दूर है चाँद बंदगी हो क्या
दिल की बस्ती में रौशनी हो क्या
और के ख्वाब को न आने दिये
ख्वाब में ऐसी नौकरी हो क्या
मुड़के देखा हमें न जाते हुये
तल्ख़ इससे भी बेरुखी हो क्या
…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on March 31, 2014 at 6:00pm — 16 Comments
चाँद मुझे तरसाते क्यूँ हो ?
तुम सुंदर हो , तुम भोले हो
नटखट तुम हो बहुत सलोने ।
रूठ - रूठ जाते क्यूँ मुझसे ?
छुप छुप कर बादल के कोने ।
तुम बादल से झांक झांक कर, अपना रूप दिखाते क्यूँ हो
चाँद मुझे तरसाते क्यूँ हो ?
मुझसे स्नेह नहीं है, मानूँ –
तुम छुप जाओ नज़र न आओ ।
चंद्र बदन ढँक लो तुम अपना
मेरी बगिया नज़र न आओ ।
आँख मिचौली खेल खेल कर, रह रह मुझे रिझाते क्यूँ हो
चाँद मुझे…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on March 31, 2014 at 5:00pm — 8 Comments
साकी तो हो गिलास भी हो क्या !
घूँट-दो -घूँट ये प्यास भी हो क्या !
--
दूर-दूर यूँ रहकर पास भी हो क्या !
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या !
--
क्यूँ लगता है डर सा अंधेरों को ?
मुझसे कह दो उजास भी हो क्या !
--
ढँक रही हो मुझको शिदद्त से,
मेरी हमनफ़स लिबास भी हो क्या !
--
दूध जैसी निर्मल…
Added by AVINASH S BAGDE on March 31, 2014 at 4:47pm — 3 Comments
1 अप्रैल 2014 को ओबीओ की चौथी वर्षगाँठ है। चार वर्षो में इस मंच ने मुझ जैसे सैकड़ों लेखको को तैयार किया है | इस अवसर पर दोहों के रूप में सभी सदस्यों में सहर्ष पुष्प समर्पित है ।-
मना रहे सब साथ में, उत्सव देखो आज
चार वर्ष कर पूर्ण ये, बना खूब सरताज |
बागी की ही सोच से, बिछ पाया यह साज
योगराज…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 31, 2014 at 3:30pm — 15 Comments
1222- 1222- 1222
मुसीबत साथ आई हमसफर की तरह
लगे है धूप भी अब राहबर की तरह
सहे जाता हूँ मौसम की अज़ीयत मैं अज़ीयत =यातना
बियाबाँ मे किसी उजड़े शजर की तरह
झुलसने लगता है मन सुब्ह उठते ही
हुये दिन गर्मियों की दोपहर की तरह
घुटन होने लगी है इन हवाओं मे
जहाँ लगने लगा है बन्द घर की तरह
हिसारे ग़म से बाहर लाये कोई तो हिसारे ग़म= ग़म का घेरा
मुसल्सल…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 31, 2014 at 8:08am — 29 Comments
आंखों देखी -14 एक नये अध्याय की सूचना
05 दिसम्बर 1986 के दिन पहली बार जहाज “थुलीलैण्ड” के साथ हम लोगों का रेडियो सम्पर्क स्थापित हुआ. अभी भी नये अभियान दल को अंटार्कटिका पहुँचने में लगभग तीन सप्ताह का समय लगना था, लेकिन मन में कितने ही मिश्रित भाव उमड़ने लगे. जहाज मॉरीशस के इलाके में था. एक साल पहले वहाँ से गुजरते हुए हम लोगों को जहाज से उतरने की अनुमति नहीं मिली थी. क्या वापसी यात्रा में हम मॉरीशस की धरती पर उतरेंगे ? कौन जाने ! फिलहाल जहाज के आने की प्रतीक्षा है – उसमें…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on March 31, 2014 at 1:30am — 17 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
जो भूखा रो रहा उसको नही रोटी खिलाते हैं
जो बुत हैं मौन मंदिर में उन्हें सब सर झुकाते हैं
जिकर होता है जिसका दोस्तों हर सांस में मेरी
मेरे दुश्मन का लेके नाम वो मेंहदी रचाते है
जहाँ भी चाहते दिल फेंकते आदत है ये उनकी
नजर जब हमसे मिलती है तो वो कितना लजाते हैं
सजाये थे गुलाबी पांखुरी से पथ मगर अब क्या
जो पल्लू झाड़ियों में खुद ही अब उलझाये जाते हैं
गुलाबों की भी किस्मत आशु…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 30, 2014 at 1:00pm — 19 Comments
नवगीत--झील चुप सी.......!
