!!! मंदिरों की सीढि़यां !!!
दर्द हृदय मे समेटे
नित उलझती,
आह! भरतीं
मंदिरों की सीढि़यां।
कर्म पग-पग बढ़ रहे जब,
धर्म गिरते ढाल से
आज मन
निश-दिन यहां
तर्क से
अकुला रहा।
घूरते हैं चांद.सूरज,
सांझ भी
दुत्कारती।
अश्रु झरने बन निकलते,
खीझ जंगल दूर तक।
शांत नभ सा
मन व्यथित है,
वायु पल-पल छेड़ती।
भूमि निश्छल
और सत सी
भार समरस ढो रही।
ठग! अडिग
अविचल ठगा सा,
राह…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 30, 2013 at 9:00am — 18 Comments
तुम मेरी बेटी नही
बल्कि हो बेटा...
इसीलिये मैंने तुम्हें
दूर रक्खा शृंगार मेज से
दूर रक्खा रसोई से
दूर रक्खा झाडू-पोंछे से
दूर रक्खा डर-भय के भाव से
दूर रक्खा बिना अपराध
माफ़ी मांगने की आदतों से
दूर रक्खा दूसरे की आँख से देखने की लत से....
और बार-बार
किसी के भी हुकुम सुन कर
दौड़ पडने की आदत से भी
तुम्हे दूर रक्खा...
बेशक तुम बेधड़क जी…
ContinueAdded by anwar suhail on August 29, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
कविता – प्रेम के स्वप्न
हां , बदल गयी हैं सड़कें मेरे शहर की
मेरा महाविद्यालय भी नहीं रहा उस रूप में
पाठ्य पुस्तकें , पाठ्यक्रम जीवन के
बदल गए हैं सब के सब
कई कई बरस कई कई कोस चलकर
जाने क्यों ठहरा हुआ हूँ मैं
आज भी अपने पुराने शहर
शहर की पुरानी सड़कों पर
उन मोड़ों के छोर पर
बस अड्डे और चाय की दुकानों पर भी
जहां देख पाता था मैं तुम्हारी एक झलक
हाँ , मैंने तुम्हें…
ContinueAdded by Abhinav Arun on August 29, 2013 at 7:43pm — 31 Comments
वो जिसको मालोज़र पैसा बहुत है
हक़ीक़त में वही रोता बहुत है
यक़ी करना ज़रा मुश्किल है तुझपे
तेरा तर्ज़े अदा मीठा बहुत है
वो पहली आरी की ज़द में रहेगा
शजर जो बाग़ में सीधा बहुत है
उसे तो साफगोई की है आदत
बगरना आदमी अच्छा बहुत है
वो कहता है "तुम्हें हम देख लेंगे"
हमारे पास भी रस्ता बहुत है
कभी तू ने हमें अपना कहा था
हमारे वास्ते इतना बहुत है
"मौलिक व…
ContinueAdded by Sushil Thakur on August 29, 2013 at 7:30pm — 12 Comments
राम रम में घोलकर वो
लिख रहे चौपाईयां
कोंपले, कत्थई, गुलाबी
औ हरी पुरवाईयाँ
पा भभूति हो चली हैं
पेट वाली दाईयाँ
खोल मुँह बैठा कमंडल
सुरसरि की आस में
ध्यान भी, करता यजन भी
डामरी उल्लास में
पर सरफिरा हाकिम समझता
खिज्र की रानाईयाँ
चूडि़याँ टुन से टुनककर
छन से पड़ी जिस होम में
बड़ा असर रखता गोसाईं
नीरो के उस रोम में
नरमेध के इस अश्व…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on August 29, 2013 at 2:51pm — 17 Comments
रात के बारह बज रहे थे , रोहित नशे हालत मे घर मे दाखिल हुआ उसकी भी पत्नी साथ मे ही थी । पिता दुर्गा प्रसाद कडक कर बोले – “ ये क्या तरीका है घर मे आने का , कैसे बाप हो तुम जिसको बच्चों का भी ख्याल नहीं । और ये तुम्हारी पत्नी , इसको भी कोई कष्ट नहीं ।” रोहित तमतमा उठा न जाने क्या क्या उनको कह डाला । वे बेटे के पलटवार के लिए तैयार न थे वह भी बहू और बच्चों के सामने । सिर झुकाये सुनते रहे कुछ बोल नहीं पाये । एक वाक्य ही उन्होने अपनी पत्नी से कहा ,” हमारी परवरिश मे खोट है । ” वे कमरे मे जाकर…
ContinueAdded by annapurna bajpai on August 29, 2013 at 12:34pm — 24 Comments
जिसके संग निडर
गुजर जाती है मेरी रात
सबकी नज़रों से दूर...
