Added by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on August 14, 2016 at 10:33am — 2 Comments
क्या असभ्य को सच में तुम घायल पाये
22 22 22 22 22 2 -- बहरे मीर
तुमने भी अपने हिस्से के पल पाये
मिली भाव की आँच, कभी क्या गल पाये
शब्दों का हर बाण चलाया तुमने पर
क्या असभ्य को सच में तुम घायल पाये
तेल डाल कर दिया कर जला छोड़ दिया
वो जानें, वो जल पाये ना जल पाये
समय इशारा किया हमेशा खतरों का
समझ इशारा कितने यहाँ सँभल पाये ?
खूब कोशिशें हुईं कि हम बदलें लेकिन
वर्तमान के…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 14, 2016 at 7:54am — 9 Comments
22 22 22 22 22 2 -- बहरे मीर
सब कुछ जाना पहचाना सा लगता है
मेरा ‘मै’ ही अनजाना सा लगता है
जिसकी अपने अन्दर से पहचान हुई
वो फिर सबको दीवाना सा लगता है
मन का खाली पन फैला यूँ वुसअत में
जग सारा अब वीराना सा लगता है
घर के हर कमरे की चाहत अलग हुई
बूढ़ा छप्पर गम ख़ाना सा लगता है
दिल का हर कोना दिखलाये हैं लेकिन
हर दिल में इक तहखाना सा लगता है
अपनेपन के अंदर भी अब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 14, 2016 at 7:30am — 12 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 13, 2016 at 12:28pm — 8 Comments
"बता जल्दी, कहाँ छुपा रखा है कमांडर को तुम लोगों ने", नशे में धुत्त और गुस्से के कांपते हुए दरोगा ने कस के एक लाठी मारी| मरियल सा आधी हड्डी का रग्घू लाठी पड़ते ही बाप बाप चिल्लाते हुए जमीन पर लेट गया| पीठ पर जहाँ लाठी पड़ी थी, वहां जैसे आग लग गयी थी उसके, लेकिन अब इतनी हिम्मत भी नहीं बची थी कि वो उठ पाए|
"साला, नाटक करता है, बहुत मोटी चमड़ी है इन सभो की, ऐसे नहीं बताएगा" कहते हुए दरोगा ने एक बार फिर लाठी उठायी| रग्घू जमीन पर पड़े पड़े फटी आँखों से देख रहा था, उसने अपने हाथ ऊपर उठा दिए| तब तक…
Added by विनय कुमार on August 12, 2016 at 9:43pm — 4 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on August 12, 2016 at 4:41pm — 3 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 12, 2016 at 3:30pm — 4 Comments
Added by Rahila on August 12, 2016 at 3:10pm — 3 Comments
“हर साल भाई को राखी डाक से भेज देतीं हूँ,. इस बार सोच रहीं हूँ उसकी कलाई पर बांधने चली जाऊँ.” विमला ने सकुचाते हुए अपने मन की बात पति कही.
पति की चुप्पी को अनुमोदन जान आगे बोल उठी:
“आप चिंता मत करो मैंने कुछ रूपये बचा कर रखें हैं, फल मिठाई और भाई के लिए एक कमीज आराम से आ जायेगी आप बस आने जाने का टिकट करा देना मेरा. सुबह जाकर रात तक वापस आ जाऊँगी.”
पति को अब भी चुप देख पूछ बैठी:
“क्या कहते हो, चली जाऊँ?”
पति ने अपने हाथ में पकड़ा हुआ खत उसकी ओर बढ़ा दिया, जो उसकी…
Added by Seema Singh on August 12, 2016 at 1:00pm — 7 Comments
Added by Abhishek Kumar Amber on August 11, 2016 at 6:50pm — 7 Comments
मुक्तक
जिसेे भी देखिये नख शिख तलक मानव नही लगता।
लिए बम वासना शमसीर हक मानव नही लगता।।
मुसीबत ने यहाँ मुफ़लिस किसानो को रुलाया है. .
बड़ी ताकत कहूं जो यार तक मानव नही लगता।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 11, 2016 at 5:06pm — 3 Comments
वह किसान था
लड़ता रहा उम्र भर
कभी सूखे की मार से
तो कभी बाढ़ की तबाही से
कभी बेमौसम बारिश से
तो कभी ओला वृष्टि से .....
वह किसान था
सहता रहा उम्र भर
हर तक़लीफ
हर गम
ताकि भरा रहे पेट दूसरों का .....
