मैं नदी –
पहाड़ों से उतरी,
उन्मुक्त बहती
कल कल करती मतवाली
मैं नदी -
गाँव खलिहानों से होती
बच्चों की किलकारियों सी,
खेतों में ठुमकती
मैं नदी -
सरदी की धूप,
षोडसी की चोटी सम लम्बी
लहराती इठलाती बलखाती
मैं नदी जो कभी थी.
2
समय का बदलता रूप -
हाइटेक का ज़माना,
तरक्की की चरमसीमा,
बलिदान स्वरूपा
मैं नदी अधुना.
झुलसती गरमी
बीच शहर,
कूड़े का ढेर
अछूत सी पड़ी,
मैं नदी…
Added by coontee mukerji on June 22, 2013 at 3:05am — 15 Comments
तू मुझमें बहती रही, लिये धरा-नभ-रंग
मैं उन्मादी मूढ़वत, रहा ढूँढता संग
सहज हुआ अद्वैत पल, लहर पाट आबद्ध
एकाकीपन साँझ का, नभ-तन-घन पर मुग्ध
होंठ पुलक जब छू रहे, रतनारे …
Added by Saurabh Pandey on June 22, 2013 at 2:00am — 51 Comments
एक निर्झर नदी सी बहो
खिलखिलाती हुई कुछ कहो
फासले अब नहीं दरमियां
आंच है,उम्र है,गरमियां
अब तो सम्बन्ध हैं इस तरह
जैसे हों झील में मछलियां
थाम लेंगे…
ContinueAdded by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 22, 2013 at 12:23am — 7 Comments
कुंद चाकू पर धार लगाकर
हम चाकू से छीन लेते हैं उसके हिस्से का लोहा
और लोहे का एक सीदा सादा टुकड़ा
हथियार बन जाता है
जमीन से पत्थर उठाकर
हम छीन लेते हैं पत्थर के हिस्से की जमीन
और इस तरह पत्थर का एक भोला भाला टुकड़ा
हथियार बन जाता है
लकड़ी का एक निर्दोष टुकड़ा
हथियार तब बनता है जब उसे छीला जाता है
और इस तरह छीन ली जाती है उसके हिस्से की लकड़ी
बारूद हथियार तब बनता है
जब उसे किसी कड़ी…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 21, 2013 at 9:00pm — 12 Comments
Added by SAURABH SRIVASTAVA on June 21, 2013 at 8:30pm — 1 Comment
आज पुरस्कृत हो रहे ,प्राय: वो पाखण्ड।
Added by AVINASH S BAGDE on June 21, 2013 at 8:15pm — 5 Comments
वंदना हम कर रहे
माँ शारदे माँ शारदे
अज्ञान के अंधेरों से
तू हमें तार दे
हम तो अज्ञानी हैं
ज्ञान से संवार दे
माँ शारदे------------
.
श्वेत वस्त्र धारणी
कमल पे विराजती
वीणा के तार की
झंकार दे झंकार दे
माँ शारदे----------
.
चरणों में तेरे हम
शीश को झुका रहे
ज्ञान की ज्योति
हमको उपहार दे
माँ शारदे------------
मौलिक व अप्रकाशित------
Added by Pragya Srivastava on June 21, 2013 at 11:00am — 9 Comments
’’वेगवती छन्द’’
इसमें विषम चरण में तीन सगण-(112) तथा एक गुरू-(2) तथा
सम चरण में तीन भगण-(211) तथा दो गुरू-(22) होते हैं।
.1.
कण कारक ज्यों मन कृष्णा। कारण कृष्ण कमाल सुतृष्णा।
जन.लोक अतीव नसाना। घोर. विरोध सजाय मसाना।।
जगती तल-अम्बर-वर्षा। बाढ़-हुताशन ज्यों यम हर्षा।
अब तो मन सोच सुकर्मा। कार्य सुहाय अघोर.विकर्मा।।
.2.
मन राम सुनाम विचारो। मानव से नित प्यार सॅवारो।
वन-बाग-सुभाष सुधारो। कर्म-सुधर्म सदा मन धारो।।
रख हाथ…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 21, 2013 at 9:56am — 14 Comments
ये आह पानी ,वो वाह पानी ,
कर गया आखिर तबाह पानी !
कभी बादलों से रही शिकायत ,
जिधर डालिए अब निगाह पानी !
दिखे ऐसे मंजर,उतराती लाशें
उठे दर्द,चीखें,कराह पानी !
जहां ज़िंदगी मांगने को गए थे,
कर के गया सब सियाह पानी !
रहम करनेवाला खुद ही परीशां
माँगी है तुझसे पनाह पानी !