मैं धरा,
हर पल नयी
नए स्वप्नों को जन्म देती
मुहब्बत के नशे में... ‘धुत्त’
चलो,
फिर से उसकी बात करें
वह मेरी किताब है
उसका एक-एक पन्ना
मेरी जुबान पर
उसे पढने की
मेरी प्यास का
कोई अंत नहीं
फिर से कहो न
क्या… कहा...चाँद… क्या..?
(मौलिक व…
ContinueAdded by Vasundhara pandey on August 29, 2013 at 11:00am — 16 Comments
कृति मौलिक न होने के कारण प्रबंधन स्तर से हटा दी गई है |
एडमिन
2013083107
Added by Neeraj Nishchal on August 29, 2013 at 10:00am — 16 Comments
!!! कुण्डलियां !!!
पत्थर जन मन धन चुने, जाति-पाति के संग।
इनके माथे पर लिखा, कामी-मत्सर-जंग।।
कामी - मत्सर - जंग, द्वेष का भाव बढ़ाते।
ढाई आखर छोड़, धर्म पर रार मचाते।।
निश-दिन करे कुकर्म, आड़ हो जन्तर-मन्तर।
बने स्वयंभू राम, कर्म का डूबे पत्थर।।
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 29, 2013 at 8:36am — 21 Comments
वंशीधर का मोहना, राधा-मुद्रा मस्त ।
नाचे नौ मन तेल बिन, किन्तु नागरिक त्रस्त ।
किन्तु नागरिक त्रस्त, मगन मन मोहन चुप्पा ।
पाई रहा बटोर, धकेले लेकिन कुप्पा ।
बीते बाइस साल, हुई मुद्रा विध्वंशी ।
चोरों की बारात, बजाये रविकर वंशी ॥
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on August 29, 2013 at 8:30am — 12 Comments
कुण्डलिया छंद
गोविंदा की टोलियाँ, निकल पड़ी चहुँ ओर।
दधि माखन की खोज में, बनकर माखन चोर।।
बनकर माखन चोर, करें लीला बहु न्यारी।
फोड़ें मटकी श्याम, बचाओ गगरी प्यारी।।…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on August 28, 2013 at 10:30pm — 14 Comments
शिशु रूप में प्रकट हुए तुम,
अंधकारमयी कारा गृह में,
दिव्यज्योति से हुए प्रदीपित,
अतिशय मोहक अतिशय शोभित,
अर्धरात्रि को पूर्ण चन्द्र से
जग को शीतल करने वाले
संतापों को हरने वाले,
अवतरित हुए तुम, अंतर्यामी!
हे कृष्ण बनू तेरा अनुगामी!
किन्तु देवकी के ललाट पर,
कृष्ण! तुम्हे खोने का था डर,
तब तेरे ही दिव्य तेज से
चेतनाशून्य हुए सब प्रहरी,
चट चट टूट गयी सब बेडी
मानो बजती हो रण भेरी,
धर कर तुम्हे शीश पर…
Added by Aditya Kumar on August 28, 2013 at 9:00pm — 17 Comments
वजीरे आला आप भारी विरोध के चलते धैर्य रख इतने समय से शासन कर रहे है । आपके अधिकाँश मंत्रियों पर घोटाले सहित कई प्रकार के आरोप लग रहे है । कई मंत्रियों को तो स्तीफा भी देना पड़ा है । यहाँ तक की कई मामलो में तो न्यायालय ने भी तल्ख़ टिप्पणियाँ तक की है । तिरस्कार पूर्ण वचन बहुत दारुण होता है । यह कहते हुए युवराज ने राजनीति के गुर सीखने हेतु जिज्ञासा प्रकट करते हुए पूछा- फिर भी आप यह सब सहन कारते हुए मौन एवं धैर्य रख कैसे शासन कर रहे है ?
