चिंचोली की दशा देखकर बाबा हम शर्मिंदा हैं
छद्म भेष में प्रतिद्वंदी समाज को धोखा देता है
स्ंग्रहालय के संरक्षण मे करते कितना खोट
कुर्सी के लालच में फंस समाज पे करते चोट
जर-जर होकर फट रही आज तेरी टाई कोट
तेरी निशानी मिटती देख बाबा हम शर्मिंदा है
चिंचोली की दशा देखकर बाबा हम शर्मिंदा हैं
छद्म भेष में प्रतिद्वंदी समाज को धोखा देता है
टंकण मशीन धूल खा रही मेरे कर्मो में खोट
भारत का संविधान लिख बाबा ने किया भेंट
तेरी धरोहर आज…
ContinueAdded by Ram Ashery on April 15, 2016 at 3:30pm — No Comments
तुम तो जिगरी यार हो
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दोस्त बनकर आये हो तो
मित्रवत तुम दिल रहो
गर कभी मायूस हूँ मैं
हाल तो पूछा करो ..?
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ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 15, 2016 at 1:00pm — 4 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on April 15, 2016 at 12:00am — 9 Comments
बह्र : 1212 1122 1212 22
जहाँ में पाप जो पर्वत समान करते हैं
वो मंदिरों में सदा गुप्तदान करते हैं
लहू व अश्क़, पसीने को धान करते हैं
हमारे वास्ते क्या क्या किसान करते हैं
कभी मिली ही नहीं उन को मुहब्बत सच्ची
जो अपने हुस्न पे ज़्यादा गुमान करते हैं
गरीब अमीर को देखे तो देवता समझे
यही है काम जो पुष्पक विमान करते हैं
जो मंदिरों में दिया काम आ सका किसके?
नमन उन्हें जो सदा रक्तदान करते…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 14, 2016 at 10:10pm — 14 Comments
तुम गए तो प्राण का जाना लिखा
बिन तेरे निःश्वांस हो जाना लिखा।
देखिये ना प्रेम की जादूगरी
स्वयं को मीरा तुम्हें कान्हा लिखा।।1।।
जब कभी भी पूर्णिमा का चाँद निकला
खिडकियों से झांककर आगे चला।
भाग कर छत पर गया देखा तुम्हें
और झट से तेरा आ जाना लिखा।।।।2।।
एक भीनी सी सुरभि जब भी कभी
मेरे कमरों की हवाओं में घुली।
मैंने खुद को फिर मचलता देखकर
रात रानी का महक जाना लिखा।।3।।
जब कभी अवसाद सागर में मेरी
नाव मन की…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 14, 2016 at 6:35pm — 10 Comments
दोपहर का समय था।सूर्य की प्रचंड किरणें आग के गोले बरसा रही थी।रश्मि अभी-अभी काॅलेज से आई थी, जबकि रूपेश अपने आॅफिस से पहले ही आ चुका था।
परंतु आते ही आज फिर वही बात हो गई जो प्रायः इस समय घटित होती थी।प्रतिदिन लडाई जूते-चप्पलों को सही जगह पर रखने को लेकर होती थी।ज्योंही रश्मि ने रूपेश के जूतों को बैडरूम में देखा तो वह भडक उठी।
"अपने आप को एक मैनेजिंग डायरेक्टर कहते हुए शर्म नहीं आती, न जाने अपने जूतों को भी सही जगह पर मैनेज करना सिखोगे_ _ _ _।"
"तुम किसलिए हो? इतना भी…
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 14, 2016 at 9:30am — 10 Comments
Added by रामबली गुप्ता on April 13, 2016 at 2:15pm — 2 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 13, 2016 at 8:28am — 7 Comments
Added by amita tiwari on April 12, 2016 at 11:06pm — 4 Comments
आईने तो आईने हैं ...
क्यूँ ,आखिर क्यूँ
आईनों से बात करते हो
ये करीबियां ये दूरियां
सब फ़िज़ूल हैं
कांच के टुकड़ों की तरह
टूटे हुए ज़ज़्बात
कब जुड़ पाते हैं
गर्द की आंधियां
ज़र्द पत्तों पर ही कहर ढाती हैं
बेज़ान जिस्मों पर
कब कोई तरस खाता है
बेमन से ही सही
हर कोई उसे ख़ाके सुपुर्द कर जाता है
कुछ भी तो हासिल न होगा
यूँ अपने अक्स से बात करके
हर सवाल मुंह चिढ़ाएगा
हर जवाब मुहं मोड़ जाएगा
आँखों का भीगापन…
Added by Sushil Sarna on April 12, 2016 at 9:49pm — 2 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on April 12, 2016 at 8:50pm — 3 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 12, 2016 at 3:44pm — 2 Comments
कुछ लम्हे ....