झील चुप सी राह तकती,
नाव डगमग
भाव भर कर
राज सारे पूछती है।
रेत फिसली
तट सॅवर कर,
हाथ पल पल
धो रही नित,
मल घुला जल
विष भरे तन
मीन प्यासी कोसती है।।1
सूर्य किरनों से
पिए नित रक्त
नदियों के बदन का,
धर्म की
पतवार भी अब
तीर सम तन छेदती है।।2
वन-सरोवर
तन उचट कर
छॉंव गिर कर
दूर जाती।
प्रेम का
सम्बन्ध रचकर
सांझ तक मन सोखती…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 30, 2014 at 8:53am — 17 Comments
जां कभी ये जहान लेता है
और कभी आसमान लेता है
सब्र का इम्तेहान लेता है
हिज़्र का पल भी जान लेता है
रिंद आबे हयात पी आया
और वाइज़ बयान लेता है
लोग कहते हैं सर कटा ले तू
और वो बात मान लेता है
पैरवी कर के वो लुटेरों की
रोज मुफ़लिस की जान लेता है
लो ग़ज़ल बन गयी ये कहते हैं
जब वो कहने की ठान लेता है
वो मुझे राज़दार है कहता
और शमशीर तान लेता है
धार आ जाती है हवाओ में
ख्वाब जब भी उड़ान…
Added by भुवन निस्तेज on March 30, 2014 at 12:00am — 10 Comments
मानव
मानव इस संसार का, स्वयं बृह्म साकार।
दंगा आतंक द्वेष को, खुद देता आकार।।1
मानव मन का दास है, पल पल रचता रास।
अन्तर्मन को भूल कर, बना लोक का हास।।2
तंत्र-मंत्र मनु सीख कर, चढ़ा व्यास की पीठ।
करूणाकर सम बोलता, इन्द्रराज अति ढीठ।।3
स्वर्ग जिसे दिखता नहीं, वह है दुर्जन धूर्त।
मात-पिता के चरण में, चौदह भू-नभ मूर्त।।4
पाठ पढ़े हित प्रेम का, कर्म करे विस्तार।
ज्ञान सुने ज्ञानी बने, भाव भरें…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 29, 2014 at 8:30pm — 8 Comments
कह मुकरियाँ
(ये मेरा पहला प्रयास है )
प्रेम बूँद वो भर भर लाते
तपित हिये की प्यास बुझाते
मन मयूर मेरा उस पर पागल
क्या सखि साजन्, ना सखि बादल
कभी पेड़ों के पीछे से झाँके
कभी खिड़की से झाँक मुस्काए
हँस हँस के डाले है वो फंदा
क्या सखि साजन्, ना सखि चंदा
उम्मीदों की किरण जगाता
स्फूर्ति नई वो भर भर लाता
शुरु होता जीवन उससे मेरा
क्या सखि साजन्, ना सखि…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on March 29, 2014 at 1:00pm — 4 Comments
1222 1222 1222 1222
****
सिखाते क्यों हमें हो तुम वही इतिहास की बातें
दिलों में घोलकर नफरत नये विश्वास की बातें
*
बताओ घर बनेगा क्या हमारा आसमानों में
जमीनें छीन के करते सदा आवास की बातें
*
कहाँ से हो कठौती में हमारे गंग की धारा
बिठाई ना मनों में जब कभी रविदास की बातें
*
बहाकर अश्क भी यारो कहाँ दुख दूर होते हैं
गमों से पार पाने को करो परिहास की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 29, 2014 at 7:30am — 29 Comments
ये ग़ज़ल नहीं है देश का बयान है,
डूबते जहाज की ये दास्तान है।
लुट रही है कहकहाें के बीच अाबरु,
धर्तीपुत्र अाज माैन, बेजुबान है।
गर्व था उन्हें कि बन गये जगतपिता,
गर्भ में ही मर चुका वाे संविधान है।
हम ताे नेक हैं ये बाेलता है हर काेई,
हर काेई कहे कि मुल्क बेइमान है।
घर ताे बन गया मगर वाे साे नहीं सके,
बेघराें के बीच घर जाे अालिशान है।
लाेग पूछते हैं कैसे खण्डहर बना…
ContinueAdded by Krishnasingh Pela on March 29, 2014 at 12:30am — 14 Comments
मित्र !
