कवि तेरे भी
कवि तेरे भी मन में
कोई तो विरहिणी
रहती है
श्वेत शीत पड़ी
किरण देह सी…
Added by राजेश 'मृदु' on August 14, 2012 at 10:30pm — 6 Comments
सिमटते दायरे
मजहब और कौम के दायरे में
हम सिमट गए;
इन्सान की इंसानियत से
हम भटक गए.
जो गलियां-ओ-कूँचे रौशन थे
गुल्जरों से;
वो इन्सान की दरिंदगी से
वीरान हो गए.
जो कहते थे;
बहिश्त जमीं पे लायेंगे,
वो गैरों के टुकड़ों…
Added by Veena Sethi on August 14, 2012 at 5:30pm — 3 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 14, 2012 at 3:25pm — 4 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 14, 2012 at 2:52pm — 1 Comment
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 14, 2012 at 2:39pm — 3 Comments
हे भारत के लोगों जागों
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 14, 2012 at 2:30pm — 3 Comments
बचपन !
आज मन मेरा फिर मुस्कुराया है
बचपन का दिन आज याद मुझे आया है
यादों ने फिर एक गीत सुनाया है
बचपन का दिन आज याद मुझे आया है…
स्कूल से घर आकर बसते का पटकना
तपती हुई धुप में बस यूँ ही भटकना
आइने के सामने मस्ती में मटकाना
पापा के कंधे पर जबरन…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on August 14, 2012 at 1:12pm — No Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 14, 2012 at 12:41pm — 2 Comments
ऑनर किलिंग पर एक रचना
बेटियां मरती नहीं
मेरे बालों में
वही फूलोंवाली क्लिप
अभी भी लगी है
और फैली है
मेरे चेहरे पर
तुम्हारी…
Added by राजेश 'मृदु' on August 13, 2012 at 9:50pm — 7 Comments
रामानुज के छोटे भाई शिवशंकर अन्तरिक्ष संचार विभाग में कार्यरत थे |विभाग के उपमहा प्रबंधक धोकलराम पंवार ने शिवशंकर को आकाशपुर की स्टेशनरी फर्मो से निविदाए एवं साथ में बंद लिफाफे एकत्रित कर प्रस्तुत करने का कार्य करने का निर्देश दिया | डी.जी.एम् धोकलराम पंवार को उसने बताया कि उसकी सेवा निवृति होने में अब 15 माह का समय ही शेष बचा है, अतः यह कार्य किसी अन्यसे सम्पादित करावे | डी.जी.एम्. पंवार ने कहा कि सेवा निवृति से पूर्व,मै चाहता हूँ कि आप भी लाभ ले लो,फिर आपकी इमानदार छवि के चलते किसी को कोई…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 13, 2012 at 4:00pm — 9 Comments
"शहरीकरण"
संस्कृति
चीखती कराहती
बिलखती
अपने चिरंजीवी
होने के अभिशाप को लिए
नग्न पड़ी है
आधुनिकता के गुदगुदे बिस्तर पे
उसकी इज्ज़त तार तार करने वाले…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 13, 2012 at 2:03pm — 8 Comments
किसके मन में नहीं वेदना
विकल प्राण की धरणी है
कौन प्रतापी धूसर पग से
पार हुआ वैतरणी है ?
किसके मन में ......
कौन विधु परिपूर्ण कला से
गगन खिला अभिराम लला से
कल्पवृक्ष यहां किसे मिला है
कौन अमर निर्झरणी है ?
किसके मन में.....
किसके पगतल भंवर नहीं हैं
गुहा-गर्त कुछ गह्वर नहीं हैं
दशो दिशा किसकी पूरब है ?
कौन वृत्त विकर्णी है ?
Added by राजेश 'मृदु' on August 13, 2012 at 2:00pm — 6 Comments
घनाक्षरी :
शीश हिमगिरि बना, पांव धोए सिंधु घना,
माँ ने सदा वीर जना, देश को प्रणाम है |
ब्रम्हचर्य जहाँ कसे, आर्यावर्त कहें इसे,
चार धाम जहाँ बसे, देश को प्रणाम है |
वाणी में है रस भरा, शस्य श्यामला जो धरा,…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 13, 2012 at 2:00am — 15 Comments
उसके आने की डगर अब देखता रहता हूँ मैं।
लेके टूटे ख़ाब शब भर जागता रहता हूँ मैं॥
रोज़ बनकर चाँद आँगन में मेरे आता है वो,
रोज़ उसकी…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on August 13, 2012 at 1:00am — 8 Comments
मित्रों, एक ताज़ा ग़ज़ल पेश -ए- खिदमत है ....
जाल सय्याद फिर से बिछाने लगे
क्या परिंदे यहाँ आने जाने लगे
खेत के पार जब कारखाने लगे
गाँव के सारे बच्चे कमाने…
Added by वीनस केसरी on August 12, 2012 at 11:30pm — 10 Comments
श्याम घन माला बिच दामिनी दमकती ज्यों,घनश्याम अंक गोरी राधिका समा रही
बरखा की बूँद मानो टोली गोप-गोपियों की, नाच नाच नाच मुद् मंगल मना रही
पवन की डोरियाँ डोलाय रहीं झूलानिया कृष्ण-कृष्णप्रिया द्वै को झूलनी झुला रही
लख लख प्रकृति के रूप ये अनूप गूँज ,राधे-कृष्ण, राधे-कृष्ण चहूँ दिसी छा रहीं
कुटिया कुटीर डूब रहे दृग सलिल मे,कब प्रिय मेघ मेरे अंगना पधारोगे
जलती अवनि बिन जल प्यासी सूख रही,कब इन्द्र देव कृपा अपनी उतारोगे
पावस मे पावक से…
ContinueAdded by seema agrawal on August 12, 2012 at 7:30pm — 2 Comments
हरियाणा के लाल ने दिया ख़ूब परिणाम
सारे जग में कर दिया, हिन्दुस्तां का नाम
हिन्दुस्तां का नाम, रजत कुश्ती में पाया
लन्दन में जा भारत का दमख़म दिखलाया
देशवासियों!आज झूम के ढोल बजाणा
ओलम्पिक में चमका भारत का हरियाणा
जय हिन्द !
-अलबेला खत्री
Added by Albela Khatri on August 12, 2012 at 7:00pm — 6 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on August 12, 2012 at 6:30pm — 5 Comments
क़लम, डायरी और तू...
आज सोचा की तेरी बड़ाई लिखूं
कुछ तेरी ही बाते कुछ तो सच्चाई लिखूं
कुछ ऐसा लिखूं जो मेरी कल्पना ना हो
चाँद, तारे, बादलों से तेरी तुलना ना हो
कुछ शब्द है मन में मेरे, कुछ पंक्तियाँ सजाई है
तुझपे कविता लिखने को मैंने डायरी उठायी है....…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on August 12, 2012 at 3:28pm — No Comments
एक ‘कवि’ जब खिन्न हुआ तो बीबी से ‘वो’ अकड़ा
कमर कसा ‘बीबी’ ने भी शुरू हुआ था झगडा
कितनी मेहनत मै करता हूँ दिन भर ‘चौपाये’ सा
करूँ कमाई सुनूं बॉस की रोता-गाता-आता
सब्जी का थैला लटकाए आटे में रंग आता…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 12, 2012 at 7:15am — 4 Comments
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