वो कुछ लम्हे
जो हमने मिलकर
अपनी झोली फैलाकर
ख़ुदा की हर चौखट पर
सर झुकाकर
मांगे थे //
वो कुछ लम्हे
जो हमारे ज़हन में
आज तक
इक दूसरे के वास्ते
वक्ते इज़हार के इंतज़ार में
ज़िंदा हैं //
वो कुछ लम्हे
जो हम दोनों ने
दो जिस्म इक जां
हो जाने के लिए मांगे थे
अब जब वो लम्हे
हमें नसीब हुए
तुम उनसे विमुख होने का सोच रही हो
अपनी ही आरज़ुओं का
अजन्मे ही गला घोंट…
Added by Sushil Sarna on April 12, 2016 at 2:01pm — 2 Comments
Added by Manan Kumar singh on April 12, 2016 at 12:55pm — 2 Comments
अदभुत अकथनीय वातावरण
आज भगवान स्वयं घर पधारे हैं ,
चारों –ओर खुशियाँ ही खुशियाँ लाये है
भगवान् या देवी जो भी हों
घर को खुशियों से भर दिया है
आज अम्बर भी ,देव वियोग में आसूं बहा रहा है
हवायें भी व्याकुल हो
प्रभु को ढूढने चली आ रही हैं
इससे अनभिज्ञ ,अंजान हैं
हमारे छोटे भगवान् जी
घरवालों के प्रान जी
पर क्या इनकी पूजा होगी ?
क्या इनकी किलकारियां ,नटखट अदाएं यूँ ही रहेंगी ?
ऐसा प्रश्न क्यूँ आया
आना…
ContinueAdded by maharshi tripathi on April 12, 2016 at 10:39am — 2 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 12, 2016 at 9:27am — 2 Comments
रिजर्वेशन (लघु कथा )
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हामिद का थर्ड ए सी का टिकट कन्फर्म हो चूका था , ट्रैन के आते ही वह पत्नी के साथ जयपुर के लिए रवाना हो गया | उसकी सीट के सामने 9 और 12 नंबर की बर्थ थीं जिन पर लेटे यात्री आगे से आरहे थे | अगले स्टेशन पर दो महिलाएं कोच में चढ़ गयीं ,आते ही कहने लगीं कि बर्थ 9 और 12 हमारी हैं दो महीने पहले से रिजर्वेशन करवा रखा है | इतना सुनते ही दोनों यात्री सकते में आगये। ......... बहस शुरू हो गयी , दोनों यात्रियों ने मोबाइल पर कन्फर्म मेल…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 11, 2016 at 9:43pm — 2 Comments
ग़ज़ल (ज़िंदगी का यही तो साहिल है )
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2122 -------1212 --------22
किस लिए मौत से तू ग़ाफ़िल है |
ज़िंदगी का यही तो साहिल है |
जो बचाता है बद नज़र से उन्हें
उनके रुख़ का सियाह वह तिल है |
वह सफ़र में नहीं है साथ अगर
मेरे किस काम की वो मंज़िल है |
जितनी आसां है राह उल्फत की
उसकी मंज़िल भी उतनी मुश्किल है |
मेरी आँखों से देखिये उनको
वह…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 11, 2016 at 9:05pm — 2 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 11, 2016 at 5:06pm — 2 Comments
११२१२, ११२१२, ११२१२, ११२१२
मुझे ज़िन्दगी की तलाश है, मुझे ख़्वाब में न मिला करो।
न करो कभी कोई वायदा, जो करो तो फिर न फिरा करो।
वो जो चीर दे कोई पाक दिल, न ही तंज ऐसे कसा करो।
बड़ी मुश्किलों से भरा हो जो, न वो जख़्म फिर से हरा करो।…
Added by Dr.Prachi Singh on April 11, 2016 at 2:48pm — 5 Comments
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