____________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ
(मौलिक और अप्रकाशित…
ContinueAdded by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 20, 2013 at 11:00pm — 10 Comments
उसने मुझसे कहा
ये क्या लिखते रहते हो
गरीबी के बारे में
अभावों, असुविधाओं,
तन और मन पर लगे घावों के बारे में
रईसों, सुविधा-भोगियों के खिलाफ
उगलते रहते हो ज़हर
निश-दिन, चारों पहर
तुम्हे अपने आस-पास
क्या सिर्फ दिखलाई…
Added by anwar suhail on June 20, 2013 at 10:28pm — 4 Comments
उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा ने जहाँ एक ओर जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है,वहीं दूसरी और पूरे देश को हिला कर रख दिया है।यह विषम परिस्थिति हम सभी के धैर्य की परीक्षा है और परस्पर एक-दूसरे के सहयोग की,सहायता की आवश्यकता का ये परम अवसर है।यही समय मानवता रुपी धर्म के पालन का उचित समय है, परन्तु कुछ लोग इस समय मानवता को लज्जित कर रहे हैं।वे प्रकृति की मार से त्रस्त भूखे-प्यासे लोगों से ५ रूपये के बिस्किट के स्थान पर एक सौ रूपये,तीस-चालीस रुपये के दूध के स्थान पर दो सौ रुपये, किसी को अपने…
ContinueAdded by Savitri Rathore on June 20, 2013 at 9:21pm — 8 Comments
जख्म कांटो से खायें हैं हमें फूलों को सताना नहीं आता
इश्क़े सफीने बचाए हैं हमे तूफाँ में डुबाना नहीं आता
तुम बुजदिली कहलो या समझो शाइस्तगी मेरी
हुए सब अपने पराये हैं हमे सच्चाई छुपाना नहीं आता
किसी ने दिल से निकाला , किसी ने राह में फेंका
सर पे हमने बिठाए हैं हमे ठोकर से हटाना नहीं आता
कभी ना बेरुखी भायी कभी ना नफरतें पाली
दिलों में ही घर …
ContinueAdded by rajesh kumari on June 20, 2013 at 7:30pm — 18 Comments
Added by Dr Ashutosh Mishra on June 20, 2013 at 12:00pm — 13 Comments
छोटी बहर पर ग़ज़ल का एक प्रयास .....
वक्त जो हम पर भारी है
अपनी भी तय्यारी है
पूरा कारोबारी है
ये अमला सरकारी है
.…
ContinueAdded by वीनस केसरी on June 20, 2013 at 11:00am — 36 Comments
वो आया था और सच्चाई बता के चला गया,
बुरा ना कहो उसे जो हाथ छुडा के चला गया|
वो भी भला था फ़क्त इक दुआ देके देख लो,
जो मेरी रूह को खुदा से मिला के चला गया|
मैं बादल था बरसना था कहीं खेतों की ज़मीं पे,
वो हवाओं को ही सागर में छुपा के चला गया|
सुना था कहीं इंसान बसते हैं यहीं ज़मीन पे,
वो आईने में मेरा चेहरा दिखा के चला गया|
दम आख़िरी था, मुस्कान चेहरे पे आ ही गयी,
हँसते हुए वो दुनिया को रुला के चला…
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 20, 2013 at 9:30am — 14 Comments
वो आवाज
जो पल भर पहले था कितना खुशहाल
अचानक हुई एक धमाके की आवाज
उस धमाके की आवाज से बंद हुई पलकें
जब खुली तब तक,
खत्म हो चुका था सब कुछ
रह गए थे टूटे हुए बर्तन,
बिखरी हुई चूड़ियाँ, छितराई हुई लाशें,
फैला हुआ खून, ढ़ूढ़ती हुई आँखें,
एक अकेले रोते हुए बच्चे की आवाज
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on June 20, 2013 at 12:34am — 9 Comments
ज़िंदगी किताब ,आइये पढ़ें
दर्द बे-हिसाब,आइये पढ़ें
हंसते चेहरों पे जमी गर्द
आँखों में सैलाब ,आइये पढ़ें
सिर्फ काँटों की…
ContinueAdded by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 19, 2013 at 10:30pm — 8 Comments
Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 18, 2013 at 11:00pm — 11 Comments
Added by Sumit Naithani on June 18, 2013 at 4:00pm — 20 Comments
है रुत मन भावन , वर्षा पावन , आयें हैं घन , खुश दिल से | |
जब आये फुहार , भिगे दिल तार , गावें मल्हार , सब दिल से | |
हरे भये उपवन , खिले बाग़ वन , खुश हैं हर जन , सब दिल से | … |
Added by Shyam Narain Verma on June 18, 2013 at 12:52pm — 13 Comments
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