वजीरे आला यह सब सुनकर कुछ देर मौन रहे ।…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 28, 2013 at 7:00pm — 17 Comments
एक
चाँद झाँका
बादलों की ओट से ,
चाँदनी चुपके से आ
खिड़की के रस्ते,
बिछ गई बिस्तर पे मेरे/
और
हवा का एक झोंका,
सोंधी सी खुश्बू लिए
छू कर गया गालों को मेरे /
यूँ लगा मुझको कि
तुम सोई हो मेरे पास ,
मेरी बाहों के घेरे में /
लेकर होठों पर
एक इंद्रधनुषी मुस्कुराहट
तृप्त |
दो
सपने, तान्या
एक दम छोटे से बच्चे
जैसे होते हैं/
अपने मे खोए…
ContinueAdded by ARVIND BHATNAGAR on August 28, 2013 at 5:30pm — 14 Comments
बादल भी है नुचा हुआ सा, वसुधा भी है टुकड़े टुकड़े
Added by Ashish Srivastava on August 28, 2013 at 2:00pm — 21 Comments
तोमर छंद, प्रत्येक चरण में १२ मात्राएँ तुकान्त चरणान्त गुरु लघु से अंत )
.
चोरी का बुना जाल ,फंस गए नन्द लाल
देख दधि मटकी हाल , हुई मैया बेहाल
पड़ गया उल्टा दांव, जब पकड़ा दबे पाँव,
ढूंढें नहि मिली ठांव, जा…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 28, 2013 at 2:00pm — 17 Comments
कृष्ण जन्माष्टमी की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
१.
माखन चोर
गिरधर गोपाला
नन्द का लाला
२.
राधा-औ-कृष्णा
गोपियों संग रास
बंसी ले हाथ
३.
सहज जियो
जीवन है उत्सव
कृष्ण सन्देश
४.
हँस के जियो
जिंदगी प्रेम रस
छक के पियो
५.
आनंददायी
कृष्णवृत्ति जो फ़ैले
दुनिया…
ContinueAdded by vijayashree on August 28, 2013 at 12:30pm — 9 Comments
!!! यही ‘सत्यम’ शिवम् सुन्दर हुआ है !!!
बह्र- 1222 1222 122
सकल दुनिया दिखाता जा रहा हूं।
कयामत का सफर सुलझा रहा हूं।।
मेरे मौला मैं तुझको क्या बताऊं,
रूहानी पीर के जैसा रहा हूं।
तेरी चौखट सदा मुझको लुभाती,
कभी तीखा कभी मीठा रहा हूं।
जहां में और भी गम हैं कहूं क्या?
जहां मेला वहीं तन्हा रहा हूं।
मेरी मां ने कहा था सुब्ह उठकर,
पिलाना आब, वो दरिया रहा हूं।
अमीरी छोड़ कर मुफलिस…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 28, 2013 at 10:13am — 19 Comments
कृष्ण का जीवन दर्शन बहुत गहरा और अद्भुत है , और समझने जैसा है । कृष्ण माखन चोरी करते हैं ,
रास रचाते हैं , राजनीति भी करते हैं , प्रतिज्ञा भी तोड़ते हैं , फिर भी हमने उन्हें भगवान् कहा है पूर्णावतार
कहा है उन्होंने जो भी किया हमने उसे लीला कहा है और बिलकुल जब कोई इतना प्रेमपूर्ण व्यक्ति कुछ भी करता
है तो वो लीला हो ही जाता है ।
कृष्ण का जन्म भी बड़े अद्भुत ढंग से हुआ इसे भी समझ लेना चाहिए कृष्ण का जन्म साधारण गर्भ
से नही हो पाता , और वासुदेव देवकी द्वारा भूमि तैयार…
Added by Neeraj Nishchal on August 28, 2013 at 9:00am — 5 Comments
Added by Admin on August 28, 2013 at 8:00am — 10 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |