2122 2122 2122 212
लड़खड़ाहट चाहता हूँ मैं संभल जाने के बाद
धूप दिल में चुभ रही है दिन निकल जाने के बाद
सबसे पहला शेर था मैं एक ग़ज़ल की सोच का
और खारिज हो गया था लय बदल जाने के बाद
ठोस उस आधार पर लिपटी थी इक चिकनी परत
खुद से शिकवा कर रहे है हम फिसल जाने के बाद
खुश्क आँखों की ज़ुबा को यूँ समझ लो तुम सनम
ख़ाली बरतन जल रहा है सब उबल जाने के बाद
सर छुपाये फिर रहा था रौशनी में दर-ब-दर
चाँद सा खिलने लगा गम शाम ढल जाने के…
Added by मनोज अहसास on August 13, 2015 at 9:30pm — 15 Comments
गजल
बहर - 212 1212 1212 1212
काफिया - अर, रदीफ - मियाँ
पत्थरों के जंगलों से भर गए शहर मियाँ
दादी-नानी सँग गए वो सांस लेते घर मियाँ
कल को एक बार आसमान से वो झांक लें !
किस तरह मिला सकोगे पुरखों से नजर मियाँ ?
मत उखड़ ! यही लिहाज कर लिया, बहुत किया
जो नजर बचा के दूर से गए गुजर मियाँ
आग का उफान कौन सा ये इन्कलाब है
लाए किसके वास्ते दहकती दोपहर मियाँ
हमको क्या पता हमारा तो कभी दखल न था
तुम…
Added by Sulabh Agnihotri on August 13, 2015 at 8:33pm — 2 Comments
फैंसी ड्रैस का आयोजन था।वृद्धाश्रम के सभी वृद्ध तरह - तरह की वेशभूषा में सजे थे। कोई किसान,कोई सब्जी बेचने वाला,कोई पुजारी ,कोई माली तो कोई संत।
उन्हीं में से एक वृद्धा ने कटोरा हाथ में लिया व अपनी वेशभूषा के अनुरूप वह भीख माँगने लगी।
फैंसी ड्रेस का माहौल ही बदल गया। सबके हाथ पीछे हट गए,आँखे पनीली हो गईं,ह्रदय करूण भाव से भर गया ।सभी के मन के एक कोने में एक पछतावा, एक पश्चाताप सा जाग गया।सब यही सोच रहे थे ओह! ये हमने क्या कर दिया।सबकी संवेदना ने विचारों पर ताला लगा दिया ये दृश्य…
Added by Mamta on August 13, 2015 at 5:30pm — 8 Comments
Added by Seema Singh on August 13, 2015 at 2:38pm — 6 Comments
आज भी आँख खुलते ही रोज की ही तरह सुबह -सुबह इंतज़ार किया उसका । दरवाजा खोला ही था कि सायकिल पर चढा दुबला सा लडका दरवाजे पर चेतना की चाबी फेंक गया । रोज की ही तरह ऐसे लपककर स्वागत किया मानो बरसों से इंतज़ार किया हो उसका । अंदर ले आया और टेबल पर फैला कर परत -दर- परत तहों को खोलता गया ।चेतना मन- पौध खुलकर कुलबुलाती हुई जन्म से परिपक्व होने तक का सफर शनैः शनैः तय करने लगी ।तहें अब अपने आखिरी विराम को पहुँच , मन को गहन चिंतन में डाल ...... चेतना अपने सम्पूर्ण यौवन में स्थापित थी । तभी सहसा घड़ी…
ContinueAdded by kanta roy on August 13, 2015 at 2:00pm — 4 Comments
स्कूल में मध्यांतर हुआ |सब बच्चे अपने अपने टिफिन बॉक्स लेकर मैदान में जमा थे |रीना बड़े चाव से दादी के हाथ के बने आलू के पराठे खा रही थी |उसकी सहेली कुहू टिफिन खोल कर चुपचाप बैठी थी|
“कुहू जल्दी से टिफिन ख़त्म करो, घंटी बजने वाली है “
“रीना मुझे गणित का सवाल नहीं आया |देखना, मुझे शून्य अंक मिलेगा और घर पर मम्मी की डांट पड़ेगी| “
“हाँ कल मुझे भी नहीं आ रहा था| तुमने नेट पर सर्च किया था?”
“किया था |अर्जुन अकादमी व मैथ्स ऑन लाइन दोनों पर उदाहरण देखे थे |मैं बार बार गलती…
ContinueAdded by Manisha Saxena on August 13, 2015 at 1:30pm — 3 Comments
चेप्टर-२ -कुछ क्षणिकाएँ :
1.
वो साकार है या निराकार है
पता नहीं
वो है
मगर दिखता नहीं
फिर भी वो
जीवन का आधार है
शायद उसी को
दुनिया कहती है
ईश्वर
………………............
2.
कितना विचित्र है
हमारा साथ होना
एक लम्बी चुप
सांसें भी निःशब्द
एक दूसरे के वास्ते
भाव शून्यता
पत्थर सा प्यार
दम तोड़ते सात फेरों के वादे
उठायेंगे सात जन्म
जर्जर होता …
Added by Sushil Sarna on August 13, 2015 at 12:30pm — 2 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on August 13, 2015 at 10:08am — 5 Comments
देश भक्ति गीत...01
-----------------------------------------------
वीरो की धरती में हूँ जन्मा
कायरता न करनी है
नब्ज में है खून वीरों का
रक्षा इसकी करनी है
-------------------------------------------------
न्योछावर हो जाना है हँस
तिरंगा हांथों में लिए
वीरो की क़ुरबानी की अब
लाज हमें ही रखनी है
--------------––---------------------------
वीरो की धरती में हूँ जन्मा
कायरता न करनी है…
Added by amod shrivastav (bindouri) on August 13, 2015 at 9:30am — 2 Comments
2122 2122 212
आप सीमायें अगर लांघें नहीं
बाड़ हम भी आपकी फांदें नहीं
वो समर के वास्ते तैयार हैं
हाथ मेरे आप यूँ बांधें नहीं
हक़ हलाली की कोई रोटी दिखा
भीख से जी कर तो यूँ नाचें नहीं
शेर बन के सामने आजा कभी
गीदड़ों सी पीठ पर घातें नहीं
चैन खातिर दिन तरसता रह गया
नींद वाली थीं कभी रातें नहीं
दिल पढ़ें , नज़रें पढ़ें , आँसू पढ़ें
अस्लिहा के बाब यूँ बांचें नहीं
अस्लिहा – हथियारों , बाब – अध्याय
आप…
Added by गिरिराज भंडारी on August 13, 2015 at 8:30am — 18 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on August 12, 2015 at 11:34pm — 8 Comments
221 2121 1221 212 |
|
अपनी ख़ुशी उछाल के बिजली के तार पर |
रौशन किया है देखिये घर जोरदार पर |
|
आसान लग रहा है अगर तै सफ़र मियां… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 12, 2015 at 11:00pm — 26 Comments
गजल
====
बहर - 212 1212 1212 1212
काफिया - अर, रदीफ - मियाँ
किस्म-किस्म के जहर हैं हमपे बेअसर मियाँ
उम्र बीती आदमी का झेलते जहर मियाँ
दर्द बाँटने अगर तू आया है अवाम का
आसमान से जरा जमीन पर उतर मियाँ
सब तुम्हारे गुम्बदों की शान से सिहर गए
झोपड़ी मेरी तबाह कर गए कहर मियाँ
चाह मंजिलों की थी न जीत की ललक रही
वक्त ही गुजारना था, तय किए सफर मियाँ
अंधड़ों से लड़ता एक दीप मिल ही जाएगा
देख अपने…
Added by Sulabh Agnihotri on August 12, 2015 at 6:39pm — 17 Comments
ग्रीटिंग कार्ड (लघु कथा).......
आज सुशील अपने बेटे के बर्थडे पर बहुत खुश था। कवि होने के नाते उसने अपने पितृभाव को तो कागज़ पर उतार दिया था लेकिन फिर भी सोचा कि इसके साथ अगर एक ग्रीटिंग कार्ड भी दे दिया जाए तो बेटा खुश हो जाएगा। ग्रीटिंग कार्ड की बड़ी सी शॉप में जाकर वो कार्ड देखने लगा। कुछ देर के बाद दुकानदार ने पास आकर कहा '' सर, क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ। '' सुशील ने युवा जोड़ों की भीड़ में सकपकाते हुए कहा '' अरे हाँ , देखिये दरअसल मुझे बाप द्वारा बेटे को बर्थडे पर दिए…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 12, 2015 at 3:50pm — 22 Comments
"'अरे छोरा छोरी आ जाओ देखो कित्ती सारी चीज़ें मिली हैं आज..."कम्मो भिखारन अपनी जर्जर झुग्गी में कदम रखते हुए चिल्लाई
तीनों बच्चों ने उसे घेर लिया.
"सारा दिन बगल में टीवी देखना है बस्स ..माँ भीख मांगती फिरे ...., वो आज झंडे वाला दिन है ना , देखो क्या क्या मिला है ....लड्डू ,पूड़ी नमकीन ....."कम्मो झोले में से खाने के सामान की छोटी छोटी पौलीथीन की थैलियाँ निकालने लगी .
कचरे से मिले एंड्राइड फोन के कवर पर हाथ फिराता, बारह साल का पप्पू बोला "अम्मा, तू धीरे धीरे ,एक एक करके…
ContinueAdded by pratibha pande on August 12, 2015 at 11:30am — 16 Comments
2222 2222 2222 222
*******************************
माना केवल रात ढली है हमको उनका दीद हुए दर्शन
पर लगता है सदियाँ गुजरी अपने घर में ईद हुए /1
*******
हमने तो कोशिश की वो भी हमसे जुड़ते यार मगर
रिश्तों के पुल बरसों पहले उनसे ही तरदीद हुए /2 रद्द करना / तोडना
*******
भीड़ जुटाई…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2015 at 10:54am — 19 Comments
सीले हुए ,पुराने अधखुले तुडेमुडे गत्ते के डिब्बों में बन्द मोमबत्तियाों को दुकानदार ने झींकते हुए बार निकाला और मन ही मन जाने क्या-क्या खुदबखुद बडबडाने लगा । उसे ऐसे परेशान होता देख खुले डब्बे के मुँह से झाँककर एक मोमबत्ती बोली,'बेचारा!' फटाक से दूसरी बोली,'क्यों तुम्हें अपने ऊपर तरस नहीं आता ! कभी सोचा भी है कि कितने साल हो गए हमें इस मौसम में बाहर आते और मौसम खत्म होने पर बिना बिके अन्दर जाते।' नहीं याद वे दिन जब हमारी ज़रूरत बहुत थी, शान बहुत थी। हर दिन हमारा प्रयोग हुआ करता था और हम कभी…
ContinueAdded by Mamta on August 12, 2015 at 9:30am — 15 Comments
2122 2122 2122
आप रो देंगे बहुत संभावना है
अब हृदय में आपका आना मना है
अब क्षितिज पर फिर उजाला दिख सकेगा
यों, अँधेरा इस पहर काफी घना है
…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 12, 2015 at 7:53am — 25 Comments
पुरख़तर इश्क की राहें हैं तो चलते क्यूँ हैं
चोट खाकर ही मुहब्बत में सँभलते क्यूँ हैं
प्यारा के दीप इन आँखों में यूँ जलते क्यूँ हैं
चाँदनी रात में अरमान मचलते क्यूँ हैं
रात में ख़्वाब इन आँखों पे हुकूमत करते
सुब्ह होते ही ये हालत बदलते क्यूँ हैं
बेवफाई से हुए इश्क में जो दिल पत्थर
प्यार की आंच से ये फिर से पिघलते क्यूँ हैं
दूर से खूब लुभाते हैं ये तपते सहरा
तिश्नगी में ये मनाज़िर हमे छलते क्यूँ…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 11, 2015 at 7:49pm — 17 Comments
2122 2122 2122 212
जब तलक हो तुम सलामत जिंदगी मेरी रहे
जिस खुशी में तुम रहो खुश वो खुशी मेरी रहे
फेर ले रुख चॉंद अपना मै अभी मसरूफ हूँ
वस्ल की सारी लताफ़त दिलकशी मेरी रहे
खूबसूरत रात है ये खूबसूरत चॉंदनी
चॉंद बेशक हो तुम्हारा रोशनी मेरी रहे
आशिकी भी है कयामत आबशारे इख्तिलाफ़
राहते जां है वही जो नाखुशी मेरी रहे
मैं गलत हूँ या सही ये बात सारी दरगुज़र
चाहती है वो मुझे ये…
ContinueAdded by Ravi Shukla on August 11, 2015 at 6:00pm — 8 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |