For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

March 2015 Blog Posts (229)


सदस्य कार्यकारिणी
मिटा दूँ या मिट जाऊँ -- अतुकांत ( गिरिराज भण्डारी )

मिटा दूँ या मिट जाऊँ

-----------------------

कब से भटक रहा हूँ

कभी पानी हुये

तो कभी खुद को नमक किये 

कोई तो मिले घुलनशील

या घोलक

घोल लूँ या घुल जाऊँ ,

समेट लूँ

अपने अस्तित्व में या

एक सार हो जाऊँ , किसी के अस्तित्व संग

विलीन कर दूँ ,

खुद को उसमें

या कर लूँ ,

उसको खुद में

भूल कर अपने होने का अहम

और भुला पाऊँ किसी को

उसके होने को   

ख़त्म हो जाये दोनों का ठोस…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on March 10, 2015 at 10:44am — 23 Comments

आतंकवादी (लघुकथा)

दिन भर खाक छान कर वो वापस घर लौट रहा था | चारो तरफ अँधेरा , सुनसान गलियां और गूंजती हुई बूटों की आवाज़ एक अजीब सा माहौल पैदा कर रहीं थीं | आज भी निराशा हाथ लगी थी उसे , कई जगह उसे रिजेक्ट कर दिया गया था | गली में घुसते ही घर के सामने उसे भीड़ दिखाई पड़ी , उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा | लगभग दौड़ते हुए वो घर में घुसा , देखा एक किनारे माँ ज़मीन पर निढाल पड़ी थी |

उसने झकझोरते हुए पूछा " क्या हुआ माँ ", तभी पड़ोसी चाचा की आवाज़ आई " तुम्हारे भाई को पुलिस पकड़कर ले गयी है "|

उलटे पांव भागा…

Continue

Added by विनय कुमार on March 10, 2015 at 2:30am — 16 Comments

क्यों कहते हो कुछ नहीं हो सकता है--- डॉo विजय शंकर

तुम बता रहे हो ,

मैं जानता हूँ , कुछ नहीं हो सकता ,

सदियों से झेलते आ रहे हैं ,

कुछ हुआ , अचानक अब क्या हो जाएगा।

पर , आओ हम कहें , तुम कहो , सब कहें कि

कुछ नहीं हो सकता , तय तो कर लें कि

क्या कुछ हो नहीं सकता।

वो जो पुरोधा बन के बैठे हैं ,

वह भी यही कह रहें हैं ,

वैसे वो जो चाहतें हैं , वह सब हो जाता है,

भाव बढ़ जाते हैं , मंहगाई बढ़ जाती है ,

उनकीं तारीफ़ , यशोगान हो जाता है ,

बस यही नहीं हो पाता है ,

हम ही दुनिया में अनूठे… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on March 9, 2015 at 8:43pm — 26 Comments

हे ईश्वर

किस तरह रच रहे हो तुम ये संसार

हे ईश्वर...

तुम भी तो पुरुष ही हो...

जानते हो तुमसे, हम पुरुषों से

किस कदर खौफ खाती हैं स्त्रियाँ

एक अप्रत्याशित आक्रमण

कभी भी हो सकता है उन पर

इस डर से भयभीत होकर

रखती हैं पर्स में हथौड़ी

कोई सलाह देता तो रख लेतीं मिर्च-पाऊडर

और बाज़ार बनाकर बेचता

कोई स्प्रे, कोई धारदार छोटा चाकू

कोई करेंट पैदा करने वाला यंत्र

या सरकारें ज़ारी करतीं ढेर सारे हेल्पलाइन…

Continue

Added by anwar suhail on March 9, 2015 at 7:30pm — 5 Comments

खोज

हर जिंदगी मे एक गीत है प्रीति है

पीड़ा है प्यार है

विरह है साथ है

संगीत है साज है

आक्रोश है संतोष है

संतुष्टि है विरोध है

तूफान है स्रोत है

संयम है क्रोध है

पहाड़ है पौंध है

कविता है कहानी है

पर हर जिंदगी सामने कहाँ आ पाती है

कही भाषा नहीं कहीं कलम नहीं है

कहीं हाथ नहीं कही पावँ नहीं हैं

कहीं आँखें नहीं कहीं कान नहीं हैं

कहीं बेबशी  मे  जबान नहीं है.

मौलिक व अप्रकाशित

श्याम…

Continue

Added by Shyam Mathpal on March 9, 2015 at 4:00pm — 6 Comments

तू हमेशा ही मुझमें रमी सी रही

जिन्दगी भर खुशी की कमी सी रही
इक परत सी गमों की जमी सी रही
....
ढोल बजते रहे शहर में हर तरफ
पर मेरे आशियाँ में गमी सी रही
....
चाहकर भी न भूला तेरे प्यार को
तू हमेशा ही मुझमें रमी सी रही
....
नींद आती भी आँखों में कैसे भला
आँखों में आसुओं की नमी सी रही
....
कोई दस्तक बजेगी मेरे द्वार पर
सोचकर साँस मेरी थमी सी रही

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

Added by umesh katara on March 9, 2015 at 9:00am — 22 Comments

शिकार (विश्व महिला -दिवस पर विशेष)

कैसा यह ---

जिसे विश्व कहता है

बलात्कारो का देश

जिसकी राजधानी को

रेप सिटी कहते हैं

जिस देश में आंकड़े बताते है

हर बीस मिनट पर

होता है एक रेप

जहां के सांसद और विधायक

अभियुक्त है

अनेक हत्या और बलात्कार के

जिन पर होती नहीं कोई कार्यवाही

जहां बलात्कार के बाद होती है हत्या

जहाँ तंदूर में जलाई जाती है नारी

जहाँ रेप के बाद निकली जाती है आँखे

जहाँ निर्भया की चीखती है अतडियाँ

जहा प्रतिबन्धित…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 8, 2015 at 6:30pm — 26 Comments

बला-ए-इश्क़ ‘’जान गोरखपुरी’’

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

कुम्हलाए हम तो जैसे सजर से पात झड़ जायें

यु दिल वीरां कि बिन तेरे चमन कोई उजड़ जायें

मिरी आव़ाज में है अब चहक उसके आ जाने की

सितारों आ गले लूँ लगा कि हम तुम अब बिछड़ जायें

कि बरसों बाद मिलके आज छोड़ो शर्म एहतियात

लबों से कह यु दो के अब लबों से आ के लड़ जायें

न मारे मौत ना जींस्त उबारे या ख़ुदा खैराँ

बला-ए-इश्क़ पीछे जिस किसी के हाय पड़ जायें

बना डाला…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 8, 2015 at 5:30pm — 26 Comments

ये कैसा भय है

दुनिया हँसेगी 

ये कैसा भय है

मात्र इस भय से

तुम उस रिश्ते पर

पूर्ण विराम लगाना चाहते हो

जिसका जन्म हुआ है

पावन भावनाओं के गर्भ से

क्या हँसी बाँटना पाप है 

नहीं ! 

तो फिर दुनिया के हँसने से

क्या परहेज है तुम्हें

हँसने से 

ईश्वर प्रसन्न होता है

आत्मा प्रसन्न होती है

अगर तुम्हारे और मेरे मिलन से

दुनिया हँसती है 

तो इससे भली बात क्या होगी 

तुम्हारे और मेरे लिये

आओ हम मिल जाते हैं 

हमेशा के लिये

और दुनिया को हँसा देते…

Continue

Added by umesh katara on March 8, 2015 at 4:08pm — 16 Comments

कुण्डलिया छंद (अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष_

नारी अब चेतन हुई ,बदला उसका रूप 

हर मौसम हर समय वो ,लेती नए स्वरूप 

लेती नए स्वरूप ,आसमां पर छा जाती 

सहती हर संघर्ष ,दिलेरी खूब दिखाती 

स्वाभिमान को जान,स्वयं पर जाती वारी

खूब कमाती मान ,आज कीशिक्षित नारी ॥ 

अप्रकाशित व मौलिक 

कल्पना मिश्रा बाजपेई 

Added by kalpna mishra bajpai on March 8, 2015 at 4:00pm — 12 Comments

महिला दिवस: लघुकथा- हरि प्रकाश दुबे

“आज स्त्री दिवस है भाई, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, ८ मार्च है ना, समझे कुछ !”

“किस लिए मना रहें हैं भईया, और कबसे ?”

“ अरे यार एकदम बकलोल हो क्या ? अरे महिलाओं के लिए, उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक़्क़ी दिलाने और उन महिलाओं को याद करने के लिए जिन्होंने महिलाओं के लिए प्रयास किए, अरे १९०९ से मना रहें हैं १०० साल से जयादा हो गए मनाते हुए, कुछ पढ़ते नहीं हो क्या ? !”

“तब भइया, रोज क्यों नहीं मनाते, देखिये न सभी स्त्रीयां सुबह से रात तक घर, परिवार,समाज का कितना…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on March 8, 2015 at 3:16pm — 27 Comments

इण्डियाज डॉटर क्या है -- डॉo विजय शंकर

इण्डियाज डॉटर क्या है ,

बी बी सी द्वारा बनाई गयी

एक डॉक्यूमेंटरी फिल्म है ,

एक गंभीर विषय है, हमारी

व्यवस्था, सोंच , नज़रिये को ,

को झकझोर देने वाला विषय है ,

ख़बरों में है, मगर विचार में नहीं |

हमको हमारे बारे में बताती है,

समझो, कुछ तो , हमें समझाती है ,

एक विचार , एक चुनौती है यह ,

सोचना पड़ेगा , ऐसा है कुछ यह।



एक निवेदन है यह ,

किसी की आशा , पूरी जिंदगी ,

लाज , लज्जा , अस्तित्व है यह।

एक दबाई गई सिसकी है… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on March 8, 2015 at 12:56pm — 15 Comments

मैं झूमता चला हूँ : हरि प्रकाश दुबे

22--22—22--22--22—2

मैं तो हूँ फ़कीर मैं झूमता चला हूँ

आदाब कर खुदा को नाचता चला हूँ

 

मस्त हूँ ख़ुशी मैं कहूं इसे ही जीना

गम के भँवर मैं मस्त तैरता चला हूँ

 

मौत क्या बला है मैंने इसे न जाना

जिंदगी मिली है बस भागता चला हूँ

 

बड़ी ख़ाक छानी पहले हुआ परेशां

नसीब को नाज़ तले रौंदता चला हूँ      (नाज़= कोमलता)

 

शक हो किसी के दिल में तो आजमाले

इस देह को न’अश को सौंपता चला हूँ   (न’अश =…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on March 8, 2015 at 11:06am — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
तपे रोज जितना हम और भी निखरते गये (महिला दिवस पर विशेष ग़ज़ल 'राज')

१२२ १२२ २२१ २१२ २१२

हटाये जो  काँटे तो रास्ते सुधरते गये 

दुआएँ समझ कर हम झोलियों में भरते गये

 

कदम दर कदम जिस जिस मोड़ से गुजरते गये  

बने तल्ख़ियों के घर टूटते बिखरते गये

 

खुदा जाने  कैसे किस कांच के बने थे अजब    

 दरकते रहे  पत्थर आईने सँवरते गये   

 

दबाता रहा हमको झूठ आजमाता रहा   

सदा सच पकड़ हम हालात से उबरते गये  

 

ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा

तपे  रोज जितना हम और भी निखरते…

Continue

Added by rajesh kumari on March 8, 2015 at 9:34am — 25 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - पाँव में जंजीर है.... (मिथिलेश वामनकर)

2212 / 2212 / 2212 / 2212----- (इस्लाही ग़ज़ल)

 

दिल खोल के हँस ले कभी,  ऐसी कहाँ तस्वीर है

यारो चमन की आजकल इतनी कहाँ तकदीर…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on March 8, 2015 at 9:30am — 43 Comments

था सरीफों के लिए वो - लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

2122    2122   2122   212

*****************************

दुर्दिनों ने आँख का  जब यार  जाला  हर लिया

तब दिखा है मयकशी ने इक शिवाला हर लिया

****

बाँटती थी  कल  तलक तो  वो बहुत ही जोर दे

राह ने किस बात से  अब पाँव छाला हर लिया

****

था  सरीफों  के  लिए  वो  राह  से  भटकें नहीं

कोतवालो चोर  से  पहले  ही  ताला हर लिया

****

टोकता है  कौन  दिन  को  दे  उजाला  कुछ उसे

रात के हिस्से का जिसने सब उजाला हर लिया

****

था पुराना  ही  सही पर मान…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2015 at 5:00am — 14 Comments

तैयारी

रख दिए उसने

छोटी सी अटैची में   

कुछ कपडे सहेज के

जो जरूरी हैं सफ़र के लिए

क्योंकि वह पत्नी है जानती है

मेरी आवश्यकताये  

 

मै जानता हूँ

उसमे क्या होगा

एक जोड़ी कपडे, कच्छा-बनयाईन

परफ्यूम की शीशी, शेव का सामान

एक टूथ-ब्रश, जीभी और पेस्ट

छोटा सा कंघा, फकत एक शीशा

लंच का पैकेट भी  

 

है कुछ मेरी

अपनी भी तैयारियां 

पसंद का रूमाल सादा और…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 7, 2015 at 8:30pm — 14 Comments

होली का हुड़दंग

होली का हुड़दंग न खेला, तो क्या खेला जीवन मेें,

भौजी के संग रंग न खेला, तो क्या खेला जीवन में।

फगुआ की मदमस्त हवा में, जन-जन है बौराय रहा,

मानव तो मानव है, देखौ पादप भी बौराय रहा।

नगर-नगर और गली गली में होरियारे गोहराय रहे,

होली का हुड़दंग न खेला तो क्या खेला जीवन में।

पप्पू, रामू, मुन्नू, सोनू सबके हाथों में पिचकारी,

घर से निकली बबली गोरी बौछारों के सम्मुख हारी।

ढोल, नगाड़े, ताशे के संग होरियारों की टोली निकली,

रंग गुलाल गाल को रंगो हुड़दंगो की बोली…

Continue

Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on March 7, 2015 at 11:35am — 4 Comments

दिल से हम असआर पकाया करते हैं - लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

2222    2112   2222

***************************

पत्थर  पर  भी  प्यार  जताया करते हैं

इक  नूतन  संसार   बसाया   करते  हैं

****

लज्जत  तुमको  यार तनिक तो देंगे ही

दिल  से  हम असआर पकाया करते हैं

****

तनहा  हमको आप  समझना लोगो मत

हम  गम  का  दरवार  लगाया  करते  हैं

****

कुबड़ी  अपनी पीठ हुई  मत पूछो क्यों

यादों  का   हम  भार   उठाया  करते हैं

****

अश्कों से मत पूछ जिगर तक आजा तू

आँसू   केवल   सार   बताया   करते  हैं

****

जीवन…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 7, 2015 at 11:03am — 13 Comments

सामने आ रे !

सामने आ रे !

रात्रि-आकाश में अक्सर

तुम्हें निहारे

कहाँ छुपे हो प्रियम्वदा

होकर तारे ?

बचपन से कहते आए हैं

सब प्यारे

इस लोक से जाने वाले हो

जाते हैं तारे !

भीड़ भरे आकाश में नयन

खोज के हारें

शांतिप्रभा आर्त पुकार सुन लो

करो  इशारे |

टूटता विश्वास का पुंज देख के  

टूटते तारे

है व्याकुल हृदय की क्रन्दना

सामने आ रे !

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

 

Added by somesh kumar on March 7, 2015 at 9:51am — 7 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . .तकदीर
"आदरणीय अच्छे सार्थक दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई  आख़िरी दोहे की मात्रा फिर से गिन लीजिये …"
6 hours ago
सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर   होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर । उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service