को देखते हुए - "अरे इसकी क्या जरुरत थी ?, " हर बात की कोई जरुरत हो जरूरी भी नही "- अमन के चेहरे को देखकर मुस्कुराती हुई वो जवाब देती है! उसका अंतर्मन आज दुखी है परंतु अमन को कैसे बताये वो खुद को तोड़ देने वाली बात की "अब हमें बिछड़ना होगा", अब वक़्त आ गया है हमारे प्रेम को उसकी मंजिल तक पहुँचाने का"! प्रेम तो होता ही ऐसा है या तो मिलकर मुस्कुराते है या बिछड़कर मुरझाते है!…
ContinueAdded by Ravi Sharma on March 31, 2017 at 9:00am — 4 Comments
२१२२/२१२२/२१२
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जैसी उस ने सौंपी थी वैसी मिले,
ये न हो चादर उसे मैली मिले.
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इस सफ़र में रात जब गहरी मिले
शम’अ कोई या ख़ुदा जलती मिले.
.
याद रखने के लिये दुनिया रही
भूल जाने के लिये हम ही मिले.
.
ये बग़ावत है तो हम बाग़ी सही,
सच कहेंगे, फिर सज़ा इस की मिले.
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हाँ! शुरू में रोज़ मिलते थे.. मगर
बाद में कुछ यूँ हुआ कम ही मिले.
.
सर…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 31, 2017 at 8:35am — 16 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on March 30, 2017 at 1:30pm — 13 Comments
Added by नाथ सोनांचली on March 29, 2017 at 4:03pm — 21 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 29, 2017 at 3:00pm — 3 Comments
Added by Manan Kumar singh on March 29, 2017 at 7:31am — 13 Comments
२२१२/२२१२/२२१२
बाजा़र मे दिल आज़माया कर कभी,
दिल बेचने भी यार आया कर कभी।
दिल टूटने का दर्द अब होगा नही,
इन पत्थरों से दिल लगाया कर कभी।
माना सितारों से बहुत हैं प्यार पर,
जुगनूओं को घर भी बुलाया कर कभी।
दुनिया अमीरों के मुआफ़िक हैं मगर,
कुछ घर ग़रीबी के सज़ाया कर कभी।
बे-शक ये रास्ते हैं तरक़्की़ के मगर,
पैमाना पर इनका बनाया कर कभी।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Hemant kumar on March 28, 2017 at 9:00pm — 7 Comments
समीक्षार्थ
मत्तगयन्द सवैया...... (एक प्रयास)
..
मंगल हो नववर्ष खिले मन वैभव ज्ञान सगे हरषाए
शीतल वायु बहे नित वासर धान फलें नहिं रोग सताए
भाग्य बने अरु धर्म जगे नवरोज़ शुभ यश गान सुनाए
जीवन में नित प्रीत पले रिपु बैर तजें स सखा बन जाए
..
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by अलका 'कृष्णांशी' on March 28, 2017 at 4:00pm — 7 Comments
Added by Manan Kumar singh on March 28, 2017 at 1:30pm — 5 Comments
1222 1222 122
मिलेगा क्या तुम्हें परदेश जा कर
रही माँ पूछती आँसू बहा कर
तड़पता छोड़कर तन्हा शजर को
परिंदा उड़ गया पर फड़फड़ा कर
बहल जाये विकल मासूम बचपन
नजर भर देख ले माँ मुस्कुरा कर
है पल पल टूटती साँसों की माला
बिता लो चार पल ये हँस हँसा कर
न जाओ छोड़कर 'ब्रज' कुंज गलियाँ
दरख्तों ने कहा ये कसमसा कर
.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 27, 2017 at 11:00pm — 10 Comments
Added by Rahila on March 27, 2017 at 10:00pm — 9 Comments
ख़्वाब ...