आओ जीवंत बने|
देहधारी चेतना हम
कार्य-कारण को समझ
प्रत्येक क्षण-
स्मित-अधर या
सजल नयन हो
माने
'परम' प्रदत्त है
हर क्षण का सामंत बने|
गत क्षण से
आगत क्षण तक
यूँ गुथ
क्षण मणिमाल आत्म बल जाग्रत करें
कि
अंतर-जलद
संवेदना झर
प्यास हर
उर शांत बने|
आत्म कल्याण करें
क्षण-क्षण लोकहिताय रत
कर्मनिष्ठ जीवन-पर्यंत बने|
मित्र !
आओ जीवंत बने|
प्रमोद श्रीवास्तव, लखनऊ|
(मौलिक और…
Added by PRAMOD SRIVASTAVA on March 28, 2014 at 11:30pm — 4 Comments
फिर आया मौसम चुनाव का, वोट की कीमत जानो।
पाँच बरस फिर अवसर दे दो, सेवक को पहचानो॥
लोकतंत्र मजबूत बनेगा, संशय मन में न पालो।
भई, वोट मुझे ही डालो। …
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 28, 2014 at 7:30pm — 11 Comments
(2212 2212)
********************
थे साथ मेरे जो कभी
मेरे नहीं थे वो कभी
कुछ दर्द कम तो हो मिरा,
ये घाव सी डालो कभी
जी को ज़रा ख़ामोश कर,
इन आँसुओं को रोक भी
कबतक दुखों से काम लूँ?
कोई ख़ुशी भी दो कभी
मैं ही सदा पलटा करूँ?
तुम भी मुझे रोको कभी
जिनका नहीं कोई कहीं,
उनके लिए भी रो कभी
जो मैं सही हूँ, 'दाद' दे,
जो मैं ग़लत हूँ, टोक भी
माँ ही…
ContinueAdded by Zaif on March 28, 2014 at 5:30pm — 9 Comments
२२१२ १२२२ २२१ २१२
वो बज्म में यूं तनहा क्यूँ खुद आप सोचिये
वो मैकदे मैं प्यासा क्यूँ खुद आप सोचिये
सूरज फलक पे आता है हर रोज वक़्त पर
फिर भी रहा अँधेरा क्यूँ खुद आप सोचिये
बचपन जवान होने से पहले ज़वाँ हुए
है बात इक इशारा क्यूँ खुद आप सोचिये
भरपूर तेल बाती भी दमदार थी मगर
किस ने दिया बुझाया क्यूँ खुद आप सोचिये
कांधा जो देने आया था हर शख्स गैर था
खुद को ही यूं मिटाया क्यूँ खुद आप…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 28, 2014 at 4:00pm — 12 Comments
स्व के पार ...
हाथ से हाथ छूटने की
तारीख़ तो सपनों को पता है
हाथ फिर कभी मिलेंगे ...
तारीख़ का पता नहीं
तुम्हारे चले जाने के बाद
मेरे दिन और रात
उदास, चुपचाप, कतरा-कतरा
बहते रहे हैं
मेरे वक्त के परिंदे की पथराई पलकें
इन उनींदी आँखों की सिलवटों-सी भारी
उम्र के सिमटते हुए दायरों के बीच
थके हुए इशारों से मुझसे
हर रोज़ कुछ कह जाती हैं
और मैं रोज़ कोई नया बहाना…
ContinueAdded by vijay nikore on March 28, 2014 at 4:34am — 20 Comments
Added by anwar suhail on March 27, 2014 at 8:23pm — 3 Comments
जिन्दगी कब अपने रंग दिखा दे कुछ कहा नही जा सकता समय समय पर जिदगी में धुप और छाव का मौसम आता जाता हैं। एक लड़की की जिन्दगी भी ना जाने कितने मौसम लेकर आती हैं जब एक तरह के मौसम के साथ अब्यस्त होने लगती हैं तो मौसम का दूसरा रंग बदल जाता हैं और वोह घूमती रहती हैं अपने आप को सम्हालती हुयी तो कभी भिगोती हुयी । भावनाओं का अतिरेक भी उनकी संवेदनशीलता पर हावी होकर बहा ले जाता हैं उनको समंदर में जहाँ दिर डूबना होता हैं बाहर निकल आने का कोई रास्ता नही होता और यह जब रिश्तो के…
ContinueAdded by Neelima Sharma Nivia on March 27, 2014 at 6:53pm — 4 Comments
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