वह किसान था
करता रहा गुज़ारा
बचे खुचे पर
वह सीख गया था, एडजस्ट करना
प्रक्रति के साथ......
वह किसान था
खुश रहता था
हर परिस्थिति…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on August 11, 2016 at 11:00am — 5 Comments
Added by रामबली गुप्ता on August 11, 2016 at 9:30am — 13 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on August 10, 2016 at 10:51pm — 21 Comments
"बाबू साहब, इ तो हमार काम है, आप तो जानत हो", जोखू हैरान हाथ जोड़े खड़ा था| हमेशा की तरह उसने उस मरे हुए जानवर की खाल उतारी थी और उसे घर पर सुखा रहा था, कि गाँव के चौकीदार ने आकर उसको बताया "थाने से तुम्हरे नाम का कुछ आया है, जाके बाबू साहब से मिल लो, नहीं तो !", आगे के शब्द वो नहीं सुन पाया| उल्टे पैर भागा और बाबू साहब के दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया|
"उ सब तो ठीक है लेकिन थाने में तो किसी ने खबर कर दी है कि तुमने कोई गलत जानवर काट डाला है", बाबू साहब ने पान चबाते हुए कहा|
"चाहे जिसका कसम…
Added by विनय कुमार on August 10, 2016 at 10:05pm — 20 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 10, 2016 at 2:32pm — 4 Comments
1222-1222-1222-1222
-------------------------------
ख़ुदाया उसकी तकलीफ़ें मेरी ज़ागीर हो जाएँ,
ज़माने भर की ख़ुशियाँ उसकी अब ताबीर हो जाएँ |
यूँ दर्दों में तडपना और आन्हें मेरे सीने में,
कहीं तब्दील हो आन्हें न अब शमशीर हो जाएँ |
खुदा की हर अदालत में उसे गर चाह मिल जाए,
वो देखे ख्वाब दुनिया के, सभी तस्वीर हो जाएँ |
न मंज़िल है न वादा है न उसकें बिन मैं ज़िन्दा हूँ,
कहीं ये आदतें उसकी न अब तकदीर हो जाएँ…
Added by Harash Mahajan on August 10, 2016 at 2:30pm — 15 Comments
भाषण अपने चरम पर था। विशाल जन - समूह पूरे मनोयोग से सुन रहा था।
उन्होंने कहा:
"भाइयों! पार्टी में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और उच्च पद रिक्त है, मैंने निर्णय लिया है कि यह पद हमारे साथियों में सबसे पीछे खड़े आख़िरी आदमी को दिया जाएगा " .
उनका वाक्य पूरा भी नहीं हुआ कि सब लोग पीछे की ओर भागने लगे। पूरा मैदान खाली हो गया, मंच खाली हो गया, वे मंच पर अकेले रह गए।
खबर आयी है , लोग एक और भागे जा रहे हैं , बस भागे जा रहे हैं।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on August 10, 2016 at 10:00am — 26 Comments
बह्र : 22 22 22 22 22 22
तेज़ दिमागों को रोबोट बनाते हैं हम
देखो क्या क्या करके नोट बनाते हैं हम
दिल केले सा ख़ुद ही घायल हो जाता है
शब्दों से सीने पर चोट बनाते हैं हम
सिक्का यदि इंकार करे अपनी कीमत से
झूठे किस्से गढ़कर खोट बनाते हैं हम
नदी बहा देते हैं पहले तो पापों की
फिर पीले कागज की बोट बनाते हैं हम
पाँच वर्ष तक हमीं कोसते हैं सत्ता को
फिर चुनाव में ख़ुद को वोट बनाते हैं…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 9, 2016 at 10:10pm — 8 Comments
तेरी ज़िद है तू ही सही ;
मेरी अहमियत कुछ नहीं ,
बहुत बातें तुमने कही ;
मेरी रह गयी अनकही ,
ये तो मोहब्बत नहीं !
ये तो मोहब्बत नहीं !!
.......................................
हुए हो जो मुझ पे फ़िदा ;
भायी है मेरी अदा ,
रही हुस्न पर ही नज़र ;
दिल की सुनी ना सदा ,
तुम्हारी नज़र घूरती ;
मेरे ज़िस्म पर आ टिकी !
ये तो मोहब्बत नहीं !
ये तो मोहब्बत नहीं !!
..................................
रूहानी हो ये सिलसिला ;
ना इसमें हवस को मिला…
Added by shikha kaushik on August 9, 2016 at 9:27pm — 3 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |