दॊ सवैया (मत्तगयंद) हॊली संदर्भ मॆं
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1)
रंग बिरंग गुलाल लियॆ सखि, ताकत झाँकत गैल हमारी !!
संग दबंग लफंग लियॆ कछु, आइ गयॊ अलि छैल-बिहारी !!
मॊहन माधव मारि दई तकि, जॊबन बीच भरी पिचकारी !!
भूल गई सुधि लाजनि तॆ सखि,भीगि गई रँग कॆशर सारी !!
2)
अंग अनंग उमंग उठी सखि, भंग मतंग करैं किलकारी !!
हूक उठी…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 30, 2013 at 8:30am — 11 Comments
पानी को ललात कहीं, दिखी भीड़ बिललात।
लम्बी सी कतार लगी, पात्र रीते घूरते।।
सूख गए कूप सारे, सूने पड़े नल कूप।
सूखी नदियों के घाट, मन देख खीझते।।
जल की…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on March 30, 2013 at 12:30am — 10 Comments
क्या खूब उसने मुझको , पर्दा हटा के मारा
उम्मीद के अंचल मैं , उसने सुला के मारा
आयेगे कह गए वो ,मेरा इंतज़ार करना
उम्मीद के दामन मैं, ऐसे फुला के मार
बेमौत मर गया वह, ये दुनिया कह रही थी
इन्सनियत में उसने , सर को कटा के मारा
मेरा वजूद उसका हमशक्ल बन गया था
यादों मैं उसने मुझको , ऐसा सता के…
Added by Dinesh Kumar khurshid on March 29, 2013 at 9:22pm — No Comments
Added by anwar suhail on March 29, 2013 at 8:59pm — 13 Comments
Added by Amod Kumar Srivastava on March 29, 2013 at 5:03pm — 6 Comments
इस रहम इस वफ़ा की जरुरत नहीं
अब किसी रहनुमा की जरुरत नहीं
खुद मिलें ना मिलें अब मुझे रास्ते
मुझको तेरी दुआ की जरुरत नहीं
दो कदम चल के जाने कहाँ खो गया
दिल को उस गुमशुदा की जरुरत नहीं
कोई उसको भी जाके बता दे जरा
मुझको उस बेवफा की जरुरत नहीं
मेरे दामन में अब दाग ही दाग हैं
अब किसी बेख़ता की जरुरत नहीं
-पुष्यमित्र
Added by Pushyamitra Upadhyay on March 28, 2013 at 8:49pm — 4 Comments
शाम सी जिंदगी गुजरती है
रात कितनी करीब लगती है
याद नित पैरहन बदलती है
ये शमा बूंद बन पिघलती है
आंत महसूस अब नहीं करती
भूख पर आंख से झलकती है…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on March 28, 2013 at 7:19pm — 14 Comments
Added by नादिर ख़ान on March 28, 2013 at 5:21pm — 7 Comments
मैं यह तो नहीं सकता कि मुझे सब कुछ आता है, पर यह बात मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं कि मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है. फिलहाल तो इतना ही सीख पाया हूं कि एक अदद नौकरी ठीकठाक चल सके. लेकिन इसमें भी एक पेंच है कि अगर काम अच्छे से नहीं किया तो समझो वह भी हाथ से गई. रोजमर्रा की दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने में लगा रहता हूं, जब कभी कहीं पर परीक्षा देने की बारी आती है तो हाथ पांव फूलने लगते है. न जाने क्यों परीक्षा के नाम से बचपन से ही डर लगता था, यह अलग बात है कि मैं परीक्षा में खरा ही उतरता…
ContinueAdded by Harish Bhatt on March 28, 2013 at 1:22am — 3 Comments
सत्य कथा......‘‘जो ध्यावे फल पावे सुख लाये तेरो नाम...........।‘‘ . नाम दया का तू है सागर......सत्य की ज्योति जलाये........सुख लाये तेरो नाम..! जो ध्याये फल पाये........नाम सुमिरन का साक्षात् प्रभाव और महत्व दोनों का ही अनुभव मैंने सहज में परख लिया है। वास्तव में जो सुख में जीता है, उसे न तो नाम सुमिरन का महत्व समझ में आता है और न ईश्वर से साक्षात् ही कर पाता है। वह केवल अपने स्वार्थ में लिप्त रह कर केवल कपट और मोह मे ही फॅसा रहता है। वास्तविकता तो यह भी है जो व्यक्ति स्वयं को अकिंचन, शून्य…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 27, 2013 at 10:40pm — 6 Comments
मुक्तक-- जो कि होली के साथ सबको होली की शुभकामनायें...........
आज होली के नाम पर तरसे
रोज तरसे जो आज भी तरसे,
जिंदगी गम का इक पहाड हुई,
कल भी पत्थर थे आज भी बरसे।।
.......................................सूबे सिंह सुजान
Added by सूबे सिंह सुजान on March 27, 2013 at 10:08pm — No Comments
हमने चुना
अपने लिए
एक नर्क
या धकेल दिया था तुमने
हमें नर्क में...
कोई फर्क नहीं पड़ता...
नर्क
भले ही जैसा था
हमने उसमें बसने का
बना लिया मन
और ठुकरा दिया
तुम्हारे स्वर्ग को
उन लुभावने सपनो को
जिसे दिखलाते रहे तुम
और तुम्हारे दलाल…
ContinueAdded by anwar suhail on March 27, 2013 at 7:52pm — 4 Comments
ये तन्हाई अब काटने को दौड़ती है
यह गुमनामी हमें अन्दर से तोडती है
हम उस कीड़े की तरह हैं जो आबाद समंदर में होकर भी
एक सीपी में कैद है
हम उस पेड़ की तरह हैं जो घने जंगल में
होकर भी सूरज की रौशनी से अब तक महफूज़ है
हम उस कैद पंच्छी की तरह हैं,
Added by Rohit Dubey "योद्धा " on March 27, 2013 at 11:24am — 3 Comments
(भाग -३ से आगे की कहानी )
जिस इलाके की यह कहानी है, वह पटना के पास का ही इलाका है, जहाँ की भूमि काफी उपजाऊ है. लगभग सभी फसलें इन इलाकों में होती है! धान, गेहूँ, के अलावा दलहन और तिलहन की भी पैदावार खूब होती है. दलहन में प्रमुख है मसूर, बड़े दाने वाले मसूर की पैदावार इस इलाके में खूब होती है. मसूर के खेत बरसात में पानी से भड़े रहते हैं. जैसे बरसात ख़तम होती है, उधर धान काटने लायक होने लगता है और इधर पानी सूखने के बाद खाली खेतों में मसूर की बुवाई कर दी जाती है. मसूर के खेत, केवाला…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on March 27, 2013 at 4:55am — 6 Comments
ऐसी ही एक शाम थी
कुछ गुलाबी थोड़ी सुनहरी
सूर्य किरणें जल में तैरती
तरल स्वर्ण सी चमकीली
फैली थी घनी लताएँ
हरित पत्तों बीच गहरी
बैगनी फूलों की छाया
हृदय में थी ठहरी सी
मन झील सा शांत
इच्छाएँ थीं चंचल , अकिंचन
पहेलियाँ कितनी अनबुझी
तैर रही थी मीन सी
गोद में खुला पड़ा था
पत्र एक , किसी अंजान का
उपेक्षित सा यूँ ही
बरसों पहले था पढ़ा
कितनी रातें बीती थी
सपनों में भटकती थी
उपवन में कभी , कभी –
निविड़…
Added by coontee mukerji on March 27, 2013 at 12:30am — 8 Comments
ओबीओ के समस्त सदस्यों को होली की मंगलमय शुभ कामनाएं
फाग अनुरागी बना, जगत बिरागी मन।
सुन्दर बसंती छटा, लगी मन…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on March 27, 2013 at 12:00am — 8 Comments
गीत रूठे हुए मीत छूटे हुए
फिर भी रस्में ये सारी निभा जाऊँगा
ये अलग बात है रंग मुझमें नहीं
फिर भी फागुन तुम्हें मैं दिखा जाऊँगा
आप सो जाइये ओढ़ कर बदरियाँ
मुझको इस धूप में और जलना अभी
लक्ष्य संसार के हों समर्पित तुम्हें
मुझको इक उम्रभर और चलना अभी
मन के मंदिर में बस तुम ही तुम देव हो
प्रीत के कुछ सुमन फिर चढ़ा जाऊँगा
ये अलग बात है रंग मुझमें नहीं
फिर भी फागुन तुम्हें मैं दिखा जाऊँगा
रंग यौवन के जब सब उतरने लगें
फूल जब…
Added by Pushyamitra Upadhyay on March 26, 2013 at 9:00pm — 4 Comments
गंगा, (ज्ञान गंगा व जल गंगा) दोनों ही अपने शाश्वत सुन्दरतम मूल स्वभाव से दूर पर्दुषित व व्यथित, हमारी काव्य कथा नायक 'ज्ञानी' से संवादरत हैं।
Added by Dr. Swaran J. Omcawr on March 26, 2013 at 8:30pm — 8 Comments
चढ़े प्रेम का रंग
-लक्ष्मण…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 26, 2013 at 6:30pm — 11 Comments
होली के हुड़दंग मा, खद्दरवा सत रंग।
आम जनता डर रही, शिव धनुवा जस भंग।।1
हाथी साइकिल चले, गदहा राज चलाय।
हर साख उल्लू बैठा, जनता रही लजाय।।2
होली से होली कहे, रंगों का रस रंग।
कौन खूनी रंग रहा, भारत मन बदरंग।।3
लड़खत दारू ठेलिये, कौन दिशा कहॅ ठांव।
नलियै में औंधे पड़े, धिक्कारे सब गांव।।4
होरियारन से होली, रंगो सजे समाज।
नशा मवाली फाग में,…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 26, 2013 at 4:44pm — 3 Comments
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