आप सभी मित्रों को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
श्याम रात श्याम वात श्याम गूँज साथ साथ।
चन्द्रमा प्रकाश लुप्त हाथ को दिखे न हाथ।
गूँजता रहा विहान कृष्ण जश्न गीत गान।
धन्य धन्य देव और धन्य धन्य ये जहान।
टूट बेड़ियां गयीं खुले अवाक जेल द्वार।
कृष्ण जन्म साथ कंस नीच का ढले खुमार
जन्म जश्न गैल गैल ढोल पे उड़े गुलाल।
गोल हैं कपोल गाल नंद के भए गुपाल।
.....अप्रकाशित/मौलिक
Added by अनहद गुंजन on August 16, 2017 at 12:30pm — 3 Comments
बस यूँ ही दशरथ माँझी...
माझी नहीं बस नाव को जो खींच ले मँझधार से
‘माँझी’ तो है जो रास्ता ले चीर नग के पार से।
प्रेम था वो दिव्यतम जिसमें भरी थी जीवनी
वो फगुनिया थी मरी पर दे गई संजीवनी।
एक कोशिश ला मिलाती गंग को मैदान से
एक कोशिश रास्ता लेती विकट चट्टान से।
ले हथौड़ी और छेनी पिल पड़ा वो वीर था
हो गया भूशाई जो दुर्दम्य पर्वत पीर था।
ताज और विक्टोरिया से है हमारा वास्ता,
पर नमन के योग्य है गहलौर का वो रास्ता!!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 15, 2017 at 10:28pm — 5 Comments
1222 1222 1222 1222
अगर तुम पूछते दिल से शिकायत और हो जाती I
सदा दी होती जो तुमने शरारत ओर हो जाती II
पहन कर के नकावें जिन पे बरसाते कोई पत्थर ,
वयां तुम करते दुख उनका हिमायत और हो जाती I
कहो जालिम जमाने क्यों मुहव्वत करने वालों पर?
अकेले सुवकने से ही कयामत और हो जाती I
बड़ा रहमो करम वाला है मुर्शिद जो मेरा यारो ,
पुकारा दिल से होता गर सदाकत और हो जाती I
मुझे तो होश में लाकर भी…
ContinueAdded by कंवर करतार on August 15, 2017 at 10:21pm — 12 Comments
यह संस्मरण लेखक, कवि, उपन्यासकार डा० रामदरश मिश्र जी के संग बिताय हुए सुखद पलों का है।
सपने प्राय: अप्रासंगिक और असम्बद्ध नहीं होते। कुछ दिन पहले सोने से पूर्व मित्र-भाई रामदरश मिश्र जी से बात हुई तो संयोगवश उनका ही मनोरंजक सपना आया ... सपने में बचपन के किसी गाँव की मिट्टी की सोंधी खुशबू, कुनकुनी धूप, और बारिश एक संग, ... और उस बारिश में बच्चों-से भागते-दोड़ते रामदरश जी और मैं ... कुछ वैसे ही जैसे उनकी सुन्दर कविता “बारिश में भीगते बच्चे” मेरे सपने में जीवंत हो गई…
ContinueAdded by vijay nikore on August 15, 2017 at 4:00pm — 8 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on August 15, 2017 at 1:29pm — 5 Comments
Added by Mohammed Arif on August 15, 2017 at 12:02am — 9 Comments
Added by Arpana Sharma on August 15, 2017 at 12:00am — 3 Comments
एक बाँसुरी, एक ही धुन से, स्नेह सुधा बरसाते हैं,
सूरदास, मीरा – रसखान, रहीम को एक बनाते हैं।
ले लकुटी संग ग्वाल बाल के, नंद की गाय चराते हैं,
त्रस्त प्रजा को क्रूर कंस से, राजा मुक्त कराते हैं।
हैं प्रेरक श्रीकृष्ण नीति, गीता और प्रेम सिखाते हैं,
सुधि जन निर्मल मन से सादर, सहज प्रेरणा पाते हैं।
.
किशोर करीब (मौलिक व अप्रकाशित)
Added by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 14, 2017 at 7:00pm — 3 Comments
Added by मंजूषा 'मन' on August 14, 2017 at 6:28pm — 16 Comments
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on August 14, 2017 at 12:46pm — 8 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on August 14, 2017 at 11:35am — 5 Comments
नज़र की हदों से .....
अग़र
तेरे बिम्ब ने
मेरे स्मृति पृष्ठ पर
दस्तक
न दी होती
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
रह गया था
कोई क्षण
अधूरी तृषा लिए
तृप्ति के
द्वार पर
अगर
तेरी तृषा के
स्पंदन ने
मेरी श्वासों को
न छुआ होता
सच
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
लिपटा था
कोई मूक निवेदन
अपनी…
Added by Sushil Sarna on August 13, 2017 at 9:17pm — 12 Comments
नज़र की हदों से .....
अग़र
तेरे बिम्ब ने
मेरे स्मृति पृष्ठ पर
दस्तक
न दी होती
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
रह गया था
कोई क्षण
अधूरी तृषा लिए
तृप्ति के
द्वार पर
अगर
तेरी तृषा के
स्पंदन ने
मेरी श्वासों को
न छुआ होता
सच
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
लिपटा था
कोई…
Added by Sushil Sarna on August 13, 2017 at 9:00pm — 2 Comments
Added by Ajay Kumar Sharma on August 13, 2017 at 10:29am — 4 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 13, 2017 at 9:29am — 7 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 12, 2017 at 11:30am — 6 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 12, 2017 at 10:34am — 9 Comments
ज़िंदगी...
ज़िंदगी का
हासिल
है
मौत
क्या
मौत का
हासिल
है
ज़िंदगी ?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 11, 2017 at 8:39pm — 6 Comments
दिन की गर्मी के बाद रात आती है शीतल,
जैसे आता हरित देश बीते जब मरुथल।
समय चक्र ही दुःख की घड़ी बिता सुख लाता,
मृत्यु न होती तो क्या प्राणी जीवन पाता?
सूर्य ज्वलित ना होता तो क्या वसुधा होती?
चन्द्रकिरण से क्या अमृत की वर्षा होती?
लक्ष्य कठिन, दुर्गम्य राह, निश्चय से बनता है सरल।
सूखी रेत, कठोर प्रस्तरों के नीचे ही होता है जल।।
- किशोर करीब (मौलिक व अप्रकाशित)
Added by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 11, 2017 at 5:37pm — 4 Comments
अस्सी वर्षीय बाबू केदार नाथ ने अपने कानों में सुनने वाली मशीन लगाकर मफ़लर लपेट लिया| आईने में खुद को देखकर आश्वस्त हुए| मशीन पूरी तरह मफ़लर के नीचे छिप गया था| अब उन्होने पुराना टेप रिकार्डर निकाला और प्रिय गाना बजा दिया|
बरेली के बाज़ार में झुमका गिरा रे-कमरे में आशा भोसले की नखरीली आवाज़ गूंज उठी|
बाबू केदारनाथ के होंठो पर एक प्यारी सी मुस्कान खेल गई|
अजी सुनते हो! उनके कानो से एक तेज कटार सी आवाज टकराई|
अपने बाउजी को…
Added by Gul Sarika Thakur on August 11, 2017 at 11:47am — 6 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |