मिटा दूँ या मिट जाऊँ
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कब से भटक रहा हूँ
कभी पानी हुये
तो कभी खुद को नमक किये
कोई तो मिले घुलनशील
या घोलक
घोल लूँ या घुल जाऊँ ,
समेट लूँ
अपने अस्तित्व में या
एक सार हो जाऊँ , किसी के अस्तित्व संग
विलीन कर दूँ ,
खुद को उसमें
या कर लूँ ,
उसको खुद में
भूल कर अपने होने का अहम
और भुला पाऊँ किसी को
उसके होने को
ख़त्म हो जाये दोनों का ठोस…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 10, 2015 at 10:44am — 23 Comments
दिन भर खाक छान कर वो वापस घर लौट रहा था | चारो तरफ अँधेरा , सुनसान गलियां और गूंजती हुई बूटों की आवाज़ एक अजीब सा माहौल पैदा कर रहीं थीं | आज भी निराशा हाथ लगी थी उसे , कई जगह उसे रिजेक्ट कर दिया गया था | गली में घुसते ही घर के सामने उसे भीड़ दिखाई पड़ी , उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा | लगभग दौड़ते हुए वो घर में घुसा , देखा एक किनारे माँ ज़मीन पर निढाल पड़ी थी |
उसने झकझोरते हुए पूछा " क्या हुआ माँ ", तभी पड़ोसी चाचा की आवाज़ आई " तुम्हारे भाई को पुलिस पकड़कर ले गयी है "|
उलटे पांव भागा…
ContinueAdded by विनय कुमार on March 10, 2015 at 2:30am — 16 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 9, 2015 at 8:43pm — 26 Comments
किस तरह रच रहे हो तुम ये संसार
हे ईश्वर...
तुम भी तो पुरुष ही हो...
जानते हो तुमसे, हम पुरुषों से
किस कदर खौफ खाती हैं स्त्रियाँ
एक अप्रत्याशित आक्रमण
कभी भी हो सकता है उन पर
इस डर से भयभीत होकर
रखती हैं पर्स में हथौड़ी
कोई सलाह देता तो रख लेतीं मिर्च-पाऊडर
और बाज़ार बनाकर बेचता
कोई स्प्रे, कोई धारदार छोटा चाकू
कोई करेंट पैदा करने वाला यंत्र
या सरकारें ज़ारी करतीं ढेर सारे हेल्पलाइन…
ContinueAdded by anwar suhail on March 9, 2015 at 7:30pm — 5 Comments
हर जिंदगी मे एक गीत है प्रीति है
पीड़ा है प्यार है
विरह है साथ है
संगीत है साज है
आक्रोश है संतोष है
संतुष्टि है विरोध है
तूफान है स्रोत है
संयम है क्रोध है
पहाड़ है पौंध है
कविता है कहानी है
पर हर जिंदगी सामने कहाँ आ पाती है
कही भाषा नहीं कहीं कलम नहीं है
कहीं हाथ नहीं कही पावँ नहीं हैं
कहीं आँखें नहीं कहीं कान नहीं हैं
कहीं बेबशी मे जबान नहीं है.
मौलिक व अप्रकाशित
श्याम…
Added by Shyam Mathpal on March 9, 2015 at 4:00pm — 6 Comments
जिन्दगी भर खुशी की कमी सी रही
इक परत सी गमों की जमी सी रही
....
ढोल बजते रहे शहर में हर तरफ
पर मेरे आशियाँ में गमी सी रही
....
चाहकर भी न भूला तेरे प्यार को
तू हमेशा ही मुझमें रमी सी रही
....
नींद आती भी आँखों में कैसे भला
आँखों में आसुओं की नमी सी रही
....
कोई दस्तक बजेगी मेरे द्वार पर
सोचकर साँस मेरी थमी सी रही
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Added by umesh katara on March 9, 2015 at 9:00am — 22 Comments
कैसा यह ---
जिसे विश्व कहता है
बलात्कारो का देश
जिसकी राजधानी को
रेप सिटी कहते हैं
जिस देश में आंकड़े बताते है
हर बीस मिनट पर
होता है एक रेप
जहां के सांसद और विधायक
अभियुक्त है
अनेक हत्या और बलात्कार के
जिन पर होती नहीं कोई कार्यवाही
जहां बलात्कार के बाद होती है हत्या
जहाँ तंदूर में जलाई जाती है नारी
जहाँ रेप के बाद निकली जाती है आँखे
जहाँ निर्भया की चीखती है अतडियाँ
जहा प्रतिबन्धित…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 8, 2015 at 6:30pm — 26 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
कुम्हलाए हम तो जैसे सजर से पात झड़ जायें
यु दिल वीरां कि बिन तेरे चमन कोई उजड़ जायें
मिरी आव़ाज में है अब चहक उसके आ जाने की
सितारों आ गले लूँ लगा कि हम तुम अब बिछड़ जायें
कि बरसों बाद मिलके आज छोड़ो शर्म एहतियात
लबों से कह यु दो के अब लबों से आ के लड़ जायें
न मारे मौत ना जींस्त उबारे या ख़ुदा खैराँ
बला-ए-इश्क़ पीछे जिस किसी के हाय पड़ जायें
बना डाला…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 8, 2015 at 5:30pm — 26 Comments
दुनिया हँसेगी
ये कैसा भय है
मात्र इस भय से
तुम उस रिश्ते पर
पूर्ण विराम लगाना चाहते हो
जिसका जन्म हुआ है
पावन भावनाओं के गर्भ से
क्या हँसी बाँटना पाप है
नहीं !
तो फिर दुनिया के हँसने से
क्या परहेज है तुम्हें
हँसने से
ईश्वर प्रसन्न होता है
आत्मा प्रसन्न होती है
अगर तुम्हारे और मेरे मिलन से
दुनिया हँसती है
तो इससे भली बात क्या होगी
तुम्हारे और मेरे लिये
आओ हम मिल जाते हैं
हमेशा के लिये
और दुनिया को हँसा देते…
Added by umesh katara on March 8, 2015 at 4:08pm — 16 Comments
नारी अब चेतन हुई ,बदला उसका रूप
हर मौसम हर समय वो ,लेती नए स्वरूप
लेती नए स्वरूप ,आसमां पर छा जाती
सहती हर संघर्ष ,दिलेरी खूब दिखाती
स्वाभिमान को जान,स्वयं पर जाती वारी
खूब कमाती मान ,आज कीशिक्षित नारी ॥
अप्रकाशित व मौलिक
कल्पना मिश्रा बाजपेई
Added by kalpna mishra bajpai on March 8, 2015 at 4:00pm — 12 Comments
“आज स्त्री दिवस है भाई, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, ८ मार्च है ना, समझे कुछ !”
“किस लिए मना रहें हैं भईया, और कबसे ?”
“ अरे यार एकदम बकलोल हो क्या ? अरे महिलाओं के लिए, उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक़्क़ी दिलाने और उन महिलाओं को याद करने के लिए जिन्होंने महिलाओं के लिए प्रयास किए, अरे १९०९ से मना रहें हैं १०० साल से जयादा हो गए मनाते हुए, कुछ पढ़ते नहीं हो क्या ? !”
“तब भइया, रोज क्यों नहीं मनाते, देखिये न सभी स्त्रीयां सुबह से रात तक घर, परिवार,समाज का कितना…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 8, 2015 at 3:16pm — 27 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 8, 2015 at 12:56pm — 15 Comments
22--22—22--22--22—2
मैं तो हूँ फ़कीर मैं झूमता चला हूँ
आदाब कर खुदा को नाचता चला हूँ
मस्त हूँ ख़ुशी मैं कहूं इसे ही जीना
गम के भँवर मैं मस्त तैरता चला हूँ
मौत क्या बला है मैंने इसे न जाना
जिंदगी मिली है बस भागता चला हूँ
बड़ी ख़ाक छानी पहले हुआ परेशां
नसीब को नाज़ तले रौंदता चला हूँ (नाज़= कोमलता)
शक हो किसी के दिल में तो आजमाले
इस देह को न’अश को सौंपता चला हूँ (न’अश =…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 8, 2015 at 11:06am — 12 Comments
१२२ १२२ २२१ २१२ २१२
हटाये जो काँटे तो रास्ते सुधरते गये
दुआएँ समझ कर हम झोलियों में भरते गये
कदम दर कदम जिस जिस मोड़ से गुजरते गये
बने तल्ख़ियों के घर टूटते बिखरते गये
खुदा जाने कैसे किस कांच के बने थे अजब
दरकते रहे पत्थर आईने सँवरते गये
दबाता रहा हमको झूठ आजमाता रहा
सदा सच पकड़ हम हालात से उबरते गये
ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा
तपे रोज जितना हम और भी निखरते…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 8, 2015 at 9:34am — 25 Comments
2212 / 2212 / 2212 / 2212----- (इस्लाही ग़ज़ल) |
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दिल खोल के हँस ले कभी, ऐसी कहाँ तस्वीर है |
यारो चमन की आजकल इतनी कहाँ तकदीर… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 8, 2015 at 9:30am — 43 Comments
2122 2122 2122 212
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दुर्दिनों ने आँख का जब यार जाला हर लिया
तब दिखा है मयकशी ने इक शिवाला हर लिया
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बाँटती थी कल तलक तो वो बहुत ही जोर दे
राह ने किस बात से अब पाँव छाला हर लिया
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था सरीफों के लिए वो राह से भटकें नहीं
कोतवालो चोर से पहले ही ताला हर लिया
****
टोकता है कौन दिन को दे उजाला कुछ उसे
रात के हिस्से का जिसने सब उजाला हर लिया
****
था पुराना ही सही पर मान…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2015 at 5:00am — 14 Comments
रख दिए उसने
छोटी सी अटैची में
कुछ कपडे सहेज के
जो जरूरी हैं सफ़र के लिए
क्योंकि वह पत्नी है जानती है
मेरी आवश्यकताये
मै जानता हूँ
उसमे क्या होगा
एक जोड़ी कपडे, कच्छा-बनयाईन
परफ्यूम की शीशी, शेव का सामान
एक टूथ-ब्रश, जीभी और पेस्ट
छोटा सा कंघा, फकत एक शीशा
लंच का पैकेट भी
है कुछ मेरी
अपनी भी तैयारियां
पसंद का रूमाल सादा और…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 7, 2015 at 8:30pm — 14 Comments
होली का हुड़दंग न खेला, तो क्या खेला जीवन मेें,
भौजी के संग रंग न खेला, तो क्या खेला जीवन में।
फगुआ की मदमस्त हवा में, जन-जन है बौराय रहा,
मानव तो मानव है, देखौ पादप भी बौराय रहा।
नगर-नगर और गली गली में होरियारे गोहराय रहे,
होली का हुड़दंग न खेला तो क्या खेला जीवन में।
पप्पू, रामू, मुन्नू, सोनू सबके हाथों में पिचकारी,
घर से निकली बबली गोरी बौछारों के सम्मुख हारी।
ढोल, नगाड़े, ताशे के संग होरियारों की टोली निकली,
रंग गुलाल गाल को रंगो हुड़दंगो की बोली…
Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on March 7, 2015 at 11:35am — 4 Comments
2222 2112 2222
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पत्थर पर भी प्यार जताया करते हैं
इक नूतन संसार बसाया करते हैं
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लज्जत तुमको यार तनिक तो देंगे ही
दिल से हम असआर पकाया करते हैं
****
तनहा हमको आप समझना लोगो मत
हम गम का दरवार लगाया करते हैं
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कुबड़ी अपनी पीठ हुई मत पूछो क्यों
यादों का हम भार उठाया करते हैं
****
अश्कों से मत पूछ जिगर तक आजा तू
आँसू केवल सार बताया करते हैं
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जीवन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 7, 2015 at 11:03am — 13 Comments
सामने आ रे !
रात्रि-आकाश में अक्सर
तुम्हें निहारे
कहाँ छुपे हो प्रियम्वदा
होकर तारे ?
बचपन से कहते आए हैं
सब प्यारे
इस लोक से जाने वाले हो
जाते हैं तारे !
भीड़ भरे आकाश में नयन
खोज के हारें
शांतिप्रभा आर्त पुकार सुन लो
करो इशारे |
टूटता विश्वास का पुंज देख के
टूटते तारे
है व्याकुल हृदय की क्रन्दना
सामने आ रे !
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by somesh kumar on March 7, 2015 at 9:51am — 7 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
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2011
2010
1999
1970
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