चाँद बसे आकाश में , फिर भी लगता पास | |
मंजिल कितनी दूर हो , रहे मिलन की आस | |
जब ऊँची उडान भरो , दुनिया में हो नाम | |
सब को अच्छी राह का , सदा मिले पैगाम… |
Added by Shyam Narain Verma on April 30, 2013 at 12:01pm — 8 Comments
मां!
आंचल-आशीष, प्यार-दुलार
दया-दान, क्षमा-उपकार है।
सहज-प्रकृति-अभिव्यक्ति
सृष्टि-दृष्टि-संस्कार है।
माया-मोह, ममता-मनमोहनी
सानिध्य-सहिष्षुण-सद्व्यवहार है।
मां!
श्रृध्दा-गरिमा, प्रेरक-उध्दारक
धूप-छांव, सर्दी-गर्मी-बरसात है।
लक्ष्मी-सरस्वती, सीता-सावित्री
दुर्गा-शारदा, काली-कपाली-चामुण्डा है।
ज्योति-ज्ञान, विचारक-संवाहक
आचार-विचार, शब्द-उच्चारण है।
मां!
पूजा-पाठ, आस्था-सद्गुरू
पतित-पावनी गंगा-जमुना-गोदावरी है।
हां! यही…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 30, 2013 at 9:12am — 12 Comments
नदिया का यह नीर भी, कुछ दिन का ही हाय |
उथला जल भी नहि बचा, जलप्राणी कित जाय ||
नदिया जल मल मूत्र सब, कैसा बढ़ा विकार |
मानव अवलम्बित धरा, सहती अत्याचार ||
क्षुधा तृप्त करता…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on April 30, 2013 at 8:07am — 22 Comments
!!! हे मां !!!
मां अर्थात् गुरू !
गुः - गुप अंधेरा, गहन तिमिर।
रूः - प्रकाशमय, अतिशय उजियारा।
अर्थात् तमसो मा जोतिर्गमय!
अंधकार से प्रकाश की ओर प्रेरित करने वाली
जननी! मां!
अनादि काल से
सब कुछ सहती आ रही है।
हां! प्रसव पीड़ा के सम
नवजात के जन्म सरीखा ही।
नरक में उलटे टंगे को
स्वर्ग में सीधे पैरों पर खड़ा करने तक,
अन्धकार-अज्ञान को
प्रकाशवान-ज्ञानमय '
बनाने के लिए उद्वेलित…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 30, 2013 at 12:38am — 11 Comments
जागो भारत माँ के जवान , सीमा पर बैरी आया | |
और अधिक पाने की चाहत , बढ़ने का राह दिखाया | |
दोस्त का दिखावा करके ही , अपना वो जाल बिछाया | |
सखा की ही नियत बिगड़ी जब , भाई को भी भूलाया | … |
Added by Shyam Narain Verma on April 29, 2013 at 3:27pm — 6 Comments
तेरे मन में स्वार्थ भले हो
वह इसको सौभाग्य मानती----
मानव की है फिदरत देखो
सब्ज बाग़ दिखा पत्नी को
बाते करके चुपड़ी चुपड़ी
क्षणभर में ही खुश कर देता |
सिद्ध करने को मतलब अपना
प्यार भरी बातो से उसका
क्षण भर में ही आतप हरकर
गुस्सा उसका ठंडा करता |
तेरे मन में स्वार्थ भले हो
वह इसको सौभाग्य मानती------
अति लुभावन वादे करके
बातो ही बातो में पल में
उसके भोले मन को ही
वह…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 29, 2013 at 2:58pm — 15 Comments
अलसाई
आंखों से उठना
जूते, टाई
फंदे कसना
किसी तरह से
पेट पूरकर
पगलाए
कदमों से भगना
ज्ञान कुंड की इस ज्वाला में
निश दिन जलना खेल नहीं है
तेरे युग में .....................
पंछी, तितली
खो गए सारे
धब्बों से
दिखते हैं तारे
फूल, कली भी
हुए मुहाजि़र
प्राण छौंकते
कर्कश नारे
धक्के खाते आना-जाना
धुआं निगलना खेल नहीं है
तेरे युग…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 29, 2013 at 1:55pm — 15 Comments
जीने की बात करता हूँ
मै हर इंसान से जीने की बात करता हूँ
औरों के गम पीने की बात करता हूँ
चिंदी ,चिंदी हुई है, जो जीवन की किताब
हर चिंदी को सीने की बात करता हूँ
बचा जो डूबने से, उसे खुदाहाफिज
डूबे भंवर मै, सफीने की बात करता हूँ
दौलत की चमक से मचल रही दुनिया
मै बिन तराशे नगीने की बात करता हूँ
हुए शहीदे-बतन जो मिटाकर अपनी हस्ती
मै उनके खून पसीने की बात करता हूँ
जिन्दगी अपनी कटी बे हिसाब बे तरतीव
औरों से मै करीने…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on April 29, 2013 at 12:53pm — 9 Comments
॥ एक अजन्मा दर्द ॥
माँ मुझको भी जीवन दे दे, मै भी जीना चाहती हू ।
सखी सहेली वीरा के संग, मै…
ContinueAdded by बसंत नेमा on April 29, 2013 at 12:00pm — 9 Comments
तनाव से भरे कुछ घण्टे – “ आँखों देखी 2 “
भूमिका : मैं जिस घटना का वर्णन करने जा रहा हूँ उसे समझने के लिये आवश्यक है कि घटना से सम्बंधित स्थान, काल, परिवेश का एक संक्षिप्त परिचय दे दूँ.