नींद से आगे की मंज़िल
भला
कौन देख पाया है
बस
टूटे हुए ख़्वाबों की
बिखरी हुई
किर्चियाँ हैं
अफ़सुर्दा सी राहें हैं
सहर का ख़ौफ़ है
सिर्फ
मोड़ ही मोड़ हैं
न शब् के साथ
न सहर के बाद
कौन जान पाया है
कब आता है
कब चला जाता है
ज़िस्म की
रगों में
हकीकत सा बहता है
अर्श और फ़र्श का
फ़र्क मिटा जाता है
सहर से पहले
जीता है
सहर से पहले ही
मर जाता है…
Added by Sushil Sarna on March 27, 2017 at 7:06pm — 5 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on March 27, 2017 at 6:51pm — 1 Comment
Added by Naveen Mani Tripathi on March 27, 2017 at 2:37pm — 9 Comments
काले कोलतार की चमक लिए पक्की सड़क । वहीं बगल में थोड़ी निचाई पर पक्की सड़क के साथ-साथ ही चलती एक पगडंडी ।
सड़क पर लोगों की खूब आमोदरफ्त रहती, गाड़ियों का आवागमन रहता । अपना मान बढ़ता देख सड़क इतराती रहती । एक दिन उसने पगडंडी से कहा – "मेरे साथ चल कर क्या तू मेरी बराबरी कर लेगी । कहाँ मैं चमकती हुयी चिकनी सड़क और कहाँ तू कंकड़-पत्थर से अटी हुयी बदसूरत सी पगडंडी । महंगी से महंगी और बड़ी से बड़ी गाडियाँ मेरे ऊपर से आराम से गुजर जाती हैं । और तू...हुंह... ।" क्यों अपना समय बेकार करती है । यहीं रुक…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on March 27, 2017 at 2:00pm — 3 Comments
#गजल#-103
.
कुर्सियाँ किसकी हुई हैं बोलिये भी
गाँठ में क्या-क्या छिपा है खोलिये भी।1
आपको भी क्या न करना पड़ गया है
हो न सकते साथ जिनके,हो लिये भी।2
जानते सब कुर्सियों की कीमतें हैं
हम भुला खुद को जरा-सा तोलिये भी।3
घोलते आये फ़िजां में क्या नहीं कुछ
अब जहर फिरसे यहाँ मत घोलिये भी।4
कुर्सियों के ताव में कुछ कर गये थे
चोट खायी खूब हमने गो लिये। भी।5
@मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Manan Kumar singh on March 27, 2017 at 9:30am — 9 Comments
.
समझ पाये जो ख़ुद के पार आये,
तेरी दुनिया में हम बेकार आये.
.
बहन माँ बाप बीवी दोस्त बच्चे,
कहानी थी.... कई क़िरदार आये.
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क़दम रखते ही दीवारें उठी थीं,
सफ़र में मरहले दुश्वार आये.
.
शिकस्ता दिल बिख़र जायेगा मेरा,
वहाँ से अब अगर इनकार आये.
.
उडाये थे कई क़ासिद कबूतर,
मगर वापस फ़क़त दो चार आये.
.
समुन्दर की अनाएँ गर्क़ कर दूँ,
मेरे हाथों में गर पतवार आये.
.
अगरचे…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2017 at 6:00pm — 28 Comments
लखूचंद
=====
एक दिन कालेज के कुछ युवक लखूचंद के सामने ही उसकी जमकर तारीफ कर रहे थे ,
‘‘‘ अरे ये तो लखूचंद के एक हाथ का कमाल है , दोनों हाथ होते तो पूरे जिले में मिठाई के नाम पर केवल इन्हें ही जाना जाता। लेकिन यार , ये तो बताओ कि दूसरा हाथ क्या जन्म से ही ऐसा है या बाद में कुछ हो गया ?‘‘
बहुत दिन बाद लखूचंद को अपनी जवानी के दिन याद आ गए, बोले ,
‘‘ युवावस्था में मैं यों ही बहुत धनवान होने का सपना देखा करता । पिताजी कहते थे कि मैं उनकी हलवाई की दूकान सम्हालूं…
Added by Dr T R Sukul on March 26, 2017 at 11:54am — 1 Comment
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