अंटार्कटिका हमारे ग्रह – पृथ्वी – का वह सुदूरतम महाद्वीप है जहाँ मानव की कोई स्थायी बस्ती नहीं है. हैं तो कुछ देशों के वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र जिनमें अस्थायी रूप से रहकर काम करने के लिये वैज्ञानिक तथा अन्य अभियात्रियों का हर वर्ष समागम होता है. लगभग 1.4 करोड़ वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैले इस…
Added by sharadindu mukerji on April 28, 2013 at 10:30pm — 9 Comments
जो बुरा है
जो बदनाम है
जो ज़ालिम है
उससे सावधान रहना आसान है
क्योंकि वो तो जग-जाहिर है....
लेकिन जो बुरा दीखता नही
जो नाम वाला हो
जो नरमदिल बना हुआ हो
ऐसे लोगों को पहचानना
हर किसी के बस की बात नहीं...
क्या आप ऐसे लोगों को पहचान…
Added by anwar suhail on April 28, 2013 at 9:11pm — 5 Comments
Added by manoj shukla on April 28, 2013 at 8:30pm — 12 Comments
बह्र : रमल मुसम्मन सालिम
वक्त ने करवट बदल ली जो अँधेरा छा गया,
आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया,
प्यार के इस खेल में मकसद छुपा कुछ और था,
बोल कर दो बोल मीठे जुल्म दिल पे ढा गया,
बाढ़ यूँ ख्वाबों की आई है जमीं पर नींद की,
चैन तक अपनी निगाहों का जमाना खा गया,
झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,
झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,
तालियों की गडगडाहट संग बाजी सीटियाँ,
देश का नेता हमारा…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on April 28, 2013 at 4:17pm — 16 Comments
गाँव के कच्चे घरों में…
ContinueAdded by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 28, 2013 at 11:26am — 22 Comments
Added by manoj shukla on April 27, 2013 at 9:00pm — 11 Comments
एक लड़की पगली सी -
खड़ी रहती हर सुबह छ्त पर अकेली,
कभी बालों को सँवारती,
होंठों में कुछ गुनगुनाती रहती.
सूरज जब दहलीज पर आता
दे जाता आभा रेशम सी,
सुनहरी किरणों से नहाती औ’
खुशियों से झूम झूम जाती.
एक लड़की भोली सी -
टहलती हुई छ्त पर भरी दोपहर
बालों को फूलों से सजाती,
पवन का झोंका आता ठहर-ठहर
डोल जाती वह कोमलांगिनी
शर्माती, हुई जाती कुछ सिहर-सिहर.
हँसती, कभी मुसकाती एक लड़की -
भोला बचपन गया, कब आया यौवन
समझ न…
Added by coontee mukerji on April 27, 2013 at 12:05pm — 10 Comments
नारी तुम स्तुति की देवी हो!
मां वसुधा सी प्यारी तुम,
संस्कृति की श्रध्दा देवी हो।
नारी तुम प्रगति प्रदर्शक हो!
कर में वीणा-सुरधारा तुम,
चंचलमय मृदुला देवी हो।
नारी तुम धैर्य-बलशालिनी हो!
अबला सीता क्षमा दान तुम,
मां शक्ति की दुर्गा देवी हो।
नारी तुम राधा सी प्यारी हो!
मीरा बाला सी अनुरागिनी तुम,
सती सावित्री सी देवी हो।
नारी तुम देश की कीर्ति हो!
सच्चे माने में इन्दिरा तुम,
भारत-सौभाग्य की…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 27, 2013 at 7:37am — 20 Comments
आधी रात के सपने देकर
तुम मुझको बहला देते हो
जब चाहे जी
अपना लेते हो
जब चाहे जी
ठुकरा देते हो
कैसे लिखूं
तुमको पतियां
तुम वादे
झुठला देते हो
आधी रात के ................
या देवी का
जयघोष तो करते
फिर क्योंकर
चुभला देते हो
अपने छत पर
बाग लगाकर
कलियों को
दहला देते हो
आधी रात के ................
कहती हूं जो
तुमको…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 26, 2013 at 2:41pm — 17 Comments
सरकारी नौकरी
काश दो दिन दफ़्तर लगता ,
होती छुट्टी पाँच दिन,
खाते खेलते,सोते घर में
मौज मनाते पाँच दिन ।
बच्चे रोते भाग्य पर,
पर पत्नी खुश हो जाती,
हाथ बटाएगा काम में,
यह सोच मंद मुस्कुराती।
आ जाती तनख्वाह एक…
ContinueAdded by akhilesh mishra on April 26, 2013 at 12:45pm — 10 Comments
दहाड़ते चलो सभी रण में , मारो दुश्मन को ललकार | |
आगे बढ लक्ष्मी बाई सा , रोको इनका अत्याचार | |
मानव ना ये दानव सा हैं , करते पशुवो सा व्यवहार | |
रोने धोने का काम नहीं , देख करो इनका संहार | … |
Added by Shyam Narain Verma on April 26, 2013 at 11:38am — 5 Comments
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